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सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी Biography of sardar vallabh bhai patel

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी। सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में आप कितना जानते हो। आज जिस भारत को आप देख रहे है ,उस भारत की कल्पना वल्लभ भाई पटेल ने की थी। आजादी से पहले भारत 562 देसी रियासतों में बटा हुआ था। इन सभी रियासतों का विलयकरण पटेल जी के अथक प्रयासों से ही संभव हो पाया है। वल्लभ भाई पटेल आजाद भारत के प्रथम गृहमंत्री व उपप्रधानमंत्री रहे थे।  बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल जी को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। वल्लभ भाई पटेल केअनेक साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है। उन्हें अक्सर हिंदी,उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था

Table of Contents

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी-Biography of sardar vallabh bhai patel in hindi 

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म व शिक्षा

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में खेड़ा जिले के नडियाद गांव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम झवेरभाई पटेल तथा माताजी का नाम लाड बाई देवी था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज भाई थे। वे लेवा पटेल (पाटीदार) जाति से थे। इनके पिता जी एक किसान थे और माताजी एक गृहणी थी।  इनका बचपन गरीबी में बिता था जिसकी वजह से इन्हे अपनी पढ़ाई पूरी करने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 16 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह कर दिया गया परन्तु विवाह को वे अपनी पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया।

पटेल जी ने 22 साल की उम्र में 1896 में अपनी 10 वी की  परीक्षा पास की। स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे। इसके बाद वे परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने की वजह से 3 साल तक घर पर ही रहे। इनके पिताजी ने तो पटेल जी का एडमीशन कॉलेज में कराना चाहा।  परन्तु उन्होंने मना कर दिया। बाद में इन्होने घर से बाहर रहकर कई सालों तक वकालत की पढ़ाई की थी। इनके पास उस समय बुक्स खरीदने के पैसे भी नहीं हुआ करते थे। बाद में नौकरी करके घर का पलान पोषण भी किया।

पटेल जी 36 साल की उम्र में वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए। उनके पास वहाँ जाने के पैसे नहीं थे। पर उन्होंने जैसे तैसे पैसो का जुगाड़ किया और पासपोर्ट बनवाया और इंग्लैंड गए। उन्होंने 36 महीने की वकालत की पढ़ाई को महज़ 30 महीने में ही पूरा कर दिया। उन्होंने पुरे कॉलेज में टॉप किया और इसके बाद वापिस स्वदेश आकर अहमदाबाद में एक सफल और प्रसिद्ध  बैरिस्टर के रूप में कार्य करने लगे। वे देशसेवा में कार्य करने लगे।

पटेल जी एक भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओ में से एक थे। साथ ही वे भारतीय गणराज्य के संस्थापक कार्यकर्ताओ में से एक थे। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये कड़ा संघर्ष किया। उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने में काफी योगदान दिया। उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधने और आज़ाद बनाने का सपना देखा था।

बड़े भाई विठ्ठल भाई पटेल की सहायता करना

यह बात उस समय की है जब पटेल जी 1905 में अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे। लेकिन पोस्टमैन ने गलती से उनका पासपोर्ट और टिकट उनके भाई विठ्ठल भाई पटेल को दे दिया। क्योकि दोनों भाइयों का शुरुआती नाम वी जे पटेल था। जिसकी वजह से यह गलती हुई। ऐसे में विठ्ठल भाई ने बड़ा होने के नाते खुद इंग्लैंड जाने का फ़ैसला लिया। और वल्लभ भाई पटेल ने उस समय न सिर्फ बड़े भाई को अपना पासपोर्ट और टिकट दिया,बल्कि उन्हें इंग्लैंड में रहने के लिए कुछ पैसे भी भेजे।

पत्नी के निधन की ख़बर पर प्रतिक्रिया

वल्लभ भाई पटेल की पत्नी झावेर बा कैंसर से पीड़ित थीं। उन्हें सन्न 1909 में मुंबई के एक हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था। हॉस्पिटल  में ऑपरेशन के दौरान ही झावेर बा का निधन हो गया। उस समय पटेल जी अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे। और कोर्ट में बहस चल रही थी। तभी एक व्यक्ति ने कागज़ में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की ख़बर दी। पटेल जी ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख दिया और अदालत में बहस जारी रखी। बाद में वे मुक़दमा जीत गए। अदालती कार्यवाही समाप्त होते ही उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु की खबर सबको दी। बाद में पत्नी की मौत के कुछ महीने बाद उनके सामने दूसरे विवाह का प्रस्ताव रखा गया। परन्तु उन्होंने मना कर दिया और अपने बच्चो के सुखद भविष्य के लिए मेहनत करने लगे।

