बप्पा रावल की जीवनी और इतिहास – मेवाड़ का कालभोज जिसके नाम से शत्रु भी कांपते थे। आइये जानते है बप्पा रावल का जीवन परिचय (bappa rawal story in hindi ), जन्म, लम्बाई, परिवार, उनके द्वारा लड़े गए युद्धों व उपलब्धियों के बारे में। बप्पा रावल का इतिहास (Bappa Rawal ki jiwani)
आज के इस आर्टिकल में आपको इतिहास के वीर योद्धा व महाराणा बप्पा रावल की जीवनी (Bappa Rawal Biography in Hindi) और बप्पा रावल का इतिहास बताने वाला हूँ। राजपूताने का इतिहास यहाँ के वीर योद्धाओ की वजह से रोचक रहा है। जब जब शत्रु ने आक्रमण किया, तब तब शत्रुओं को केवल हार का सामना करना पड़ा है।
बप्पा रावल भारत के उन महान योद्धाओ में से एक है जिन्होंने भारत पर आक्रमण करने वाले अरब के मुस्लिम लुटेरों को सफलता पूर्वक रोका और उनको कई बार युद्ध में हराया। बप्पा रावल अरब आक्रमणकारियों को उनके देश अरब तक खदेड़ कर आते थे। बप्पा रावल और उनके जैसे जन्म लेने वाले वीर योद्धाओ की वजह से भारत 400 वर्षों तक अरबों के आक्रमण से सुरक्षित रहा।
बप्पा रावल की जीवनी-Bappa Rawal Biography in Hindi
बप्पा रावल का असली नाम कालाभोज (कालभोजादित्य) था। इनका जन्म गुहिल राजपूत वंश में हुआ था। बप्पा रावल ने ही मेवाड़ में भगवान शिव के एकलिंग जी मंदिर का निर्माण करवाया था। पकिस्तान के रावलपिंडी शहर का नाम बप्पा के नाम पर ही पड़ा था। इतिहास में इनके बारे में आपको अनेक रोचक तथ्य (बप्पा रावल की जीवनी ) पढ़ने को मिलेंगे।
बप्पा रावल का जन्म और प्रारंभिक जीवन
बप्पा रावल के जन्म व उनके माता पिता के बारे में इतिहास में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। इतिहासकारों के अनुसार बप्पा रावल का जन्म 713-14 ई में गुहिल राजवंश में हुआ था। बप्पा रावल के पिताजी का नाम नागादित्य था। जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार बप्पा के पिता महेंद्र द्वितीय थे जो राजस्थान के ईडर के शासक थे।
जब बप्पा 3 साल के थे तब इनके पिता की हत्या कर दी गई थी। फिर बप्पा की माताजी ने उन्हें अपने कुल पुरोहित के पास भेज दिया। बप्पा रावल का बचपन ब्राह्मण परिवार में ही बीता था। वे बचपन में ब्राम्हणों की गाय चराने जाते थे। बप्पा का बचपन मेवाड़ के नागदा गाँव में बीता था। (Bappa Rawal ki jiwani)
बप्पा के जन्म के समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था। फिर 734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को हरा कर चित्तौड़ दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था और अपना शासन शुरू किया। बप्पा रावल को “कालभोज” के नाम से भी जाना जाता है।
बप्पा रावल की हरित ऋषि से मुलाकात
बचपन में बप्पा रावल ब्राह्मणो की गायों को चराने जाते थे। वही पर बप्पा की मुलाकात हरित ऋषि से हुई थी। बप्पा रावल हारीत ऋषि से बहुत अधिक प्रभावित थे। वे उनके अनन्य भक्त भी थे। हरित ऋषि भी बप्पा के व्यक्तित्व और प्रतिभा से काफी प्रभावित था। हरित ऋषि ने ही बप्पा रावल को बप्पा की उपाधि दी थी, जबकि बप्पा रावल का असली नाम कालभोज था।
