अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय-Arunima Sinha biography in Hindi : अरुणिमा सिन्हा का जीवन उन लोगो के लिए एक मोटिवेशनल स्टोरी है, जो अपने जीवन में हार मान चुके है। अरुणिमा ने सिद्ध किया है कि अगर सच्चे दिल से मेहनत की जाये और जीवन में एक मजबूत लक्ष्य हो, तो कठिन से कठिन कार्य को किया जा सकता है। आज मैं आपको इस लेख में अरुणिमा सिन्हा की जीवनी (Arunima sinha ka jivan parichay), अरुणिमा सिन्हा का जन्म व परिवार, अरुणिमा सिन्हा की शिक्षा, अरुणिमा सिन्हा का करियर व अरूणिमा सिन्हा की मोटिवेशनल स्टोरी-Arunima Sinha Motivational Story in Hindi के बारे में बताऊंगा।
अरुणिमा सिन्हा वह महिला है जिसने असंभव को संभव करके दिखाया है। अरुणिमा सिन्हा एक विकलांग महिला है। एक ट्रैन हादसे में उन्हें यह अपंगता मिली। उन्हें अपना एक पैर गवाना पड़ा। विकलांग होने के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अरुणिमा सिन्हा ने एक विद्यालय से पर्वतारोहण का कोर्स किया हुआ था।
उन्होंने एक पर्वतारोही बनकर और माऊंट एवरेस्ट फतह करके पूरी दुनिया को दिखाया कि अगर जज्बा सच्चा हो तो दुनिया मुट्ठी में की जा सकती है। अरुणिमा सिन्हा एक बहुत ही साहसी महिला है। उन्हें बचपन अरुणिमा सिन्हा एक बहुत ही साहसी महिला है। उन्हें बचपन से ही वॉलीबॉल और फुटबॉल का खेल प्रिय था।
आपने दुनिया में ऐसे बहुत से लोगो को देखा होगा, जो छोटी छोटी बातो का बहाना बनाते है। ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे, जिनके पास बहानो की लम्बी लिस्ट होगी। मेरे सामने यह समस्या थी, इसीलिए मैं जीवन में सफलता नहीं पा सका। ऐसे लोगो के लिए अरुणिमा सिन्हा का जीवन (Arunima sinha ka jivan parichay) व Arunima Sinha Success Story in Hindi एक कड़ा तमाचा है।
तमाम मुश्किलों के बावजूद वह माउन्ट एवरेस्ट फतह करने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला बनी। बहुत से लोग ऐसे होते है जो थोड़े से दर्द और मुश्किल से ही हार मान लेते हैं परंतु इन्होंने इतना दर्द सहने के बावजूद कभी हार नहीं मानी और अपना नाम बनाकर सभी लोगो के लिए एक मिसाल कायम की है।
अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय एक नजर में
पूरा नाम (Full Name) | अरुणिमा सिन्हा |
जन्म दिनांक (Birth) | 20 जुलाई 1988 |
उम्र ( Age (2021) | 33 |
जन्म स्थान (Birth Place) | अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश |
पति (Husband) | गौरव सिंह |
धर्म (Region) | हिन्दू |
शिक्षा (Education) | नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण का कोर्स |
पहचान (Identification) | माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग |
जाति (caste) | कायस्थ |
पेशा (Profession) | पर्वतारोही , वॉलीबॉल खिलाड़ी |
नागरिता (nationality) | भारतीय |
पुरस्कार (Award) | पद्म श्री पुरस्कार (2015), तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार (2015), प्रथम महिला पुरस्कार (2016), मलाला पुरस्कार, यश भारती पुरस्कार, रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार |
अरुणिमा सिन्हा का जन्म व परिवार
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1988 को अम्बेडकर नगर, जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। अरुणिमा सिन्हा के माता-पिता के बारे में अभी सही से जानकारी उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि उनका पालन-पोषण उनके रिलेटिव ने किया था। कुछ लोगो का मानना है कि उनके पिताजी सेना में इंजीनियर हुआ करते थे जबकि माताजी हेल्थ डिपार्टमेंट में सुपरवाइजर हुआ करतीं थीं। इनके पिता जी मृत्यु तब हुई जब वह 3 साल की थी।
अरुणिमा सिन्हा की शिक्षा
