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पीटी उषा का जीवन परिचय P T Usha Biography in hindi

पीटी उषा का जीवन परिचय

पी टी उषा का जीवन परिचय-P T Usha Biography in hindi- आज हम पीटी उषा की जीवनी (P.T. Usha success story in hindi )आपके साथ शेयर करने वाले है। पीटी उषा किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उन्होंने अपने प्रयास व उत्कृष्ट कार्य से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। पीटी उषा एक महान एथलीट धावक है।

वह महिलाओं के लिए भी एक मिसाल हैं। उसने सभी अड़चनों व रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए एक एथलीट के रूप में अपनी पहचान बनाई। वह भारत ही नहीं बल्कि विश्व की समस्त महिलाओ के लिए और खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गयी है। पीटी उषा ने मेहनत और लगन से अपने जीवन में यह मुकाम हासिल किया है।

उन्होंने लगभग दो दशकों तक भारत को अपनी प्रतिभा से सम्मान दिलाया था। पीटी उषा का दौड़ने में कोई मुकाबला करने वाला नहीं था। वह दुनिया की सबसे फेमस तथा सफल महिला एथलीट में से एक है। इसीलिए उन्हें ‘क्वीन ऑफ़ इंडियन ट्रैक’ एवं ‘’पय्योली एक्सप्रेस’’ नाम का ख़िताब दिया गया था। आज पीटी उषा केरल में एथलीट स्कूल चलाती है। जहाँ वह अपनी प्रतिभा का ज्ञान दूसरों बच्चों को देती है।

पीटी उषा का जीवन परिचय (P.T. Usha ka jiwan parichay ), पीटी उषा की जीवनी (P.T. Usha ki jiwani )PT Usha Biography in Hindi, पीटी उषा की सफलता की कहानी व पीटी उषा की हिस्ट्री जानने के लिए आपको यह लेख अंत तक पढ़ना है। एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट व ”उड़न परी” का जीवन संघर्ष (P.T. Usha success story in hindi ) बारे में जानेंगे।

पी टी उषा का जीवन परिचय एक नजर में

पूरा नाम पिलावुलकंडी थेक्केपारंबिल उषा
अन्य नाम द पय्योलीएक्सप्रेस, गोल्डनगर्ल
पेशा ट्रैक और फील्ड एथलीट
जन्म तिथि 27 जून 1964
माता-पिता टी वी लक्ष्मी – इ पी एम् पैतल
आयु (2021) 56 वर्ष
जन्म स्थान पय्योली, कोझीकोड, केरल
राष्ट्रीयता भारतीय
वैवाहिक स्थिति विवाहित
पति का नाम वी. श्रीनिवासन
बच्चे (son) उज्ज्वल
धर्म हिंदू
कोच ओ. एम. नाम्बियार
ऊंचाई 5’7”
वजन 57 किलो

 

पीटी उषा का प्रारम्भिक जीवन

पीटी उषा का जन्म  27 जून 1964 में केरल के पय्योली गांव में हुआ था। पीटी उषा का पूरा नाम पिलावुलकंडी थेक्केपारंबिल उषा है। उषा के माता का नाम टी वी लक्ष्मी और पिता का नाम ई.पी.एम पैतल है। उनके पिता जी एक कपड़े के व्यापारी हुआ करते थे। उषा के दो बहने तथा एक भाई हैं।

बचपन में उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन जब उन्होंने खेल में भाग लेना शुरू किया तो उनके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। 4th क्लास से ही पीटी उषा को दौड़ना पसंद था। जब वह 7th क्लास में थी तब उनके शारीरिक शिक्षा के अध्यापक ने उषा को  स्कूल की चैंपियन के साथ रेस लगाने की सलाह दी। पीटी उषा ने उस चैंपियन को कुछ ही क्षणों में हरा दिया। यह सब देख के पूरा स्कूल हैरान रह गया था।

पीटी उषा को बचपन से ही थोड़ा तेज चलने का शौक था। उन्हें जहाँ जाना होता था वहाँ वह पालक झपकते ही पहुँच जाती थी। एक बार उषा के मामा जी ने कहा कि तू सारे दिन भर इधर-उधर दौड़ती रहती है। दौड़ प्रतियोगिता में भाग क्यों नहीं लेती ? तब मामा की बात से प्रेरित होकर उन्होंने दौड़ प्रतियोगिता में भाग ले लिया। उस समय वह मात्र 13 साल की थीं।

