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डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी Dr. Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी Dr. Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi

स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी और अनमोल विचार, जन्म, शिक्षा के क्षेत्र में योगदान, विद्यार्थी जीवन, राजनितिक जीवन – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography, Life History and Quotes in Hindi

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। डॉ सर्वपल्ली को उनके महान कार्यों के लिए याद किया जाता है। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan के जन्मदिवस को प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां आपको महान शिक्षक व विद्वान डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan ki jiwani बताई जा रही है।

Table of Contents

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi

वे एक शिक्षक, दार्शनिक, दूरदर्शी और समाज सुधारक थे। भारतीय इतिहास में Dr. Sarvepalli Radhakrishnan का नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया हैं। उन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र में पश्चिमी सोच की शुरुवात की थी। 20 वीं सदी के विद्वानों में उनका नाम सबसे ऊपर था। वे पश्चिमी सभ्यता से अलग हिंदुत्व को देश में फैलाना चाहते थे।

इन्होंने हिंदू धर्म को भारत और पश्चिम देशों में फ़ैलाने का प्रयास किया था। इनका मकसद दोनों सभ्यताओ को मिलाना था। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का कहना था कि देश को बनाने में शिक्षक का सबसे बड़ा योगदान होता है। इसलिए शिक्षकों का दिमाग देश में सबसे अच्छा होना चाहिए। इस लेख में आपको डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निबंध बताया जा रहा है।

इस लेख में आपको डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय ( Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi ), डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निबंध बताया जा रहा है। Dr. Sarvepalli Radhakrishnan के जीवन से जुडी जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी। आपको यह लेख ( Dr. Sarvepalli Radhakrishnan ki jiwani ) अंत तक ध्यान से पढ़ना है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचयDr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi

पूरा नाम डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म 5 सितम्बर 1888
जन्म स्थान तिरुमनी गाँव, मद्रास
पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी
माता का नाम सिताम्मा
पत्नी का नाम शिवाकमु
बच्चे 5 बेटी, 1 बेटा
विवाह 1904
धर्म हिन्दू
जाति ब्राह्मण
पद भारत के पहले उपराष्ट्रपति

दूसरे राष्ट्रपति

सम्मान भारत रत्न , सन् 1954 में
मृत्यु 17 अप्रैल 1975
मृत्यु स्थान चेन्नई

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म और प्रारंभिक जीवन

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जन्म स्थान भी एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा है। डॉ राधाकृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी व माता का नाम सिताम्मा था। इनके पिता जी राजस्व विभाग में कार्य करते थे।

पुरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी इनके कंधो पर ही थी। वे एक विद्वान ब्राम्हण थे। राधाकृष्णन जी गरीब परिवार से थे। इसलिए आर्थिक तंगी के कारण राधाकृष्णन जी को बचपन से ही ज्यादा सुख-सुविधा नहीं मिली। वीरास्वामी के पाँच पुत्र व एक पुत्री थी। इन सब भाई बहनों में राधाकृष्णन जी का स्थान दूसरा था।

इनका प्रारंभिक जीवन गांव में बीता था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 14 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से शादी कर ली थी। जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ था। राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत 1956 में हो गई थी। इनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल है, जो भारत के महान इतिहासकारक थे।

भारतीय क्रिकेट टीम के महान खिलाड़ी वीवी एस लक्ष्मण राधाकृष्णन जी के खानदान से ताल्लुक रखते है। राधाकृष्णन जी ने अपने जीवन में बहुत कठिनाइओं का सामना किया है। भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बनने तक उन्होंने जीवन में कई विषम परिस्थितियों का सामना किया है। वे एक आदर्श शिक्षक थे और इसी उपलक्ष में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Education in hindi

राधाकृष्णन जी गरीब परिवार से तालुक रखते थे। इसलिए उन्हें ज्यादा सुख-सुविधा नहीं मिली थी। इनका बचपन तिरूतनी व तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ था। इन्होंने प्रथम आठ वर्ष तिरूतनी में ही व्यतीत किये थे। इनके पिताजी एक विद्वान ब्राह्मण थे। इसलिए राधाकृष्णन जी में धार्मिक भावनाए भी थी।

