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मदर टेरेसा की जीवनी Mother Teresa biography in hindi

मदर टेरेसा की जीवनी-Mother Teresa biography in hindi

मदर टेरेसा की जीवनी-Mother Teresa biography in hindi : इस स्वार्थ भरी दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम मिलते है, जो दुसरो के लिए जीते है। जो अपना सम्पूर्ण जीवन दुसरो की सेवा में न्योछावर कर देते है। आपने इतिहस में ऐसे कई लोगो के बारे में पढ़ा होगा, जिन्होंने मानव कल्याण में अपना सर्वस्य न्योछावर किया है। आज हम ऐसी ही एक महान हस्ती की जीवनी के बारे में बताने जा रहे है, जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र से ही नन बनकर लोगो की सेवा करने का कार्य शुरू किया। आज मैं आपको इस लेख में मानवता की मिसाल पेश करने वाली मदर टेरेसा की जीवनी –Mother Teresa biography in hindi के बारे में बताने वाला हूँ। आज हम इस लेख में मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa ki jiwani), मदर टेरेसा के अनमोल विचार, मदर टेरेसा का जन्म, मदर टेरेसा की मृत्यु के बारे में जानेंगे।

जो लोग अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ दूसरों के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करते है, वही लोग महान होते है। ऐसों व्यक्तियों का पूरा जीवन प्रेरणादायक होता है और ऐसे लोगो को ही दुनिया याद करती है। मदर टेरेसा भी दया, निस्वार्थ भाव, प्रेम की मूर्ती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में न्योछावर किया है। मदर टेरेसा के अंदर दीन-दुखियों, लाचार, बीमार, व बेसहारा लोगो के लिए अपार प्रेम था। मदर टेरेसा भारतीय नहीं थी, लेकिन जब वह पहली बार भारत आई तो यहाँ के लोगो के प्रेम व सस्कृति को देखकर यही अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया। अब आइये जानते विस्तार से मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa ki jiwani) Mother Teresa biography in hindi

मदर टेरेसा का जीवन परिचय एक नजर में

पूरा नाम (Full name) अगनेस गोंझा बोयाजिजू
उपनाम (other name) मदर टेरेसा
जन्म (Birth) 26 अगस्त 1910
जन्म स्थान (birth’s place) स्कॉप्जे शहर,मसेदोनिया
पिता का नाम (Father’s name ) निकोला बोयाजिजू
माता का नाम (Mother’s name) ड्रैनाफ़ाइल बोयाजिजू
शिक्षा (Education) Teacher, Principal
भाई-बहन (Brother-sister) 1 भाई 1 बहन
कार्य (Profession) मिशनरी ऑफ चैरिटी
धर्म (Religion) कैथलिक
मृत्यु (Death) 5 सितम्बर 1997

मदर टेरेसा का जन्म परिवार

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कॉप्जे (मसेदोनिया में) में हुआ था। इनका असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। मदर टेरेसा के पिताजी का नाम निकोला बोयाजू और माताजी का नाम द्रना बोयाजू था। इनके पिताजी एक व्यवसायी थी। वे काफी धार्मिक भी थे। वे हमेशा अपने घर के पास वाले चर्च में जाते थे। उनका परिवार यीशु का अनुयायी था। मदर टेरेसा का सम्बन्ध कैथोलिक धर्म से था। वर्ष 1919 में जब वह 8 वर्ष की थी तब इनके पिताजी का देहांत हो गया था।

पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन पोषण उनकी माँ ने ही किया था। पिता की मृत्यु के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा। वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। मदर टेरेसा के जन्म के समय उनकी बड़ी बहन की उम्र 7 वर्ष और भाई की उम्र 2 वर्ष थी। बाकी दो बच्चों की मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी। मदर टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। उन्हें पढाई के साथ-साथ गाना बेहद पसंद था। उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं।

