भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण – आज जिस भारत को आप देख रहे है, वह पहले ऐसा नहीं था। प्राचीन भारत बहुत विशाल था परन्तु समय समय पर बाहरी आक्रमण व विविधताओं की वजह से भारत का विभाजन होता रहा। आजादी के समय भी भारत के सामने ऐसी ही स्थिति हो गई थी। पुनः हिन्दुस्थान के दो टुकड़े हुए – भारत और पाकिस्तान।
स्वतंत्रता के समय भारत 565 देशी रियासतों में विभाजित था, जिनका हर हाल में भारत में विलय करना था। लेकिन कुछ रियासते ऐसी थी जो भारत में विलय नहीं होना चाहती थी। कुछ रियासते पाकिस्तान के साथ मिलना चाहती थी और कुछ स्वतंत्र रहना चाहती थी। आज मैं आपको इस लेख में भारत का राजनीतिक एकीकरण व भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण की कहानी बताऊंगा।
15 अगस्त 1947 को ही भारत को आजादी क्यों मिली ?
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने 15 अगस्त 1947 को आत्मसमर्पण कर दिया था। इसीलिए लार्ड लुई माउण्टबेटन ने जानबूझ कर 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को स्वतंत्र करने की तारीख तय की। दरअसल 15 अगस्त 1947 द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण करने की दूसरी वर्षगांठ थी। अतः इस वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए लार्ड माउण्टबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था।
भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण की कहानी
आजादी से पहले भारत तीन हिस्सों में विभाजित था।
- ब्रिटिश अधिकृत भारत के क्षेत्र- लंदन के इण्डिया आफिस तथा भारत के गवर्नर-जनरल के नियंत्रण वाला क्षेत्र
- फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र जैसे पाण्डिचेरी, गोवा आदि
- देशी रियासतें- उस समय 565 छोटी-बड़ी रियासतें थी।
सन् 1947 में भारत को आजादी मिली, लेकिन उस समय बहुत सारी समस्याएं भी उपहार स्वरूप भारत को मिली। भारत के सामने उस समय सबसे बड़ी समस्या थी- देशी रियासतों का विलीनीकरण करना। आजादी के समय भारत 565 देशी रियासतें बिखरा हुआ था।
उस समय आजाद भारत के उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे, जिन्हें इतिहास ‘लौह पुरुष’ के रूप में याद करता है। सरदार पटेल ने जूनागढ, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र 562 देसी रियासतों का विलयनीकरण बिना किसी संघर्ष के कर दिया।
माउण्टबैटन ने भारत की आजादी के सम्बन्ध में जवाहरलाल नेहरू के सामने प्रस्ताव रखा कि भारत के 565 देशी रियासतें भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल हो सकते है। या फिर वे अपना स्वतंत्र देश भी बना सकते है। इन 565 देशी रियासतें में से भारत के हिस्से में आये देशी रियासतों से सरदार पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए।
भारत में त्रावनकोर का विलय-देशी रियासतों का विलयनीकरण
दक्षिण तटीय रियासत त्रावनकोर ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। त्रावनकोर ने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्त्व पर सवाल उठाये थे। ऐसा कहा जाता है कि त्रावनकोर के दीवान सर सी.पी. अबयर ने यू.के. सरकार के साथ गुप्त संधि कर ली थी। यू.के सरकार चाहती थी कि त्रावनकोर एक स्वतंत्र देश बने। क्योंकि यह क्षेत्र मोनोजाइट नामक खनिज से समृद्ध था।
यू.के. इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार करके नाभकीय हथियारों की दौड़ में बढ़त हासिल करना चाहता था। लेकिन केरल समाजवादी पार्टी के एक सदस्य ने सी.पी. अय्यर की हत्या का असफल प्रयास किया। इसके बाद सी.पी. अय्यर ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया। इस तरह 30 जुलाई 1947 को त्रावनकोर भारत में शामिल हो गया।
भारत में भोपाल रियासत के विलयनीकरण की प्रक्रिया
हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल ऐसी रियासतें थी, जो भारत में शामिल नहीं होना चाहती थी। इन सब में भोपाल रियासत का विलय अंत में हुआ क्योंकि सरदार पटेल तथा वीपी मेनन जानते थे कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। कश्मीर ने स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा कर दी थी जबकि जूनागढ़ पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर चुका था।
