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राणा सांगा का इतिहास व जीवनी : Rana Sanga History in Hindi

राणा सांगा का इतिहास व जीवनी : Rana Sanga History in Hindi

राणा सांगा का जीवन परिचय, राणा सांगा की जीवनी, इतिहास, जन्म, मृत्यु, युद्ध, विजय अभियान, उपलब्धियाँ, राजतिलक, युद्ध कौशल, शारारिक बनावट ( Rana Sanga History in Hindi, Rana Sanga Biograpgy in Hindi, Birth, Death, Achievement, war, combat skills, Coronation ) की जानकारी हिंदी में।

राणा सांगा का इतिहास व जीवनी : Rana Sanga History in Hindi : यह लेख राणा सांगा की जीवनी ( Rana Sanga Biograpgy in Hindi ) और उनके जीवनी से जुड़ी जानकारी के लिए है। इस लेख में आपको राणा सांगा का जीवन परिचय बताया जा रहा है। राणा सांगा को महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है। ये उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।

राणा सांगा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे। ये राणा कुंभा के बाद मेवाड़ के सबसे महत्वपूर्ण शासक और सबसे प्रसिद्ध राजा थे। इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया। साथ ही राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित करके अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया। सन्न 1509 में अपने पिता रायमल की मृत्यु के बाद राणा सांगा ने मेवाड़ राज्य की बागडोर संभाली।

राणा सांगा का इतिहास – Rana Sanga History in Hindi

राणा सांगा अपने समय में बहुत शक्तिशाली शासक थे। वे अपनी वीरता व उदारता के लिए जाने जाते है। सांगा ने अपने अदम्भ्य साहस व शौर्य का परिचय देते हुए दिल्ली, गुजरात, व मालवा के मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने मेवाड़ राज्य की रक्षा की। लेकिन सांगा के लिए राजगद्दी हासिल करना आसान नहीं रहा था।

राणा सांगा का जीवन परिचय – Rana Sanga Biograpgy in Hindi

नाम राणा सांगा
उपनाम महाराणा संग्राम सिंह
जन्म 12 अप्रैल 1482
जन्म स्थान चित्तौड़गढ़
पिता का नाम राणा रायमल
माता का नाम रतन कंवर
पत्नी का नाम रानी कर्णावती
शासन अवधि 1509 से 1528 तक
वंश सिसोदिया राजपूत राजवंश
मृत्यु 30 जनवरी 1528

राणा सांगा का प्रारंभिक जीवन

राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ में हुआ था। राणा सांगा के पिता का नाम राणा रायमल और माता का नाम महारानी रतन कंवर था। राणा सांगा को महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है। राणा सांगा का जन्म सिसोदिया राजपूत राजवंश में हुआ था। ये अपने पिता की सबसे छोटी संतान थे।

राणा सांगा की पत्नी का नाम महारानी कर्णावती था। राणा सांगा व महारानी कर्णावती से दोनों के 4 पुत्र थे – रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह। पृथ्वीराज, जयमल राणा सांगा के बड़े भाई थे। इन तीनो में सत्ता को लेकर लड़ाई झगड़े होते रहते थे। लेकिन तीनो ने शिक्षा एक साथ ग्रहण की थी।

राजगद्दी के लिए संघर्ष – राणा सांगा का इतिहास

एक बार तीनो भाई कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने अपनी-अपनी जन्म-कुंडलियाँ एक ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने कहा कि गृह नक्षत्र तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं। लेकिन राजयोग संग्राम सिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा। इतना सुनकर पृथ्वीराज और जयमल क्रोधित हो गए।

इन दोनों ने राणा सांगा को मारने की कोशिश भी की थी। ज्योतिषी की बात पर पृथ्वीराज ने कटार से सांगा पर हमला किया। उनका मानना था कि यदि संग्राम सिंह जिन्दा ही नहीं रहेगा, तो राजा कैसे बनेगा। पृथ्वीराज द्वारा किये गए आक्रमण से राणा सांगा की एक आँख फुट गयी थी। राणा सांगा ने आँख फूटने के बाद भी अपने भाइयों से युद्ध किया था।

