Dashrath Manjhi Success Story in Hindi : दशरथ मांझी की मोटिवेशनल कहानी :- युवा पीढ़ी में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो दशरथ मांझी की कहानी ( Dashrath Manjhi ki kahani ) नहीं जानता होगा। दशरथ मांझी एक ऐसे इंसान है, जिन्होंने असंभव कार्य को संभव करके दिखाया है। उन्होंने अपने छोटे से गाँव गहलौर से शहर तक का रास्ता बनाने के लिए 360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को तोड़कर रास्ता बना डाला।
उन्होंने 360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को तोड़कर यह सिद्ध कर दिया कि इस दुनिया में असंभव कार्य कोई नहीं है। जो लोग अपनी असफलता का रोना रोते है, उनके लिए दशरथ मांझी ( Dashrath Manjhi ki kahani ) एक अच्छा उदहारण है।
उन्होंने एक ऐसे काम को अंजाम दिया था, जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। आज उन्हें माउंटेन मैन ( Mountain man ) के नाम से भी जाना जाता है। इनके जीवन पर आधारित फिल्म “मांझी” के बाद उन्हें ( Dashrath Manjhi ki kahani ) कर कोई करीब से जानना चाहा है।
अगर हौसला बुलंद हो तो दुनिया का हर असंभव कार्य संभव लगने लगता है। इस बात को दशरथ मांझी ने छेनी हथौड़ी और मजबूत इरादे से पहाड़ का सीना चीरकर बखूबी साबित करके दिखाया है। आपको बता दे कि बिहार के गया जिला के एक छोटे से गांव गहलौर में 14 जनवरी 1929 को दशरथ मांझी का जन्म हुआ था।
इनका परिवार बहुत ही गरीब था। ये हरिजन समाज के मुसहर जाति से तालुक रखते है। इन्होंने अपने अधिकारों की मांग के लिए भी काफी संघर्ष किया था। गांव से शहर जाने के लिए सभी गांववासियों को पहाड़ के चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। आइये जानते है – Dashrath Manjhi ka Jeevan Parichay in hindi (Dashrath Manjhi success story in hindi )
दशरथ मांझी का जीवन परिचय – Dashrath Manjhi Biography in hindi
नाम | दशरथ मांझी |
उपनाम नाम | माउंटेन मैन |
जन्म | 14 जनवरी 1929 |
जन्म स्थान | गहलौर (गांव) , बिहार |
पत्नी | फगुनिया देवी |
मृत्यु | 17 अगस्त, 2007 नई दिल्ली |
मृत्यु का कारण | पित्ताशय कैंसर |
उपलब्धि | 360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को तोड़कर 55 km की दुरी को 15 km करना |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | मज़दूरी |
जाती | हरिजन |
माउंटेन मैन दशरथ मांझी का प्रारंभिक जीवन – Dashrath Manjhi Success Story
माउंटेन मैन दशरथ मांझी का जन्म (Dashrath Manjhi ka janm) एक ऐसे गुलाम भारत में हुआ था, जहां हमेशा से गरीबो का शोषण होता रहा है। अंग्रेजो की दासता के समय गरीब लोगो की हालत बहुत ही दयनीय थी, जबकि पेशेवर व जमीदारों का दबदबा ज्यादा रहा है। और इन ही लोगो ने गरीबो की आवाज को दबाया है। गुलामी के दौरान भारत के लगभग सभी गावों की हालत बदतर थी।
माउंटेन मैन दशरथ मांझी का जन्म (Dashrath Manjhi ka janm ) 14 जनवरी 1929 को बिहार के एक छोटे से गांव गहलौर में हुआ था। इनके गांव में भी किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं थी। भारत की आजादी के बाद भी कई गावों में बिजली-पानी की सुविधा नहीं थी। ( Dashrath Manjhi Success Story )
