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गुरु शिष्य का सम्बन्ध कैसा होना चाहिए : teacher and student relationship in hindi

गुरु शिष्य का सम्बन्ध

प्राचीन समय से ही गुरु शिष्य का सम्बन्ध अटूट रहा है। गुरु शिष्य का प्रेम माता-पिता की तरह ही निस्वार्थ होता है। गुरु ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा शिष्य सफलता के द्वार तक पहुँच पाता है। आज हम इस आर्टिकल में अध्ययन करेंगे कि गुरु शिष्य का रिश्ता कैसा होना चाहिए ? , गुरु शिष्य का सम्बन्ध कैसा होना चाहिए ? गुरु शिष्य का प्रेम कैसा होता है ?,teacher and student relationship in hindi, यह सब जानने के लिए आपको यह आर्टिकल ध्यान से पढ़ना है ?

गुरु कोई साधारण इंसान नहीं होता है। गुरु ही एक जरिया है जिसके बताये हुए पद चिन्हो पर चलने से कठिन से कठिन मुकाम को हासिल किया  जा सकता है। इसीलिए हमेशा गुरु का पूर्ण सम्मान करे। गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए। एक गुरु ही हमें समाज में अपनी पहचान बनाने की शिक्षा देता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है। जीवन में अगर गुरु का आशीर्वाद हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाईयों से मुकाबला किया जा सकता है।

जीवन में गुरु का महत्व

जिस तरह एक बच्चे की माँ उसकी प्रथम गुरु होती है जिसे वो खाना पीना, बोलना, चलना, आदि तौर तरीके सिखाती है। ठीक उसी तरह गुरु अपने शिष्य को जीवन जीने का तरीका बताता है। उसे सफलता के हर वो पहलु बताता है जो उसके लिए उपयुक्त हो। इस संसार सागर में सफलता पाने के लिए हर किसी को गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु के बिना सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। एक गुरु ही होता है जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। तभी तो गुरु शब्द में ”गु” का अर्थ अंधकार (अज्ञान) और ”रु” का अर्थ प्रकाश (ज्ञान) होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। इसीलिए गुरु को ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’।

प्राचीन समय से ही गुरु का सम्मान होता आ रहा है। गुरु को एक समाज सुधारक के रूप में देखा जाता है। अतः हर किसी को गुरु का सम्मान करना चाहिए। एक बच्चा जन्म से 5 वर्ष या 6 वर्ष तक अपनी माँ के पास रहता है जो उसकी प्रथम गुरु होती है। वह अपनी माँ से ही व्यवहार आचरण और बोलना व खाना पीना सीखता है। इसके बाद जब वह 5-6 वर्ष का हो जाता है तब उसे एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जो उसके भविष्य का निर्माण कर सके। इसके लिए वह पाठशाला में प्रवेश लेता है।

इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं है जो बिना गुरु के सफल हुआ हो। यदि डॉक्टर, वकील, इंजीनियर,समाज सेवक,ट्रेनर,सैनिक, आदि बनाना चाहते है तो इसके लिए आपको उसी क्षेत्र के एक गुरु की आवश्यकता होती है। यही गुरु आपको सफलता के द्वार तक लेकर जाता है।

इसीलिए हमेशा गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। गुरु के बिना जीवन अपूर्ण है। आपको कोचिंग,स्कूल, कॉलेज, खेल,आदि जगह पर गुरु की आवश्यकता पड़ती है। अतः गुरु के महत्व को समझे। गुरु के सेवा करे।  भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है। इसीलिए कहा गया है –

गुरु शिष्य का सम्बन्ध

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”

इस श्लोक का अर्थ है कि एक शिष्य के सामने ब्रम्हा, विष्णु, महेश खड़े है। तब गुरु अपने शिष्य को उन्हें नमन करने को बोलता है। लेकिन वह शिष्य संकोच में पड़ जाता है, कि मैं सबसे पहले किसको नमन करू। काफी सोच विचार के बाद शिष्य ने अपने गुरु को नमन किया और बोला कि आपके बिना यह त्रिदेव दर्शन संभव नहीं था। आपके द्वारा ही मुझे ब्रम्हा, विष्णु, महेश के दर्शन हुए है। अतः आपका स्थान त्रिदेवो से भी सर्वोपरि है। इसीलिए जीवन में गुरु का महत्व बहुत है। गुरु का गुण-गान जितना किया जाये उतना ही कम है।

