Skip to content

हाड़ी रानी का इतिहास और जीवनी Hadi Rani Biography In Hindi

हाड़ी रानी का इतिहास और जीवनी - Hadi Rani Biography In Hindi

हाड़ी रानी का इतिहास – Hadi Rani Biography In Hindi :- दोस्तों आज मैं आपको इतिहास की एक ऐसी वीर क्षत्राणी की कहानी बताने वाला हूँ, जिन्होंने अपने विवाह के 7 दिन बाद ही अपने पति को उसका दायित्व याद दिलाने के लिए अपना सर काट कर दे दिया था। हाड़ी रानी की कहानी भारत के इतिहास की एक सहासिक व अकल्पनीय कहानी है। मैं आपको इस लेख में हाड़ी रानी का जीवन परिचय, हाड़ी रानी की कहानी, हाड़ी रानी की जीवनी, हाड़ी रानी का इतिहास के बारे में बता रहा हूँ।

यह एक अकल्पनीय वास्तविक कहानी है। हाड़ी रानी ने अपने पति के लिए निशानी के तोर पर अपने हाथो से शीश काटकर रणभूमि में भिजवा दिया था। राव रतन सिंह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। उनके विवाह को महज एक हफ्ता हुआ था। रानी के पति राव रतन सिंह को युद्धभूमि में युद्ध करने जाना था और उन्होंने अपनी रानी से निशानी मांगी थी।

हाड़ी राणी ने अपना सिर मातृभूमि के लिए बलिदान कर दिया था, ताकि राव रतन सिंह का मन युद्ध में लगा रहा रहे और वह शत्रु सेना का मुकाबला कर सके। क्योंकी इनकी नई नई शादी हुयी थी और राव रतन सिंह का मन अपनी पत्नी के रूप व यौवन में लगा हुआ था। इसीलिए हाड़ी रानी ने अपना शीश बलिदान कर दिया ताकि युद्ध में उनका ध्यान न भटके। आइये अब जानते है Hadi Rani History in Hindi ( हाड़ी रानी का इतिहास )

रानी का जीवन परिचय- Hadi Rani Biography In Hindi

नाम हाड़ी रानी
वास्तविक नाम सलेह कंवर
पिता का नाम शत्रुशाल हाडा
पति का नाम राव रतन सिंह चूडावत
जन्म दिन वसंत पचमी
जन्म स्थल बूंदी
वंश हाडा वंश
ससुराल  सलुम्बर

हाड़ी रानी का जन्म- हाड़ी रानी का इतिहास

हाड़ी रानी का जन्म हिन्दू तिथि के अनुसार वसंत पचमी के दिन हुआ था। हाड़ी रानी बूंदी के शासक शत्रुशाल हाडा की पुत्री थी। हाड़ी रानी का वास्तविक व बचपन का नाम सलेह कंवर था। विवाह के बाद वह हाडी रानी के नाम से जानी जाने लगी। हाड़ी रानी का बचपन बूंदी के राजमहलों में गुजरा था।

हाड़ी रानी का विवाह

हाड़ी रानी का विवाह मेवाड़ के सलुंबर ठिकाने के सरदार राव रावत रतन सिंह चूडावत के साथ हुआ था। विवाह के एक सप्ताह बाद ही रावत रतन सिंह को युद्ध में जाने का फरमान मिल गया था। अभी तो हाड़ी रानी के विवाह की मेहदी भी नहीं छूटी थी और उसके पति को दिल्ली के बादशाह औरंगजेब की सेना को रोकने का फरमान मिल गया था।

हाड़ी रानी का इतिहास – Hadi Rani story In Hindi

राव रावत रतन सिंह चूडावत अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। उनका युद्ध में जाने का मन तो नहीं था, लेकिन सवाल मातृभूमि की रक्षा का था। मातृभूमि की रक्षा के लिए राजपूत कभी पीछे नहीं हाड़ते है। चूडावत ने युद्ध के लिए सैनिको को तैयार होने का आदेश दिया। (Hadi Rani story in Hindi )