इस दौरान चाचा सारंगदेव ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया। सारंगदेव ने कहा कि ऐसे किसी ज्योतिषी की बात पर विश्वास करके आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिए। वे उन्हें दूसरी जगह लेकर जायेंगे जहाँ एक स्त्री सटीक भविष्यवाणी करती है। फिर कुछ दिन बाद सारंगदेव उन्हें भीमल गांव लेकर जाते है।

जहाँ की पुजारिन बिलकुल सटीक भविष्यवाणी करती है। पुजारिन ने भी संग्राम सिंह को ही मेवाड़ का अगला शासक बताया। ऐसे में संग्राम सिंह अपना बचाव करने के लिए और भाइयों के डर से अजमेर के क्रमचंद पंवार के पास अज्ञातवास बिताने लगे थे। बाद में अपने दोनों भाइयों की मृत्यु होने पर वे मेवाड़ लौट आये।

राणा सांगा का मेवाड़ पर शासन

मेवाड़ आने पर राणा रायमल ने उनका भव्य स्वागत किया और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। अपने पिता राणा रायमल की मृत्यु के बाद 27 वर्ष की आयु में राणा सांगा ने मेवाड़ का शासन संभाला। कुछ इतिहासकार बताते है कि मेवाड़ की राजगद्दी के लिए राणा सांगा और पृथ्वीराज व जयमल के बीच बहुत लंबा संघर्ष चला।

कहते है कि सन् 1509 में अजमेर के कर्मचन्द पंवार की सहायता से राणा सांगा मेवाड़ राज्य प्राप्त हुआ था। सांगा ने सभी राजपूत राज्यो को संगठित किया और सभी राजपूत राज्य को एक छत्र के नीचे लाने का काम किया। उस समय राणा सांगा उतर भारत में सबसे शक्तिशाली शासक थे।

उन्होंने सभी राजपूत राज्यो से संधि की और अपने साम्राज्य को उत्तर में पंजाब सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीतकर नर्मदा नदी तक लेकर गए। पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में बयाना भरतपुर ग्वालियर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इस प्रकार मुस्लिम शासको के डेढ़ सौ वर्ष के शासन के बाद इतने बड़े हिंदू साम्राज्य की स्थापना हुई।

सांगा ने उत्तर भारत में दक्षिण में विजयनगर सम्राज्य के सामान ही इतना बड़ा हिंदू सम्राज्य स्थापित किया था। उन्होंने दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को खातौली व बाड़ी के युद्ध में 2 बार हराया। साथ ही गुजरात के सुल्तान को हराकर उसे मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोका। राणा सांगा ने बाबर को खानवा के युद्ध में पूरी तरह से हरा दिया था।

बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया। राणा सांगा 16वी शताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक बनकर उभरे। उन्होंने युद्ध के दौरान 80 घाव धारण किये थे। उन्हें हिंदुपत की उपाधि से नवाजा गया। इस तरह राणा सांगा ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप बनाई। इतिहास में इनकी गिनती महानायक, शक्तिशाली योद्धा व वीर के रूप में की जाती हैं।

राणा सांगा का मीरा बाई से सम्बंध

राणा सांगा के बड़े बेटे का नाम भोजराज था। भोजराज का विवाह मेड़ता के राव वीरमदेव के छोटे भाई रतनसिंह की पुत्री मीराबाई के साथ हुआ था। मीराबाई मेड़ता के राव दूदा के चौथे बेटे रतनसिंह की इकलौती पुत्री थी। बाल्यावस्था में ही मीराबाई की माँ का देहांत हो गया था। जिस वजह से मीराबाई को राव दूदा ने अपने पास बुला लिया और उनका पालन-पोषण किया।

मीराबाई का विवाह वि.स्. 1573 (ई.स.1516) में राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ। लेकिन विवाह के कुछ वर्ष बाद ही भोजराज का देहांत हो गया। जबकि मीराबाई का पिता रतनसिंह राणा सांगा और बाबर के बीच हुए युद्ध में मारा गया। राणा सांगा की मृत्यु के बाद उनका छोटा पुत्र रतनसिंह उत्तराधिकारी बना।