यह एक ऐसी रियासत थी जिसने स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा कर दी थी। भोपाल का शासक एक मुस्लिम नवाब था जबकि यहाँ कि अधिकांश जनसंख्या हिंदू थी। अतः भोपाल में हिंदू अधिसंख्यक जनसंख्या पर एक मुस्लिम नवाब हमीदुल्ला खान का शासन था। वह मुस्लिम लीग का करीबी मित्र और कांग्रेस का घोर विरोधी था।
सरदार पटेल तथा वीपी मेनन ने जूनागढ़, कश्मीर तथा हैदराबाद को सेना की मदद से भारत में मिलाया। जबकि भोपाल रियासत का विलय सबसे अंत में हुआ था। जिसकी वजह यह थी कि नवाब हमीदुल्लाह चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर थे। इसीलिए देश की आंतरिक राजनीति में उनका बहुत दखल था। साथ ही वह नेहरू और जिन्ना दोनों के घनिष्ठ मित्र भी थे।
नवाब हमीदुल्लाह खान उस समय भोपाल रियासत के नवाब थे। भोपाल रियासत की स्थापना 1723-24 में औरंगजेब की सेना के बहादुर अफगान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर व गिन्नौर को जीत कर की थी। सन्न 1728 में दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान ने गद्दी संभाली और भोपाल रियासत को अपना पहला नवाब मिला था।
मार्च 1818 में नजर मोहम्मद खान नवाब के समय में एंग्लो भोपाल संधि के तहत भोपाल रियासत भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट बनी। बाद में सन्न 1926 में इसी रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान बने थे। नवाब हमीदुल्लाह खान ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी।
वे दो बार 1931 तथा 1944 में चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर बने थे। भारत विभाजन के समय भी हमीदुल्लाह खान ही चांसलर थे। आजादी की घोषणा होने पर उन्होंने 1947 में चांसलर पद से त्यागपत्र दे दिया था। क्योंकि वे रियासतों की स्वतंत्रता चाहते थे।
14 अगस्त 1947 तक नवाब हमीदुल्लाह गहरी सोच में पड़े हुए थे। क्योंकि जिन्ना ने हमीदुल्लाह को पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देने की घोषणा कर चुके थे। इस तरह हमीदुल्लाह निर्णय नहीं ले पर रहे थे, क्योंकि उन्हें रियासत का मोह भी था। अंततः उन्होंने 13 अगस्त 1947 को अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बनने को कहा, ताकि वह पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद सभाल सकें। लेकिन आबिदा ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
नवाब हमीदुल्लाह ने मार्च 1948 में भोपाल को स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा की और मई 1948 में भोपाल सरकार का एक मंत्रीमण्डल तैयार किया। लेकिन उस समय भोपाल रियासत के विलयनीकरण को लेकर विद्रोह होने लगा। इधर सरदार पटेल व वीपी मेनन भी दबाव बनाने लगे थे। (भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण)
अक्टूबर 1948 में नवाब हमीदुल्लाह हज पर चले गये। दिसम्बर 1948 में भोपाल के इतिहास का जबरदस्त प्रदर्शन विलयनीकरण को लेकर हुआ। इस प्रदर्शन में कई प्रदर्शनकारी गिरफ्तार हो चुके थे। इन सब में प्रमुख थे- भाई रतनकुमार, ठाकुर लाल सिंह, डॉ शंकर दयाल शर्मा। उस समय पूरा भोपाल बंद हो चूका था। पुलिस आंदोलन कारियों पर पानी फेंक रही थी और उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी।
23 जनवरी 1949 को डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा को 8 महीने के लिए जेल भेज दिया गया। इस दौरान एक बार फिर वीपी मेनन ने नवाब को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता। भोपाल भौगोलिक, नैतिक और सांस्कृतिक रूप से मालवा के ज्यादा करीब है। इसलिए भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। अंततः 29 जनवरी 1949 को नवाब हमीदुल्लाह ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया और सत्ता को एक बार फिर से अपने हाथ में ले लिए।
जबकि वीपी मेनन इस पूरे घटनाक्रम को भोपाल में ही रहकर देख रहे थे। मेनन ने भोपाल में रहकर नवाब पर अपना दबाव बनाया रखा।अंतत: 30 अप्रैल 1949 को नवाब हमीदुल्लाह खान ने विलयनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। इस तरह भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बना। केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर श्री एनबी बनर्जी ने कार्यभार संभाला और नवाब हमीदुल्लाह को 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स दिया गया।