सरदार राव रतन सिंह चूड़ावत को युद्ध का बुलावा

सन्न 1652-1680 तक मेवाड़ पर राणा राजसिंह का शासन था। सलूम्बर के राव रतन सिंह चूड़ावत मेवाड़ के राणा राजसिंह के सामंत थे। राणा राजसिंह ने राव रतन सिंह को दिल्ली से औरंगजेब की सहायता के लिए आ रही सेना की टुकड़ी को रोकने के लिए फरमान भेजा।

जबकि हाड़ी रानी के विवाह को महज सात ही दिन हुए थे। हाथो की मेहँदी भी छूटी नहीं थी और न ही पैरों का आलता और युद्ध पर जाने का फरमान मिल गया। उन्हें थोड़ी हिचकिचाहट हुई, लेकिन राजपूतों की शान को देखते हुए उन्होंने युद्ध में जाने का निर्णय लिया। (Hadi Rani story in Hindi )

राव रतन सिंह सुबह के समय गहरी नींद में सो रहे थे। रानी सज धजकर अपने पति को जगाने आई। लेकिन तभी दरबान शार्दूल आ गया। दरबान शार्दूल  राव रतन सिंह का घनिष्ट मित्र था। हाड़ी रानी ने अपने पति से कहा, राणा राजसिंह का दूत काफी देर से खड़ा है। वह आपसे मिलना चाहते है। दूत आपके लिए कोई आवश्यक पत्र लाया है।

दूत के अचानक सुबह-सुबह आने से राव रतन सिंह हक्का बक्का रह गया। वह सोचने लगे कि अवश्य कोई विशेष बात या आपात की घड़ी होगी। वरना राणा को पता है कि अभी मेरी शादी को एक सप्ताह ही हुआ है। उसने हाड़ी रानी को दूत को कक्ष में बिठाने के लिए कहा और सरदार नित्यकर्म करने में व्यस्त हो गए।

सरदार जल्दी जल्दी में निवृत्त होकर बाहर आया और बैठक में बैठे राणा के दूत पर उसकी नजर जा पड़ी। सरदार रतन सिंह ने कहा, अरे शार्दूल तू। इतनी सुबह-सुबह कैसे ? क्या भाभी ने घर से खदेड़ दिया है ? सारा मजा फिर ख़राब कर दिया। तेरी नई भाभी अवश्य तुम पर नाराज होकर अंदर गई होगी। वह नई नई है ना, इसलिए बेचारी कुछ नहीं बोली होगी।

रतन सिंह ने अपने मित्र शार्दूल से पूछा, ऐसी क्या आफत आ पड़ी थी। दो दिन तो चैन की बंसी बजा लेने देते। मियां बीवी के बीच में क्यों कबाब में हड्डी बन रहा है। अच्छा ये बताओ राणा ने मुझे क्यों याद किया है ? इस तरह सरदार ठहाका मारकर हसने लगा। चूँकि दोनों घनिष्ट मित्र थे, इसीलिए थोड़ी हसी-मजाक में बाते हो रही थी। लेकिन शार्दूल बड़ा गंभीर दिख रहा था। वः सामान्य दिन की तरह व्यवहार नहीं कर रहा था।

शार्दूल ने सरदार से कहा, दोस्त ये हसने का समय नहीं है। सच में बहुत बड़ा संकट आ पड़ा है। मैं राणा का यह खत आपके लिए लेकर आया हूँ, जिसे आपको देने के बाद मुझे भी तुरंत वापस लौटना है। इतना कहकर वह शांत बेठ गया। अपने मित्र को व्याकुल देखकर रतन सिंह भी आश्चर्यचकित रह गया।

लेकिन दूत शार्दुल भी असमंजस में थे कि वह राणा का खत मित्र को दे या नहीं। राणा का सीधा आदेश था कि राव रतन सिंह तुरंत युद्ध के लिए प्रस्थान करें। मातृभूमि की रक्षा के लिए उनके योगदान की जरूरत है। लेकिन हाड़ा के पैरों के नाखूनों में लगे महावर की लाली के निशान अभी भी वैसे के वैसे ही उभरे हुए थे। नव विवाहित हाड़ी रानी के हाथों की मेंहदी भी तो ज्यों की त्यों ही थी।