इन्होंने अपना बचपन गांव में ही बिताया था। इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुयी थी। बाद में वे क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में एडमीशन लिए। यहां उन्होंने 1896 से 1900 के तक अध्ययन किया। फिर सन्न 1900 से 1904 तक उन्होंने वेल्लूर में रहकर शिक्षा ग्रहण की।

इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से शिक्षा प्राप्त की। इस कॉलेज ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दी। वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे। वर्ष 1902 में राधाकृष्णन जी ने मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृति दी गयी थी। सन्न 1904 में उन्होंने कला संकाय की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की थी।

इस दौरान वे मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता प्राप्त कर चुके थे। फिर उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपना M.A पूरा किया। 12 वर्षों के अध्ययन काल में राधाकृष्णन जी ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश भी याद कर लिया था। साथ ही उन्होंने स्वामी विवेकानन्द और अन्य महान विचारकों का अध्ययन किया।

दर्शनशास्त्र में एम०ए० करने के बाद 1918 में वे मैसुर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त किये गए। बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी बने। राधाकृष्णन जी ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। समस्त विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गयी।

डॉ राधाकृष्णन का वैवाहिक जीवन

उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में बालविवाह होता था। राधाकृष्णन जी का भी 14 वर्ष की उम्र में बल विवाह हो गया था। 8 म‌ई 1903 को वे अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु के साथ शादी के बंधन में जुड़ गए थे। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। इसलिए 3 वर्ष बाद ही उन्होंने अपनी पत्नी के साथ रहना शुरू किया था।

इनकी पत्नी सिवाकामू ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन उनकी तेलुगु भाषा पर अच्छी पकड़ थी। वे अंग्रेज़ी भाषा पढ़-लिख सकती थीं। सन्न 1908 में राधाकृष्णन जी को पुत्री के रूप में पहली संतान प्राप्त हुयी। जिसक नाम उन्होंने सुमित्रा रखा था।

वे अपने वैवाहिक जीवन को चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। शादी के 6 वर्ष बाद ही 1909 में उन्होंने कला में स्नातकोत्तर परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 5 बेटी व 1 बेटा था। 1956 में राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत हो गई थी।

शिक्षक दिवस के पीछे की कहानी

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षक दिवस के अस्तित्व में आने के पीछे एक घटना है। जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ छात्र और मित्र उनका जन्मदिन मनाने के लिए उनके पास गए।

इसके लिए उन्होंने अनुरोध किया। फिर राधाकृष्णन ने अत्यंत विनम्रता के साथ अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया। तब से लेकर आज तक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है।

डॉ राधाकृष्णन द्वारा हिन्दू शास्त्रों का अध्ययन करना

जैसे प्रत्येक व्यक्ति पर शिक्षा का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है, वैसे ही शैक्षिक संस्थान की गुणवत्ता का प्रभाव पड़ता है। उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को क्रिश्चियन संस्थाओं द्वारा विद्यार्थियों के जीवन में लागु किया जाता था। इसी वजह से क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन जी के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गये।

लेकिन क्रिश्चियन संस्थाओं के कारण उनमे एक अन्य परिवर्तन भी देखने को मिला। कुछ लोग हिन्दुत्ववादी विचारों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे और उनकी आलोचना करते थे। राधाकृष्णन जी ने इन आलोचनाओं को चुनौती की तरह लिया और हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन करना शुरू किया।

राधाकृष्णन जी यह जानना चाहते थे कि किस संस्कृति के विचारों में चेतनता है और किस संस्कृति के विचारों में जड़ता है ? फिर इस बात पर दृढ़ता से विश्वास किया गया कि भारत के दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले ग़रीब तथा अनपढ़ व्यक्ति भी प्राचीन सत्य को जानते थे।

राधाकृष्णन जी ने तुलनात्मक रूप से यह जाना कि भारतीय आध्यात्म काफ़ी समृद्ध है। क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा हिन्दुत्व की आलोचनाए निराधार है। इस प्रकार उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि भारतीय संस्कृति धर्म, ज्ञान और सत्य पर आधारित है जो प्राणी को जीवन का सच्चा सन्देश देती है।