ऋषि ने बप्पा का बहुत साथ दिया था। जब भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले होने लगे थे, तब हरित ऋषि ने बप्पा की प्रतिभा को देखकर सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया। इतिहासकार नैणसी के अनुसार हरित ऋषि ने बप्पा को गुप्त खजाने बारे में बताया था, जहाँ से बप्पा को लाखो में स्वर्ण मुद्राएँ मिली। बप्पा ने इस खाने से अपनी सेना को संगठित किया।
हरित ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को हरा कर चित्तौड़ दुर्ग पर अपना अधिकार किया। साथ ही हरित ऋषि ने बप्पा को वरदान दिया कि मेवाड़ पर हमेशा उनके वंशजों का ही अधिकार रहेगा। इस तरह हरीत ऋषि का वरदान सच साबित हुआ। सन्न 1947 तक मेवाड़ पर सिसोदिया वंश का ही अधिकार रहा था। भारत की स्वतंत्रता के बाद मेवाड़ राज्य भारत संघ में शामिल हो गया था।
गुहिल वंश की स्थापना
गुहिलादित्य ने गुहिल वंश की स्थापना 566 ईसवी में की थी। गुहिल वंश में कई प्रतापी राजा हुए, लेकिन बप्पा ने ही इस वंश को ऊँचाइयों पर पहुँचाया था। इसीलिए गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को ही माना जाता है। आगे चलकर इसी वंश से सिसोदिया वंश निकला था। जिसमें राणा कुम्भा, राणा सांगा और महराणा प्रताप जैसे महान वीर योद्धा हुए थे। गुहिल को सूर्यवंशी माना जाता है। वे अपने आपको सूर्यवंशी भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज बताते हैं।
बप्पा रावल की शिव भक्ति
बप्पा रावल भगवान शिव के परम भक्त थे। वे बचपन से ही भगवान शिव की उपासना करते थे। बप्पा जब गायों को चराने जाते थे, तब किसी न किसी गाय का दूध ख़त्म मिलता था। ऐसा बहुत दिन तक होता रहा। फिर एक दिन बप्पा ने छुपकर देखा तो गाय एक स्थान पर खड़ी थी और उसके थन से दूध की धार निकल रही थी।
यह दूध की धार नीचे शिवलिंग के ऊपर गिर रही थी। बाद में बप्पा रावल ने इसी स्थान पर भगवान शिव का एकलिंगजी मंदिर बनवाया था। बप्पा रावल को इसी स्थान पर हरित ऋषि मिले थे। वर्तमान में यह मंदिर उदयपुर के निकट कैलाशपुरी में स्थित है। (Bappa Rawal Biography in Hindi)
बप्पा रावल एक न्यायप्रिय और प्रजा के कल्याणकारी राजा थे। वे एकलिंग जी को ही मेवाड़ का राजा मानते थे और स्वयं को भगवन शिव का सेवक बताकर राज्य का संचालन करते थे। लगभग 30 साल शासन करने के बाद उन्होंने राजपाठ से सन्यास ले लिया था और राज्य का कार्यभार अपने उत्तराधिकारी बेटे को सौंप दिया था। राजपाठ से सन्यास लेने के बाद बप्पा रावल भगवान शिव की भक्ति और उपासना में अपना जीवन व्यतीत करने लगे थे।
बप्पा रावल का मेवाड़ शासक बनना
हरित ऋषि द्वारा बताये हुए खजाने से बप्पा ने सेना का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने चित्तोडगढ पर आक्रमण कर दिया और मान मोरी को हराकर चित्तोडगढ में अपना साम्राज्य स्थापित किया। बप्पा ने धीरे धीरे अपने राज्य की सीमा का विस्तार भी किया। जब बप्पा रावल मेवाड़ के शाहक बने थे, तब पश्चिम भारत अरब के आक्रमणकारियों से लगातार संघर्ष कर रहा था।
बप्पा रावल ने इस विषम परिस्थिति का जायज़ा लिया और अरबी सेना को मुँह तोड़ जवाब देने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रतिहार नागभट प्रथम, साभर व अजमेर नरेश अजयराज, हाडौती के धवल, माड़ जैसलमेर के शासक देवराज भाटी एवं सिंध के राजा दाहिर से मिलकर एक संयुक्त मौर्चा बनाया। (बप्पा रावल की जीवनी)