गुरु-शिष्य परम्परा

गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक ज्ञान को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु अपने शिष्य को निस्वार्थ भाव से शिक्षा देता है। जिसके बदले में शिष्य अपने गुरु को शिक्षा समाप्त होने पर गुरुदक्षिणा देता है। बाद वही शिष्य अपने गुरु के बताये हुए मार्गदर्शन पर चलकर समाज सेवा करता है। या फिर गुरु बनकर दूसरों को शिक्षा देता है। जिससे यह कर्म चलता रहता है। गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। जैसे अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु ,विज्ञान, चिकित्सा आदि।

आश्रमों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता रहा है। भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यधिक सम्मानित स्थान प्राप्त है। भारतीय इतिहास में गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रूप में होने के साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है। प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का मुख्य आधार था – गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल,गुरु का शिष्यों के प्रति स्नेह भाव,निःस्वार्थ भाव एक गुरु में होते थे। इसी प्रकार एक शिष्य का भी दायित्व होता था कि वह अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास, गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण,गुरु की आज्ञा का पालन करे। साथ में शिष्य में अनुशासन भी होना चाहिए।

“काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा  तथैव च ।

अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ”।।

आचार्य चाणक्य ने एक आदर्श विद्यार्थी के गुण इस श्लोक में इस प्रकार बताया है कि एक आदर्श विद्यार्थी में पांच लक्षण होने चाहिए जो उसे सफलता की और ले जाती है। अर्थात एक आदर्श विद्यार्थी में कौआ जैसी चेष्टा, बगुले जैसा ध्यान, श्वान जैसी निंद्रा, अल्पहारी, और गृह त्याग के गुण होने चाहिए।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने गुरु-शिष्य परम्परा को ‘परम्पराप्राप्तम योग’ बताया है। गुरु-शिष्य परम्परा का आधार सांसारिक ज्ञान से शुरू होता है। परन्तु इसका चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक शाश्वत आनंद की प्राप्ति है जिसे ईश्वर -प्राप्ति व मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। बड़े भाग्य से प्राप्त मानव जीवन का यही अंतिम व सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए। ” गुरु एक मशाल है, शिष्य प्रकाश।

गुरु शिष्य का सम्बन्ध (प्रेम) कैसा होना चाहिए ?

गुरु शिष्य का सम्बन्ध (प्रेम) पवित्र व निस्वार्थ होता है। एक गुरु का अपने शिष्य के प्रति अगाध प्रेम होता है। वही शिष्य में अपने गुरू के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव होना चाहिए। गुरु शिष्य का सम्बन्ध निस्वार्थ होना चाहिए। गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था। अतः गुरु कभी भी अपने शिष्य का अहित नहीं चाहता है।  वह हमेशा अपने शिष्य का भला सोचता है। शिष्य का यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।

महाभारत कल में एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में धनुर्विद्या सीखने के लिए गए। परन्तु निषादपुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया। जिसके बाद वह निराश होकर जंगल में चला गया जहाँ उसने गुरु द्रोणाचार्य की एक मिटटी की मूर्ति बनाई जिसे वह अपना गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। एक बार एक भोकते हुए कुत्ते के मुँह को बाणो से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी। जब यह सारी घटना गुरु द्रोणाचार्य को पता चली तो उन्होंने गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया।

एकलव्य ने बिना कुछ सोचे व बिना संकोच किय अपनी गुरु की आज्ञा का पालन किया और झट से अपना अंगूठा दे दिया। इससे यह निष्कर्ष निकलता हैं कि एकलव्य में गुरु के प्रति सच्ची श्राद्ध व समर्पण का भाव था। अतः गुरु शिष्य का सम्बन्ध एकलव्य जैसे होने चाहिए। गुरु शिष्य का सम्बन्ध निस्वार्थ होना चाहिए। एक शिष्य को अपने गुरु पर पूर्ण विश्वाश होना चाहिए। शिष्य की गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। शिष्य को अपनी गुरु की क्षमता पर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए। गुरु बड़े बड़े तुफानो से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।