इस गांव के लोगो को पानी के लिए भी बहुत दूर जाना होता था। जबकि इलाज के लिए इन लोगो को या तो पहाड़ पर करके जाना होता था, या फिर पहाड़ के चक्कर लगाकर 55 km की दुरी तय करनी पड़ती थी। इस दौरान इन लोगो का काफी समय बर्बाद होता था।
दशरथ माँझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे। दशरथ माँझी का जन्म (Dashrath Manjhi ka janm) आदिवासी (ST) जाति हरिजन समाज में हुआ था। इनके पिता ने परिवार के पालन-पोषण के लिए बहुत मेहनत की थी। माँझी का बचपन में बल विवाह हुआ था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की थी।
माँझी छोटी सी उम्र में ही घर से भाग गए थे और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। जीवन के प्रारम्भ में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक माँगने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। एक दिन Dashrath Manjhi पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे थे। उसी समय उनकी धर्मपत्नी फाल्गुनी देवी उनके लिए खाना लेकर आती है। लेकिन पहाड़ के दर्रे में गिर जाने की वजह से फाल्गुनी देवी की मृत्यु हो जाती है।
जिसका माँझी को गहरा आघात पहुँचता है। माँझी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। समय पर हॉस्पिटल न पहुंचने की वजह से और दवाओं के अभाव में माँझी की पत्नी की मृत्यु हो गई थी। हॉस्पिटल जाने के लिए उन्हें या तो पहाड़ पार करना पड़ता या फिर पहाड़ के चक्कर लगाकर जाना पड़ता। जिसमे काफी समय लग जाता था।
अगर फाल्गुनी देवी को समय पर उपचार मिल जाता, तो वह बच जाती और यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद उन्होंने पुरे पहाड़ को बीच में से काटकर रास्ता बनाने का संकल्प लिया। इस तरह उन्होंने अकेले ही छीनी हथोड़ो की मदद से 360 फीट लम्बे, 30 फीट चौड़े व 25 फीट ऊँचे पहाड़ को तोड़कर रास्ता बना डाला।
दशरथ माँझी का घर छोड़कर जाना- Dashrath Manjhi Struggle
Dashrath Manjhi के पिता (Father) ने गांव के जमीदार से कुछ पैसे उधर लिए थे। जिसे वे चूका नहीं पाए थे। इसके बदले में उन्होंने अपने बेटे माँझी को बंधुआ मजदुर बनने के लिए बोला। लेकिन माँझी को किसी की गुलामी पसंद नहीं थी। इसीलिए वह घर छोड़कर भाग गया था और धनबाद की कोयले की खानों में काम करने लगे थे।
उन्होंने यहाँ 7 साल तक कार्य किया। फिर उन्हें अपने परिवार की याद आने लगी और घर लौट आये। 7 साल बाद अपने गांव लौटने पर भी वहाँ कुछ नहीं बदलता है। वह अपने गांव में वही गरीबी, जमीदारी, बिजली-पानी का अभाव, चिकित्सा का अभाव देखता है। इस दौरान वह अपनी माँ को भी खो चूका होता है और वह अपने वृद्ध पिता का सहारा बनने के लिए गांव में ही ठहर जाता है। इसके बाद वह अपनी प्रेमिका फाल्गुनी से प्रेम-विवाह करता है।
दशरथ माँझी का पहाड़ तोड़ने तक का सफर- Dashrath Manjhi Success Story in hindi
लगभग 1960 में माँझी की धर्मपत्नी फाल्गुनी गर्भवती थी। उस समय माँझी को पहाड़ पर कुछ मिला था, जिसे करने वो रोज जाते थे। उनकी पत्नी भी उन्हें रोजाना खाना देने जाती थी। एक दिन अचानक फाल्गुनी का पैर फिसल जाता है और वह पहाड़ के दर्रे में गिर जाती है।
गांव में चिकित्सा का अभाव होने की वजह से उन्हें प्राथमिक उपचार भी नहीं मिल पाता है और फाल्गुनी की मृत्यु हो जाती है। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई। गांव से शहरी हॉस्पिटल दूर होने की वजह से उन्हें उपचार नहीं मिल पाया था। ( Dashrath Manjhi Success Story )
इसके बाद Dashrath Manjhi ने संकल्प लिया कि वह अकेले ही इस विशाल पहाड़ को उखाड़ देगा, जिसके बाद गांव से शहर तक की दुरी कम हो जाएगी। चूँकि दशरथ माँझी एक साहसी, मेहनती, दृढ़ संकल्पी और निडर व्यक्ति थे। सन्न 1960 से माँझी ने पहाड़ तोडना शुरू कर दिया था।
वे रोजाना छीनी-हथोड़ा लेकर पहाड़ तोड़ने निकल जाते थे। उनके इस कार्य से गांव में सभी लोग उन्हें पागल कहने लगे थे। सब लोग माँझी को समझाते कि यह काम मत करो, बच्चो का भी ख्याल करो। उनका पालन-पोषण कौन करेगा। लेकिन माँझी किसी की भी नहीं सुनने वाले थे। क्योंकि उन्होंने दृढ़ संकल्प ले रखा था कि वह पहाड़ को बीच में से तोड़कर रास्ता बना के ही मानेंगे।
गांव में उन्हें सब लोग पहाड़तोडू कहने लगे थे। Dashrath Manjhi को पहाड़ तोड़ते तोड़ते कई साल बीत जाते है। इसी बीच गांव में सूखा भी पड़ जाता है और अकाल की स्थिति बन जाती है। जिससे लोग गांव छोड़कर जाने लगते है। लेकिन माँझी कहीं नहीं जाते है। वे वही रहते है, लेकिन वह अपने पिता व बच्चो को बेज देते है।
जब सूखा ख़त्म हो जाता है और सभी लोग अपने गांव आ जाते है, तब गांव वाले दशरथ माँझी को पहाड़ तोड़ते देख आशचर्य चकित हो जाते है। वो कहते है न कि कोशिश करने वालो की कभी हर नहीं होती है। बस माँझी भी हार नहीं मान रहे थे। जिसके हौसले बुलंद हो, बाह कुछ भी कर सकता है।
माँझी को पहाड़ तोड़ते देख हर कोई उन्हें सनकी व पागल कहने लगा था। लेकिन वे अपने संकल्प के प्रति अडिग थे। दशरथ माँझी ने दिन रात मेहनत करके वह दिन ला ही दिया, जिसका वह वर्षो से इंतजार कर रहा था। Dashrath Manjhi के हौसलों को बरसात, सर्दी, गर्मी व आँधी-तूफ़ान भी नहीं डगमगा सके।
उन्होंने लगातार 22 वर्षो तक मेहनत करके वह दिन ला दिया, जिसका उन्होंने 22 साल पहले सपना देखा था। जो काम उन्होंने वर्ष 1960 में शुरू किया था, उस काम को माँझी ने साल 1982 में ठीक 22 साल में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया।
प्रारम्भ में माँझी का मज़ाक उड़ाया गया था, लेकिन माँझी के अद्भुत कार्य ने गांव के लोगो का जीवन सरल बना दिया था। हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है। लेकिन उनका यह कार्य सराहनीय है।
अपनी सक्सेस के बाद माँझी ने कहा कि शुरू शुरू में गाँव वालों ने मेरे कार्य पर ताना मारा था। लेकिन उनमे से कुछ लोगो ने मुझे खाना दिया और कुछ ने औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की। इसी कारण से आज Dashrath Manjhi को पूरी दुनिया माउंटेन मैन (Mountain Man Dashrath Manjhi Success Story ) के नाम से जानती है।
कहा जाता है कि इंसान के अंदर अगर सच्ची लगन हो तो कठिन से कठिन कार्य पूर्ण किया जा सकता है। बुलंद हौसलों के सामने कोई भी कार्य असंभव नहीं होता है। व्यक्ति का कड़ा परिश्रम ( Dashrath Manjhi Success Story ) ही उसे सफलता तक पहुंचती है।
दशरथ माँझी का निधन- Dashrath Manjhi Death
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित दशरथ माँझी का 78 साल की उम्र में 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया। माँझी की मृत्यु होने पर बिहार सरकार ने राजकीय शोक घोषित किया था और इनका अंतिम संस्कार भी किया था। मरने से पहले माँझी ने अपनी जिंदगी पर फिल्म बनाने की अनुमति दी थी।
वे चाहते थे कि उनके जीवन से अन्य लोग प्रेरित हो। कभी हार न माने और अपने निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिए लगातार मेहनत करे। वर्ष 2011 में उनके द्वारा बनाई गई सड़क नामकरण उनके नाम पर ही किया था। इस मार्ग को “दशरथ माँझी पथ” दिया गया था। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 km लंबी एक सड़क और एक हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया।
दशरथ माँझी और इंद्रा गाँधी-( Dashrath Manjhi Biography in hindi )
साल 1975 में इंदिरा गाँधी ने सम्पूर्ण देश में इमरजेंसी लगा रखी थी, जिससे सम्पूर्ण देशवासी प्रभावित थे। इसी दौरान एक दिन इंदिरा गाँधी एक रैली के सिलसिले में बिहार पहुँचती है। इस रैली में दशरथ माँझी भी थे। अचानक भाषण के दौरान स्टेज टूट जाता है, जिसे माँझी और कुछ लोग मिलकर संभाल लेते है और इंदिरा गाँधी अपना भाषण पूरा कर पाती है।
इस घटना के बाद Dashrath Manjhi इंदिरा गाँधी के साथ एक फोटो खिंचवाता है। जब यह बात गांव के जमीदार को पता चली तो उन्होंने इसका फायदा उठाने की सोची। उन्होंने माँझी को मीठी मीठी बातो में फसा लिया। जमींदार ने माँझी को सड़क के लिए सरकार से पैसे मांगने के लिए सहमत किया और माँझी से अगूंठा लगवा लेता है।
लेकिन जब माँझी को हकीकत पता चलती है कि जमीदार ने उसे 25 लाख का चुना लगाया है, तो वह इसकी शिकायत प्रधानमंत्री से करने की ठान लेता है। इस तरह वह दिल्ली के लिए निकल पड़ता है, लेकिन बीच रास्ते में ही टीटी ने ट्रेन के 20 रूपए भी नहीं होने की वजह से उतार देता है।
लेकिन माँझी एक बार जो ठान लेते है, उसे कर के ही छोड़ते है। इसके बाद वह पैदल ही दिल्ली के लिए निकल पड़ता है। लेकिन उस समय दिल्ली में भी इमरजेंसी की वजह से बहुत दंगे हो रहे होते है। जब वह दिल्ली में पुलिस को अपनी इंदिरा गाँधी के साथ खींची हुई फोटो दिखाता है, तो पुलिस वाले फोटो को फाड़कर माँझी को भगा देते है और प्रधान मंत्री से मिलने नहीं देते है।
ऐसे में माँझी की सारी उम्मीद टूट चुकी होती है और वह थक-हार कर अपने घर लौट आता है। उस समय वह काफी बूढ़ा भी हो चूका होता है। इस दौरान कुछ लोग माँझी की पहाड़ तोड़ने में मदद करते है। लेकिन जब यह बात जमीदार को पता चलती है, वह उन सबको मार डालने की धमकी देता है और कुछ को गिरफ्तार करा देता है।
इसके बाद एक पत्रकार माँझी के लिए मसीहा बन कर आता है और वह माँझी के लिए लड़ता है। वह सभी गाँव वालों के साथ मिलकर दशरथ के लिए पुलिस स्टेशन के सामने विरोध करता है और माँझी को छुड़वा लेता है।
दशरत माँझी के सम्मान- Dashrath Manjhi Acheivement
- पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने के बाद दशरत माँझी को माउंटेन मैन की उपाधि दी गई।
- बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा।
- बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ माँझी के नाम पर गहलौर से 3 km पक्की सड़क का निर्माण और गहलौर गाँव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
- माँझी के जीवन पर एक फिल्म “माँझी: द माउंटेन मैन” बनी है।
दशरथ माँझी के जीवन आधारित डॉक्यूमेंट्री और फिल्म- Movie on Dashrath Manjhi Success Story
साल 2012 में फिल्म इंडस्ट्री ने माँझी के जीवन पर एक फिल्म ” द मैन हु मूव्ड द माउंटेन” का निर्माण किया गया। इस फिल्म के डायरेक्टर कुमुद रंजन थे। इसके बाद इसी वर्ष जुलाई 2012 में डायरेक्टर केतन मेहता ने दशरथ माँझी के जीवन ( Dashrath Manjhi life ) पर आधारित फिल्म माँझी: द माउंटेन मैन बनाने का निर्णय लिया।
चूँकि माँझी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने जीवन पर एक फिल्म बनाने के लिए कहा था। यह फिल्म 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने माँझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई थी।
जबकि माँझी के जीवन को एक कन्नड़ फिल्म “ओलवे मंदार” (Olave Mandara) में जयतीर्थ द्वारा दिखाया गया है। इसके अलावा मार्च 2014 में प्रसारित टीवी शो सत्यमेव जयते का सीजन 2 का पहला एपिसोड दशरथ माँझी को समर्पित किया गया।
आमिर खान और राजेश रंजन ने माँझी के बेटे भागीरथ माँझी और उनकी पत्नी बसंती देवी से मुलाकात की। साथ ही वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया। हालाँकि 1 अप्रैल 2014 को मेडिकल ट्रीटमेंट के अभाव में बसंती देवी की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उनके पति भागीरथ माँझी ने कहा कि यदि आमिर खान ने मदद का वादा पूरा किया होता तो ऐसा नहीं होता।
दशरथ माँझी की कहानी ( Dashrath Manjhi ki kahani ) से मुश्किल हालातों में भी डटकर मुसीबतों का सामना करने की हिम्मत मिलती है। दशरथ माँझी की कहानी ( Dashrath Manjhi ki kahani ) एक मोटिवेशनल कहानी ( Motivational story ) है, जो हमें जीवन में दृढ़ संकल्प के साथ लक्ष्य प्राप्त करना सिखाती है। दशरथ माँझी के जीवन (Dashrath Manjhi life) के अनुसार अगर कोई इंसान एक बार ठान ले, तो बड़े से बड़े कार्य को कर सकता है। माँझी ने 22 साल में पहाड़ तोड़कर यह साबित कर दिया कि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। आपको दशरथ माँझी सक्सेस स्टोरी ( Dashrath Manjhi Success Story in Hindi ) कैसी लगी कमेंट करके बताये।
FAQ
Q : दशरथ माँझी का जन्म कब हुआ था ?
Ans : 14 जनवरी 1929
Q : दशरथ माँझी की पत्नी का नाम क्या था ?
Ans : फाल्गुनी देवी
Q : दशरथ माँझी की पत्नी की मृत्यु कैसे हुई थी?
Ans : पहाड़ से फिसलने की वजह से माँझी की पत्नी की मृत्यु हो गई थी।
Q : दशरथ माँझी ने कब से पहाड़ खुदाई शुरू की थी ?
Ans : सन्न 1960 में माँझी ने पहाड़ की खुदाई शुरू की थी और 1982 में पहाड़ को तोड़कर रास्ता बना दिया था।
Q : दशरथ माँझी को पहाड़ तोड़ने में कितना समय लगा था ?
Ans : 22 साल
Q : दशरथ माँझी की मृत्यु कब और कैसे हुई थी ?
Ans : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित दशरथ माँझी का 78 साल की उम्र में 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया।
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