बप्पा रावल के नेतृत्व में संयुक्त मौर्चे की सेना व अरब की सेना के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ। इस युद्ध में बप्पा ने मुहम्मद बिन कासिम को पराजित किया। आक्रमणकारियों को ईरान, ईराक, तुर्की तक खदेड़ कर इन प्रदेशो पर कब्ज़ा कर लिया और आक्रमणकारियों से सिंध को मुक्त को कराया। इसके अलावा बप्पा ने धर्मान्तरित हुए लोगों को पुनः हिन्दू बनाया।
बप्पा रावल द्वारा अरब आक्रमणकारियों को खदेड़ना
712 ईसवी में मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहिर को हरा कर सिंध पर कब्जा कर लिया। साथ ही हजारो लोगों की हत्या करने बाद तलवार के दम पर लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया। अरब आक्रमणकारियों ने कई छोटे-छोटे देशी राजाओं को हराया। इस तरह अरब सेना गुजरात ,राजस्थान के कई हिस्सों में फ़ैल गईं थी।
इन अरब आक्रमणकारियों का सफलता पूर्वक सामना करने के लिए मेवाड़ से बप्पा रावल, प्रतिहार नरेश नागभट्ट और दक्षिण से चन्द्रगुप्त द्वितीय सामने आये। इन महान योद्धाओं ने अरब आक्रमणकारियों से हारे हुए राजाओं और कई छोटी-छोटी रियासतों को संगठित किया। बप्पा ने प्रतिहार नरेश नागभट्ट जैसे प्रतापी राजाओं के सांथ मिलकर एक विशाल हिन्दू सेना का गठन किया।
बप्पा रावल ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत करके सभी राजाओं के साथ मिलकर आपसी सहयोग स्थापित किया। बप्पा रावल की संयुक्त सेना और अरब सेना की बीच भयानक युद्ध हुआ। बप्पा ने आक्रमण कारियों को आगे बढ़ने से रोका और इन लुटेरों को ईरान व खुरासान तक खदेड़ कर आये। अरब लुटेरों के साथ बप्पा रावल जब भी युद्ध करते, वे हमेशा जीत कर ही वापिस आते थे।
बप्पा रावल कभी किसी युद्ध में नहीं हरे थे। बप्पा ने मुहम्मद बिन क़ासिम को हराकर और सिंध पर कब्ज़ा करके मुस्लिम शासन को ख़त्म किया। इसके बाद अरब आक्रमणकारियों ने चारों ओर से आक्रमण करना शुरू कर दिया। लेकिन बप्पा रावल ने सबको केवल हार का ही स्वाद चखाया।
बप्पा रावल और संयुक्त हिन्दू सेनाओं ने अरब आक्रमणकारी जुनैद और ईरान के हज्जाज द्वारा भेजी सेना को बुरी तरह पराजित किया। बप्पा ने गजनी के शासक सलीम को हारकर गजनी पर कब्ज़ा कर लिया। बप्पा रावल ने अरबी लुटेरों पर निगरानी रखने के लिए गजनी में सैन्य चौकी भी बनवाई। (बप्पा रावल की जीवनी)
कुछ इतिहासकार बताते है कि बप्पा रावल को प्रसिद्धि अरब आक्रमणकारियों से सफलतापूर्वक युद्ध करने के बाद ही मिली थी। इसके बाद बप्पा ने कच्छेल्लोंश्, गुर्जरों, चावड़ों, मौर्यों और सैंधवों को पराजित करके गुजरात, मारवाड़, मेवाड़ और मालवा जैसे सभी प्रान्तों पर अपना अधिकार स्थापित किया।
चित्तोड़ दुर्ग में जब तक बप्पा रावल के वंश शासन का शासन था, तब तक कोई भी अरब आक्रमणकारी चितोड़ की तरफ नहीं देखता था। इस तरह से बप्पा रावल और उनके जैसे जन्म लेने वाले वीर योद्धाओ की वजह से भारत 400 वर्षों तक अरबों के आक्रमण से सुरक्षित रहा।
यहाँ तक की बप्पा रावल का खौफ इतना था कि बप्पा के प्रकोप से बचने के लिए कई मुस्लिम राजाओं ने अपनी लड़कियों का विवाह बप्पा रावल से करवाया वर्तमान सीमाओं के अनुसार बप्पा ने 18 अंतर्राष्ट्रीय विवाह किये थे। (Bappa Rawal Biography in Hindi)
बप्पा रावल के सिक्के