डॉ. राधाकृष्णन का भारतीय संस्कृति में योगदान

डॉ. राधाकृष्णन जी इस बात से अवगत थे कि जीवन बहुत ही छोटा है लेकिन इसमें व्याप्त खुशियाँ अनिश्चित हैं। इसलिए व्यक्ति को सुख-दुख में समभाव रखना चाहिए। मृत्यु एक अटल सत्य है, जो अमीर ग़रीब सभी को आती है। मृत्यु किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करती है। सच्चा ज्ञान वही होता है जो आपके अन्दर के अज्ञान को समाप्त कर सकता है।

सादगीपूर्ण व संतुष्टवृत्ति जीवन अमीरों के अहंकारी जीवन से बेहतर होता है। जिनमें असन्तोष का निवास होता है, वे कभी सुखी नहीं रहते है। एक शान्त मस्तिष्क बेहतर होता है, बजाय तालियों की उन गड़गड़ाहटों से, जो संसद व दरबारों में सुनायी देती हैं। इन्ही आधार पर राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के नैतिक मूल्यों को समझने में सफल रहे है।

उन्होंने क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा की गई आलोचनाओं के सत्य को स्वयं परखा। उन्होंने कहा कि आलोचनाएँ परिशुद्धि का कार्य करती हैं। सभी माताएँ अपने बच्चों में उच्च संस्कार देखना चाहती हैं। इसलिए वे अपने बच्चो को ईश्वर पर विश्वास रखने, पाप से दूर रहने व मुसीबत में फँसे लोगों की मदद करने का पाठ सिखाती है।

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह भी जाना कि भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना सिखाया गया है। सभी धर्मों के लिये समानता का भाव भी हिन्दू संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। इस प्रकार उन्होंने भारतीय संस्कृति की विशिष्ट पहचान को समझा और उसके काफ़ी नज़दीक हो गये।

डॉ राधाकृष्णन का जीवन दर्शन

डॉ राधाकृष्णन जी समस्त जगत को एक विद्यालय कि तरह मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। इसलिए समस्त जगत को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए।

ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि मानव को एक होना चाहिए। मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न हो।

राधाकृष्णन जी अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को  मंत्रमुग्ध कर देते थे। वे अपने छात्रों को उच्च नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देते थे।

वे जिस भी विषय को पढ़ाते थे, पहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे। दर्शनशास्त्र जैसे कठिन विषय को भी वे अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे। वे एक आदर्श शिक्षक के रूप में जाने जाते है। इसलिये इनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप मे मनाते है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का संघर्षमय जीवन

राधाकृष्णन जी का जीवन संघर्षमय रहा है। सन्न 1909 में 21 वर्ष की उम्र में राधाकृष्णन ने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू किया। वे भाग्यशाली थे कि उनको अपनी प्रकृति के अनुकूल आजीविका प्राप्त हुई थी।

यहाँ उन्होंने 7 वर्ष तक न केवल पढ़ाया बल्कि स्वयं भी भारतीय दर्शन व भारतीय धर्म का गहराई से अध्ययन किया। उन दिनों व्याख्याता के लिये यह आवश्यक था कि अध्यापन के लिए शिक्षण का प्रशिक्षण भी प्राप्त करे। इसलिए 1910 में उन्होंने शिक्षण का प्रशिक्षण मद्रास में लेना शुरू किया।

इस समय उनका वेतन मात्र 37 रुपये था। दर्शनशास्त्र विभाग के तत्कालीन प्रोफ़ेसर राधाकृष्णन के दर्शन शास्त्रीय ज्ञान से अत्यन्त अभिभूत थे।  अतः उन्होंने राधाकृष्णन जी को दर्शनशास्त्र की कक्षाओं से अनुपस्थित रहने की अनुमति दे दी। लेकिन इसके बदले में यह शर्त रखी कि वे उनके स्थान पर दर्शनशास्त्र की कक्षाओं में पढ़ा दें।