लेकिन सन्न 1531 में युवराज रतनसिंह की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण-भक्त थी। वह अपना अधिकांश समय कृष्ण-भक्ति में व्यतीत करती थी। मीराबाई की अपूर्व भक्ति और भजनों की ख्याति दूर दूर तक फैली हुयी थी। जिस वजह से दूर दूर से साधु संत उनसे मिलने आया करते थे।

यही बात राणा विक्रमादित्य को पसंद नहीं थी। वे उनसे खुश नहीं थे। विक्रमादित्य मीराबाई को कई तरह की कठोर यातनाये देते रहते थे। यहाँ तक की उन्होंने मीराबाई को मरवाने के लिए विष तक दे दिया था। लेकिन उनके द्वारा किये गए सरे प्रयास विफल रहे। इसके बाद ऐसी परिस्थितियों को देख के राव वीरमदेव ने मीराबाई को मेड़ता बुला लिया।

जब जोधपुर के राव मालदेव ने वीरमदेव से मेड़ता छीन लिया तब मीराबाई तीर्थयात्रा पर चली गई और द्वारकापुरी में जाकर रहने लगी। सन्न 1546 में द्वारकापुरी में मीराबाई कृष्ण-भक्ति में लीन हो गई अर्थात उनका देहांत हो गया। आज भी मीराबाई की कृष्ण-भक्ति का गुणगान किया जाता है।

राणा सांगा की सैन्य शक्ति

शत्रु सेना के लिए राणा सांगा का नाम ही काफी था। अपने शासनकाल में राणा सांगा उतर भारत में एक शक्तिशाली शासक था। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने जब हिन्दुस्थान पर आक्रमण किया था, तब सांगा का वर्चस्व उतर भारत में था। शत्रु सेना सांगा के नाम से ही कांपती थी। उन्होंने सभी राजपूत राजाओ को एकजुट करके अपनी सैन्य ताकत में वृद्धि की।

राणा सांगा ने अपनी वीरता और तलवार से अपने उच्च गौरव को हासिल किया। राणा सांगा के पास 80 हज़ार घोड़े, उच्चतम श्रेणी के 7 राजा, 9 राव और 104 सरदारों व रावल, 500 युद्ध हाथियों का बल था। वे इन सब को साथ लेकर युद्ध किया करते थे। खानवा के युद्ध में उन्हें 80 घाव मिले थे।

मालवा, गुजरात और लोधी सल्तनत की संयुक्त सेनाओं को हराने के बाद व मुसलमानों पर अपनी जीत कायम करने के बाद वे उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली राजा बन गए थे। ऐसा कहा जाता है कि सांगा ने 100 लड़ाइयां लड़ी थीं और विभिन्न संघर्षों में उनकी आँख तथा हाथ व पैर खो गए थे।

राणा सांगा की मालवा पर विजय – गागरोन का युद्ध

राजपूत सामंत मेदिनी राय ने मालवा के अपदस्थ सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पुनः शासक बनाने में सहायता की थी। जिस वजह से सुल्तान महमूद ने मेदिनी राय को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर लिया था। इसी बीच सुल्तान के मुस्लिम सहयोगियों को मेदिनी राय की बढ़ती शक्ति से ईर्ष्या होने लगी।

वे सुल्तान को मेदिनी राय के खिलाफ भड़काने लगे थे। इसके बाद मेदिनी राय महाराणा सांगा की शरण में मेवाड़ आ गया। राणा सांगा ने उसे गागरोन व चंदेरी की जागीरे दे दी थी। सन्न 1519 ई. में सुल्तान महमूद मेदिनी राय पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ। इस बात का पता जब राणा सांगा को लगा तो वे तुरंत एक बड़ी सेना के साथ गागरोन की तरफ निकल गए।

गागरोन में राणा सांगा व सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के बीच भीषण युद्ध हुआ। सुल्तान यह युद्ध हार गया था। इस युद्ध में सुल्तान का पुत्र आसफखाँ मारा गया था। साथ ही युद्ध में सुल्तान घायल हो गया था। राणा सांगा सुल्तान को अपने साथ बंदी बनाकर चित्तौड़ ले गया। फिर उसे 3 महीने तक बंदी बनाकर रखा।