भारत में जोधपुर का विलय-देशी रियासतों का विलयनीकरण
जोधपुर एक राजपूत रियासत होने के बावजूद पाकिस्तान में शामिल होने के लिए तैयार था। जबकि यहाँ का राजा व अधिकांश प्रजा हिन्दू थी। उस समय जोधपुर का शासक हनुवंत सिंह था जो कि युवा व अनुभवहीन राजा था। चूँकि जोधपुर की सीमा पाकिस्तान लगती है। इसीलिए धनवंत सिंह सोचता था कि वह पाकिस्तान के साथ ज़्यादा अच्छे तरीके से सौदेबाज़ी कर सकता है।
जिन्ना ने जोधपुर को पाकिस्तान में शामिल करने के लिए बहुत कोशिश की। इसके लिए जिन्ना ने हनुवंत सिंह को अपनी सभी मांगों को लिखने के लिये एक खाली पेपर पर हस्ताक्षर करके दे दिया था। जिन्ना ने राजा के सामने सैन्य व कृषकों की सहायता के लिए हथियारों का निर्माण और आयात के लिये कराची बंदरगाह से मुफ्त आवागमन का प्रस्ताव भी रखा।
उस समय जोधपुर रियासत की सीमा दिल्ली के बहुत करीब थी। अब चूँकि दिल्ली भारत की राजधानी है और किसी देश की राजधानी इंटरनेशनल सीमा के पास में होना किसी खतरे से कम नहीं है। ऐसी स्थिति में राजधानी में बाहरी आक्रमण बढ़ने का प्रकोप बना रहता है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरदार पटेल ने तुरंत महाराज हनुवंत सिंह से संपर्क किया। (देशी रियासतों का विलयनीकरण)
पटेल ने महाराज को सभी मांगे पूरी करने और अन्य सुविधाएं देने का आश्वासन दिया। साथ ही हथियारों के आयात की अनुमति भी दी गई। इसके अलावा पटेल ने जोधपुर को काठियावाड़ से जोड़ने के लिए रेल मार्ग का निर्माण और अकाल के दौरान अनाज की आपूर्ति का वचन दिया। इस तरह पर्याप्त आश्वासन मिलने पर हनुवंत सिंह ने 11 अगस्त 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस प्रकार जोधपुर रियासत का भारत में विलय किया गया।
भारत में हैदराबाद का विलय-देशी रियासतों का विलयनीकरण
हैदराबाद सभी रियासतों में सबसे बड़ी एवं सबसे संपन्न रियासत थी। यह ज्यादातर दक्कन के पठार तक फैली हुई थी। इस रियासत में 84% हिन्दू , 11% मुसलमान और बाकि 5 % जैन, ईसाई, आदि थे। सामाजिक, भाषा और सांस्कृतिक दृष्टि से हैदराबाद विविधता में एकता व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का शानदार उदहारण था। इस हिन्दू बहुल रियासत पर मुस्लिम शासक निजाम मीर उस्मान अली का शासन था।
निजाम ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया और स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा कर चूका था। निजाम को जिन्ना का आश्वासन मिला हुआ था, जिससे हैदराबाद को लेकर उलझनें बढ़ती गईं। निजाम के मानस पर पटेल व वीपी मेनन के निवेदन व धमकियों का कोई फर्क नहीं पड़ा। धमकियाँ मिलने के बावजूद निजाम ने यूरोप से हथियारों का आयात जारी रखा।
इस वजह से परिस्थितियाँ उस समय ओर भी भयानक हो गई जब सशस्त्र कट्टरपंथियों ने हैदराबाद की हिंदू प्रजा के साथ हिंसात्मक गतिविधियाँ शुरू कर दीं। इसके बदले में जनता ने भी निजाम के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। फिर सरदार पटेल ने वहाँ की जनता का साथ देते हुए सैनिक करवाई shuru कर दी। इस सैनिक करवाई का नाम “ऑपरेशन पोलो” रखा गया क्योंकि उस समय विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो खेल के मैदान हैदराबाद में थे।
इस तरह 13 सितम्बर 1949 को भारतीय सैनिकों को हैदराबाद भेजा गया। 4 दिन तक चले इस सशस्त्र सैनिक करवाई के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और 1 नम्बर 1948 को हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया। इसके बाद निजाम को पुरस्कृत करते हुए हैदराबाद राज्य का गवर्नर बनाया गया।
भारत में जूनागढ़ का विलयनीकरण
गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत जूनागढ़ की अधिकांश जनसंख्या हिंदू और राजा मुस्लिम था। यहाँ के नवाब मुहम्मद महाबत खानजी ने 15 सितंबर 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर चूका था। जूनागढ़ के अधीन वाले दो राज्य मंगरोल व बाबरियावाड ने जूनागढ़ से स्वतंत्र और भारत में शामिल होने की घोषणा की। इसके जवाब में जूनागढ़ के नवाब ने सैन्यबल की सयहता से इन दोनों राज्यों पर पुनः कब्जा कर लिया।