फिर राधाकृष्ण ने अपने कक्षा साथियों को 13 ऐसे प्रभावशाली व्याख्यान दिये, जिनसे विधार्थी भी चकित रह गये। इनकी विषय पर अच्छी पकड़ थी। उनका दर्शनशास्त्र के सम्बन्ध में दृष्टिकोण स्पष्ट था। व्याख्यान देते समय उन्होंने उपयुक्त शब्दों का चयन भी किया था।

सन्न 1912 में राधाकृष्णन ने “मनोविज्ञान के आवश्यक तत्व” शीर्षक से एक लघु पुस्तिका भी प्रकाशित की थी। इस पुस्तिका में उनके द्वारा कक्षा में दिए गए व्याख्यानों का संग्रह था। इस पुस्तिका से उनकी योग्यता प्रमाणित हुई कि उनके पास प्रत्येक पद की व्याख्या करने के लिये शब्दों का अतुल भण्डार है, साथ ही उनकी स्मरण शक्ति भी अत्यन्त विलक्षण है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनितिक जीवन

प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के आग्रह पर राधाकृष्णन जी को स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक इसके सदस्य रहे। इसी समय वे कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किये गये।

अखिल भारतीय कांग्रेसजन यह चाहते थे कि राधाकृष्णन गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी संविधान सभा के सदस्य बनाये जाये। डॉ राधाकृष्णन को राजनीति में लाने का श्रेय पंडित जवाहर लाल नेहरु को दिया जाता हैं।

नेहरू जी चाहते थे कि राधाकृष्णन के भाषण व प्रतिभा का उपयोग 14 – 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके बाद ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी।

13 मई 1952 से 1962 तक उन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया। इसके बाद 13 मई 1962 को आज़ाद भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। इनका कार्यकाल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि इनके कार्यकाल के समय में भारत व पाकिस्तान और भारत-चीन का युद्ध हुआ था।

भारत-चीन युद्ध में भारत को चीन से हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा इनके कार्यकाल में दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु हो गयी था। इन सबके बावजूद भी उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया।

वे स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे। इन दोनों महापुरुषों के जीवन के बारे में राधाकृष्णन ने बहुत ही गहराइयों से अध्ययन किया था। उनसे मिली प्रेरणा को अपने जीवन में भी उतारा।

उपराष्ट्रपति का कार्यकाल

सन्न 1952 में सोवियत संघ से आने के बाद राधाकृष्णन जी को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद सृजित किया गया। नेहरू जी ने इस पद के लिए राधाकृष्णन जी का चयन करके सभी लोगों को चौंका दिया। सब लोगो को आशा थी कि कांग्रेस पार्टी का ही कोई नेता उपराष्ट्रपति बनेगा।

उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन ने राज्यसभा में अध्यक्ष का पदभार भी सम्भाला। सन्न 1952 में उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति बनाया गया। वे आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे। उन्होंने नेहरू जी के चयन को भी सार्थक सिद्ध किया। उपराष्ट्रपति के रूप में एक गैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति ने सभी राजनीतिज्ञों को प्रभावित किया।

संसद के सभी सदस्यों ने उनके कार्य व व्यवहार की सराहना की। इनकी सदाशयता, दृढ़ता और विनोदी स्वभाव को लोग आज भी याद करते हैं।

राष्ट्रपति का कार्यकाल

सन्न 1962 से 1967 तक उन्होंने भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल संभाला। इनका कार्यकाल चुनौतीपूर्ण रहा। इनके कार्यकाल के समय भारत – चीन के बीच युद्ध हुआ, जिसमे भारत यह युद्ध हार गया था। इसके बाद भारत -पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में भारत को जीत प्राप्त हुयी।

इन्ही के कार्यकाल में दो-दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु हो गयी थी। इसलिए इनका कार्यकाल आसान नहीं था। विश्व के महान दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल ने राधाकृष्णन जी के राष्ट्रपति बनने पर अपनी प्रतिक्रिया इस तरह दी –

“भारतीय गणराज्य ने डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना हैं। यह विश्व के समूचे दर्शनशास्त्र जगत के लिए बेहद सम्मान की बात है। एक दार्शनिक होने के नाते मुझे विशेष रूप से ख़ुशी हैं “।