अरुणिमा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश से पूरी की थी। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग नामक कॉलेज से पर्वतारोहण का कोर्स किया। अरुणिमा सिन्हा को पर्वतारोहण और वॉलीबॉल खेलना काफी पसंद था। अतः वह पर्वतारोहण करने के साथ-साथ वॉलीबॉल भी खेला करती थी।
अरुणिमा सिन्हा के साथ ट्रैन हादसा
अरुणिमा सिन्हा ने CISF की परीक्षा के लिए आवेदन किया था। इसीलिए उन्हें इस परीक्षा में शामिल होना था। इस परीक्षा में शामिल होने के लिए उन्हें दिल्ली जाना था। अप्रैल 2011 को अरुणिमा पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। रात के समय में बरेली के पास कुछ ट्रैन लुटेरे अरुणिमा से छिना छपटी करने लगे। उन्होंने गले में सोने की चैन पहनी हुई थी। उन बदमाशों ने अरुणिमा का बैग व चैन छीनने की कोशिश की। जब उन्होंने विरोध किया तो उन लुटेरों ने अरुणिमा को चलती ट्रैन से उठाकर बहार फेक दिया।
तब वह दूसरे ट्रैक पर आ रही ट्रैन से टकरा गयी और दोनों ट्रैन गुजर गयी। उन्हें काफी गहरी चोट आ गई। उन्होंने उठने की काफी कोशिश की थी पर वह बहुत ज्यादा घायल हो हो चुकी थी। उनके एक पैर चलती ट्रैन के नीचे आ चूका था जिससे वह पैर कट चूका था। उनका पैर पूरी तरह खून से लथपथ था। जब वह उठने की कोशिश कर रही थी तब उन्हें धुँधला दिखने लगा था। वह बेहोश हो चुकी थी पर उसे आती-जाती ट्रैन की केवल कम्पन सुनाई दे रही थी। आप इस घटना की कल्पना कर सकते है कि कितना दर्दनाक हादसा रहा होगा।
बेहोश होने से पहले वह काफी देर तक चिलाती रही लेकिन कोई भी उन्हें बचने नहीं आया। उनका कोई भी अंग काम नहीं कर रहा था। इतना सब होने के बाद भी उनकी साँसे चल रही थी। इस दुर्घटना के बाद उनके पैर के ऊपर से 49 ट्रैन गुजर चुकी थी। चूहे उनके कटे हुए पैर की स्किन को खा रहे थे। अगले दिन सुबह जब गांव वालो ने उन्हें ट्रैक पर घायल रूप में देखा तो उन्हें पास के हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। उनकी हालत देखकर डॉक्टर्स और फार्मासिस्ट अचंबित रह गए थे।
उस समय उनका उपचार करने के लिए हॉस्पिटल में ब्लड तक नहीं था परन्तु इंसानियत के नाते डॉक्टर्स ने उनको ब्लड दिया और उपचार किया। उनका एक पैर पूरी तरह ख़राब हो चूका था, जिससे डॉक्टर्स को वह पैर काटना पड़ा। दूसरे दिन ऑपरेशन के बाद जब उन्हें होश आया तो वह काफी रोने लगी। बाद में उन्होंने मन में धैर्य रखते हुए इसे क़बूल कर लिया कि अगर उन्हें भगवान यह जीवनदान दिया है तो वह इसे व्यर्थ जाने नहीं देंगी। उन्होंने निश्चय किया कि एक दिन वह अवश्य इतिहास रचेगी। इस तरह उन्होंने अपना होंसला बनाए रखा।
बाद में अरुणिमा सिन्हा को AIIMS हॉस्पिटल में ट्रांसफर कराया था। चार महीनो तक अस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के बीच जंग लड़ने के बाद उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की। कटे हुए पैर में उन्हें कृत्रिम पैर लगाया गया और दूसरे पैर में रोड डाली गई थी।
अरुणिमा सिन्हा का एक पैर काटने के बाद अस्पताल में बिस्तर पर लेटी रहती थी। परिवार के लोग उन्हें देखते थे और स्वयं में ही रोने लगते थे। अरुणिमा सिन्हा को अन्य लोगों के दृष्टि से एक गरीब तथा दुखियारी औरत के रूप में देखा जाने लगा। अरुणिमा सिन्हा को यह बात बहुत ही बुरी लगने लगी। ऐसी स्थिति में उन्होंने फैसला लिया कि एक दिन अवश्य वह कुछ ऐसा करेगी जिससे वह लोगो के लिए एक मिसाल बने। तब अरुणिमा सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट फतह करने के ठानी और माउन्ट एवरेस्ट फतह करने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला बनी।
अरुणिमा सिन्हा का माउंट एवरेस्ट तक सफर
इस ट्रैन दुर्घटना में वह अपना एक पैर गवा बैठी थी। इस दुर्घटना से पहले वह एक राष्ट्रीय स्तर की बॉलीबॉल चैंपियन थी। दुर्घटना से उन्होंने वॉलीबॉल खेलने का अवसर भी गवा दिया था। उस समय अरुणिमा बेहद बेसहारा व कमजोर थी। डॉक्टर्स ने उनकी यह हालत देखकर उन्हें आराम करने की सलाह दे चुके थे।
