बछेंद्री पाल का जीवन परिचय-Bachhendri Pal Biography in Hindi :- आज हम बछेंद्री पाल की जीवनी, बछेंद्री पाल की शिक्षा,जीवन संघर्ष,और उनके जीवन (bachhendri pal ka jiwan parichay) से जुडी जानकारी के बारे में जानेंगे। बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला है। उन्होंने 23 मई 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर माउंट एवरेस्ट पर फतह किया था। वह एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही हैं। बछेन्द्री पाल का नाम भारत की महिलाओं के लिए अग्रणी है।
उन्होंने पर्वतारोहण के क्षेत्र में अपने साहसिक कार्य से महिलाओं के गौरव को बढ़ाया है। बछेन्द्री पाल का जीवन कठिन परिश्रम, लगन और दृढ़ निश्चय की अद्भुत मिसाल है। बछेंद्री पाल का जीवन भारतीय महिलाओ के लिए ही नहीं बल्कि विश्वभर की महिलाओ के लिए आदर्श है। बछेंद्री पाल ने जीवन में सफलता हासिल करने के लिए कठीन रास्ता चुना। एवरेस्ट फतह करना कोई आसान कार्य नहीं था। कई लोग एवरेस्ट फतह करने के चक्कर में अपनी जान तक गवा बैठे है। बछेंद्री पाल ने एक बार नहीं बल्कि दो बार एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया है।
बछेंद्री पाल का जीवन परिचय-
पूरा नाम | बछेंद्री पाल |
जन्म तारीख | 24 मई 1954 |
जन्म स्थान | नाकुरी, उत्तरकाशी, उत्तराखंड |
पिता का नाम | किशन सिंह पाल |
माता का नाम | हंसा देवी |
भाई | 2 -बचनसिंह, राजेन्द्र सिंह |
बहन | 2- कमला पाल,उपमा पाल |
एजुकेशन क्वालिफिकेशन | बी.एड, संस्कृत भाषा में एम.ए और नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM) |
पेशा | पर्वतारोही और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की प्रमुख |
एवरेस्ट की चढ़ाई | 23 मई 1984 (30 वर्ष की आयु में) |
धर्म | हिंदू |
रेजिडेंट | जमशेदपुर, झारखंड |
सम्मान | पद्म श्री, पद्म भूषण |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उम्र | 67 years |
बछेंद्री पाल का जन्म व परिवार
बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के एक छोटे से गाँव नकुरी में हुआ था। उनके पिताजी का नाम किशनपाल सिंह और माताजी का नाम हंसा देवी था। किशनपाल सिंह एक साधारण व्यापारी थे, जो अपने पांच बच्चो के पालन-पोषण करने के लिए गेहू , चावल और किराने के सामान को खच्चर गधो पर लादकर तिब्बत ले जाते थे। वहाँ से वापसी में वे तिब्बती सामान लाकर गढ़वाल में बेचते थे।
भारत-चीन युद्ध से पहले तिब्बत आने जाने के लिए कोई रोक-टोक नहीं थी, परन्तु युद्ध के बाद बछेंद्री पाल के पिता का तिब्बत आना-जाना बंद हो गया। जिससे उनका यह छोटा सा व्यापार बंद हो गया। बछेंद्री का परिवार खेती-बाड़ी में भी रुचि रखता था। बछेन्द्री का बड़ा भाई बचनसिंह सीमा सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर के पद पर थे।
भाई बचनसिंह अपने छोटे भाई राजेन्द्र सिंह को पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करते थे। जबकि बछेंद्री पाल को अपने बड़े से इस तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। इस भेदभाव से वह बहुत दुखी रहती थी। चूँकि बचपन से ही उनकी रूचि पर्वतारोहण में थी। बछेंद्री पाल बचपन से ही बहुत चुस्त थी। वह पढ़ाई के साथ साथ खेल-कुद में भी अव्वल रहती थी।
बछेंद्री पाल की शिक्षा
बछेंद्री पाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपनी जन्मस्थली से पूर्ण की थी। उन्होंने संस्कृत विषय से अपना M.A और B.ed पूर्ण किया। उनके माता-पिता की इच्छा थी कि वह एक अध्यापिका बने। उन्होंने कुछ समय तक एक अध्यापिका के तौर पर भी कार्य किया। लेकिन कम सैलरी मिलने के कारण उन्हें यह जॉब छोड़ना पड़ा। मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला। उन्हें जो भी कार्य मिलता वह अस्थायी होता या कम सैलरी वाला होता था। बछेंद्री ने अपनी पढ़ाई के दौरान खेलकूद की गतिविधियों को जारी रखा।