मदर टेरेसा अपनी माँ के संस्कारो से काफी प्रभावित थी। मदर की माताजी ने उनको बचपन से ही मिल बाँट कर खाने की शिक्षा दी थी। उनकी माताजी कहती थी कि जो कुछ भी मिले उसे सबके साथ बाँट कर खाना चाहिए। मदर टेरेसा को उनकी माँ ने सिखाया कि उन सभी लोगो के साथ मिल बाँट कर खाएं, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है।

मदर टेरेसा बचपन से ही कोमल मन व दयालु थी। इसीलिए अपनी माँ द्वारा दी गयी शिक्षा से प्रभावित हो कर उन्होंने मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही मन बना लिया कि वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में व्यतीत करेगी। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। इसके बाद वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अर्जित किया। (मदर टेरेसा की जीवनी)

मदर टेरेसा का भारत आगमन-मदर टेरेसा की जीवनी

6 जनवरी 1929 को आयरलैंड से अपने इंस्टीट्यूट की बाकि नन के साथ मिशनरी के काम से भारत के दार्जिलिंग शहर आई। यहाँ उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था। वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उनसे बहुत स्नेह करते थे।

मई 1931 में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली। इसके बाद उन्हें भारत के कलकत्ता शहर भेजा गया। यहाँ उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने के लिए कहा गया था। वर्ष 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं।

उनका मन शिक्षण में पूरी तरह लग गया था। उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी। वर्ष 1943 में पड़े अकाल में शहर में बड़ी संख्या लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। लोग गरीबी से बेहाल हो गए। वर्ष 1946 में हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों में कोलकाता शहर की स्थिति ओर खराब हो गयी थी।

डबलिन की सिस्टर लोरेटो द्वारा संत मैरी स्कूल की स्थापना की गई, जहाँ गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली व हिंदी दोनों भाषा का बहुत अच्छे से ज्ञान था। वह इतिहास व भूगोल बच्चों को पढ़ाया करती थी। कई सालों तक उन्होंने इस कार्य को पूरी लगन व निष्ठा से किया।

कलकत्ता में रहने के दौरान उन्होंने वहाँ की गरीबी, लोगों में फैलती बीमारी, लाचारी व अज्ञानता को करीब से देखा। ये सब बातें उनके मन को बदलने लगी थी। वह कुछ ऐसा करने की सोचने लगी थी, जिससे वह लोगो के काम आ सके। वह लोगो की सेवा करना चाहती थी।

मदर टेरेसा के जीवन में नया बदलाव

मदर टेरेसा सुरीली आवाज की भी धनी थी। वह चर्च में अपनी माँ व बहन के साथ येशु की महिमा के गाने गाया करती थी। 12 वर्ष की उम्र में वह अपने चर्च के साथ एक धार्मिक यात्रा पर गई थी। जिसके बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया और क्राइस्ट को अपना मुक्तिदाता स्वीकार कर लिया और येशु के वचन को दुनिया में फ़ैलाने का फैसला लिया।

वर्ष 1928 में 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने क्राइस्ट को अपना लिया। इसके बाद वह डबलिन में जाकर रहने लगी। वह वापस कभी अपने घर नहीं गई और न अपनी माँ व बहन को दोबारा देखा। नन बनने के बाद उनका जीवन बदल गया। 10 सितम्बर 1946 को मदर टेरेसा को एक नया अनुभव हुआ, जिसके बाद उनकी ज़िन्दगी बदल गई।

इस दिन वह कलकत्ता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रही थी। तभी येशु ने उनसे बात की और कहा कि अध्यापन का काम छोड़कर कलकत्ता के गरीब, लाचार, बीमार लोगों की सेवा करना शुरू करो। परन्तु मदर टेरेसा ने आज्ञाकारिता का व्रत ले रखा था। इसीलिए वह बिना सरकारी अनुमति के मठ नहीं छोड़ सकती थी। जनवरी 1948 में उनको परमीशन मिल गई और उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।