साथ ही स्पोर्ट्स से दूर रहने की सलाह दी। परन्तु अरुणिमा सिन्हा को यह सब मंजूर नहीं था। उन्होंने निश्चय किया कि वह लाचार व बेबस नहीं बनेगी। वह अपने पैरो पर खड़ी होगी न कि किसी पर बोझ बनेंगी और अपना एक अलग रास्ता चुनकर सभी के लिए मिसाल बनकर दिखाएगी।
दिल्ली AIMS में लगभग 4 महीने तक भर्ती रहने के बाद उन्हें छुट्टी मिली। उनके एक पैर में कत्रिम पैर लगा था जबकि दूसरे में रोड लगी थी। दिल्ली AIMS से छुट्टी मिलने के बाद उन्हें दिल्ली के एक संगठन ने कत्रिम पैर दिए। वह अपने सपने को पूरा करने के लिए सबसे पहले जमशेदपुर गई और वहाँ जाकर बछेंद्री पाल से मिली। बछेंद्री पाल से उन्होंने सारी बात कही और अपना शिष्य बनाने को भी कहा।
उन्होंने अरुणिमा से मिलकर कहा कि “अरुणिमा तूने इस हालत में यह सपना देखा तेरा सपना तो सच हो गया बस अब तो दुनिया को साबित करने के लिए तुझे चढ़ना है बाकी तू जीत चुकी है”। बछेंद्री पाल ने अरूणिमा के सपने को पूरा करने में सहायता की और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। अरुणिमा ने जी जान से मेहनत की और अपने सपने को पूरा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
बछेंद्री पाल की देखरेख में अरुणिमा ने अपना प्रशिक्षण पूर्ण किया और 31 मार्च 2013 को माउंट एवरेस्ट मिशन शुरू किया। जब वह एवरेस्ट के लिए गई तब शेरपा ने उन्हें साथ ले जाने से मना कर दिया और कहा कि इसकी वजह से मेरी जान को भी खतरा हो सकता है। परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और बछेंद्री पाल, उनके परिवार वाले और अरुणिमा स्वयं ने शेरपा को विश्वास दिलाया कि वह एवरेस्ट फतह कर सकती है और उनकी वजह से उन्हें कोई खतरा नहीं होगा। अंततः शेरपा मान गए और एवरेस्ट के लिए चढ़ाई करना शुरू किया।
इनके दल में कुल 6 लोग थे। कुछ दूरी तक अरुणिमा सबसे आगे रही परंतु जैसे ही ग्रीन और ब्लू बर्फ पर पहुँची उनका आर्टिफिशियल पैर फिसलने लगा। ऐसी स्थिति में एक पैर आगे बढ़ाना भी मुश्किल हो गया था। तब शेरपा ने उनसे कहा कि आपसे नहीं होगा जबरदस्ती मत करो। परंतु अरुणिमा सिन्हा हार मानने वालो में से नहीं थी। उनके पैर रखते ही पैर मुड़ जाता था। उनका पैर बार बार फिसल रहा था। बाद में वह बर्फ के टुकड़े हटाती और उस जगह में आर्टिफिशियल पैर रखकर आगे बढ़ने लगी।
धीरे-धीरे वह कैंप 3 तक पहुँची। कैंप 3 के ऊपर साउथ कोल सबमिट की बारी थी जहाँ अच्छे-अच्छे पर्वतारोही का हौसला टूटने लगता है। अरुणिमा सिन्हा आगे बढ़ने के लिए रात के समय में निकलती थी क्योंकि रात को मौसम शांत रहता है। वह जिस रोप में थी उसी रोप में एक बांग्लादेशी अधमरी हालत में दर्द से चीख रहा था। उसकी चीख सुनकर और वातावरण को देखकर वह डरने लगी थी। उन सब के रोंगटे खड़े हो रहे थे।
उस समय वह 10 से 15 मिनट तक अपनी जगह पर खड़ी रही और फिर उन लाशों को लांग कर चलना शुरू किया। कुछ दुरी तय करने के बाद शेरपा ने उन्हें बताया कि उनका ऑक्सीजन खत्म हो रहा है तो उन्हें वहीं से वापस चलना चाहिए। लेकिन अरुणिमा सिन्हा ने वापिस लौटने से मना कर दिया था। उन्होंने अपना हौसला बनाए रखा और आगे बढ़ती गई। अंततः अरुणिमा सिन्हा ने अपने बुलंद होसलो से चढ़ाई पूर्ण की। उन्होंने 52 दिनों में माउंट एवरेस्ट पर अपनी जीत का तिरंगा लहराया और 21 मई 2013 को अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला पर्वतारोही बनी।
अरुणिमा सिन्हा के द्वारा अन्य चोटियों की चढ़ाई
अरुणिमा सिन्हा ने अपने बुलंद होसलो से माउंट एवरेस्ट के अलावा अन्य चोटियों की भी चढ़ाई कर राखी है। वह एक साहसी महिला है। उन्होंने ऐसा काम किया है , जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। अरुणिमा के द्वारा फतह की गयी अन्य चोटियाँ इस प्रकार है।