स्वतंत्रता संग्राम में लौह-पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान

स्थानीय गतिविधियाँ

पटेल जी ने अपने आस पास के लोगो को शराब व अन्य नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया। उस समय पुरुष शराब के नशे में नारियो पर अत्याचार करते थे। अतः उन्होंने नारी अत्याचार का विरोध किया। और हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित करने के लिए उन्होंने अदम्भ्य प्रयास किया।

खेडा संघर्ष

चम्पारण आंदोलन के बाद गाँधी जी ने किसानो की स्थिति सुधारने के लिए खेड़ा आंदोलन किया। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर रहते रहते है। उस समय भंयकर सूखे के कारण किसानो की फसल नष्ट हो गयी थी। जिसकी वजह से किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। लेकिन अंग्रेज सरकार को यह मंजूर नहीं था।  वे लगातार किसानो पर लगान भरने के लिए दबाव बना रहे थे। ऐसी स्थिति में गाँधी जी ने किसानो के साथ मिलकर आंदोलन किया। सन्न 1918 में गाँधी जी ने पटेल जी को खेड़ा के किसानो को एकत्रित करने व आंदोलन के लिए प्रेरित करने के लिए कहा। इस तरह गाँधी जी व पटेल जी के नेतृत्व में खेड़ा आंदोलन ने एक व्यापक रूप ले लिया। और किसानो ने भी गाँधी जी व पटेल का बहुत साथ दिया। अन्त में अंग्रेज सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।

पटेल जी ने अपनी वकालत छोड़कर गाँधी जी प्रभावित होकर अपने इस प्रथम आंदोलन में सफलता प्राप्त की। बाद में इन्होने गाँधी जी के हर आंदोलन में साथ दिया। इन्होने व इनके पुरे परिवार ने अंग्रेजी कपड़ो का बहिष्कार किया। और खादी को अपनाया।

बारडोली सत्याग्रह

बारडोली सत्याग्रह आंदोलन भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ था। यह प्रमुख रुप से एक किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल कर रहे थे। उस समय प्रांतीय सरकारों ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल जी ने इस लगान वृद्धि का भारी विरोध किया। अंग्रेज सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए। परन्तु अंत में विवश होकर उन्हें किसानों की मांगों को मानना पड़ा। इस तरह एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने पुरे मामले की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराया और इसे घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया।

इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहाँ की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। इस तरह उनका नाम सरदार वल्लभ भाई पटेल पड़ा। इस आंदोलन की सफलता के बाद पटेल जी की ख्याति पुरे भारत वर्ष में आग की तरह फ़ैल गयी।

देशव्यापी आंदोलन में भागीदारी

वल्लभ भाई पटेल गाँधी जी के विचारो व उनके कार्यो से बहुत प्रभावित थे। गाँधी जी की अहिंसा निति ने पटेल जी पर एक अमिट छाप छोड़ रखी थी। पटेल जी गाँधी जी सभी आंदोलनों में सहयोग करते थे। पटेल जी अंग्रेज सरकार की आँखों में चुबने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे। जब सन्न 1923 में गाँधी जी जेल में थे तब पैटल जी ने सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया था। देश के अलग अलग प्रांतो से लोग इस आंदोलन में शामिल हुए और अंग्रेज सरकार के खिलाफ आवाज उठायी। इस आंदोलन की वजह से अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा और कई केदियो को जेल से मुक्त कर दिया गया।

आजादी से पहले व आजादी के बाद महत्वपूर्ण पद

गाँधी जी के साथ आंदोलनों में सहभागीदारी से पटेल जी की ख्याति पुरे भारत में थी।  पटेल जी अहमदाबाद के नगर निगम के चुनावों में 1922, 1924 और 1927 में अध्यक्ष के रूप में चुने गए। 1920 में उन्होंने गुजरात कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। तथा 1932 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। वे 1945 तक गुजरात में  कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। उस समय गाँधी जी, नेहरु जी एवं सरदार पटेल ही भारतीय कांग्रेस के मुख्य नेता थे। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल जी एक प्रमुख उम्मीदवार के रूप में  थे। लेकिन गाँधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया। कई इतिहासकारो का मानना कि यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती। परंतु गाँधीजी के जग जाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया। वैसे पटेल जी प्रधानमंत्री पद के प्रथम प्रबल दावेदार थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी के सर्वाधिक वोट मिलने की पूरी  उम्मीद थे, लेकिन गाँधी जी के कारण उन्होंने स्वयं को इस दौड़ से दूर रखा।

गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से स्वयं को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। पटेल जी उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। परन्तु पूरा देश उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था। लेकिन गाँधी जी के नेहरू प्रेम की वजह से यह संभव नहीं हो सका। नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। दोनों ने कई बार अपना पद त्यागने की धमकी दी है। पटेल जी की गृह मंत्री के रूप में पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना था। उन्होंने बिना खून बहाए ये कार्य करके दिखाया। केवल हैदराबाद को शामिल करने में सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है।

देसी रियासतों का एकीकरण

देसी रियासतों का एकीकरण :- 15 अगस्त 1947 को भारत वर्ष को अंग्रेजो से आजाद करा लिया गया। परन्तु इस आजादी के बाद देश की हालत बहुत गंभीर थी। देश के भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजन होने से कई लोग बेघर हो गए थे। उस समय 562 देसी रियासते एक स्वतंत्र देश की तरह थी। जिन्हे भारत में मिलाना जरुरी था। सबके लिए यह कार्य बहुत कठिन प्रतीत हो रहा था। भारत के सामने यह एक सबसे बड़ी चुनौती थी। लगभग 200 वर्षो की गुलामी के बाद कोई भी राजा अब किसी भी तरह की आधीनता के लिए तैयार नहीं था। लेकिन वल्लभ भाई पटेल पर सभी को भरोसा था। उन्होंने सभी रियासतों को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाध्य किया।

स्वतंत्रता के समय भारत  562 देसी रियासतों में बटा हुआ था। जिनका क्षेत्रफल भारत का लगभग 40 प्रतिशत था। पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने का कार्य आरम्भ कर चुके थे। पटेल और मेनन ने देसी  रियासतों के राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वतंत्रता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन रियासतों को छोडकर शेष सभी रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में विलय होने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद रियासतों  के राजाओं ने भारत में विलय होने से इंकार कर दिया था।

जूनागढ़ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। जूनागढ सौराष्ट्र के पास की एक छोटी सी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। परन्तु वहाँ की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और वे भारत विलय होना चाहती थी। जब नवाब ने भारत में विलय होने इंकार कर दिया तो वहाँ की जनता ने विरोध करना शुरू कर दिया। अंततः भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी और जूनागढ़ का नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ को भारत में मिला लिया गया। बाद में फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया जो भारत में विलय के पक्ष में रहा।

हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी जो चारों तरफ से भारतीय भूमि से घिरी हुई थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान का प्रोत्साहन मिलने से स्वतंत्र देश का दावा किया। इस तरह वह अपनी सेना का विस्तार करने लगा। वह बहुत सारे हथियार आयात करने लगा। जिससे पटेल जी  चिंता बढ़ने लगी। अन्ततः भारतीय सेना ने 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश किया। तीन दिन के संघर्ष के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 को भारत में विलय होने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयासों द्वारा कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले  अनुच्छेद 370 और 35(अ) को समाप्त किया। अब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और इस तरह सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का सपना साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र सरकार के अधीन रहेगा। भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। इस तरह पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।

जम्‍मू-कश्‍मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह ने भारत या पाकिस्‍तान में विलय न करके आजाद रहने का फैसला लिया। परन्तु उधर पाकिस्तान चाहता था कि जम्‍मू-कश्‍मीर रियासत का विलय पाकिस्तान में हो। इसीलिए पाकिस्तान सेना ने तुरंत ही कबाइलियों के वेष में कश्‍मीर पर हमला कर दिया। हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और पटेल जी ने कहा कि वह कश्‍मीर को भारत में विलय दे। इस तरह 26 अक्‍टूबर 1947 को जम्‍मू-कश्‍मीर ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्‍ताक्षर कर दिए। भारत के तत्‍कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने  27 अक्‍टूबर को इसे स्‍वीकार कर लिया। 27 अक्‍टूबर 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह को भेजे लेटर में लिखा, ‘यह मेरी सरकार की इच्‍छा है कि जम्‍मू-कश्‍मीर में जल्‍द से जल्‍द कानून-व्‍यवस्‍था स्‍थापित की जाये और राज्‍य की मिट्टी से घुसपैठियों (पाकिस्‍तानी सेना ) को खदेड़ दिया जाए। इसके बाद जनता की राय पर राज्‍य के विलय के मुद्दे पर फैसला लिया जाए।