इसके बाद मदर टेरेसा ने सफ़ेद रंग की नीली धारी वाली साडी को अपना लिया और जीवन भर इसी में दिखाई दी। उन्होंने बिहार के पटना से नर्सिंग की ट्रेनिंग ली और वापस कलकत्ता आकर गरीब लोगों की सेवा में जुट गई। मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनाया।

इस कार्य में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। अपना कार्य छोड़ने की वजह से उनके पास कोई आर्थिक मदद नहीं थी। उन्हें अपना पेट भरने के लिए भी लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्हें अपने गॉड पर पूर्ण विश्वास था।

मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी-मदर टेरेसा की जीवनी

वर्ष 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों की जीवनपर्यांत सेवा करने की ठानी। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फॅमिली हॉस्पिटल से नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की। वर्ष 1948 में वह वापस कोलकाता आ गईं और वहाँ से वह पहली बार तालतला गई। जहाँ वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहने लगी। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया और उनकी मरहम-पट्टी की तथा उनको दवाईयाँ दीं।

धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। देश के उच्च अधिकारी और भारत के प्रधानमंत्री ने भी उनके कार्य की प्रसंशा की थी। शुरूआती दौर में मदर टेरेसा को इस कार्य में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। उनके पास कोई आमदनी नहीं थी, इसीलिए वह लोरेटो छोड़ चुकी थीं। उनको अपना पेट भरने के लिए भी दूसरों की मदद लेनी पड़ती थी। जीवन के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर उनके मन में बहुत उथल-पथल हुई थी। उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उन्हें अकेलेपन का एहसास हुआ और वह लोरेटो की सुख-सुविधायों में वापस लौट जाना चाहती थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

7 अक्टूबर 1950 को उन्हें कड़े प्रयासों के बाद वैटिकन से ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’  बनाने की अनुमति मिल गई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, लंगड़े-लूले, अंधों, चर्म रोग से ग्रसित और ऐसे लोगों की सहायता करना था जिनके लिए समाज में कोई जगह नहीं थी। ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’  का आरम्भ मात्र 12 लोगों के साथ हुआ था। लेकिन मदर टेरेसा की मृत्यु के समय 4000 से भी ज्यादा ‘सिस्टर्स’ दुनियाभर में बेसहारा, शरणार्थी, अंधे, बूढ़े, गरीब, बेघर, शराबी, एड्स के मरीज और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की सेवा कर रहे थे।

मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले।  ‘निर्मल हृदय’ आश्रम में ऐसे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की सेवा की जाती थी, जिन्हें समाज से बाहर निकाल दिया गया हो। ‘निर्मला शिशु भवन’ की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए की गयी थी। सच्ची लगन और मेहनत से किया गया कार्य कभी असफल नहीं होता।

जब वह भारत आईं तो उन्होंने यहाँ बेसहारा व विकलांग बच्चों और सड़क के किनारे पड़े असहाय व रोगियों की दयनीय स्थिति को देखा। यह सब देखकर वह द्रवित हो उठी। उन्होंने ऐसी दयनीय स्थिति देखकर जनसेवा का प्रण ले लिया। उस समय कलकत्ता में छुआछूत की बीमारी फैली हुयी थी और लाचार गरीबों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। मदर टेरेसा ऐसे सभी लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आई। (मदर टेरेसा की जीवनी)

वह गरीब, भूखों नंगों को सहारा दिया करती थी और उन्हें खाना खिलाती थी। वर्ष 1965 में मदर टेरेसा ने रोम के पॉप जॉन पॉल से अपनी मिशनरी को दुसरे देशों में फ़ैलाने की अनुमति मांगी। भारत के बाहर पहला “मिशनरी ऑफ़ चैरिटी” का संस्थान वेनेजुएला में शुरू हुआ। आज के समय में 100 से ज्यादा देशों में  मिशनरी ऑफ़ चैरिटी संस्था है। मदर टेरेसा के कार्य किसी से छुपे नहीं थे। उनके निःस्वार्थ भाव को स्वतंत्र भारत के सभी बड़े नेताओं ने करीब से देखा था। वे सभी टेरेसा के कार्य की सराहना भी करते थे।

मदर टेरेसा की मृत्यु -मदर टेरेसा की जीवनी

मदर टेरेसा को कुछ वर्षो से ह्रदय व किडनी की परेशानी हो रही थी। बढती उम्र के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता जा रहा था। वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार हार्ट अटैक आया। उस समय वह रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके बाद वर्ष 1989 में उन्हें दूसरा हार्ट अटैक आया। और उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया। वर्ष 1991 में मैक्सिको में न्यूमोनिया होने से उनके ह्रदय की परेशानी ओर बढ़ गयी थी। इसके बाद उनकी सेहत लगातार ख़राब होती रही।

13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया। उनके बाद सिस्टर मैरी निर्मला जोशी को इस पद के लिए चुना गया। अंत में खराब स्वास्थ्य के चलते 5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा का कलकत्ता में देहांत हो गया। उनकी मृत्यु के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं, जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं। मानव सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में “धन्य” घोषित किया।

मदर टेरेसा को मिले अवार्ड अचीवमेंट

  1. वर्ष 1962 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
  2. वर्ष 1980 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  3. वर्ष 1985 में अमेरिका सरकार द्वारा मैडल ऑफ़ फ्रीडम अवार्ड दिया।
  4. वर्ष1988 में ब्रिटेन द्वारा उन्हें ‘आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायर’ की उपाधि प्रदान की गयी।
  5. वर्ष 1979 में मदर टेरेसा को गरीब, बीमारों की मदद के लिए और मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों के लिए नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।
  6. 19 अक्टूबर 2003 को पॉप जॉन पोल द्वितीय ने मदर टेरेसा को रोम में “धन्य” घोषित किया। उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया।
  7. वर्ष 1931 में उन्हें पोपजान तेइसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति के टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार प्रदान किय गया।
  8. विश्व भारती विद्यालय ने उन्हें देशिकोत्तम पदवी दी जो कि उसकी ओर से दी जाने वाली सर्वोच्च पदवी है।
  9. अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने उन्हे डोक्टोरेट की उपाधि से सम्मानित किया।
  10. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया।
  11. 09 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया।

मदर टेरेसा के अनमोल विचार

  1. अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक ग़रीबी है।
  2. यदि आप 100 लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही भोजन कराये।
  3. प्रेम हर मौसम में होने वाला फल है और हर व्यक्ति के पहुंच के अन्दर है।
  4. कुछ लोग आपकी ज़िन्दगी में आशीर्वाद की तरह होते हैं तो कुछ लोग एक सबक की तरह।
  5. मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हैं ?
  6. खूबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते। लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं।
  7. सादगी से जियें ताकि दूसरे भी जी सकें।
  8. यदि हमारे बीच शांति की कमी है तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।
  9. अपने क़रीबी लोगों की देखभाल कर आप प्रेम की अनुभूति कर सकते हैं।
  10. यदि आप प्रेम संदेश सुनना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दीपक में तेल डालते रहना पड़ता है।
  11. दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।
  12. अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का पुल है।
  13. हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते लेकिन हम कार्यों को प्रेम से कर सकते हैं।
  14. यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आपने कितना दिया, बल्कि यह है कि देते समय आपने कितने प्रेम से दिया।
  15. आज के समाज की सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है, बल्कि अवांछित रहने की भावना है।
  16. प्रेम की भूख को मिटाना, रोटी की भूख मिटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
  17. प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है खोने के सामान है।
  18. हम सभी ईश्वर के हाथ में एक कलम के सामान है।