उस दौड़ में 13 लड़कियों ने भाग लिया था जिनमें  पीटी उषा सबसे छोटी थीं। जब दौड़ की शुरुआत हुई तो वह इतनी तेज दौड़ी कि बाकि लड़कियाँ देखती ही रह गयीं। उषा ने कुछ क्षणों में ही यह दौड़ जित ली। लोगों को उषा अंदर एक महान एथलीट की छवि दिखाई देने लगी। कुछ समय बाद उषा को 250 रुपये की मासिक छात्रवृति मिलने लगी जिससे वह अपना गुजारा चलाती थी।

उस दौड़ प्रतियोगिता में उषा ने एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया था। जिसकी उन्होंने कभी भी उम्मीद भी नहीं की थी। उन्होंने यह दौड़ तो आसानी से जीत ली थी लेकिन अनजाने में ही उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया था जिसे वह खुद भी नहीं जानती थीं। उस समय उषा की आयु 13 वर्ष की थी। ऐसा कारनामा करने के बाद उनमे उत्साह की लहर दौड़ पड़ी थी।

अपनी इस पहली जीत के बाद उषा ने अपने स्कूल के जिला स्तर पर होने वाले सभी मुकाबले में जीत दर्ज की। पीटी उषा का कहना है कि उनके चाचा जी स्कूल अध्यापक थे। इसीलिए उन्हें अपने माता-पिता को एथलीट के रूप में करियर बनाने के लिए मनाने में ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा। उषा के माता-पिता ने एथिलीट कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग में भी मदद की।

पीटी उषा को सबसे ज्यादा समुद्र के किनारे दौड़ना पसंद है। अतः उन्होंने यहाँ दौड़ने का अभ्यास किया। इसके अलावा उन्होंने धूल भरे रास्ते से लेकर गाड़ियों के बीच भी दौड़ की प्रैक्टिस की। उन्होंने अपने जीवन में यह मुकाम हासिल करने के लिए कई मुश्किलों का सामना किया। वह जब सुबह ट्रेनिंग के लिए निकलती थी तो रस्ते में बहुत से कुत्ते हुआ करते थे। उषा की रक्षा के लिए उनके पिता जी  एक छड़ी लेकर मैदान में जाया करते थे।

पीटी उषा का एथलीट करियर

सन 1979 में उषा ने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया जहाँ ओ. ऍम. नम्बियार का उनकी ओर ध्यान आकर्षित हुआ। वे अंत तक उषा के  प्रशिक्षक रहे। 1980 के मास्को ओलम्पिक में उनकी शुरुआत कुछ ख़ास नहीं रही। सन 1982 के बाद का समय पी टी उषा के चमत्कारी प्रदर्शनों से भरा पड़ा है।

सन 1982 में नयी दिल्ली के एशियन खेलो में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर में सिल्वर मेडल जीता था। इसके अगले ही साल कुवैत में एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में पीटी उषा ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीता था। यह एक एशियन रिकॉर्ड भी था। एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में उषा ने कुल 13 गोल्ड अर्जित किये थे।

सन 1980 में पीटी उषा ने एथलीट के रूप में अपने अन्तराष्ट्रीय करियर की शुरुवात कराची में आयोजित हुए ‘’पाकिस्तान ओपन नेशनल मीट’’ से की थी। इस एथलीट मीट में उन्होंने  4 गोल्ड मैडल जीते थे। 16 साल की इस छोटी सी लड़की ने भारत का सर दुश्मन देश में गर्व से ऊँचा कर दिया था।

सन 1984 के लांस एंजेल्स ओलंपिक खेलों में भी उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया था। यह सम्मान पाने वाली वह भारत की पहली महिला धावक थी। उस समय किसी को विश्वाश नहीं हो पा रहा था कि भारत की धाविका ओलंपिक खेलों में सेमीफ़ाइनल जीतकर अन्तिम दौड़ में पहुँच सकती है। जकार्ता की एशियन चैंम्पियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड मैडल जीतकर देश का सर गर्व से ऊँचा किया था। वह  ‘ट्रैक एंड फ़ील्ड स्पर्धाओं’ में लगातार 5 गोल्ड मैडल एवं एक सिल्वर मैडल जीतकर एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका बनी।

