बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस लेख में बेरोजगारी के प्रभाव, बेरोजारगी के कारण और बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकार की योजनाओ के बारे में बताया जा रहा है। देश में धीरे धीरे शिक्षित बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। जिसके कई कारण मौजूद है। युवाओ में स्किल की कमी, उनका गलत रास्तो पर चलना ऐसे कई कारण है, बेरोजगारी को बढ़ावा देते है।
भारत मे बेरोजगारी के कई कारण है, लेकिन सबसे मुख्य कारण है छोटे उद्योगों का खत्म हो जाना। ऐसे उद्योग जो मानव श्रम से ही चलते है। उन उद्योगों को चलाने वाले धनवान नही होते थे, बस छोटी सी पूंजी लगा कर वेतन, किराया ओर बाकी लागत निकाल कर 8 से 10 % कमाई करते है। जितनी आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से कॉम्पिटिशन भी बढ़ रहा है। इसलिए नौकरी मिलने में कठिनाई हो रही है। जो रिसोर्सेज हैं वो कम पड़ रहे है।
बेरोजगारी क्या है ?
बेरोज़गारी वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश करता है और उसे नौकरी नहीं मिलती है। बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था की सेहत का संकेत देती है। बेरोज़गारी दर बेरोज़गारी का सबसे आम माप है। बेरोज़गारी दर बेरोज़गार लोगों की संख्या को कार्यशील जनसंख्या या श्रम बल के तहत काम करने वाले लोगों से विभाजित करके प्राप्त की जाती है।
बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिक / कुल श्रम शक्ति) × 100
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) किसी व्यक्ति की निम्नलिखित गतिविधि स्थितियों के आधार पर रोज़गार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला NSSO, तीन तरीकों से भारत की बेरोज़गारी को मापता है:
- दैनिक स्थिति दृष्टिकोण : इस दृष्टिकोण के अंतर्गत किसी व्यक्ति की बेरोज़गारी की स्थिति को संदर्भ सप्ताह के प्रत्येक दिन के लिए मापा जाता है। एक व्यक्ति जो एक दिन में एक घंटे के लिए भी कोई लाभदायक काम नहीं करता है, उसे उस दिन के लिए बेरोज़गार बताया जाता है।
- साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण उन व्यक्तियों के रिकार्ड पर प्रकाश डालता है जिनके पास कोई लाभकारी कार्य नहीं था या जो सर्वेक्षण की तिथि से पहले सप्ताह के किसी भी दिन एक घंटे के लिए भी बेरोजगार थे।
- सामान्य स्थिति दृष्टिकोण : यह उन व्यक्तियों का अनुमान देता है जो 365 दिनों के दौरान काफी समय तक बेरोजगार रहे या जिनके पास कोई लाभदायक काम नहीं था।
भारत में बेरोजगारी के प्रकार
भारत में बेरोजगारी के 7 प्रकार हैं। बेरोजगारी के 7 प्रकारों पर नीचे चर्चा की जा रही है।
- छिपी हुई बेरोज़गारी
यह बेरोज़गारी का एक प्रकार है जहाँ काम करने वाले लोग वास्तव में ज़रूरत से ज़्यादा होते हैं। छिपी हुई बेरोज़गारी आम तौर पर असंगठित क्षेत्रों या कृषि क्षेत्रों में पाई जाती है।
- संरचनात्मक बेरोजगारी
यह बेरोजगारी तब पैदा होती है जब कामगारों के कौशल और बाजार में नौकरियों की उपलब्धता के बीच कोई मेल नहीं होता। भारत में बहुत से लोगों को उनके कौशल के अनुरूप नौकरी नहीं मिलती या आवश्यक कौशल की कमी के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिलती और शिक्षा का स्तर खराब होने के कारण उन्हें संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
- मौसमी बेरोजगारी
बेरोजगारी की वह स्थिति जब लोगों के पास वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान काम नहीं होता है, जैसे भारत में मजदूरों के पास पूरे वर्ष शायद ही कोई काम हो। इस तरह की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में ज्यादा देखने को मिलती है।
- कमज़ोर बेरोज़गारी
इस बेरोज़गारी के तहत लोगों को बेरोज़गार माना जाता है। लोगों को अनौपचारिक रूप से काम दिया जाता है, यानी बिना किसी उचित नौकरी अनुबंध के और इस तरह उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता।