वर्तमान में गुरु शिष्य का सम्बन्ध

प्राचीन समय में गुरु आश्रमों में अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। उस समय उनके बीच मधुर सम्बन्ध हुआ करते थे। प्राचीन समय में गुरु शिष्य के बीच अगाध प्रेम हुआ करता था। शिष्य अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव रखता था। गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को शिक्षा दिया करते थे। परन्तु वर्त्तमान समय में यह स्थिति बिल्कुल उलट है। आज आश्रमों की जगह स्कूल कॉलेज ने ले ली है। और गुरु शिष्य का सम्बन्ध वैसा नहीं रहा जैसा प्राचीन समय में रहता था। आज गुरु शिष्य के सम्बन्ध सही नहीं है।  और गुरु शिष्य का सम्बन्ध स्वार्थ से पूर्ण हो गया है। गुरु शिष्य परम्परा समाप्त सी हो गयी है।

वर्त्तमान समय में विद्यार्थी अपने अध्यापक को पढ़ाने की मोटी फीस देता है और बदले में उनसे ज्ञान अर्जित करता है। गुरु का मान सम्मान, गुरु के प्रति श्रद्धा व समर्पण की भावना सब ख़त्म हो गया है। आजकल गुरु शिष्य का सम्बन्ध एक मित्र की भाँति हो गया है। वर्त्तमान स्थिति में गुरु में शिष्य के लिए कोई प्रेम नहीं है और न ही शिष्य में गुरु के प्रति सम्मान है। बाकि बिज़नेस की तरह शिक्षा भी एक व्यापार हो गया है। जो सिर्फ पैसो से चलता है। इस वजह से गुरु शिष्य परम्परा की संस्कृति समाप्त होती जा रही है। गुरु एक सच्चा समाज सुधारक होता है। जो की प्राचीन समय में सही साबित होते थे। आज गुरु शिष्य का सम्बन्ध बिगड़ने से समाज पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

आजकल आप अखबार, टीवी न्यूज़ चैनल सोशल मीडिया आदि पर गुरु शिष्य के सम्बन्ध को तार तार (बदमान) करने खबर पड़े होंगे। वर्तमान में एक शिक्षक का अपने छात्र के प्रति रवैया सही नहीं है। आज एक छात्र अपनी फीमेल शिक्षक के साथ फ़्लर्ट करता है और दोस्ताना रिश्ता रखने की चाह रखता है। ठीक इसी तरह एक मेल शिक्षक अपनी छात्रा के प्रति आकर्षित रहता है। आजकल शिक्षक और विद्यार्थी के रिलेशनशिप की खबर आये दिन सुनने में आती है। जिसका समाज पर सीधा कुप्रभाव पड़ रहा है। गुरु शिष्य का इस तरह का संबंध होना संस्कृति को नष्ट करने का काम कर रहा है। जब शिक्षक ही इस तरह के शर्मनाक कार्यो में लिप्त रहेंगे तो समाज के सुधरने की उम्मीद कैसे कर सकते है।

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वर्तमान समय में गुरु शिक्षक के सम्बन्ध को सुधारने की जररूत है। हालाँकि सभी शिक्षक व विद्यार्थी इस प्रवर्ति के नहीं होते है।  कुछ विद्यार्थी व शिक्षक इस तरह की संकीर्ण मानसिकता के होते है। कुछ विद्यार्थी व शिक्षक ऐसे होते है जो विद्यार्थी को विद्यार्थी नहीं और शिक्षक को शिक्षक नहीं समझते है। अतः इन सब यह निष्कर्ष निकलता है कि गुरु शिष्य का सम्बन्ध मधुर होना चाहिए। गुरु शिष्य के सम्बन्ध में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होना चाहिए। एक शिष्य में अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव होना चाहिए।