आगे उन्होंने कहा कि ” महान दार्शनिक प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और भारतीय गणराज्य ने डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनाकर उनको सच्ची श्रृद्धांजलि दी है “।

सप्ताह में 2 दिन कोई भी व्यक्ति उनसे बिना अपॉइंटमेंट के मिल सकता था। भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनने के बाद वे हेलीकॉप्टर से अमेरिका के वाइट हाउस पहुंचे। इससे पहले कोई भी वाइट हाउस में हेलीकॉप्टर से नहीं गया था।

भारत रत्न

चूँकि सन्न 1931 में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा राधाकृष्णन को “सर” की उपाधि प्रदान की गयी थी। लेकिन आजादी के बाद राधाकृष्णन के लिये इस उपाधि का मूल्य ख़त्म हो गया था। जब वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बने तब आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनके महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों को देखते हुए सन्न 1954 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मान किया।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की किताबें

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दर्शनशास्त्री और लेखक थे। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में 60 से अधिक पुस्तके लिखी थी।

  1. भारत और चीन
  2. गाँधी-श्रद्धांजलि-ग्रन्थ
  3. आज का भारतीय साहित्य
  4. भारत और विश्व
  5. आध्यात्मिक साहचर्य
  6. सत्य की खोज
  7. रवीन्द्र दर्शन
  8. भारतीय संस्कृति कुछ विचार
  9. उपनिषदों का सन्देश
  10. भारतीय दर्शन का इतिहास भाग-1
  11. भारतीय दर्शन का इतिहास भाग-2
  12. गौतम बुद्ध जीवन और दर्शन
  13. भारत की अंतरात्मा
  14. स्वतंत्रता और संस्कृति
  15. भारत में आर्थिक नियोजन

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिली मानद उपाधियाँ अवार्ड्स

जब डॉ राधाकृष्णन यूरोप व अमेरिका प्रवास से पुनः भारत लौटे तो विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया। डॉ राधाकृष्णन को राष्ट्र के हित में किये गये कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” सम्मानित किया गया।

  1. सन्न 1931 में उन्हें नाइट बैचलर / सर की उपाधि दी गयी लेकिन आजादी के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया
  2. सन्न 1938 में उन्हें ब्रिटिश एकाडमी के सभासद के रुप में नियुक्ति किये गये।
  3. सन्न 1946 में यूनेस्को में राधाकृष्णन जी ने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।
  4. सन्न 1954 में राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए राधाकृष्णन जी को भारत के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।
  5. सन्न 1954 में उन्हें जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस” से सम्मानित किया गया।
  6. सन्न 1961 में जर्मन बुक ट्रेड के “शांति पुरस्कार” से नवाजा गया।
  7. सन्न 1962 में राष्ट्रपति नियुक्त किये जाने पर इनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई।
  8. सन्न 1963 में ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया।
  9. सन्न 1968 में साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया। ये देश के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें यह पुरस्कार मिला था।
  10. सन्न 1975 में अमेरिकी सरकार ने उन्हें टेम्पलटन पुरस्कार से नवाजा। राधाकृष्णन पहले ऐसे गैर-ईसाई शख्सियत थे, जिन्हें ये सम्मान दिया गया।
  11. डॉ राधाकृष्णन को इंग्लैंड सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ मैरिट सम्मान से सम्मानित किया गया।
  12. सन्न 1989 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से स्कॉलरशिप की शुरुआत हुई।
  13. सन् 1931 से 1936 तक वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
  14. सन्न 1936 से 1952 तक वे ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे।
  15. सन्न 1937 से 1941 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
  16. सन् 1939 से 48 तक काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे।
  17. सन्न 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु – Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Death

17 अप्रैल 1975 को एक गंभीर बीमारी की वजह से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन हो गया। लेकिन वे अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में आज भी अमर है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान रहा हैं। राधाकृष्णन हमेशा कहा करते थे कि जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार – Sarvepalli Radhakrishnan Quotes in Hindi