इस प्रकार यह सन्न 1519 में गुजरात और मालवा की संयुक्त मुस्लिम सेनाओं के बीच राजस्थान में गागरोन के निकट राणा सांगा के नेतृत्व में लड़ा गया था। राणा सांगा ने चंदेरी किले के साथ-साथ मालवा के अधिकांश हिस्सों पर अधिकार कर लिया था। सिलवाडी और मेदिनी राय जैसे शक्तिशाली राजपूत सामंतो के समर्थन के कारण मालवा की विजय राणा सांगा के लिए आसान हो गई।

मेदिनी राय ने चंदेरी को अपनी राजधानी बनाया और राणा सांगा का एक विश्वसनीय सामंत बन गया। मालवा में जीत और हिंदू शासन को बहाल करने के बाद राणा सांगा ने मेदिनी राय को मालवा क्षेत्र के हिंदुओं से जजिया कर हटाने का आदेश दिया। – राणा सांगा का इतिहास

इब्राहिम लोदी और राणा सांगा के बीच खतौली का युद्ध

खतौली का युद्ध राणा सांगा और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच कोटा में हुआ था। सन्न 1518 में वर्तमान राजस्थान के ज्यादातर हिस्से दिल्ली सल्तनत के अधीन थे। राजपूत वीरो ने एक कुशल रणनीति के तहत धीरे-धीरे छोटे-छोटे भागों को आजाद कराने की योजना बनाई।

उन्होंने रणथम्भोर जैसी मजबूत सुरक्षित जगह को अपने अधिकार में किया। इसके बाद दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। लेकिन इस युद्ध में इब्राहिम लोदी की बुरी तरह से हार हुई। इस युद्ध में राणा सांगा ने लोदी के एक राजकुमार को कैद कर लिया था और इब्राहिम लोदी से एक बड़ी रकम वसूल करने के बाद ही उसे छोड़ा।

इस युद्ध में राणा सांगा ने अपना अपना बांया हाथ खो दिया। जो की तलवार लगने से कट गया था। जबकि पैर में तीर लगने से वे लंगड़े हो गए थे। युद्ध में मिले घावों का कई महीनो तक उपचार चला था। खतौली युद्ध में मिली हार का बदला लेने के लिए 1518 में ही इब्राहिम लोदी ने एक बार फिर से मेवाड़ पर आक्रमण किया।

इस बार इब्राहिम लोदी ने मियां माखन के नेतृत्व में राणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी। दोनों सेनाओं के बीच धौलपुर में युद्ध हुआ। राणा सांगा ने इस युद्ध में भी इब्राहिम लोदी की सेना को बुरी तरह पराजित किया।

इस बार राणा सांगा इब्राहिम लोदी को इतनी आसानी से नहीं जाने देना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने गागरोन और चंदेरी जैसे महत्वपूर्ण मालवा के स्थानों को अपने अधिकार में ले लिया। राणा सांगा का इतिहास – Rana sanga History in hindi

 राणा सांगा का ईडर पर अधिकार

गुजरात और मेवाड़ के बीच संघर्ष का कारण ईडर की गद्दी थी। ईडर के राव भाण के 2 पुत्र सूर्यमल और भीम थे। राव भाण की मृत्यु के बाद सूर्यमल राजगद्दी पर बैठा किंतु उसकी भी 18 महीने के बाद मृत्यु हो गई। इसके बाद सूर्यमल के स्थान पर उसका बेटा रायमल ईडर की गद्दी पर बैठा।

लेकिन रायमल की उम्र कम होने के कारण उसके चाचा भीम ने गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया। फिर रायमल ने मेवाड़ में शरण ली। इसके बाद राणा सांगा ने अपनी पुत्री का विवाह रायमल के साथ कर दिया। सन्न 1516 में रायमल ने राणा सांगा की सहायता से भीम के पुत्र भारमल को हटाकर ईडर पर पुन: अधिकार कर लिया था।