सन 1984 में लोस एंजेल ओलंपिक्स में 400 मीटर की बाधा दौड़ में उन्होंने सेमी फाइनल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। परन्तु फाइनल में वह मेडल जीतने से थोड़े से अंतर से चुक गयी थी। यह क्षण 1960 में मिल्खा सिंह की हार की याद दिलाने वाला था। फिर भी उषा ने तीसरे स्थान पर अपनी जगह बनाई। उषा ने 1/100 सेकंड के अंतर से ब्रोंज मेडल खो दिया था। 400 मीटर बाधा दौड़ का सेमी फ़ाइनल जीतकर किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली वह पहली महिला और पाँचवी भारतीय बनीं।

सन 1986 में सियोल में आयोजित 10th एशियन खेलो में ”ट्रैक एंड फील्ड खेलो” में उषा ने 4 गोल्ड मेडल और 1 सिल्वर मेडल जीता था। यहाँ 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर बाधा एवं 4*400 मीटर रिले रेस में उन्होंने जीत दर्ज की थी। एक ही इवेंट में एक ही एथलीट द्वारा इतने सारे मैडल जीतना अपने आप में एक रिकॉर्ड था। जिसे पीटी उषा ने अपने नाम किया था।

सन 1988 में सियोल में आयोजित ओलंपिक गेम्स में उषा को भाग लेना था परन्तु उनके पैर में चोट लग गयी थी। लेकिन पीटी ने अपने जज्बे को एक चोट की वजह से ख़त्म नहीं होने दिया। उन्होंने चोटिल अवस्था में ही दौड़ में भाग लिया। परन्तु वे इस खेल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और उन्हें एक भी जीत नहीं मिली।

सन 1989 में उन्होंने दिल्ली में आयोजित ‘एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट’’ के लिए जबरजस्त तैयारी की और उसने उस प्रतियोगिता में भाग लिया। जहाँ उन्होंने 4 गोल्ड मैडल एवं 2 सिल्वर मैडल जीते। इस समय उषा अपने रिटायरमेंट की घोषणा करना चाहती थी। लेकिन सभी ने उन्हें अपनी एक आखिरी पारी खेलने के लिए बोला। फिर उन्होंने  1990 में ‘बीजिंग एशियन गेम्स’ में हिस्सा लिया। और 3 सिल्वर मैडल अपने नाम किये। इस खेल के लिए वह पूर्ण रूप से तैयार नहीं थी।

सन 1990 में पीटी उषा ने इंटरनेशनल एथलेटिक्स गेम्स से संन्यास ले लिया था। सन 1991 में उषा ने वी श्रीनिवासन से शादी कर ली जिनसे इन दोनों के एक बेटा है। सन 1998 में अचानक सबको चौंकाते हुए उन्होंने  34 साल की उम्र में एथलेटिक्स में वापसी कर दी। हालाँकि उन्होंने पूर्ण रूप से सन्यांस नहीं लिया था। उन्होंने सन 1990 से 1998  कई प्रतियोगिताएं जीती थी।

उषा ने जापान के फुकुओका में आयोजित ‘एशियन ट्रैक फेडरेशन मीट’ में भाग लिया। उन्होंने 200 मीटर एवं 400 मीटर की रेस में ब्रोंज मैडल जीता 34 साल की उम्र में उन्होंने 200 मीटर की रेस में अपनी खुद की टाइमिंग में सुधार किया। और एक नया नेशनल रिकॉर्ड  बनाया। सन 2000 में फाइनली पीटी उषा ने एथलेटिक्स से संन्यास ले लिया। उन्होंने गेम्स में वापसी करके साबित कर दिया था कि प्रतिभा की कोई उम्र नहीं होती।

पीटी उषा का निजी जीवन

सन 1990 में बीजिंग एशियन गेम्स के बाद उषा ने खेल से सन्यास ले लिया था। सन 1991 में उन्होंने वी. श्रीनिवासन से रचाई। इन दोनों से एक बेटा है जिसका नाम उज्जवल है। शादी के बाद उनका करियर रुका नहीं। उषा के पति ने भी करियर के लिए उन्हें  समर्थन दिया। उनके पति खुद भी एक कबड्डी के खिलाड़ी हैं।