वर्ष 1981 में उन्होंने नौकरी करने के बजाय ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। परन्तु उस समय इंस्टीट्यूट की सभी सीटें भर गई थी। इस वजह से उन्हें वर्ष 1982 में एडमिशन मिला। उन्होंने यहाँ से माउंटेनियरिंग का कोर्स किया और अपना सारा ध्यान एक माउंटेनियरिंग बनने में लगा दिया। हालाँकि बछेंद्री पाल को अपनी पढ़ाई पूर्ण करने में पिता का विरोध सहन करना पड़ा। लेकिन अपनी माता के द्वारा पिताजी को समझाने के बाद उन्होंने बछेंद्री को आगे की पढ़ाई करने की इजाजत दी थी।
बछेंद्री पाल को मिला पर्वतारोहण का पहला अवसर
12 साल की उम्र में बछेंद्री पाल को पर्वतारोहण का पहला अवसर मिला। उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। उन्हें यह अवसर तब मिला जब वे अपने स्कूल पिकनिक पर गई हुई थी। उनके पास चढ़ाई करने के लिए कोई योजनाबद्ध तरीका नहीं था। बस शिखर की ओर चढ़ाई करते गए और उन्हें शिखर तक पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई थी। रात्रि में वापिस उतरना उनके लिए संभव नहीं था। इसलिए उन्हें रात्रि खुले आसमान के नीचे गुजारनी पड़ी। उनके पास रात गुजारने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं था। उन्हें बिना भोजन के रात बितानी पड़ी थी। बछेंद्री के लिए यह दिन किसी यादगार दिन दे कम नहीं था।
बछेंद्री पाल का एवरेस्ट तक सफर
वर्ष 1984 में IMF के “एवरेस्ट-84 ” नाम के अभियान दल में बछेंद्री पाल का चयन हुआ। इस टीम में उनके साथ कुल 16 सदस्य थे और इन 16 सदस्यों में 11 पुरुष शामिल थे और अन्य महिलाएं थीं। इस अभियान में सबसे प्रशिक्षित पर्वतारोही थे। इस अभियान को पूरा करने के लिए ये सभी लोग 7 मार्च 1984 को दिल्ली से नेपाल के लिए रवाना हुए। जिस दिन यह दल पर्वतारोहण के लिए नेपाल से निकला, तब इस दल की अखबारों में बहुत चर्चा हुई थी।
काठमांडू पहुँचने के बाद यह दल माउंट एवरेस्ट पर चढाई करने के लिए रवाना हुआ। एवरेस्ट को पहली बार अपनी आँखों से देखकर बछेंद्री को अपने सपनों की उडान दिखाई दी, जिसे वह कई वर्षो से देख रही थी। उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए कई चरण बनाये। इस अभियान का पहला चरण बेस कैंप था। बछेंद्री पाल व उनके साथियों ने मिलकर बेस कैंप से सफर शुरू किया और शिविर तक पहुँचे। उनका शिविर 9900 फीट (6065 मीटर ) की ऊँचाई पर था। सभी ने शिविर में रात्रि बितायी।
अगले दिन इन सभी ने शिविर 2 की ओर कदम बढ़ाये। इनका शिविर-2 21300 फीट (6492 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित था। शिविर-2 में आराम करने के बाद अगले दिन शिविर-3 की ओर कदम बढ़ाये। शिविर-3 की ऊंचाई 24,500 फीट (7470 मीटर) थी। 15-16 मई को यह दल इस ऊंचाई तक पहुँच गया था। यहां इन सभी ने आराम किया।
रात्रि के समय में एक जोरदार धमाका हुआ। बछेंद्री पाल व उसके साथियों ने बाहर निकलकर देखा तो उनका पूरा शिविर चारो ओर से बर्फ से ढक हुआ था। एक हिमखंड के टूटकर गिरने से उसके कुछ साथी घायल हो गए थे। उन्होंने चाकु से बर्फ को काटकर बाहर निकलने का रास्ता बनाया। घायल साथियों को वापस नीचे बेस कैंप में पहुचाया गया।
ऊंचाई पर पहुँचने के साथ साथ ठंड भी बढ़ती जा रही थी। भरी ठण्ड उन्हें आगे बढ़ने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। सभी को साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। लेकिन बछेंद्री पाल ने हार नहीं मानी। उन्होंने शिविर-4 की ओर अपने बचे हुए साथियों के साथ अपना सफर आगे जारी रखा। उनका शिविर-4 26,000 फीट ( 7925 मीटर) पर स्थित था। इस शिविर तक पहुँचते-पहुँचते उनकी टीम में उपस्थित सभी महिलाओं ने हार मान ली। ये सभी महिलाएँ यहाँ से वापस बेस कैंप चले गईं।
अब इस अभियान को पूरा करने के लिए IMF के “एवरेस्ट-84 ” नाम के दल में से केवल बछेंद्री पाल ही एक महिला सदस्य बचीं थी। इस सफर में बछेंद्री पाल को भी हल्की चोट लगी थी। लेकिन उन्होंने सभी विपदाओं से बिना डरे आगे बढ़ने का फैसला लिया। 22 मई 1984 को वह नए दल में शामिल हुई। उनका पुराना दल चोट की वजह से वापस बेस कैंप जा चूका था।