प्राचीन समय में सभी राजा अपने अपने राज्य में अपने अपने सिक्के सिक्के चलते थे। ओझा गौरीशंकर हीराचंद ने अजमेर शहर में मिले सिक्के को बाप्पा रावल का सिक्का बताया था। बप्पा के रावल सिक्के का वजन 65 रत्ती (तोल 115 ग्रेन) बताया जाता है। बप्पा रावल मेवाड़ के पहले शासक थे जिन्होंने सोने के सिक्के चलवाए।
बप्पा द्वारा चलाये गए सिक्कों में शिवलिंग और शिवलिंग की तरफ मुख करके बैठे हुए नंदी की आकृति है। इसी सिक्के में शिवलिंग को प्रणाम करते हुए पुरुष की आकृति भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह आकृति बप्पा रावल की है। (बप्पा रावल की जीवनी)
इस सिक्के में सूर्य, छत्र, गाय और गाय का दूध पीते हुए बछड़े की भी आकृति है। सिक्के के अंदर ऊपर और निचे की ओर श्री बोप्प लिखा है जो माला के नीचे अंकित किया गया है। इसके अलावा त्रिशूल और बाई का चित्र भी अंकित है। यह सिक्का बप्पा रावल के जीवन व शिवभक्ति को व्यक्त करता है।
बप्पा रावल की पत्नियाँ
बप्पा रावल की कुल 100 रानियाँ थीं जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की पुत्रियाँ थी। मुस्लिम शासकों ने बप्पा रावल के डर उनके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे। जो मुस्लिम शासक बप्पा से युद्ध हार गए थे, उन्होंने भी मित्रता करने के लिए अपनी बेटियों की शादी बप्पा के साथ की थी। वर्तमान भारत की सीमाओं के अनुसार बप्पा रावल ने लगभग 18 अन्तराष्ट्रीय विवाह किये थे।
बप्पा रावल के पुत्र
बप्पा के कई रानियां थी, जिनसे बप्पा रावल के कई पुत्र थे। इन सभी पुत्रों में से सुमेर सिंह बप्पा रावल के उत्तराधिकारी बने। सुमेर सिंह का शासन काल 753 ईसवी से 773 ईसवी तक रहा है। इसके बाद सुमेर सिंह पुत्र रतन सिंह मेवाड़ के राजगद्दी पर बैठे। (bappa rawal story in hindi )
रावलपिंडी से बप्पा रावल का सम्बन्ध
बप्पा रावल ने अरब आक्रमणकारियों को उनके देश तक खदेड़ दिया था। उन्होंने मुस्लिम शासको को उनके घर में घुसकर हराया था। साथ ही बप्पा ने मेवाड़ का शासन सिंध और गजनी तक पहुंचा दिया था। यह क्षेत्र मेवाड़ से बहुत दूर था। बप्पा ने अरबी लुटेरों व मुस्लिम आक्रमणकारियों पर निगरानी रखने के लिए गजनी में एक सैन्य चौकी की स्थापना की। बप्पा ने इस सैन्य चौकी को रावलपिंडी नाम दिया। वर्तमान में रावलपिंडी पकिस्तान के पंजाब राज्य का एक प्रमुख शहर है।
बप्पा रावल के वंशावली
बप्पा रावल गुहिल राजवंश से सम्बंधित थे। चूँकि गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिलादित्य ने की थी, लेकिन इस राजवंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को ही माना जाता है। क्यूंकि बप्पा ने ही गुहिल राजवंश को बुलंदी तक पहुँचाया था। गुहिल राजवंश को बप्पा के बाद से मेवाड़ वंश भी कहा जाने लगा था। मेवाड़ राजवंश को दुनिया का सबसे लम्बा जीवित राजवंश माना गया है।
बप्पा रावल को कई वंशों का संस्थापक भी कहा जाता है। ‘नैणसी री ख्यात’ में गुहिलों की 24 शाखाओ का वर्णन मिलता है। बप्पा के बाद उनका उत्तराधिकारी सुमेर सिंह थे or मेवाड़ के शासक बने। सुमेर सिंह के बाद उनके पुत्र रतन सिंह मेवाड़ के शासक बने। बप्पा रावल के बाद मेवाड़ के 26 वें शासक रणसिंह थे, जिन्होंने सन्न 1158 से 1168 तक मेवाड़ पर शासन किया।
