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मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय Major Dhyanchand Biography Hindi

मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

आज हम हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जीवनी, मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय – Major Dhyanchand Biography Hindi, उनकी व्यक्तिगत जानकारी, जीवन संघर्ष, शिक्षा और करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियो के बारे में जानेंगे। मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम के भूतपूर्व खिलाड़ी और कप्तान थे। उन्हें दुनिया के महान हॉकी प्लेयरों में से एक माना जाता है। मेजर ध्यानचंद को उनके अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है। मेजर ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मैडल दिलवाया था।

जब वे हॉकी के मैदान में खेलने के लिए उतरते थे, तो गेंद मानो उनकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। मेजर ध्यानचंद का बॉल पर अच्छी पकड़  थी। इसलिए उन्हें ‘दी विज़ार्ड’ उपाधि दी गयी थी। ध्यानचंद ने अपने अन्तराष्ट्रीय खेल के सफर में 400 से अधिक गोल किये थे। उन्होंने अपना आखिरी अन्तराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला था। उनके जन्म दिवस को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ भी कहा जाता है।

उन्हें भारतीय सम्मान पदमभूषण से सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्हें ‘भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की, जिस अभी विवाद चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड’ का नाम बदल कर ‘मेजर ध्यानचंद्र खेल रत्न अवार्ड‘ कर दिया है। यह उन्होंने हॉकी के जादुगर मेजर ध्यानचंद्र को सम्मान देने के लिए किया है। आइये जानते है मेजर ध्यानचंद की जीवनी,मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय – Major Dhyanchand Biography Hindi

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

पूरा नाम (Full name) मेजर ध्यानचंद
अन्य नाम (Other name) द विज़ार्ड, हॉकी विज़ार्ड, चाँद, हॉकी का जादूगर
जन्म (Birth date) 29 अगस्त 1905
जन्म स्थान (Birth place) इलाहबाद, उत्तरप्रदेश
पिता का नाम (Fathe’s name ) सूबेदार समेश्वर दत्त सिंह (आर्मी में सूबेदार)
माता का नाम (Mother’s name) शारदा सिंह
पत्नी का नाम (Wife’s name ) जानकी देवी
भाई (brother) हवलदार मूल सिंह एवं हॉकी प्लेयर रूप सिंह
बहन (sister) No
बेटे (son) बृजमोहन सिंह, सोहन सिंह, राजकुमार, अशोक कुमार, उमेश कुमार, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह
बेटी (Daughter) No
गृहनगर () झांसी, उत्तरप्रदेश, भारत
राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय
धर्म (Religion) हिन्दू
पेशा (Profession) भारतीय हॉकी खिलाड़ी
जाति (Cast) राजपूत
घरेलू / राज्य टीम झाँसी हीरोज
कोच / मेंटर (Coach) सूबेदार – मेजर भोले तिवारी (पहले मेंटर)
पंकज गुप्ता (पहला कोच)
अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू न्यूज़िलैंड टूर सन 1926 में
सर्विस (Service) ब्रिटिश इंडियन आर्मी एवं इंडियन आर्मी
यूनिट (Uinit) पंजाब रेजिमेंट
रिटायर्ड (Retired) मेजर (सन 1956)
मृत्यु (Death) 3 दिसम्बर 1979 , दिल्ली, भारत
हाइट (Hight) 5 फीट 7 इंच
वेट (Weight) 70 किलोग्राम

 

मेजर ध्यानचंद का जन्म

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को  इलाहाबाद में हुआ था। उनका जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम सूबेदार  समेश्वर दत्त सिंह और माताजी का नाम शारदा सिंह था। ध्यानचंद के पिताजी  ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे। मेजर ध्यानचंद के दो भाई थे, जिनका नाम मूल सिंह और रूप सिंह था। ध्यानचंद में बचपन से खेल के कोई गुण नहीं थे। बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी।

मेजर ध्यानचंद की शिक्षा

महारानी लक्ष्मी बाई गवर्नमेंट कॉलेज से उन्होंने सदर्न शिक्षा प्राप्त की थी। चूँकि उनके पिताजी समेश्वर आर्मी में थे। जिस वजह से उनका तबादला आये दिन कही न कही होता रहता था। बाद में ध्यानचंद के पिता उत्तरप्रदेश के झाँसी में जा बसे थे। ध्यानचंद ने ज्यादा शिक्षा हासिल नहीं की है। उन्होंने 6 क्लास तक की पढ़ाई की है। उसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी।