उन्होंने 34 साल की उम्र में 1998 में एथलेटिक्स में वापसी की और ‘एशियन ट्रेड फेडरेशन मीट’ में हिस्सा लिया। उन्होंने 200 तथा 400 मीटर की रेस में ब्रोंज मेडल अपने नाम किया। साल 2000 में  उन्होंने एथलेटिक्स से संन्यास लिया। घुटने में दर्द के कारण पीटी उषा ने रीटायर्ड होने का निर्णय लिया। आज पीटी उषा केरल में एथलीट स्कूल चलाती है। जहाँ वह अपनी प्रतिभा का ज्ञान दूसरों बच्चों को देती है।

पी टी उषा की उपलब्धियाँ 

  1. 1977 में कोट्टयम में राज्य एथलीट बैठक में एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया
  2. सन 1978 में पीटी उषा तब चर्चा में आईं, जब उसने जूनियर एथलीट के रूप में राष्ट्रीय अन्तर्राज्य प्रतियोगिता में कोल्लम में जीत हासिल की।
  3. पीटी उषा ने अपने 2 दशक के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय करियर में कुल 102 मेडल जीते हैं।
  4. मौजूदा समय में पीटी उषा केरल में एक एथलीट स्कूल चलाती है जिसमें वह वहाँ नौजवान एथिलीट को ट्रेनिंग दिया करती हैं।

5. सन 1980 में

  • मास्को ओलम्पिक खेलों में भाग लिया। उस समय वह 16 साल की उम्र में सबसे कम उम्र की भारतीय एथलीट बनी।
  • उषा ने कराची अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 4 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।

6. सन 1981 मे

  • पीटी उषा ने पुणे अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 गोल्ड मैडल प्राप्त किए।
  • उन्होंने हिसार अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 1 गोल्ड मैडल हासिल किया।
  • लुधियाना अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में भी उन्होंने 2 स्वर्ण पदक हासिल किये।

7. सन 1982 में

  • उन्होंने विश्व कनिष्ठ प्रतियोगिता में सियोल में 1 गोल्ड मैडल व एक रजत पदक हासिल की।
  • उन्होंने दिल्ली एशियाई खेलों में 2 रजत पदक जीते। और देश का नाम रोशन किया।

8. सन 1983 में

  • उन्होंने कुवैत में आयोजित हुए एशियाई दौड़कूद प्रतियोगिता में उन्होंने 1 गोल्ड मैडल व 1 सिल्वर मैडल प्राप्त किया।
  • उन्होंने दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 गोल्ड मैडल प्राप्त किए।

9. सन 1984 में

  • उन्होंने इंगल्वुड संयुक्त राज्य में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 गोल्ड मैडल प्राप्त किए।
  • पीटी उषा ने लॉस एंजल्स ओलम्पिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में भाग लिया और 1/100 सेकण्ड से कांस्य पदक से वंचित रह गयी थी। उसने 4×400 मीटर रिले में सातवाँ स्थान प्राप्त किया।
  • उन्होंने सिंगापुर में 8 देशीय अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक हासिल किए।
  • टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में भी उसने 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

10. सन 1985 में

  • चेक गणराज्य में ओलोमोग में विश्व रेलवे खेलों में 2 गोल्ड और 2 सिल्वर मैडल उषा ने जीते। साथ ही उन्हें सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी घोषित किया गया। भारतीय रेल के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय स्त्री को यह सम्मान मिला।
  • उन्होंने प्राग के विश्व ग्रां प्री खेल में 400 मीटर बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान प्राप्त किया।
  • उषा ने लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में 400 मीटर बाधा दौड़ में कांस्य पदक जीता।
  • उसने ब्रित्स्लावा के विश्व ग्रां प्री खेल में 400 मीटर बाधा दौड़ में रजत पदक हासिल किया।
  • उषा ने पेरिस के विश्व ग्रां प्री खेल में 400 मीटर बाधा दौड़ में 4था स्थान प्राप्त किया।
  • उन्होंने बुडापेस्ट के विश्व ग्रां प्री खेल में 400 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीती।
  • उन्होंने लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक जीती
  • उन्होंने ओस्त्रावा के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक प्राप्त किया।
  • उन्होंने कैनबरा के विश्व कप खेलों में 400 मीटर बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान व 400 मीटर में 4th स्थान प्राप्त किया।
  • उन्होंने जकार्ता की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में 5 गोल्ड मैडल तथा 1 कांस्य पदक हासिल किया।