  1. भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके के नाम पर बोलने का दावा करते हैं। अतः पाप पवित्रता का उल्लंघन नहीं बल्कि ऐसे लोगों की आज्ञा का उल्लंघन बन जाता है।
  2. केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है, स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है।
  3. हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम होता हो।
  4. शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके।
  5. कला मानवीय आत्मा की गहरी परतों को उजागर करती है। कला तभी संभव है जब स्वर्ग धरती को छुए।
  6. उम्र का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है. हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है।
  7. लोकतंत्र केवल विशेष लोगों के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक विश्वास है।
  8. कहा जाता है कि एक साहित्यिक प्रतिभा हर एक की तरह दिखती है, लेकिन उस जैसा कोई नहीं दिखता।
  9. कवी के धर्म में किसी निश्चित सिद्धांत के लिए कोई जगह नहीं है।
  10. कहते हैं कि धर्म के बिना इंसान बिना लगाम के घोड़े की तरह है।
  11. किताब पढने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची ख़ुशी मिलती है।
  12. धर्म कि भय पर विजय है, असफलता मौत का मारक है
  13. मानवीय जीवन जैसा हम जीते हैं वो महज हम जैसा जीवन जी सकते हैं उसका कच्चा रूप है
  14. राष्ट्र लोगों की तरह सिर्फ जो हांसिल किया उससे नहीं बल्कि जो छोड़ा उससे भी निर्मित होते हैं
  15. यदि मानव दानव बन जाता है तो ये उसकी हार है, यदि मानव महामानव बन जाता है तो ये उसका चमत्कार है। यदि मनुष्य मानव बन जाता है तो ये उसकी जीत है।
  16. कोई भी जो स्वयं को सांसारिक गतिविधियों से दूर रखता है और इसके संकटों के प्रति असंवेदनशील है वास्तव में वह बुद्धिमान नहीं हो सकता।
  17. मानवीय स्वभाव मूल रूप से अच्छा है और आत्मज्ञान का प्रयास सभी बुराईयों को ख़त्म कर देगा।
  18. आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है।
  19. धन, शक्ति और दक्षता केवल जीवन के साधन हैं खुद जीवन नहीं।
  20. मनुष्य को सिर्फ तकनीकी दक्षता नही बल्कि आत्मा की महानता प्राप्त करने की भी ज़रुरत है।
  21. हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है।
  22. मौत कभी अंत या बाधा नहीं है बल्कि अधिक से अधिक नए कदमो की शुरुआत है।
  23. ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है।
  24. शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकते बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है।
  25. जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है।
  26. पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।
  27. कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो। किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए।
  28. शिक्षक वाह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।

FAQ

Q :  सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब और कहा हुआ था ?
Ans :  सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गाँव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

Q :  भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति कौन थे ?
Ans :  डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

Q :  भारत के दूसरे राष्ट्रपति कौन थे ?
Ans :  डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

Q :  सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है ?
Ans :  जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ छात्र और मित्र उनका जन्मदिन मनाने के लिए उनके पास गए। इसके लिए उन्होंने अनुरोध किया। फिर राधाकृष्णन ने अत्यंत विनम्रता के साथ अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया। वे एक आदर्श शिक्षक थे। इसलिए हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

Q :  राधाकृष्णन ने कितनी पुस्तके लिखी थी ?
Ans :  राधाकृष्णन ने लगभग 40 से अधिक पुस्तके लिखी है।

Q :  सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या है ?
Ans :  “भारतीय दर्शन” राधाकृष्णन की प्रसिद्ध पुस्तक है जिसका विमोचन 1923 में किया गया था।

Q :  डॉ राधाकृष्णन को भारतीय गणराज्य का उपाध्यक्ष कब चुना गया ?
Ans :  सन्न 1952 में

Q :  राधाकृष्णन के माता पिता का क्या नाम था ?
Ans :  राधाकृष्णन के पिताजी का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी व माताजी का नाम सिताम्मा था।

Q :  डॉ राधाकृष्णन को भारत रत्न कब दिया गया ?
Ans :  राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए 1954 भारत के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। ये प्रथम व्यक्ति है, जिन्हे यह सम्मान मिला।

Q :  सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु कब हुई ?
Ans :  17 अप्रैल 1975 को एक गंभीर बीमारी की वजह से।

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