इस नये दल में बछेंद्री पाल एकमात्र महिला थी जो बड़े साहस के साथ आगे बढ़ रही थी। उन सब के लिए आगे बढ़ना भी मुश्किल हो रहा था। क्योकि 100 km प्रति घंटे की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चल रही थी। यहॉँ का तापमान शून्य से 40 डीग्री कम हो गया था। फिर भी बछेंद्री पाल अपने दल के साथ में हिम्मत से आगे बढ़ रही थी
अंततः 23 मई 1984 को दोपहर 1:07 pm पर बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट चोटी पर पहुँचकर भारत का तिरंगा लहरा दिया और एक इतिहास रच डाला। इस तरह वह एवरेस्ट पर चढने वाली पहली भारतीय महिला और विश्व की पाँचवी महिला बनी। चारो ओर हजारो फीट गहरी खाई होने के कारण उस शिखर पर एक समय में केवल दो व्यक्ति ही रुक सकते थे। थोड़ी सी चूक होने पर वहाँ जान जा सकती थी।
बछेंद्री पाल ने बर्फ में कुल्हाडी लगाकर अपने आप को स्थिर किया और घुटनों के बल बैठकर ईश्वर को धन्यवाद दिया। बछेंद्री पाल को अपनी इस जोखिम भरी सफलता से सम्पूर्ण देशवासियो से प्यार व स्नेह मिला। अपनी इस पहली सफलता के बाद वह यहीं नहीं रुकी, उन्होंने कई अभियानों का सफलता पूर्वक नेतृत्व किया। वर्तमान में वह टाटा स्टील कम्पनी में नये युवक-युवतियों को पर्वतारोहण का प्रशिक्ष्ण देने में लगी हुई है।
बछेंद्री पाल की उपलब्धियाँ और अभियान
बछेंद्री पल एक साहसी व मेधावी पर्वतारोहण भारतीय महिला है। 23 मई 1984 को माउंट एवरेस्ट पर फतह पाने के बाद उन्होंने अनेक अभियानों में सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और भाग लिया। बचेंद्री पाल के कुछ प्रमुख अभियानों का एक संक्षिप्त विवरण निचे दिया गया।
- वर्ष 1986 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटियों में से एक क्लाइंबेड माउंट ब्लैंक पर फतह प्राप्त की। इसी वर्ष जून में उन्होंने केदारनाथ चोटी पर एक आरोही दल के द्वारा फतह प्राप्त की।
- वर्ष 1988 में टाटा कंपनी के द्वारा आयोजित श्री कैलास पर्वत शिखरों के सफल आरोही दल का नेतृत्व किया।
- वर्ष 1989 में टाटा कंपनी के द्वारा आयोजित कामेट व अविगामिन पर्वत शिखरों के सफल आरोही दल का नेतृत्व किया।
- वर्ष 1990 में न्यूजीलैंड के ऊँचे ऊँचे पर्वतों का सफल आरोहण किया।
- वर्ष 1991 में कामेट व अविगामिन पर्वत शिखरों पर महिलाओ के प्री-एवरेस्ट सलेक्शन एक्सपीडिशन का सफल नेतृत्व किया।
- वर्ष 1992 में टाटा कंपनी द्वारा आयोजित माउंट मामोस्तंग कांगाडी और माउंट शिवलिंग एक्सपीडिशन का सफल नेतृत्व किया।
- वर्ष 1993 में उन्होंने माउंट एवरेस्ट के शिखर तक पहुंचने के लिए सभी 7 महिलाओं के अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है। इस अभियान में 8 विश्व रिकॉर्ड बनाकर भारतीय पर्वतारोहण के लिए एक नए मापदंड स्थापित किए हैं।
- वर्ष 1994 में उन्होंने 18 डॉक्टर्स की एक महिला टीम का नेतृत्व किया और हरिद्वार से कोलकाता तक गंगा नदी में 40 दिनों में 2500 किलोमीटर की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की। इस तरह बछेंद्री ने एक रिकॉर्ड अपने नाम किया।
- वर्ष 1997 में 8 महिला ट्रैकर्स की एक टीम ने 225 दिनों में 4500 किलोमीटर की यात्रा अरुणाचल प्रदेश में हिमालय के पूर्व भाग से सियाचिन ग्लेशियर पर हिमालय के पश्चिमी भाग तक की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की। उन्होंने भूटान व नेपाल के रास्ते पैदल चलकर 7 महीनो में 40 से भी अधिक दरों को पार किया है।
- वर्ष 1999 में उन्होंने “विजय रैली टू कारगिल” अभियान का नेतृत्व किया। महिला पर्वतारोहियों ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली से कारगिल तक मोटरसाइकिल से यात्रा की।
- वर्ष 2008 में फ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पार सफलतापूर्वक आरोहण करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।
बछेंद्री पाल को मिले अवार्ड एवं सम्मान
- वर्ष 1984 में भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन द्वारा पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए बछेंद्री पाल को गोल्ड मैडल दिया गया।