गांधी, नेहरू और पटेल का भारत एकीकरण का सफर

देसी रियासतों का एकीकरण – देश की आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री, प्रथम गृहमंत्री ,सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री थे। आज का भारत पटेल जी की महानतम देन थी। जिन्होंने 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना।

विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा नही हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।

एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी भंडार है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे चिंतित हो उठे। हैदराबाद रियासत को भारत में विलय करना उनके लिए एक चुनौती थी। उन्होंने अपना एक थैला उठाया और वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। कुछ दिनों बाद वे उड़ीसा पहुंचे और वहां के 23 राजाओं से कहा- “कुएं के मेढक मत बनो,महासागर में आ जाओ। इस तरह उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई।

इसके बाद वे नागपुर पहुंचे और यहाँ के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था अर्थात जब कोई इनसे मिलने जाता तो वहाँ तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल जी ने इन राजाओ को भी भारत में मिला लिया। पटेल जी ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह पटेल जी काठियावाड़ पहुँचे। वहाँ 250 रियासतें थी। कुछ रियासतें तो केवल 20-20 गांव की थीं। उन्होंने सबका एकीकरण किया। यहाँ से पटेल जी शाम के समय में मुम्बई पहुंचे। और आसपास के राजाओं से बातचीत की। इस तरह इन सब को भारत विलय के लिए राजी किया।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

 

पटेल जी ने पटियाला की तरफ नजर दौड़ायी और देखा तो खजाना खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि “क्या मर्जी है?” इतने में ही राजा कांप उठा। 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को छोड़कर लौह पुरुष सरदार पटेल ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया था।

इन तीन रियासतों में से जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को भारत में मिला लिया गया और जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में हैदराबाद भी केवल 3 दिन की सैन्य कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के खंडित मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया जिसका नेहरू जी ने तीव्र विरोध किया। फिर भी इस मंदिर का निर्माण हुआ।

कश्मीर रियासत को पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था। परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। पटेल जी कश्मीर को अंतराष्ट्रीय मुद्दा बनाना नहीं चाहते थे। अंततः सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य  बना। भारत की यह एक रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने पटेल जी को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”

विदेश विभाग नेहरू जी के कार्यक्षेत्र में आता था परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में पटेल जी को  जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। सन्न 1950 में पंडित नेहरू जी को लिखे एक पत्र में पटेल जी ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। वल्लभ भाई पटेल ने अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण तथा चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं बल्कि भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। पर नेहरु ने उनकी एक भी बात नहीं मानी।  शायद उनकी बात उस समय मान ली होती तो आज यह समस्या नहीं होती। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत नही हुए थे।

1950 में जब गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में दो घंटे की कैबिनेट बैठक हुई जिसमे लम्बी वार्ता सुनने के बाद सरदार पटेल ने सिर्फ इतना कहा “क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।” नेहरू जी, पटेल जी की इस बात से बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा नही करनी पड़ती। गृहमंत्री के रूप में पटेल जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में बदला। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर परिवर्तित किया। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष ओर जीवित रहते तो शायद सम्पूर्ण भारत से नौकरशाही का पूर्ण रूप से बदलाव हो जाता।

सरदार पटेल पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क रहा करते थे और देश को विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कहना है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। जिन्होंने जर्मनी का एकीकरण किया था। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था “बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे है वैसे नहीं होते। सरदार वल्लभ भाई पटेल केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं  पंडित जवाहर लाल नेहरु के बीच अंतर

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री हासिल की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में नेहरू जी से बहुत आगे थे। उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे,पटेल जी उसे कर डालते थे। नेहरू जी शास्त्रों के ज्ञाता थे जबकि पटेल जी शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें थोड़ा भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे कि मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है। नेहरू जी को गांव की गंदगी तथा जीवन से चिढ़ थी। नेहरू जी अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। पटेल एवं नेहरु दोनों गाँधी विचार धारा से प्रेरित थे इसलिए शायद एक कमान में थे। वरना इन दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर था। कांग्रेस पार्टी में नेहरु जी के लिए पटेल जी एक बहुत बड़ा रोड़ा थे

सरदार वल्लभ भाई पटेल की गाँधीजी के प्रति श्रद्धा

महात्मा गाँधी के प्रति पटेल जी की अटूट श्रद्धा थी। गाँधी जी के कहने पर ही उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए आवेदन नहीं किया था जबकि उनके पक्ष में अनेक कोंग्रेसी नेताओ का बहुमत था। गाँधीजी की हत्या से कुछ समय पहले निजी रूप से उनसे बात करने वाले पटेल जी अंतिम व्यक्ति थे। उन्होंने सुरक्षा में गलती होने को गृह मंत्री होने के नाते अपनी ग़लती माना। उनकी हत्या के सदमे से वे उबर नहीं पाये। गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल जी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी थी।