इसके बाद भारमल को हराकर ईडर का शासक रायमल को बनाने से गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर बहुत क्रोधित हुआ। क्यूंकि भीम ने सुल्तान की आज्ञा से ही  ईडर पर अधिकार किया था। फिर क्रोधित सुल्तान मुजफ्फर ने अहमदनगर के निजामुद्दीन को आदेश दिया कि वह रायमल को हराकर भारमल को पुनः ईडर की गद्दी पर बिठाये।

रायमल ने निजामुद्दीन के नेतृत्व में आयी गुजराती सेना के साथ भीषण युद्ध किया। अंत में पराजित होने पर 1517 में रायमल ने बीजानगर में शरण ली। ईडर पर विजय प्राप्त करने के बाद निजामुद्दीन व भारमल राज्य का शासन कार्य मिलकर देखने लगे। लेकिन राज दरबार में कुछ रायमल का समर्थन करने वाले राजदरबारी भी थे।

एक दिन रायमल का समर्थन करने वाले राजदरबारी ने निजामुद्दीन के सामने रायमल और राणा सांगा के युद्ध कौशल तथा उनकी वीरता की प्रशंसा कर दी। साथ ही ईडर का शासन छीनने की बात कही। तभी क्रोधित होकर सुल्तान ने राणा सांगा की तुलना श्वान से कर दी। जब यह बात सांगा को पता चली तो सांगा सेना चितोड़ से विशाल सेना लेकर निकल गए।

गुजरात पर विजय

जब राणा सांगा को निजामुद्दीन द्वारा किये अपमान के बारे में पता चला तो वे बदला लेने के लिए विशाल सेना के साथ ईडर की तरफ निकल गए थे। बागर से रावल उदय सिंह, जोधपुर से राव गंगा और मेड़ता से राव वीरमदेव भी राणा सांगा के साथ शामिल हो गए। राणा सांगा की विशाल सेना को देखकर निजामुद्दीन डरकर अहमदनगर के किले में छुप गया।

राणा सांगा ने भी निजामुद्दीन का पीछा अहमदनगर तक किया। सांगा की सेना ने अहमदनगर के किले को चारों तरफ से घेर लिया। मुगल सेना ने किले के सभी दरवाजों को बंद कर दिया और किले के ऊपर से राणा सांगा की सेना पर हमला करना शुरू किया। इस हमले में सांगा के एक प्रमुख सेनापति डूंगर सिंह चौहान घायल हो गए।

इसके बाद अपने घायल पिता को देखकर कान्हासिंह ने मुगलों से बदला लेने की ठानी। किले के दरवाजो पर तीक्ष्ण भाले लगे थे ताकि कोई हाथी या सेना अंदर न आ सके। लेकिन कान्हासिंह ने अपने प्राणों की आहुति देकर किले का दरवाजा खुलवाने में सफलता प्राप्त की। दरवाजा खुलते ही राजपूत सेना पुरे जोश के साथ किले के अंदर प्रवेश कर गयी।

किले में मौजूद सभी मुग़ल सेना को मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन निजामुद्दीन किले के गुप्त रास्ते से भागने में सफल रहा। ऐसे में राणा ने बदला लेने के लिए पूरे अहमदनगर, बड़नगर, विसलनगर आदि स्थानों की मुस्लिम संपत्ति को लूटकर मेवाड़ लौट आये। राणा की इस लूट से सुल्तान मुजफ्फर बहुत क्रोधित हो गया था।

सन्न 1520 में मलिक अयाज व किवामुल्मुल्क के नेतृत्व में दो अलग-अलग सेनाएं मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। मालवा का सुल्तान महमूद भी इस सेना के साथ मिल गया। लेकिन मुस्लिम योद्धाओ में अनबन होने के कारण मलिक अयाज आगे नहीं बढ़ सका और संधि करके  वापस लौट गया।

राणा सांगा भी पूरी तैयारी के साथ में नन्दसा में अपना सैन्य कैंप लगाकर बैठा। महमूद खिलजी ने भी मुजाफ्फर की सहायता के लिए अपनी सेना भेज दी। इधर राणा की सहायता के लिए मेदिनी राय, रायसेन के शासक तथा राजा सिल्हिदी जैसे शूरवीर शामिल हो गए। राणा सांगा की विशाल सेना को देखकर महमूद खिलजी भयभीत हो गया।