न ही पति पत्नी ने एक दूसरे को ठीक से देखा पहचाना होगा। इतने जल्दी उनका बिछुड़ना दुखदायी होगा। ऐसा सोचते सोचते शार्दुल की आंखे भर आयी। युद्ध में कुछ भी हो सकता है। एक राजपूत मृत्यु को खिलौना ही समझता हैं। एक राजपूत युद्ध के मैदान में मृत्यु से सौदा करने ही जाता है। लेकिन अंततः दूत शार्दुल ने कड़े मन से राणा राजसिंह का पत्र राव रतन सिंह को सौंप दिया।

राणा राज सिंह का पत्र- हाड़ी रानी का इतिहास

वीरवर, तुम अभी अभी गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया है। मुझे अत्यंत दुःख के साथ यह सूचित करना पड़ रहा है कि दिल्ली से औरंगजेब की सहायता के लिए सेना की अतिरिक्त टुकड़ी आ रही है। जिन्हे आपको रोकना होगा। मैं इस समय औरंगजेब को घेरा हुआ हूँ। ( हाड़ी रानी का इतिहास )

अतः तुम  अविलंब अपनी सैन्य टुकड़ी को लेकर औरंगजेब की सेना को रोको। तुम्हे सहायता के लिए आ रही सेना को उलझाकर आगे बढ़ने से रोकना है। तब तक मैं पूरा काम निपट लेता हूँ। चूँकि यह कार्य बड़ा खतरनाक है। इसमें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पद सकती है। लेकिन मुझे तुम पर विश्वास है कि तुम इस कार्य को बड़ी कुशलता से कर सकते हो।

राव रतन सिंह के लिए यह समय किसी चुनौती से कम नहीं था। एक ओर मुगलों की विशाल सेना और उन सब के सामने उसकी सैनिक टुकड़ी बिलकुल कम थी। उधर  राणा राजसिंह ने मेवाड़ के छीने हुए क्षेत्रों को मुगलों के चंगुल से मुक्त करा लिया था। जिससे उन्हें हिम्मत मिली और युद्ध में जाने की तैयारी में लग गए।

राव रतन सिंह का हाड़ी रानी से विदा लेना

केसरिया बाना पहने युद्ध वेष में सजे पति को देखकर हाड़ी रानी चौंक पड़ी। हाड़ी रानी ने कहा कि आप युद्ध पोशाक में कहा जा रहे है। आपने तो कहा था कि 5-6 महीनों के लिए युद्ध से फुरसत मिली है और अब मैं आराम करूँगा। फिर अचानक युद्ध में कैसे ? सरदार ने अपनी पत्नी को समझते हुए कहा कि पति के शौर्य और पराक्रम को परखने के लिए लिए ही तो क्षत्राणियाँ इसी दिन की प्रतीक्षा करती है।

आज वह शुभ दिन आ गया है। मुझे देश के शत्रुओं से दो दो हाथ करने के लिए अविलंब युद्ध के लिए प्रस्थान करना है। सरदार ने मुस्करा कर पत्नी से कहा कि आप  हंसते-हंसते विदा करो। पता नहीं इस दिन के बाद हम मिले या नहीं। सरदार का मन व्याकुल था। यदि मैं सचमुच ही न लौटा तो,  मेरी इस अर्धांगिनी का क्या होगा ? एक ओर देश प्रेम था तो दूसरी ओर पत्नी का मोह।

राव रतन सिंह ने राणा राजसिंह के पत्र की सारी बात अपनी पत्नी को बताई। युद्ध के लिए विदाई मांगते समय पति का गला भर आया है। सरदार ने अपने व्याकुलित मन को छिपाने की कोशिश की, लेकिन हाड़ी रानी की आंखों से छिपा न रह सका। हताश मन व्यक्ति को विजय से दूर ले जाता है। पति सरदार युद्धभूमि में तो जा रहा है पर मोहग्रस्त होकर और यह बात नवविवाहित हाड़ी रानी को समझने में देर नहीं लगी।