मदर टेरेसा को मिली आलोचना

कई व्यक्तियों, सरकारों और संस्थाओं के द्वारा उनकी प्रशंसा की जाती रही है। लेकिन उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ा। मदर टेरेसा को कई व्यक्तियों जैसे क्रिस्टोफ़र हिचन्स, माइकल परेंटी, अरूप चटर्जी (विश्व हिन्दू परिषद) द्वारा आलोचना मिली। यह आलोचना उन्हें उनके कार्यो के विशेष तरीके व धर्मान्तरण के कारण मिली थी। चिकित्सा पत्रिकाओं में उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए जाने लगे।

कनाडाई शिक्षाविदों के एक पत्र के अनुसार मदर टेरेसा के क्लीनिक को दान में लाखों डॉलर मिले थे। लेकिन दर्द से जूझते लोगों के लिए चिकित्सा देखभाल, व्यवस्थित निदान, आवश्यक पोषण और पर्याप्त एनाल्जेसिक की पर्याप्त मात्रा नहीं थी। मदर टेरेसा का मानना था कि बीमार लोगों को क्रॉस पर क्रास्ट की तरह पीड़ा झेलना चाहिए। दान में मिलने वाले अतिरिक्त धन का प्रयोग उन्नत प्रशामक देखभाल (palliative care) सुविधाएँ मुहैया कराके शहर के गरीबों का स्वास्थ्य सुधारा जा सकता था।

इसके अलावा उन पर लोगों का ज़बरन धर्मपरिवर्तन करने का भी आरोप लगा था। उनके ऊपर अपराधियों से पैसा लेने का आरोप भी लगा है। उन पर पाखण्डी होने का आरोप भी लगाया गया था। उन्होंने ग़रीबों को अपनी पीड़ा सहन करने के लिए तो कहा, लेकिन जब वे स्वयं बीमार पड़ीं तो उन्होंने सबसे उच्च-गुणवत्ता वाले महँगे अस्पताल में अपना इलाज कराया। भारी मात्रा में दुनिया भर से दान में पैसा मिलने के बावजूद उनके संस्थानों की हालत दयनीय थी।

आशा करता हूँ आपको मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa ki jiwani) व मदर टेरेसा की अनमोल विचार पसंद आये होंगे। मदर टेरेसा की जीवनी (मदर टेरेसा का जीवन परिचय) की बारे में व किसी प्रकार की त्रुटि की लिए कमेंट करे। कमेंट करके बताये कि आपको मदर टेरेसा का जीवन परिचय (Mother Teresa ki jiwani) Mother Teresa biography in hindi कैसा लगा।

FAQ

Q : मदर टेरेसा भारत में कब आई थी?
Ans : 1929 में

Q : मदर टेरेसा की मां का नाम क्या था?
Ans : ड्रैनाफ़ाइल बोजशियु

Q : मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार कब दिया गया था?
Ans : 17 अक्टूबर 1979 में

Q : मदर टेरेसा का बचपन का नाम क्या था?
Ans : Aneze Gonxhe Bojaxhiu

Q : मदर टेरेसा का जन्म कब हुआ था ?
Ans : 26 अगस्त 1910

Q : मदर टेरेसा की मृत्यु कब हुई?
Ans : 5 सितम्बर 1997 (उम्र 87) कोलकाता में

Q : मदर टेरेसा क्यों प्रसिद्ध है?
Ans : मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक नन थीं। जिन्होंने अपना जीवन दुनिया भर के गरीबों और निराश्रितों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने Missionaries Of Charity की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, लंगड़े-लूले, अंधों, चर्म रोग से ग्रसित और ऐसे लोगों की सहायता करना था जिनके लिए समाज में कोई जगह नहीं थी। ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’  का आरम्भ मात्र 12 लोगों के साथ हुआ था।

Q : मदर टेरेसा कहाँ की थी ?
Ans : स्कॉप्जे शहर,मसेदोनिया

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