- वर्ष 1984 में प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।
- वर्ष 1985 में उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा बछेंद्री पाल को गोल्ड मेडल दिया गया।
- वर्ष 1986 में प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
- वर्ष 1986 में ‘कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रुप अवार्ड’ से भी इन्हे सम्मानित किया।
- वर्ष 1990 में ‘गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में इनका नाम दर्ज किया गया।
- वर्ष 1994 में ‘नेशनल एडवेंचर अवार्ड’ से भारत सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘यश भारती’ पुरस्कार से बछेंद्री पाल को सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1997 में हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय गढ़वाल द्वारा पी-एचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2013-14 में मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने उन्हें पहला ‘वीरांगना लक्ष्मीबाई’ राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया।
- वर्ष 2019 में उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
आपदा, राहत एवं समाज–सेवा के क्षेत्र में योगदान
बछेंद्री पाल का दूसरा पहलु आपदा, राहत एवं समाज–सेवा के क्षेत्र में देखने को मिलता है। उन्होंने अनेक आपदाओं में राहत और बचाव कार्य किया है। वर्ष 2000 में पहली बार राहत कार्य के लिए वह गुजरात गई। यहाँ पर उन्होंने भूकंप से पीड़ित लोगों को अपने सक्षम वॉलंटियर पर्वतारोहियों की एक टीम की मदद से लगभग डेढ़ महीने तक अपनी सेवाएं दी और ज़रूरतमंद लोगों तक राहत सामग्री पहुँचायी।
वर्ष 2006 में उड़ीसा में आए भयंकर चक्रवात से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ था। इस आपदा में भी उन्होंने अपनी टीम के साथ सेवाएं दी और ज़रूरतमंद लोगों तक राहत सामग्री पहुँचायी। साथ ही मृत्यु को प्राप्त हुए लोगो का दाह संस्कार भी कराया। जून, 2013 में उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा में भी उन्होंने बहुत मदद की। उन्होंने लोगो बचाने में और रहत सामग्री पहुँचाने में काफी भूमिका निभाई। 59 वर्षीय बछेंद्री पाल ने अपनी टीम के साथ ट्रैकिंग के अपने हुनर और पहाड़ी इलाकों की गहन जानकारी का उपयोग करते हुए लोगों की जान बचाने का कार्य किया।
बछेंद्री पाल के जीवन पर लिखी पुस्तक
बछेंद्री पाल ने अपने जीवन पर वर्ष 1989 में ‘एवरेस्ट-माई जर्नी टू द टॉप’ लिखी। उन्होंने इस पुस्तक में अपनी जीवन के सफर का वर्णन किया है। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में लोगो को बताया है कि कैसे वह एक किसान परिवार में जन्म लेने के बाद भी अपने सपनों को साकार किया है। उन्होंने एवेरस्ट के सफर का जिक्र भी अपनी इस आत्मकथा में किया है।
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FAQ
Q : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला प्रथम भारतीय व्यक्ति कौन था?
Ans : नेपाली मूल के भारतीय नागरिक तेनसिंह नोर्गे शेरपा
Q : बछेंद्री पाल का जन्म कब और कहां हुआ था?
Ans : जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के एक छोटे से गाँव नकुरी में
Q : भारत की पहली महिला पर्वतारोही कौन है?
Ans : बछेंद्री पाल
Q : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला कौन है?
Ans : जापान की जुंको ताबेई
Q : 29 मई 1953 को एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति कौन था?
Ans : न्यूजीलैंड के सर’ एंडमंड हिलेरी और नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनजिंग नॉर्गे ने
Q : पर्वतारोही के पास क्या क्या सामान होना चाहिए?
Ans : पर्वतारोहण करने के लिए फेब्रिक से बने कपड़े,मोजे, जूते और एक छोटा बैकपैक होना चाहिए।
Q : बछेंद्री पाल के छोटे भाई का क्या नाम था?
Ans : राजेंद्र सिंह पाल
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