यह लेख teacher and student relationship in hindi मैंने अपने अनुभव से लिखा है। मैं स्कूल से ही अपने गुरुजनों का पूर्ण सम्मान करता था और आज भी करता हूँ। मैंने यह आर्टिकल अपने समय के गुरुजनों के प्यार-प्रेम और आज के आधुनिक गुरुजनों के आचरण को देखते हुए लिखा है। मेरे मन मैं बच्चपन से ही बड़ो के प्रति और गुरुजनों की प्रति अगाध प्रेम रहा है। अतः आप भी अपने गुरु का सम्मान करे। उनकी सेवा करे। गुरु पर हमेशा विश्वाश बनाये रखे। गुरु की क्षमता पर कभी भी संदेह न करे।

FAQ

Q : गुरु की आवश्यकता क्यों है ?

Ans.: जीवन में सफल होने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक या धार्मिक गुरु की आवश्यकता इसीलिए होती है ताकि वह जीवन जीने का तरीका बता सके। मोक्ष प्राप्ति के लिए भी गुरु की आवश्यकता होती है। विद्यार्थी जीवन में सफल होने के लिए तथा अपने लक्ष्य को पाने के लिए गुरु या शिक्षक की आवश्यकता होती है। अतः गुरु के बताये हुए पदचिन्हो पर चलने से सफलता का पथ तय किया जाता है।

Q : गुरु कैसा होना चाहिए ?

Ans.: गुरु में अपने शिष्यों के प्रति निस्वार्थ का भाव होना चाहिए। गुरु की दृष्टि में सब बराबर होना चाहिए। गुरु में कुशल नेतृत्व और अपने शिष्यों को शिक्षा देने में सक्षम होना चाहिए। गुरु में किसी नारी के प्रति आकर्षण का भाव नहीं होना चाहिए। धन के प्रति लोभी न हो।

Q : शिष्य कैसा होना चाहिए ?

Ans.: एक शिष्य में विद्यार्थी के सभी पाँचो लक्षण होना चाहिए। चाणक्य के अनुसार एक आदर्श विद्यार्थी वही है जो कौआ जैसी चेष्टा, बगुले जैसा ध्यान ,कुत्ते जैसा ध्यान, अल्पहारी और गृह त्याग का भाव , ये सभी गुण जिस विद्यार्थी में होते है वह विद्यार्थी आदर्श विद्यार्थी कहलाता है। इसके अलावा एक शिष्य की अपने गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा, पूर्ण समर्पण का भाव होना चाहिए।

Q : गुरु शिष्य का प्रेम कैसा होना चाहिए ?

Ans.: गुरु शिष्य का प्रेम मधुर होना चाहिए। गुरु शिष्य के प्रेम में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होना चाहिए। एकलव्य की

Q : गुरु शिष्य का सम्बन्ध कैसा होना चाहिए ?

Ans.: गुरु शिष्य के सम्बन्ध में निस्वार्थ का भाव होना चाहिए। समाज में गुरु का स्थान सर्वोपरि है इसीलिए गुरु को अपने शिष्य के प्रति विनम्र व्यवहार और समानता का भाव प्रकट करना चाहिए। गुरु अपने शिष्य का हमेशा भला सोचता है इसीलिए एक शिष्य को अपने गुरु पर संदेह नहीं करना चाहिए। और न ही उसकी क्षमता पर संदेह करना चाहिए।

Q : शिष्य का अर्थ क्या है ?

Ans.: भारतीय संस्कृति के अनुसार सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास रखे। गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो। गुरु के प्रति गहरी आस्था रखता हो। जो अपने गुरु की सच्चे तन मन भाव से सेवा करता है वही सच्चे मायने में शिष्य होता है।

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3 thoughts on “गुरु शिष्य का सम्बन्ध कैसा होना चाहिए : teacher and student relationship in hindi”

  1. Hii mera vivek hai
    Mai aapko batana chahta hu ki aap apne mata pita ke sath kabhi galt prakar ka byavhar na ke or apne se bado ke sath koi galt vachn ka prayog na kre
    Or kabhi bhi aisa kaam na kre jisse kisi dusre ko koi pareshani ho ,apni kushi ke saath saath dusre ki khushi ka bhi dhyan rakhe or na hi kisi ko gali gloch kre or na hi kisi ka apman kre

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