रणसिंह के दो पुत्र क्षेम सिंह और राहप थे। क्षेम सिंह ने मेवाड़ की बागडोर संभाली और रावल शाखा को आगे तक लेकर गया। जबकि रणसिंह का दूसरा पुत्र राहप ‘सिसोदा गाँव’ चले गए। सिसोदा में रहने के कारण राहप के वंशज सिसोदिया कहे जाने लगे। क्षेम सिंह के वंश से समर सिंह थे, जिनका शासनकाल सन्न 1273 से 1301 तक था।
समर सिंह के दो पुत्र थे- रतन सिंह और कुम्भकरण। रतन सिंह ने मेवाड़ की राजगद्दी सम्भाली जबकि कुम्भकरण नेपाल में जाकर बस गया। कुछ इतिहासकार बताते है कि नेपाल के राजा कुम्भकरण के ही वंशज थे। मेवाड़ के शासक रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी ने सन्न 1303 में हराकर मेवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया था। (बप्पा रावल की जीवनी)
मेवाड़ वंश की खोई प्रतिष्ठा को राहप के वंशज हम्मीर सिंह ने पुनः लौटाया। हम्मीर सिंह ने मेवाड़ पर फिर से कब्ज़ा कर लिया और हम्मीर सिंह ने महाराणा के उपाधि धारण की। इसके बाद राणा हम्मीर सिंह के सभी वंशज महाराणा कहलाने लगे थे। महाराणा हमीर सिंह के बाद गुहिल वंश की शाखा सिसोदिया वंश ने मेवाड़ पर शासन किया।
इस सिसोदिया वंश में राणा कुम्भा, राणा सांगा, राणा उदयसिंग और महाराणा प्रताप, महाराणा समर सिंह, जैसे शूर-वीरों ने जन्म लिया। इन वीर योद्धाओं ने अपने पराक्रम से एक गौरवशाली इतिहास की रचना की। भारत की आजादी तक मेवाड़ पर इसी राजवंश का अधिकार रहा था। इसके बाद सन्न 1947 में राणा भूपालसिंह ने अपने राज्य को भारत संघ में विलय कर दिया था।
बप्पा रावल की मृत्यु
मेवाड़ी राजवंश के सबसे वीर, साहसी, प्रतापी राजा बप्पा रावल के सामान उस समय के भारत में कोई अन्य नहीं था। बप्पा रावल की वीरता और शौर्य के लोक कथाएं और लोकगीत आज भी राजस्थान में गए जाते। बप्पा रावल का निधन 810 ईसवी में 97 वर्ष की उम्र में नागदा हुआ था। बप्पा का अंतिम संस्कार जिस स्थान पर हुआ था, उस स्थान पर बप्पा रावल की मंदिरनुमा समाधि बनी हुयी है। जिसे बप्पा रावल की छत्री कहा जाता है।
बप्पा रावल के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को ही कहा जाता है।
- बप्पा रावल को कालभोजादित्य या कालभोज के नाम से भी जाना जाता है
- गुहिल राजवंश के बप्पा रावल आठवें शासक थे। ऐसा कुछ इतिहासकार बताते है।
- बप्पा के समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था। 734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को हराकर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
- बप्पा रावल को हरीत ऋषि के माध्यम से भगवन शिव जी के दर्शन होने की बात काफी लोकप्रिय है।
- उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में एकलिंग जी का मन्दिर स्थित है, जिसका निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया। इसके पास ही हरीत ऋषि का आश्रम भी है।
- आदी वराह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे बनवाया था।
- बप्पा रावल की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध जितने के कारण हुई थी।
- बप्पा ने मौर्यों,चावड़ों,सैंधवों ,गुर्जरों और कच्छेल्लोंश् को हरा कर मेवाड़ गुजरात, मारवाड़ और मालवा जैसे बड़े भूभागों पर विजय प्राप्त की थी।