11. सन 1986 में

  • उन्होंने मास्को के गुडविल खेलों में 400 मीटर बढ़ा दौड़ में 6th स्थान प्राप्त किया।
  • सियोल के एशियाई खेलों में 4 गोल्ड व 1 सिल्वर मैडल प्राप्त किया।
  • मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 1 गोल्ड मैडल हासिल किया।
  • सिंगापुर के लायंस दौड़ प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण पदक जीते।
  • नई दिल्ली के चार राष्ट्रीय आमंत्रिण खेलों में 2 स्वर्ण पदक जीते।

12. सन 1987 में

  • उन्होंने सिंगापुर की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण व 2 रजत पदक हासिल किये।
  • उन्होंने कुआलालंपुर की मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 2 गोल्ड मैडल प्राप्त किये।
  • उन्होंने नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रिण खेलों में 3 गोल्ड मैडल जीते।
  • उन्होंने कलकत्ता दक्षिण एशिया संघ खेलों में 5 गोल्ड मैडल हासिल किये।
  • उन्होंने रोम में दौड की विश्व चैंपियनशिप में भाग लिया। 400 मीटर बाधा दौड़ के फ़ाइनल में प्रवेश पाने वाली पीटी उषा पहली भारतीय बनीं।

13. सन 1988 में

  • उन्होंने सिंगापुर मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 3 गोल्ड मैडल प्राप्त किये।
  • उषा ने नई दिल्ली में ओलंपिक पूर्व दौड़ प्रतियोगिता में 2 गोल्ड मैडल जीते।
  • सन 1989 में
  • उन्होंने नई दिल्ली की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 4 स्वर्ण व 2 रजत पदक जीते
  • उन्होंने कलकत्ता में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 गोल्ड मैडल प्राप्त किये।
  • उन्होंने मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 4 गोल्ड मैडल हासिल किया।

14. सन 1990 में 

  • उषा ने बीजिंग एशियाई खेलों में 3 रजत पदक प्राप्त किये।
  • उसने 1994 हिरोशिमा एशियाई खेलों में 1 रजत पदक हासिल किया।
  • पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 कांस्य पदक जीता।

15. सन 1995 में

  • उन्होंने चेन्नई के दक्षिण एशियाई खेलों में 1 कांस्य पदक जीता।
  • पीटी उषा ने पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 कांस्य पदक जीता।

16. सन 1996 में

  • उन्होंने एटलांटा ओलिम्पक खेलों में भी भाग लिया।
  • साथ ही उन्होंने पुणे के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 रजत पदक जीता।

17. सन 1997 में पटियाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 गोल्ड मैडल जीता।

18. सन 1998 में

  • उन्होंने फ़ुकोका की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण, 1 रजत व 2 कांस्य पदक जीता।
  • उन्होंने नई दिल्ली में राजा भालेंद्र सिंह दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीता
  • उन्होंने बैंकॉक एशियाई खेलों में 4×400 रिले दौड़ में 1 रजत पदक जीता।

सन 1999 में

  • पीटी उषा ने काठमांडू के दक्षिण एशियाई खेलों में 1 स्वर्ण व 2 रजत पदक जीता
  • उन्होंने नई दिल्ली में राजा भालेंद्र सिंह दौड़ प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण पदक जीता