- तकनीकी बेरोज़गारी
वह स्थिति जब लोग प्रौद्योगिकियों में उन्नति के कारण अपनी नौकरी खो देते हैं। 2016 में विश्व बैंक के आंकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में स्वचालन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
- चक्रीय बेरोजगारी
व्यापार चक्र के कारण होने वाली बेरोजगारी, जहां मंदी के दौरान बेरोजगारों की संख्या बढ़ जाती है और अर्थव्यवस्था के विकास के साथ घट जाती है। भारत में चक्रीय बेरोजगारी के आंकड़े नगण्य हैं।
- घर्षण बेरोजगारी
यह एक ऐसी स्थिति है जब लोग नई नौकरी की तलाश में या नौकरी बदलने के दौरान थोड़े समय के लिए बेरोजगार रहते हैं। घर्षण बेरोजगारी को खोज बेरोजगारी भी कहा जाता है। यह नौकरियों के बीच का समय अंतराल है। घर्षण बेरोजगारी को स्वैच्छिक बेरोजगारी माना जाता है। क्योंकि बेरोजगारी का कारण नौकरियों की कमी नहीं है, बल्कि वास्तव में, श्रमिक बेहतर अवसरों की तलाश में खुद ही अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
बेरोजगारी के कारण
देश में बढ़ती बेरोजगारी के कई तरह के कारण है, आपको निचे बताये जा रहे है।
- देश में बढ़ती जनसंख्या
- प्रतिगामी सामाजिक मानदंड जो महिलाओं को रोजगार लेने/जारी रखने से रोकते हैं।
- कार्यशील जनसंख्या में व्यावसायिक कौशल का अभाव या निम्न शैक्षिक स्तर।
- श्रम-प्रधान क्षेत्र विशेष रूप से विमुद्रीकरण के बाद निजी निवेश में मंदी से पीड़ित हैं।
- कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता तथा कृषि श्रमिकों के लिए वैकल्पिक अवसरों की कमी के कारण तीनों क्षेत्रों के बीच संक्रमण कठिन हो जाता है।
- बुनियादी ढांचे का अपर्याप्त विकास और विनिर्माण क्षेत्र में कम निवेश के कारण द्वितीयक क्षेत्र की रोजगार क्षमता सीमित हो रही है।
- कानूनी जटिलताएं, अपर्याप्त सरकारी सहायता, छोटे व्यवसायों के लिए कम बुनियादी ढांचा, वित्तीय और बाजार संपर्क, लागत और अनुपालन वृद्धि के कारण ऐसे उद्यमों को अव्यवहारिक बना देते हैं।
- देश का विशाल कार्यबल अपेक्षित शिक्षा या कौशल की कमी के कारण अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और यह डाटा रोजगार सांख्यिकी में दर्ज नहीं किया जाता है।
- संरचनात्मक बेरोजगारी का मुख्य कारण यह है कि स्कूलों और कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा उद्योगों की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
बेरोजगारी का प्रभाव
किसी भी देश में बेरोजगारी का अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव आपको यहां नीचे बताये जा रहे है।
- बेरोजगारी से गरीबी की समस्या उत्पन होती है।
- बेरोजगार व्यक्तियों को असामाजिक तत्वों द्वारा आसानी से बहकाया जा सकता है। इससे उनका देश के लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास खत्म हो जाता है।
- सरकार पर अतिरिक्त उधार का बोझ पड़ता है। क्योंकि बेरोजगारी के कारण उत्पादन में कमी आती है। लोगों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग कम हो जाता है।
- लम्बे समय तक बेरोजगार रहने वाले लोग पैसा कमाने के लिए अवैध और गलत गतिविधियों में लिप्त हो सकते है। जिससे देश में अपराध बढ़ता है।
- बेरोजगार लोग नशे और शराब के आदी हो जाते हैं या आत्महत्या का प्रयास करते हैं, जिससे देश के मानव संसाधन को नुकसान होता है।
- बेरोज़गारी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है क्योंकि संसाधन उत्पन्न करने के लिए लाभकारी रूप से नियोजित कार्यबल वास्तव में शेष कार्यशील आबादी पर निर्भर हो जाता है, जिससे राज्य के लिए सामाजिक-आर्थिक लागत बढ़ जाती है। बेरोज़गारी में 1% की वृद्धि जीडीपी को 2% तक कम कर देती है।
बेरोज़गारी को नियंत्रित करने के लिए सरकारी पहल
अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या को कम करने के लिए सरकार द्वारा कई योजनायें शुरू की गई हैं। बेरोजगारी को कम करने की yojnao पर नीचे प्रकाश डाला गया है।
- मनरेगा – महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 में शुरू किया गया था। जो लोगों को काम करने का अधिकार प्रदान करता है। मनरेगा की एक रोजगार योजना का उद्देश्य उन सभी परिवारों को प्रति वर्ष न्यूनतम 100 दिन के सवेतन काम की गारंटी देकर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। जिनके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम-गहन काम चुनते हैं।
- 1979 में सरकार ने TRYSEM (स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण) योजना शुरू की। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के 18 से 35 वर्ष की आयु के बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के लिए कौशल हासिल करने में मदद करना था। इस योजना के तहत महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवाओं को प्राथमिकता दी गई।
- जवाहर रोजगार योजना (JRY) अप्रैल 1989 में दो मौजूदा मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों यानी RLEGP – ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम और NREP – राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम को राज्य और केंद्र के बीच 80:20 लागत-साझाकरण के आधार पर विलय करके शुरू की गई थी।
- सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए वर्ष 1980 में IRDP – एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू किया।
- PMKVY – प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 2015 में शुरू की गई थी। PMKVY का उद्देश्य देश के युवाओं को सुरक्षित और बेहतर आजीविका प्राप्त करने के लिए उद्योग-संबंधित कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना था।
- 1982 में श्री धर्मस्थल मंजुनाथेश्वर एजुकेशनल ट्रस्ट, केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक द्वारा संयुक्त रूप से RSETI/RUDSETI नामक एक नई पहल की कोशिश की गई। ग्रामीण विकास और स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के संक्षिप्त नाम RUDSETI का उद्देश्य युवाओं में बेरोजगारी की समस्या को कम करना था। ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान/RSETI अब बैंकों द्वारा राज्य और केंद्र सरकार के सक्रिय सहयोग से प्रबंधित किए जाते हैं।
- सरकार ने 2016 में स्टार्ट-अप इंडिया योजना शुरू की थी। स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रमों का उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना था जो पूरे देश में उद्यमशीलता को बढ़ावा दे।
- नवंबर 2014 में राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन की स्थापना ‘कौशल भारत’ एजेंडे को ‘मिशन मोड’ में आगे बढ़ाने के लिए की गई थी, ताकि मौजूदा कौशल प्रशिक्षण पहलों को एकीकृत किया जा सके और कौशल प्रयासों के पैमाने और गुणवत्ता को गति के साथ जोड़ा जा सके। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के बारे में विस्तार से जानें।
- स्टैंड-अप इंडिया योजना भी 2016 में शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य महिलाओं और SC/ST उधारकर्ताओं को ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच बैंक ऋण की सुविधा प्रदान करना था।
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मेरा नाम गोविन्द प्रजापत है। मैं talentkiduniya.com का फाउंडर हूँ। मुझे स्कूल के समय से ही हिंदी में लेख लिखने और अपने अनुभव को लोगो से शेयर करने में रूचि रही है। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से अपनी नॉलेज को हिंदी में लोगो के साथ शेयर करता हूँ।