- कहा जाता है कि बप्पा रावल 35 हाँथ की धोती और 16 हाँथ का दुपट्टा पहनते थे। उनकी तलवार का वजन 32 मन था। बप्पा एक बार में एक ही झटके में 2 भैंसों की बलि दे देते थे। बप्पा अपने भोजन में 4 बकरे खाते थे। बप्पा रावल की सेना में 12 लाख 72 हजार सैनिक थे।
- बप्पा ने अपनी राजधानी नागदा को बनाया।
- बप्पा रावल की 100 पत्नियाँ थीं। जिनमें 35 पत्नियाँ मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं। बप्पा रावल का इतना भय था कि मुस्लिम शासकों ने अपनी बेटियों की शादी बप्पा के साथ में करवाई थी।
- बप्पा रावल की लंबाई 9 फीट थी।
- पाकिस्तान के रावलपिण्डी शहर का नाम बप्पा रावल के नाम से ही पड़ा है।
- वर्तमान भारत की सीमाओं के अनुसार बप्पा रावल ने लगभग 18 अन्तराष्ट्रीय विवाह किए थे।
- मेवाड़ राज्य का संस्थापक बप्पा रावल को ही माना जाता है।
- 753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में राजपथ से सन्यास ले लिया था।
- इनका समाधि स्थल एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर उपस्थित है।
- बप्पा का शासनकाल संवत् 780 (723 ईसवी) से संवत् 810 ( 753 ईसवी ) तक माना जाता है। कुछ इतिहासकार बताते है कि उन्होंने लगभग 30 वर्ष तक शासन किया था।
- बढ़ती उम्र की वजह से बप्पा रावल का देहांत 810 ईसवी में 97 वर्ष की उम्र में नागदा हुआ था।
FAQ
Q : बप्पा रावल का जन्म कब हुआ ?
Ans : 713 ईसवी में
Q : बप्पा रावल के पिता का नाम क्या था ?
Ans : नागादित्य
Q : बप्पा रावल के पुत्र का नाम क्या था ?
Ans : सुमेर सिंह
Q : बप्पा रावल के गुरु कौन थे ?
Ans : हरित ऋषि
Q : बप्पा रावल का सम्बन्ध किस वंश से था ?
Ans : गुहिल वंश से, इस वंश के लोग खुद को सूर्यवंशी बताते है।
Q : गुहिल वंश के संस्थापक कौन थे ?
Ans : गुहिल वंश की स्थापना 566 ईसवी में गुहिल (गुहिलादित्य) ने की थी। लेकिन गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को कहा जाता है।
Q : बप्पा रावल की पत्नी का नाम क्या था ?
Ans : कोकिला
Q : बप्पा रावल की हाईट कितनी थी ?
Ans : 9 फीट
Q : बप्पा रावल की तलवार का वजन कितना था ?
Ans : 32 मन
Q : बप्पा रावल की कितनी रानियाँ थीं ?
Ans : 100 रानियाँ थीं जिनमें से 35 रानियाँ मुस्लिम शासकों की पुत्रियाँ थीं।
Q : बप्पा रावल की मृत्यु कब हुई थी ?
Ans : 810 ईसवी में 97 वर्ष की उम्र में
Q : बप्पा रावल की उम्र कितनी थी?
Ans : 97 वर्ष
Q : बप्पा रावल की समाधि कहाँ है ?
Ans : नागदा में
Q : मेवाड़ का प्रथम शासक कौन था?
Ans : बप्पा रावल
Read also
- 14 महान भारतीय वैज्ञानिक (Great indian scientits ) जिन्होंने पूरी दुनिया बदल दी
- भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण
- चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी
- शहीद भगत सिंह की जीवनी
- मानुषी छिल्लर का जीवन परिचय
- विक्की कौशल का जीवन परिचय
मेरा नाम गोविन्द प्रजापत है। मैं talentkiduniya.com का फाउंडर हूँ। मुझे स्कूल के समय से ही हिंदी में लेख लिखने और अपने अनुभव को लोगो से शेयर करने में रूचि रही है। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से अपनी नॉलेज को हिंदी में लोगो के साथ शेयर करता हूँ।
nice story
jai bhawani jai mewad