पीटी उषा को मिले अवार्ड्स

  1. सन 1984 में पीटी उषा को एथलेटिक्स में उत्कृष्ट सेवा व राष्ट्र का नाम ऊँचा करने के लिए ‘अर्जुन अवार्ड’ देकर सम्मानित किया गया।
  2. सन 1985 में देश के चौथे बड़े सम्मान ‘पद्मश्री’ से उन्हें सम्मानित किया गया।
  3. पीटी उषा को इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने ‘स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ़ दी सेंचुरी’ तथा ‘स्पोर्ट्स वीमेन ऑफ़ दी मिलेनियम’ का ख़िताब दिया।
  4. सन 1985 में जकार्ता में आयोजित हुए ‘एशियन एथलीट मीट’ में उन्हें बेहतरीन खेल प्रदर्शन के लिए ‘ग्रेटेस्ट वीमेन एथलीट’ का ख़िताब दिया गया था।
  5. सन 1984, 1985, 1989, व 1990 में पीटी उषा को सर्वश्रेष्ठ रेलवे खिलाड़ी के लिए मार्शल टीटो पुरस्कार दिया गया।
  6. सन 1985 एवं 1986 में बेस्ट एथलीट के लिए पी टी उषा को ‘वर्ल्ड ट्रोफी’ से सम्मानित किया गया।
  7. सन 1986 में सियोल के एशियन गेम्स के बाद ‘एडिडास गोल्डन शू अवार्ड फॉर दी बेस्ट एथलीट’ का ख़िताब दिया गया।
  8. सन 1984, 1985, 1986, 1987 व 1989 में उन्हें एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका का खिताब दिया गया।
  9. सन 1999 में पीटी उषा को केरल खेल पत्रकार इनाम से सम्मानित किया।
  10. दौड़ में श्रेष्ठता के लिए उन्हें 30 अंतर्राष्ट्रीय इनाम दिए गए।

आशा करता हूँ आपको पीटी उषा का जीवन परिचय (P.T. Usha ka jiwan parichay ) ,पीटी उषा का जीवन संघर्ष अच्छा लगा होगा। समस्त विश्व की महिलाओ के लिए पीटी का जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है। वह एक आदर्श महिला के रूप में पहचानी जाती है। पीटी उषा की जीवनी (P.T. Usha success story in hindi ) से सम्बंधित आपके पास कोई जानकारी हो तो कमेंट बॉक्स में बताये। कमेंट करके बताये कि पीटी उषा की जीवनी (P T Usha Biography in hindi) कैसी लगी

FAQ

Q : पी टी उषा का पूरा नाम क्या है ?
Ans : पिलावुलकंडी थेक्केपारंबिल उषा

Q : पी टी उषा का अन्य नाम क्या है ?
Ans : पय्योली एक्सप्रेस,उड़न परि और गोल्डन गर्ल।

Q : पीटी उषा का जन्म कब हुआ था ?
Ans : 27 जून 1964

Q : पीटी उषा के पति का नाम क्या है ?
Ans : वी. श्रीनिवासन

Q : पीटी उषा ने शादी कब की थी ?
Ans : सन 1991

Q : पीटी उषा के कितने बच्चे है ?
Ans : एक बेटा -उज्जवल

Q : पीटी उषा की उम्र कितनी है ?
Ans : 56 वर्ष

Q : पीटी उषा के कोच का नाम क्या है ?
Ans : ओ. एम. नाम्बियार

Q : वर्तमान में पी टी उषा क्या कर रही है?
Ans : वर्तमान में वह उषा स्कूल ऑफ एथलेटिक्स चलाती हैं। जहाँ वह एथलीट्स प्लेयर को अपने अनुभव से ट्रेनिंग देती है।

Q : दस वर्षीय उषा को क्या पसंद था?
Ans : उषा को ढोल बजाने में काफी रूचि है। वह गांव में महिलाओं के साथ भजन-कीर्तन के कार्यक्रमों में भाग लेती थीं। उन्हें भजन गाना और ढोलक बजाना पसंद था।

Q : उड़न परी के नाम से कौन जाना जाता है?
Ans : पीटी उषा

Q : पी टी उषा को अर्जुन पुरस्कार कब मिला?
सन 1984 में

Q : भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला एथलीट कौन हैं?
Ans : पीटी उषा

Q : उड़न परी किसे और क्यों कहते हैं?
Ans : पीटी उषा ने साल 1984 में 400 मीटर बाधा दौड़ में नेशनल रिकॉर्ड बनाया था। इसीलिए उन्हें उड़न परि कहा जाता है।

Q : पीटी उषा की आत्मकथा का क्या नाम है ?
Ans : पी. टी उषा के जीवन की आत्मकथा का नाम गोल्डन गर्ल है जो 1987 में लिखी गई थी।

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