ऐसी स्थिति में पड़ोसी राज्यों के राजाओं ने भारत सरकार से सहायता मांगी। यदि जूनागढ़ पाकिस्तान में शामिल होता है, तो सांप्रदायिक दंगे बढ़ सकते है, जो कि भारत सरकार नहीं चाहती थी। यहाँ कि 80% जनसंख्या हिन्दू थी। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने जनमत संग्रह से इस समस्या का हल करने का प्रस्ताव रखा।
इसी दौरान भारत सरकार ने जूनागढ़ को ईंधन एवं कोयला देना बंद कर दिया और भारतीय सेना ने मंगरोल एवं बाबरियावाड पर कब्ज़ा कर लिया। जबकि जूनागढ़ का नवाब भारतीय सेना से डर कर पाकिस्तान भाग गया था। 7 नवंबर 1947 को जूनागढ़ की अदालत ने भारत सरकार को राज्य का प्रशासन सम्भालने के लिए आमंत्रित किया। फरवरी 1948 को ‘जनमत संग्रह” कराया गया और सर्वसम्मति से जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय हुआ।
भारत में कश्मीर रियासत का विलयनीकरण
कश्मीर एक ऐसी रियासत थी जहां कि अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम थी। इस मुस्लिम जनसंख्या वाली रियासत पर हिंदू राजा हरि सिंह का शासन था। हरी सिंह इस निर्णय पर चुप था कि स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान या भारत में से किसके साथ मिलना है। लेकिन इसी बीच पाकिस्तानी सैनिकों और सशस्त्र आदिवासियों ने कश्मीर में घुसपैठ कर हमला कर दिया।
इस भयानक स्थिति में राजा ने भारत सरकार से सहायता मांगी। राजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को अपना प्रतिनिधि बनाकर सहायता के लिए दिल्ली भेजा। भारत सरकार ने इस शर्त पर सहायता की, कि कश्मीर के विलयनीकरण के लिए भारत के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा। इसके बाद कुछ विशेष शर्तों के आधार पर 26 अक्तूबर 1947 को राजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
इसके बाद संचार, रक्षा एवं विदेशी मामलों को भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया गया। 5 मार्च 1948 को राजा हरि सिंह ने अंतरिम लोकप्रिय सरकार की घोषणा की जिसके प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला बने। सन्न 1951 में राज्य संविधान सभा का गठन हुआ और 31 अक्तूबर 1951 को इस सभा की पहली बार बैठक हुई।
सन्न 1952 में दिल्ली समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को “विशेष दर्जा” प्राप्त हुआ। 6 फरवरी 1954 को जम्मू-कश्मीर की संविधान ने भारत संघ के साथ विलय का समर्थन किया। जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 3 के अनुसार जम्मू -कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और रहेगा।
अनुच्छेद 370 के तहत 5 अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संवैधानिक आदेश की उद्घोषणा करते हुए जम्मू-कश्मीर को दिये गए “विशेष राज्य” के दर्जे को समाप्त कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर का विलय भारत संघ में हो तो गया, लेकिन इस राज्य की समस्या अब तक पूरी तरह से सुलझायी नही जा सकी। (भारत में देशी रियासतों का विलयनीकरण)
अन्य औपनिवेशिक रियासतों का भारत में विलयनीकरण
दमन और दीव, दादर व नगर हवेली, गोवा पर पुर्तगाल का शासन था। सन्न 1961 में इन रियासतों को भारत में मिला लिया गया। इसी तरह माहे, पांडिचेरी, कराइकल, यनाम तथा चन्द्रनगर क्षेत्र फ्रांस के नियंत्रण में थे। अतः सन्न 1954 में इन रियासतों को भी भारत में शामिल कर लिया गया। इस तरह सन्न 1949 के अन्त तक भारत की लगभग सभी रियासतों का विलय भारत संघ में हो गया।
FAQ
Q : भारत में कितनी रियासतें थी
Ans : 565
Q : राष्ट्रीय एकीकरण में किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
Ans : सरदार वल्लभ भाई पटेल ने
Q : 1947 से पहले भारत में कितनी रियासतें थी?
Ans : आजादी से पहले भारत में 565 देशी रियासते थी।
Q : भारत में विलय होने वाली अंतिम रियासत कौन सी थी?
Ans : भोपाल का विलय सबसे अंत में हुआ था।
Q : भारत की सबसे बड़ी रियासत कौन सी है?
Ans : क्षेत्रफल की दृष्टि से हैदराबाद सबसे बड़ी रियासत थी।
Q : कश्मीर रियासत का शासक कौन था ?
Ans : राजा हरि सिंह
Q : भोपाल रियासत का शासक कौन था ?
Ans : नवाब हमीदुल्लाह खान
Q : जोधपुर रियासत का शासक कौन था ?
Ans : हनुवंत सिंह
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