16 वर्ष की आयु में वह सन 1922 में दिल्ली के ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हुए। जब वह ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में थे , उस समय तक उनमे हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी ने प्रेरित किया था। मेजर तिवारी हॉकी प्रेमी और एक खिलाड़ी थे। उनकी देखरेख में ही ध्यान चंद ने हॉकी खेलना शुरू किया था।

मेजर ध्यानचंद का हॉकी के प्रति लगाव

बचपन में ध्यानचंद का हॉकी के प्रति कोई लगाव नहीं था। वह बचपन में एक साधारण बालक की तरह थे। मेजर ध्यानचंद का जीवन एक आम आदमी की तरह साधारण रहा है। उनमे कोई विशेष प्रतिभा नहीं थी। उन्हें रेसलिंग बहुत पसंद थी। वह अपने दोस्तों के साथ में ताड़ के वृक्ष की छड़ी से कपडे की बॉल बनाकर खेला करते थे। चूँकि उनके पिताजी आर्मी में एक सूबेदार के पद पर थे। वहाँ आर्मी  कैंप में आर्मी का हॉकी मैच होता था।

एक दिन आर्मी का मैच हो रहा था। ध्यानचंद भी अपने पिताजी के साथ में वह मैच देख रहे थे। तभी वहाँ एक टीम 2 गोल से हर रही थी। ध्यानचंद ने अपने पिता से कहा कि, वह हारने वाली टीम की तरफ से खेलना चाहते है। उन्होंने ध्यानचंद खेलने के लिए आज्ञा दे दी। ध्यानचंद ने वह मैच बड़े लगन से खेला और 4 गोल भी किये। और टीम जिताया। ध्यानचंद की लगन व रवैये को देख कर आर्मी ऑफिसर बहुत खुश हुए।

सन 1922 में दिल्ली में वह प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में भर्ती हुए। आर्मी ज्वाइन करने के बाद ध्यानचंद ने अलग से हॉकी की प्रैक्टिस करना शुरू किया। चूँकि सूबेदार मेजर भोले तिवारी एक हॉकी प्रेमी थे। वे ब्राह्मण रेजिमेंट से थे। उन्होंने ही ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया था। ध्यानचंद उनकी देख-रेख में हॉकी खेलने लगे। वे आर्मी में ध्यानचंद के मेंटर/कोच बने। तिवारी जी ने ध्यानचंद को खेल के बेसिक नियमो से अवगत कराया।

पंकज गुप्ता ध्यानचंद के पहले कोच थे। उन्होंने ध्यानचंद के खेल को देखकर कह दिया था कि वह एक दिन पूरी दुनिया में चाँद की तरह चमकेगा। उन्होंने ही ध्यानचंद को चन्द नाम दिया। तब से उनका नाम ध्यान सिंह से ध्यान चन्द बन गया और उनके परिवार वाले व करीबी लोग उन्हें इसी नाम से बुलाने लगे। सन 1922 और 1926 के बीच उन्होंने सेना के लिए मैच खेले। सन्‌ 1927 में उन्हें लांस नायक बनाया गया।

मेजर ध्यानचंद का खेल जीवन

ध्यानचंद का खेल जीवन (मेजर ध्यानचंद का जीवन) बहुत ही सराहनीय रहा है। उन्हें फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। जब वे हॉकी खेलते थे तब ऐसा लगता था, मानो गेंद उनकी स्टिक से चिपकी हुई है। ऐसा लगता था जैसी उनकी स्टिक कोई जादुई छड़ी हो या उसमे कोई चुम्बक या गोंद लगा हो। इसी वजह से उन्हें कई विवादों का सामना करना पड़ा।

हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका से उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई थी। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक के गोंद लगे होने की आशंका जताई गयी थी। जिस तरह गेंद हॉकी स्टिक के चिपकी रहती है उससे उन्हें लगा कि शायद स्टिक के गोंद लगा हो सकता है।

ध्यानचंद की हॉकी की कलाकारी के जितने किस्से हैं उतने किस्से शायद ही दुनिया के किसी अन्य खिलाड़ी के बारे में होंगे। उनकी हॉकी की कलाकारी देखकर लोग वाह-वाह करने लगते थे। यही नहीं बल्कि प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी भी अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे।

ध्यानचंद की कलाकारी से प्रभावित होकर जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन ध्यानचंद ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा। वियना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए एक मूर्ति लगाई और दिखाया कि ध्यानचंद कितने जबर्दस्त खिलाड़ी थे।

13 मई 1926 में न्यूजीलैंड में होने वाले एक टूर्नामेंट के लिए ध्यानचंद का चुनाव हुआ। यह उनका अन्तराष्ट्रीय करियर का पहला मैच था। न्यूजीलैंड में 21 मैच खेले गए थे जिनमें 3 टेस्ट मैच भी शामिल थे। इन 21 मैचों में से 18 जीते, 2 मैच अनिर्णीत रहे और एक मैच में हार प्राप्त हुई। भारतीय टीम ने पुरे टूर्नामेंट में 192 गोल किये थे, जिसमें से ध्यानचंद ने 100 गोल मारे थे। यहाँ से लौटने के बाद ध्यानचंद को आर्मी में लांस नायक बना दिया गया था।

सन 1927 में लन्दन फोल्कस्टोन फेस्टिवल में भारत ने 10 मैचों में 72 गोल किये, जिसमें से ध्यानचंद ने अकेले 36 गोल किये थे। 27 मई 1932 को श्रीलंका में दो मैच खेले गए। एक मैच में 21-0 तथा दूसरे में 10-0 से विजयी रहे। सन्‌ 1935 में भारतीय हॉकी टीम ने न्यूजीलैंड के दौरे पर 49 मैच खेले।  जिसमें 48 मैच जीते और एक वर्षा होने के कारण स्थगित हो गया। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अंततः हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने अप्रैल 1949 को प्रथम कोटि की हॉकी से संन्यास ले लिया।

सन्‌ 1932 में लॉस ऐंजल्स जाने पर उन्हें  नायक नियुक्त किया गया। सन्‌ 1937 में जब वह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे, तब उन्हें सूबेदार बना दिया गया। द्वितीय महायुद्ध के प्रारंभ में सन्‌ 1943 में ‘लेफ्टिनेंट’ पद के लिए नियुक्त किये गए। भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 में ध्यानचंद को कप्तान बनाया गया। हॉकी में शानदार प्रदर्शन करने की वजह से सेना में उनकी पदोन्नति की गयी। सन 1938 में उन्हें ‘वायसराय का कमीशन’ मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।

मेजर ध्यानचंद का ओलंपिक खेल

1. सन 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेल

सन 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया। एम्स्टर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंलैंड में 11 मैच खेले और वहाँ ध्यानचंद को अच्छी सफलता प्राप्त हुई। एम्स्टर्डम में भारतीय टीम ने पहले सभी मुकाबलो में जीत दर्ज की। 17 मई 1928 को आस्ट्रिया को 6-0, 18 मई को बेल्जियम को 9-0, 20 मई को डेनमार्क को 5-0, 22 मई को स्विट्जरलैंड को 6-0 तथा 26 मई को फाइनल मैच में हालैंड को 3-0 से हराकर पूरी दुनिया में हॉकी के चैंपियन घोषित किए गए और 29 मई को उन्हें गोल्ड मैडल प्रदान किया गया। फाइनल में  3 गोल में से 2 गोल दो गोल ध्यानचंद ने किए।

2. सन 1932 में लास एंजिल्स ओलम्पिक खेल

सन 1932 में लास एंजिल्स में आयोजित ओलम्पिक खेलों में ध्यानचंद ने भाग लिया। उस समय तक ध्यानचंद सेंटर फॉरवर्ड के रूप में काफ़ी सफलता और शोहरत प्राप्त कर चुके थे। उस समय वह सेना में नायक थे। इस ओलम्पिक खेल से पहले भारत ने अनेक मैच खेले जिनमे 262 गोल में से 101 गोल अकेल ध्यानचंद ने किये थे। फाइनल मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। इस ओलम्पिक खेल में जित दर्ज करने के बाद एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम पूर्व से आया एक तूफान थी, जिसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।

3. सन 1936 के बर्लिन ओलपिक खेल

सन 1936 के बर्लिन ओलपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया। कप्तान चुने जाने पर ध्यानचंद ने कहा कि “मुझे ज़रा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा”। उन्होंने अपने इस दायित्व को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया। ध्यानचंद कहते हैं कि 17 जुलाई के दिन जर्मन टीम के साथ अभ्यास के लिए एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन हुआ। यह मैच बर्लिन में खेला गया। हम इस मैच में चार के बदले एक गोल से हार गए। इस हार से मुझे बहुत धक्का लगा। इस हार को मैं अपने जीते-जी नहीं भुला सकता। उस समय ध्यानचंद जर्मनी की टीम की प्रगति देखकर आश्चर्यचकित रह गए थे।

आगे वह बताते है कि उनके कुछ साथियों को भोजन भी अच्छा नहीं लगा था, जिससे हमारे बहुत से साथियों को रातभर नींद नहीं आई। 5 अगस्त को भारत का हंगरी के साथ ओलम्पिक का पहला मुकाबला हुआ। जिसमें भारतीय टीम ने हंगरी को 4-0 से हरा दिया। 7 अगस्त को दूसरा मैच खेला गया, जिसमे भारतीय टीम ने जापान को 9-0 से हराया। 12 अगस्त को फ्रांस को 10-0 से हराया। 15 अगस्त को भारत और जर्मन की टीमों के बीच फाइनल मुकाबला था।

चूँकि यह मुकाबला 14 अगस्त को होना था परन्तु बारिश की वजह से इस मैच को एक दिन आगे स्थगित कर दिया गया। जर्मनी की टीम ने भारत को अभ्यास मैच में हराया था। यह बात सभी के मन में बुरी तरह घर कर गई थी। गीले मैदान और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण सभी खिलाड़ी निराश हो गए थे। तभी कोच पंकज गुप्ता ने सभी खिलाड़ियों को ड्रेसिंग रूम में ले गए और उन्होंने तिरंगा झण्डा हमारे सामने रखा और कहा कि इसकी लाज अब तुम्हारे हाथ है। सभी खिलाड़ियों ने श्रद्धापूर्वक तिरंगे को सलाम किया और वीर सैनिक की तरह मैदान में उतर पड़े। सभी ने पूरी लगन से खेल खेला और जर्मन की टीम को 8-1 से हरा दिया।

हिटलर ब्रैडमैन से ध्यानचंद की मुलाकात

ध्यानचंद के खेल से पूरी दुनिया कायल थी वही महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन और जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी ध्यानचंद से प्रभावित थे। ध्यानचंद व डॉन ब्रैडमैन के जन्मदिन में केवल दो दिन का अंतर है। 27 अगस्त को ब्रैडमैन का और  29 अगस्त को ध्यानचंद का जन्मदिवस मनाया जाता है। ब्रैडमैन हाकी के जादूगर ध्यानचंद से उम्र में तीन साल छोटे थे। दोनों खिलाडी अपने अपने क्षेत्र में माहिर है। ये दोनों केवल एक बार ही एक-दूसरे से मिले थे।

सन 1935 में जब भारतीय टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी। तब भारतीय टीम का एक मैच एडिलेड में होना था और ब्रैडमैन भी वहाँ मैच खेलने के लिए आए हुए थे। यहाँ ब्रैडमैन और ध्यानचंद दोनों एक-दूसरे से मिले थे। ब्रैडमैन ने हॉकी के जादूगर का खेलकर कहा कि वे इस तरह से गोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं। जब ब्रैडमैन को पता चला कि ध्यानचंद ने इस पुरे दौरे में 48 मैच में कुल 201 गोल दागे है, तब उन्होंने कहा कि यह स्कोर किसी हॉकी खिलाड़ी ने बनाए है या बल्लेबाज ने।

एक साल बाद ध्यानचंद ने बर्लिन ओलिम्पिक में हिटलर को भी अपनी हॉकी का क़ायल बना दिया था। उस समय हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मनी की तरफ से खेलने के लिए प्रस्ताव रखा था। साथ की ध्यानचंद के सामने अनेक ऑफर भी रखे थे। परन्तु ध्यानचंद ने इन सब को ठुकरा दिया था। और अपने देश की तरफ से खेलना गौरव महसूस किया। उस समय जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलो-दिमाग पर एक ही नाम छाया था-  ध्यानचंद।

मेजर ध्यानचंद को मिले अवार्ड सम्मान

  1. 1956 में भारत के दुसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से ध्यानचंद को सम्मानित किया गया था।
  2. उनके जन्मदिवस 29 अगस्त को नेशनल स्पोर्ट्स डे (राष्ट्रीय खेल दिवस) की तरह मनाया जाता है।
  3. दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण उनकी याद में कराया गया था
  4. ध्यानचंद की याद में डाक टिकट शुरू की गई थी।
  5. ध्यानचंद ने तीन ओलिम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को गोल्ड मैडल दिलाया।

ध्यानचंद के द्वारा जीते गए गोल्ड मैडल

  1. सन 1928 में एमस्टर्डम ओलंपिक खेल में भारतीय टीम का फाइनल मैच हॉलैंड के साथ हुआ। जिसमे तीन गोल में से दो गोल ध्यानचंद ने करे थे और भारत को पहला गोल्ड मैडल जिताया।
  2. सन 1932 में लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेल में भारत का फाइनल मैच अमेरिका के साथ हुआ था। इस मैच में भारत ने 23-1 के साथ जीत दर्ज करके गोल्ड मैडल हासिल किया।
  3. सन 1936 में बर्लिन ओलंपिक खेल में लगातार तीन टीम हंगरी ,अमेरिका और जापान को 0 गोल से हराया। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर गोल्ड मैडल अपने नाम किया।

मेजर ध्यानचंद की मृत्यु

ध्यानचंद की मृत्यु 3 दिसम्बर 1979 को लीवर में कैंसर होने के कारण हुई थी। उन्हें दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया गया था। लेकिन हालत गंभीर होने के उन्हें बचाया नहीं गया। उन्होंने 42 वर्ष की आयु तक हॉकी का खेल खेला था।

ध्यानचंद पुरस्कार राशि

जो लोग खेल में अच्छा प्रदर्शन दिखते है या जो लोग खेल में ध्यानचंद अवार्ड जीतते है, उन्हें पहले 5 लाख रुपए की राशि पुरस्कार के रूप में दी जाती थी। अब यह राशि बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दी गयी है। यह बड़ा बदलाव खेल मंत्री रिरिजु द्वारा किया गया था। इस बदलाव की वजह से  राष्ट्रीय खेलों में खेलने वाले खिलाड़ियों को बहुत बड़ा फायदा मिला। प्रत्येक 10 साल में पुरस्कार की राशि में बदलाव खेल मंत्री द्वारा किए जाते हैं।

मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड का नाम बदल कर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड’ कर दिया है। प्रधानमंत्री ने इसकी अधिकारिक तौर पर घोषणा की है। मोदी जी ने यह निर्णय भारत की टोक्यो ओलंपिक खेल में 41 साल बाद मैडल जीतने के अवसर पर लिया है। सन 1980 में मास्को ओलंपिक खेल में हॉकी मैडल भारत ने जर्मनी को हराकर जीता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद भारत के एक सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे। जिन्होंने देश सम्मान एवं गर्व प्रदान किया था।

उम्मीद करता हूँ हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय, मेजर ध्यानचंद की जीवनी,Major Dhyanchand Biography Hindi अच्छी लगी होगी। मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय में किसी प्रकार की कमी या संसोधन करने के लिए आप कमेंट बॉक्स में बेजिझक अपने विचार प्रकट करे।

FAQ

Q : मेजर ध्यानचंद का उपनाम क्या था?
Ans : हॉकी के जादूगर

Q : मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा का शीर्षक क्या है?
Ans : मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा का नाम ‘गोल’है।

Q : मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम क्या है ?
Ans : ध्यानसिंह

Q : मेजर ध्यानचंद का जन्म कहां हुआ था ?
Ans : इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज)

Q : ध्यानचंद की उम्र कितनी थी ?
Ans : 80 साल

Q : ध्यानचंद का जन्म कब हुआ था ?
29 August 1905

Q : मेजर ध्यानचंद को किस आयु में सेना में नौकरी मिली?
Ans : 16 वर्ष की आयु में

Q : मेजर ध्यानचंद का मृत्यु कब हुआ था?
Ans : 3 दिसंबर 1979

Q : मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को किस रूप में मनाया जाता है?
राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में

Q : ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है ?
Ans : मेजर ध्यानचंद हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे। वे हॉकी स्टिक और बॉल के साथ इस तरह खेलते थे, मानो दोनों एक दूसरे से चिपके हुए है। इसलिए इन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है।

Q : मेजर ध्यानचंद को पद्म भूषण कब मिला?
Ans : सन 1956 में

Q : ध्यानचंद का परिवार कहां आकर बस गया था?
Ans : उत्तरप्रदेश के झांसी में

Q : ध्यानचंद ने कितने गोल किए?
Ans : ध्यानचंद ने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल किये।

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