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु

1948 में गाँधी जी की गोडसे के द्वारा हत्या कर दी गयी थी जिससे पटेल को इस बात का गहरा आघात पहुँचा और उन्हें कुछ महीनो बाद हार्ट अटैक हुआ। जिससे वे उभर नहीं पाए और 15 दिसम्बर 1950 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की ऊँचाई 240 मीटर है। जिसका आधार 58 मीटर का बना हुआ है। मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है,जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है। 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। यहाँ लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया। अतः इस स्मारक का नाम ‘एकता की मूर्ति’ (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है।प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेट’ पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है। इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी
    स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

 

सरदार वल्लभ भाई पटेल का सम्मान

  1. अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमान क्षेत्र रखा गया है।
  2. गुजरात के विद्यानगर में सरदार वल्लभ भाई पटेल विश्वविद्यालय का नाम इनके सम्मान में रखा गया है।
  3. पटेल जी सन 1991 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया
  4. 2013 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण

सरदार वल्लभ भाई पटेल के अनमोल वचन

  1. जिस काम में मुसीबत होती हैं उसे ही करने में मजा हैं जो मुसीबत से डरते हैं,वे योद्धा नहीं, हम मुसीबत से नहीं डरते।
  2. डर का सबसे बड़ा कारण विश्वास में कमी हैं।
  3. जिनके पास शस्त्र चलाने का हुनर हैं लेकिन फिर भी वे उसे अपनी म्यान में रखते हैं असल में वे अहिंसा के पुजारी हैं। कायर अगर अहिंसा की बात करे तो वह व्यर्थ हैं।
  4. फालतू मनुष्य सत्यानाश कर सकता हैं इसलिए सदैव कर्मठ रहे क्यूंकि कर्मठ ही ज्ञानेन्द्रियो पर विजय प्राप्त कर सकता हैं।
  5. कभी- कभी मनुष्य की अच्छाई उसके मार्ग में बाधक बन जाती हैं। कभी- कभी क्रोध ही सही रास्ता दिखाता हैं। क्रोध ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत देता हैं।
  6.  जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती
  7.  हमें अपमान सहना सीखना चाहिए
  8. बोलने में मर्यादा मत भूलना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है
  9. कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं
  10. शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है

 

लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें

निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन के चलते तथा देशहित में कार्य करने में व्यस्त रहने की वजह से उन्हें स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का का समय नहीं मिला। परंतु उनके द्वारा लिखे गए पत्रों, टिप्पणियों एवं व्याख्यानों के रूप में साहित्य उपलब्ध है। जिनका लेखन कुछ इतिहासकारों ने किया और प्रकाशित किया। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण पटेल जी के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में लिखे गए थे। सन्न 1945 से 1950  के बीच इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में प्रकाशन हुआ जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्रों को ही शामिल नहीं किया गया बल्कि अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी शामिल किये गए। अतः उनके अलग अलग पत्रों को संकलित करके विभिन्न पुस्तकें तैयार की गयी हैं।

  1. सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) – दो खंडों में
  2. सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) – दो खंडों में
  3. भारत विभाजन
  4.  कश्मीर और हैदराबाद
  5. मुसलमान और शरणार्थी
  6. आर्थिक एवं विदेश नीति
  7. Sardar Patel’s correspondence, 1945-50. (In 10 Volumes)
  8. The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel (In 15 Volumes)

यह थी लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी जिन्होंने देसी रियासतों का एकीकरण किया। और अखण्ड भारत निर्माण मै अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। यदि लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल कुछ साल और जीवित रहते तो वर्तमान समस्याएँ उत्पन नहीं होती। उन्हें अपने कठोर रुतबे व बिना रक्त बहाये अर्थात रक्तहीन क्रांति के द्वारा देश का एकीकरण करने के कारण उन्हें लौह पुरुष का जाता है। इस तरह उनका पूरा नाम लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पड़ा।

4 thoughts on “सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी Biography of sardar vallabh bhai patel”

  1. दशरथ कुम्हार

    बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने सरदार वल्लभभाई पटेल की जानकारी जानकार हमरा नॉलेज बढ़ा है

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