हाड़ी रानी ने पति की जीत के लिए अपने मोह की बलि दे दी। रानी ने अपने पति से कहा, स्वामी जरा ठहरिए। मैं अभी आरती का थाल सजा कर लाती हूँ। हाड़ी रानी ने पति के माथे पर टीका लगाया और आरती उतारी। फिर उसने अपने पति को कहा कि मैं धन्य हो गयीं, ऐसा वीर पति पाकर और हम दोनों का सात जन्मों तक साथ रहेगा।

हाड़ी रानी ने अपने नेत्रों में आये आंसुओं को छुपाया, ताकि युद्ध में जाते वक्त पति कमजोर न पड़ जाये। फिर राव रतन सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं तुमको कोई सुख न दे सका और मुझे इस बात का दुःख है। तुम कही मुझे भूल तो नहीं जाओगी। कही मैं युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया तो। ( हाड़ी रानी का इतिहास )

इतना कहने पर हाड़ी रानी ने पति के मुख पर हथेली रख दी और कहा, ऐसी अशुभ बातें मत बोलों। मैं वीर राजपूतनी हूँ। फिर मैं एक वीर योद्धा की पत्नी भी हूँ। मैं अपना राजपूत धर्म अच्छी तरह जानती हूँ। आप निश्चित होकर युद्ध के लिए प्रस्थान करे। रतन सिंह घोड़े पर सवार होकर रणभूमि की तरफ दौड़ पड़े।

हाड़ी रानी का बलिदान

राव रतन सिंह युद्ध के लिए प्रस्थान तो कर गए, लेकिन उनका मन अभी भी अपनी पत्नी में था। वे पुरे रास्ते में अपनी धर्मपत्नी के बारे में ही सोचते रहे। अंत में उनसे रहा नहीं गया और आधे रास्ते से ही अपने विश्वसनीय सैनिक के द्वारा रानी हाड़ी के पास यह सन्देश भेजा कि मुझे भूल मत जाना, मैं वापिस जरूर लौटूंगा।

रानी ने संदेश वाहक को आश्वस्त कर लौटाया। यह क्रम 3 दिन तक चला। तीसरे दिन रतन सिंह ने रानी के पास अपने सैनिक को पत्र के साथ भेजा। सरदार ने पत्र में लिखा- प्रिय मैं यहाँ शत्रुओं से लोहा ले रहा हूँ। मैंने अंगद के समान पैर जमाकर मुग़ल सेना को रोक दिया है। बस मुझे आपकी याद आ रही है। पत्र वाहक द्वारा कोई अपनी प्रिय निशानी भेज देना। मैं उसे ही देखकर अपना मन हल्का कर लूंगा।

हाड़ी रानी पत्र को पढ़कर सोच में पड़ गयी कि वह अपने पति के राजपूत धर्म निभाने में बढ़ा बन रही है। यदि युद्ध के वक्त उन्हें मेरी याद आती रही, तो वे  शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे? इस तरह तो वे युद्ध हार जायेंगे। हाड़ी रानी अपने पति की विजय में बाधा नहीं बनना चाहती थी। उसने सैनिक से कहा कि मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशान दे रही हूँ। इसे ले जाकर सरदार को दे देना।

लेकिन ध्यान रहे इसे कोई दूसरा वक्ती न देखे। निशानी साथ में मेरा यह पत्र भी उन्हें दे देना। हाड़ी रानी ने पत्र में लिखा था- प्रिय, मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूँ। तुम्हारे मोह के सभी बंधनों को तोड़ रही हूँ। अब तुम मन लगाकर अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करना और युद्ध में विजय प्राप्त करना।