इतनी विशाल सेना के डर से महमूद खिलजी ने सांगा से संधि कर ली। साथ ही अपने बेटे को भी सांगा की कैद से आजाद करा लिया। फिर खिलजी मांडू लौट आया। राणा सांगा का इतिहास – Rana sanga History in hindi

राणा सांगा और बाबर का युद्ध

सन्न 1526 ई. में बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित किया और उसे मार डाला। भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ई. में बाबर ने की थी। इसी दौरान बाबर और राणा सांगा के बीच तनाव बढ़ना शुरू हो गया था। इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर संपूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था।

लेकिन राणा सांगा के होते हुए ये संभव नहीं था। दोनों ही उत्तर भारत में शक्तिशाली योद्धा थे। पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान हार गए लेकिन वे बाबर को भारत से बाहर निकलना चाहते थे। इसीलिए अफ़गानों के सरदार हसन खाँ मेवाती और मृतक सुल्तान इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी सांगा की शरण में पहुँच गए।

ऐसे में राजपूत अफगान मोर्चा बाबर के लिए भय का कारण बन गया था। बाबर ने राणा सांगा की शक्ति को नष्ट करने का निर्णय लिया। मुगल सेनाओं ने बयाना, धौलपुर और ग्वालियर पर अधिकार कर लिया, जिससे बाबर की शक्ति में वृद्धि हुई। उधर राणा सांगा ने भी खंडार दुर्ग व उसके निकटवर्ती 150 गाँवों को अपने अधिकार में ले लिया।

राणा सांगा के निमंत्रण पर अफगान नेता हसन खां मेवाती और महमूद लोदी, मारवाड़ से मालदेव, आमेर से पृथ्वीराज, ईडर से रायमल, वीरमदेव मेड़तिया, बांगड़ से रावल उदयसिंह, सलूंबर से रावल रतनसिंह, सादड़ी से झाला अज्जा देवरिया से रावत बाघ सिंह और बीकानेर से कुंवर कल्याण मल युद्ध के लिए शामिल हुए।

बयाना का युद्ध

फरवरी 1527 ई. में राणा सांगा रणथम्भोर से बयाना पहुंचे। बयाना में बाबर की तरफ से मेहंदी ख्वाजा दुर्ग रक्षक के रूप में तैनात था। बाबर ने बयाना की रक्षा के लिए मोहम्मद सुल्तान मिर्जा के नेतृत्व में सेना भेजी, लेकिन बाबर की सेना ने उसे खदेड़ दिया।

राणा सांगा ने बयाना पर अधिकार कर लिया। बाबर के खिलाफ बयाना पर विजय सांगा के लिए एक महत्वपूर्ण विजय थी। इधर बाबर युद्ध की तैयारियों में लग गया। लेकिन वह राजपूतों की वीरता की प्रशंसा सुनकर चिंतित हो गया।

इसी समय एक मुस्लिम ज्योतिषी मोहम्मद शरीफ ने भविष्यवाणी की कि मंगल का तारा पश्चिम है। इसलिए पूर्व से लड़ने वाले पराजित होंगे। बाबर ने अपनी सेना के मनोबल को गिरते देख उन्हें कई तरह के प्रलोभन दिए। राणा सांगा का इतिहास

खानवा का युद्ध

खानवा का युद्ध मार्च 1527 में राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच लड़ा गया था। खानवा (भरतपुर) के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी युद्ध हुआ था। बाबर के पास लगभग 2 लाख सैनिक थे। कुछ इतिहासकार बताते है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी।

राणा सांगा की सेना में अद्भुत साहस व वीरता थी। राजपूत सेना ने पुरे जोश के साथ युद्ध किया। लेकिन बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था। जबकि राजपूत सेनिको ने तो ये कभी देखा भी नहीं था। युद्ध के दौरान बाबर ने राणा सांगा की सेना के एक लोदी सेनापति को लालच दिया, तो वह राणा को धोखा देकर अपनी सेना सहित बाबर की सेना में शामिल हो गया।

पहली मुठभेड़ में बाजी राजपूतों के हाथ लगी, लेकिन अचानक राणा सांगा के सिर पर एक तीर लगने के कारण उन्हें युद्ध भूमि से निकलना पड़ा। साथ ही युद्ध का नेतृत्व करने के लिए सरदारों ने सलूंबर के रावत चुंडावत से प्रार्थना की। जबकि रतन सिंह ने यह कहते हुए यह प्रस्ताव ठुकरा दिया कि मेरे पूर्वज मेवाड़ छोड़ चुके हैं।

खानवा के युद्ध में राणा सांगा के युद्ध कौशल की प्रशंसा आज भी की जाती है। युद्ध के दौरान उन्हें 80 घाव मिले थे। लेकिन वे इन सब की परवाह न करते हुए लड़ते रहे। राणा सांगा की वीरता को देखकर बाबर के होश उड़ गए थे। सांगा इस युद्ध में बुरी तरह से घायल हो गए थे। राजपूत सेनिको ने राणा सांगा को युद्ध मैदान से बाहर निकलकर उनके प्राणों की रक्षा की थी।

गोले- बारूद व तोपों के दम बाबर खानवा का युद्ध जीत गया था। लेकिन राणा सांगा की सेना ने उन्हें धुल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लोदी के धोखा देने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते युद्ध हार गयी थी। इस युद्ध से बाबर ने पूरे भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित किया था और वह पहला मुग़ल सम्राट भी बना था।

राणा सांगा की पराजय के कारण

  1. इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार राणा सांगा की हार का मुख्य कारण बयाना युद्ध की विजय के तुरंत बाद ही युद्ध न करके बाबर को युद्ध की तैयारी करने का समय देना था। लंबे समय तक युद्ध को स्थगित रखना राणा सांगा की बहुत बड़ी भूल थी।
  2. राणा सांगा के कई सरदार देश प्रेम के भाव से इस युद्ध में शामिल नहीं हो रहे थे। सभी अलग-अलग स्वार्थ थे। यहाँ तक कि कुछ में परस्पर शत्रुता भी थी। संधि वार्ताओं के कारण कई दिन शांत बैठे रहने से युद्ध के प्रति जोश व उत्साह ख़त्म हो गया था
  3. राणा सांगा की सेना परंपरागत हत्यारों से युद्ध लड़ रही थी जबकि बाबर की सेना तोपों व गोला-बारूद से युद्ध लड़ रही थी। अतः राजपूत सैनिक तीर-कमान, भालों व तलवारों से बाबर की तोपो का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
  4. राजपूत सेना में एकता और तालमेल का अभाव था क्योंकि संपूर्ण सेना अलग-अलग सरदारों के नेतृत्व में एकत्रित हुई थी।
  5. राणा सांगा के घायल होकर युद्ध से निकलने पर सेना का मनोबल कमजोर हो गया था।
  6. बाबर की तोपों के गोलों से भयभीत होकर हाथियों ने पीछे हटना शुरू कर दिया था जिससे वे अपनी ही सेना को कुचल रहे थे।

राणा सांगा और महाराणा प्रताप का रिश्ता

महाराणा प्रताप सिंह राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह द्वितीय के बेटे थे। रिश्ते में महाराणा प्रताप राणा सांगा के पोते थे। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का मान-सम्मान मुगलो के सामने गिरने नहीं दिया। आखिरी साँस तक मेवाड़ की आन-बान की रक्षा की। महाराणा प्रताप और अकबर के बीच विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था जिसमे महाराणा की जीत हुयी थी। राणा सांगा का इतिहास

राणा सांगा के बारे में रोचक तथ्य

  1. राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को सिसोदिया राजपूत परिवार में मेवाड़ में हुआ था।
  2. राणा सांगा का वास्तविक नाम महाराणा संग्राम सिंह था।
  3. राणा सांगा उतर भारत के एक वीर योद्धा और सबसे शक्तिशाली हिंदू राजा थे। वे अपनी बहादुरी और उदारता के लिए जाने जाते थे।
  4. राणा सांगा का 47 वर्ष की आयु में 1527 अप्रैल को निधन हो गया।
  5. राणा सांगा ने मेवाड़ पर सन्न 1509 से 1528 तक शासन किया था।
  6. सांगा के पुरे शासनकाल में एक भी वर्ष ऐसा नहीं बीता जिसमें मेवाड़ ने किसी विदेशी आक्रमणकारी से युद्ध न किया हो।

राणा सांगा की मृत्यु

खानवा का युद्ध हारने के बाद राणा सांगा बाबर को उखाड़ फेंकना चाहते थे। राणा सांगा इस युद्ध में बुरी तरह से घायल हो गए थे। बाबर एक विदेशी शासक था। जो दिल्ली व आगरा पर कब्जा करके अपने क्षेत्रों का विस्तार करना चाहता था।

अफ़गानों के नेता हसन खाँ मेवाती और मृतक सुल्तान इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी ने राणा सांगा का समर्थन किया। युद्ध में राणा सांगा बेहोश हो गए थे। जिसके बाद राणा की सेना उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर लेकर गयी। राणा सांगा का इतिहास

जब राणा सांगा को होश आया, तो उन्होंने बाबर को हराने और दिल्ली पर विजय प्राप्त करने तक चित्तौड़ नहीं लौटने की शपथ ली। वे बाबर के खिलाफ एक और युद्ध छेड़ने की तैयारी में थे। लेकिन राणा सांगा के साथी एक ओर युद्ध नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने राणा सांगा को जहर देकर मार दिया था।

जनवरी 1528 में कालपी में उनकी मृत्यु हो गई। राणा सांगा के देहांत के बाद अगला उत्तराधिकारी उनका पुत्र रतन सिंह द्वितीय बना था। यदि बाबर के पास तोपे नहीं होती तो राणा सांगा की ऐतिहासिक जीत होती। बाबर की तोपों से भारतीय युद्ध की पुरानी प्रवृत्तिया ख़त्म हो गयी थी। राणा सांगा की वीरता को आज भी याद किया जाता है।

FAQ

Q :  राणा सांगा का जन्म कब हुआ था?
Ans :  12 अप्रैल 1482 चितोड़गढ़ में

Q :  राणा सांगा के माता-पिता कौन थे ?
Ans :  पिता – राणा रायमल और माता – रतन कंवर

Q :  राणा सांगा का वास्तविक नाम क्या था ?
Ans :  महाराणा संग्राम सिंह

Q :  खानवा का युद्ध कब हुआ था ?
Ans :  सन्न 1527ई. में

Q :  राणा सांगा का उत्तराधिकारी कौन था ?
Ans :  रतन सिंह द्वितीय

Q :  महाराणा सांगा ने कौन कौन से और कितने युद्ध लड़े थे ?
Ans :  राणा सांगा ने प्रमुख चार युद्ध लड़े जो इस प्रकार है।
1. बाडीघाटी का युद्ध 1517 (धोलपुर)
2. खातोली का युद्ध 1518 (बूंदी)
3. बयाना का युद्ध 1527 (भरतपुर)
4. खानवा का युद्ध 1527 (भरतपुर)

Q :  राणा सांगा का राज्याभिषेक कब हुआ ?
Ans :  24 मई 1509 में चितौड़ में

Q :  राणा सांगा की मृत्यु कब हुयी थी ?
30 जनवरी 1528

Q :  राणा सांगा महाराणा प्रताप के कौन थे ?
Ans :  राणा सांगा महाराणा प्रताप के दादा जी थे। दोनों में दादा-पोते का रिश्ता था।

Q :  राणा सांगा व मीरा बाई में क्या रिश्ता था ?
Ans :  मीरा बाई राणा सांगा के बड़े बेटे भोजराज की पत्नी थी। अतः राणा सांगा मीरा बाई के ससुर थे।

Q :  राणा सांगा के शरीर पर कितने घाव थे ?
Ans :  युद्ध में सांगा को 80 घाव मिले थे।

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