- अर्जेटीना के अकोंकागुआ पर्वत पर (6961 मीटर)
- यूरोप के एलब्रुस पर्वत पर (5631 मीटर)
- अफ्रीका के किलिमंजारी पर्वत पर (5895 मीटर)
अरुणिमा सिन्हा की उपलब्धियाँ
- 21 मई 2013 को 10 बजकर 55 मिनट पर अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट की छोटी पर चढ़कर तिरंगा लहराया और विश्व की पहली दिव्यांग पर्वतरोही महिला बन गई। माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने में अरुणिमा ने लगभग 52 दिन का सफर तय किया था।
- अरुणिमा ने दुनिया के सातों महाद्वीपों की चोटियों में चढ़कर अपने देश का तिरंगा लहराया और हमारे देश का गौरव बढ़ाया है।
- अरुणिमा सिन्हा गरीबो और दिव्यांगों की सहायता के लिए शहीद चंद्रशेखर आजाद विकलांग खेल अकादमी के नाम से एक संस्था भी चलती है।
- वर्ष 2011 में अरुणिमा को सम्मान देने के लिए अरुणिमा फाउंडेशन दिव्यांग बच्चों के लिए शुरू किया गया है।
अरुणिमा सिन्हा को मिले हुए अवार्ड
- वर्ष 2015 में अरुणिमा सिन्हा को भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा सिन्हा की जीवनी “बॉर्न अगेन इन द माउंटेन” का उद्घाटन किया।
- वर्ष 2016 में अरुणिमा सिन्हा को तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड दिया गया था।
- वर्ष 2016 में अरुणिमा को अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से आंबेडकर रत्न से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2018 में अरुणिमा सिन्हा के योगदान के लिए प्रथम महिला सम्मलेन द्वारा सम्मानित किया गया।
- उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था द्वारा अरुणिमा को इस अद्भुत कार्य में सफलता हासिल करने के लिए सुल्तानपुर रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।
अरुणिमा सिन्हा के प्रेरक शब्द
“अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाकी है ,
अभी तो इस परिंदे का इम्तिहान बाकी है !
अभी अभी तो मैंने लांगा है समन्दरों को ,
अभी तो पूरा आसमान बाकी है !”
और “मंजिल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही। गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं। ”
यह अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय (Arunima Sinha Motivational Story in Hindi) है। Arunima Sinha Success Story in Hindi उन लोगो के लिए एक प्रेरणा है जो लोग छोटी छोटी समस्याओ से हार मान लेते है। अरुणिमा के सामने भी बहुत ही भयंकर समस्या थी। एक तरह से उनका जीवन समाप्त हो गया था। परन्तु अपने बुलंद होसलो से उन्होंने अपने जीवन की बागडोर बदली। वह समस्त विश्व की महिलाओं के लिए एक आदर्श व साहसी महिला है। उम्मीद करता हूँ आपको अरुणिमा सिन्हा की जीवनी (Arunima sinha ka jivan parichay) पसंद आई होगी। इस लेख से सम्बंधित किसी भी प्रकार के सवालो के लिए कमेंट बॉक्स में अपने विचार रखे।
FAQ
Q : अरुणिमा सिन्हा का जन्म कब हुआ?
Ans : 20 जुलाई 1988
Q : अरुणिमा सिन्हा का जन्म खान हुआ था ?
Ans : अंबेडकर नगर, जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में
Q : अरुणिमा के साथ ट्रेन का हादसा कब हुआ?
Ans : अप्रैल 2011 को
Q : अरुणिमा का जन्म कैसे परिवार में हुआ था?
Ans : अरुणिमा का जन्म मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता आर्मी में थे। जब अरुणिमा 3 साल की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। उनका बचपन बहुत दुर्बल परिस्थितियों में बिता था।
Q : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विकलांग महिला कौन थी?
Ans : अरुणिमा सिन्हा
Q : अरुणिमा ने अपनी एवरेस्ट की यात्रा कब शुरू की?
Ans : 21 मई 2013 को
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