हाड़ी रानी ने अपने कमर से तलवार निकाल कर एक झटके में अपने सिर को काट दिया और हाड़ी रानी का सर जमीन पर जा गिरा। सिपाही की आँखों से आंसुओ की धरा बहने लगी। सैनिक ने हाड़ी रानी के वचन को पूरा करते हुए कटे सिर को स्वर्ण थाल में सजाया और सुहाग के चूनर से उसको ढक दिया।

सैनिक ने बिना विलम्ब किये सजे हुए थाल को  युद्ध भूमि की ओर लेकर गया। युद्ध भूमि में रतन सिंह सैनिक के हाथो में रानी की निशानी देखकर आश्चर्यचकित रह गया। सैनिक ने कांपते हुए हाथो से थाल को सरदार की तरफ बड़ा दिया। थाल में अपनी पत्नी का कटा सर देखकर राव रतन सिंह की आंखे फटी की फटी रह गयी।

राव रतन सिंह की आँखों से आंसुओ की धारा बाह रही थी और वह खुद को दोषी मान रहा था। तुमने यह क्या कर डाला। मेरे संदेह की इतनी बड़ी सजा दे डाली। अपने हाथो में अपनी पत्नी का कटा सर देख कर सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। ( हाड़ी रानी का इतिहास )

इसके बाद राव रतन सिंह ने अपने क्षत्रिय धर्म की पलना करते हुए युद्धभूमि में अपना अप्रतिम शौर्य दिखाया था। सरदार अपनी अंतिम श्वास तक युद्ध लड़ता रहा। सरदार ने औरंगजेब की सहायता के लिए आ रही मुग़ल सेना को भूरी तरह से खदेड़ दिया।

इस जीत का श्रेय केवल सरदार के सौर्य या राजा की वीरता को नहीं बल्कि हाड़ी रानी के बलिदान को भी जाता है। हाड़ी रानी का बलिदान इतिहास का सबसे बड़ा और अविश्वसनीय बलिदान माना गया है। (Hadi Rani History in Hindi)

आशा करता हूँ आपको हाड़ी रानी का इतिहास (Hadi Rani History in Hindi) , हाड़ी रानी की कहानी, हाड़ी रानी की जीवनी, हाड़ी रानी का जीवन परिचय, हाड़ी रानी का बलिदान, लेख अच्छा लगा हूँ। इस लेख में किसी प्रकार की कमी मिलने पर या कोई जानकारी गलती होने पर आप कमेंट करे। मैं उसमे संशोधन करने की कोशिश करूँगा।

FAQ

Q : हाड़ी रानी का जन्म कब हुआ था ?
Ans : बसंत पंचमी के दिन

Q : हाड़ी रानी के पिता का नाम क्या था ?
Ans : बूंदी के शासक हाडा संग्राम सिंह

Q : हाड़ी रानी का असली नाम क्या था ?
Ans : सलेह कंवर

Q : हाड़ी रानी का महल कहाँ स्थित है ?
Ans : नागौर, राजस्‍थान

Q : हाड़ी रानी की बावड़ी कहाँ स्थित है ?
Ans : टोडा रायसिंह कस्बे में

Q : हाड़ी रानी के पति का नाम क्या था?
Ans : राव रतन सिंह चूडावत

Q : हाड़ी रानी का ससुराल कहाँ था ?
Ans : सलुम्बर

Q : हाड़ी रानी ने अपना सर काटकर बलिदान क्यों दिया था ?
Ans : रतन सिंह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे और उन्होंने युद्ध के मैदान में से अपनी पत्नी से निशानी मांगी थी। तब हाड़ी रानी को लगा कि वह अपने पति की विजय में बाधा बन रही है। इसीलिए हाड़ी रानी ने अपना सर काट कर युद्ध भूमि में अपने पति रतन सिंह के पास भिजवा दिया था।

Read also

  1. बप्पा रावल की जीवनी व इतिहास- मेवाड़ का कालभोज जिसके नाम से शत्रु भी कांपते थे
  2. भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण
  3. शहीद भगत सिंह की जीवनी
  4. चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी
  5. सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी
  6. मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय

2 thoughts on “हाड़ी रानी का इतिहास और जीवनी Hadi Rani Biography In Hindi”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *