झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय, रानी लक्ष्मीबाई का इतिहास, झाँसी की रानी की कहानी, जाति, धर्म, मृत्यु, निधन, बलिदान, वैवाहिक जीवन – Jhansi Ki Rani Laxmibai Biography In Hindi, Rani Laxmibai History In Hindi, Rani Laxmibai Story In Hindi, family, Birth, Caste, Death, Marriage Life
Hello Friends, इस लेख में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय और उनके बलिदान की कहानी बताई जा रही है। वीरांगना लक्ष्मीबाई को हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा जनता है। “खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली रानी थी” इस कविता की पंक्ति से वह काफी प्रसिद्ध है।
देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक वीर योद्धाओ ने अपना बलिदान दिया है। आजादी की लड़ाई में हमारे देश की वीर, साहसी स्त्रियों ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती, अवन्ति बाई लोधी, रानी लक्ष्मीबाई जैसे नाम शामिल है।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने देश व अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत की और उनसे लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी लक्ष्मीबाई अपनी आखरी साँस तक अंग्रेजो से लड़ती रही।
रानी लक्ष्मीबाई की कहानी आज भी लोगो के जुबान पर है। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत कर दी थी और अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था। आइये जानते है झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय Rani Laxmibai History In Hindi
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय – Rani Laxmibai Biography In Hindi
नाम | रानी लक्ष्मीबाई नेवलेकर |
उपनाम | मणिकर्णिका, मनु |
जन्म | 19 नवम्बर 1828 |
मृत्यु | 18 जून 1858 |
पिता का नाम | मोरोपंत ताम्बे |
माता का नाम | भागीरथी बाई |
विवाह तिथि | 19 मई 1842 |
पति का नाम | झाँसी नरेश गंगाधर रावनेवलेकर |
घराना | मराठा साम्राज्य |
पुत्र | दामोदर राव, आनंद राव ( दत्तक पुत्र ) |
प्रसिद्ध कार्य | सन्न 1857 क्रांति |
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म और परिवार – Rani Lakshmibai History In hindi
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में वाराणसी ( काशी ) में हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। इनके पिताजी बिठूर जिले के पेशवा बाजीराव द्वितीय के लिए काम करते थे।
लक्ष्मीबाई की माँ का नाम भागीरथी बाई था। उनकी माँ भागीरथी बाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी। जब रानी लक्ष्मीबाई 4 साल की थी, तब ही उनकी माँ का निधन हो गया था। इनकी माँ एक अच्ची गृहणी थी।
रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था। लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। माँ की मृत्यु के बाद घर में मनु की देखभाल करने के लिए कोई नहीं था। इसलिए मनु के पिता उन्हें अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे।
जहाँ सब लोग चंचल व सुन्दर मनु को छबीली नाम से बुलाते थे। जब लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था, तब एक ज्योतिषी ने कहा था कि वह बड़ी भाग्यशाली है। वह भविष्य में राज करेगी। इस तरह आगे चलकर ज्योतिषी की यह बात सच साबित हुई।
रानी लक्ष्मीबाई की शिक्षा – Rani Lakshmibai Education
रानी लक्ष्मी बाई की शिक्षा घर में ही हुई थी। उन्हें पढ़ना लिखना आता था। इसके अलावा वह निशानेबाजी, घुड़सवारी, तलवारबाजी व मल्लखंभा में निपुण थी। लक्ष्मीबाई ने तलवारबाजी व घुड़सवारी छोटी सी उम्र में ही सिख ली थी। उनके तीन घोड़ो के नाम सारंगी, पवन और बादल था। उन्होंने शास्त्रों की शिक्षा के साथ साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली थी
रानी लक्ष्मी बाई का विवाह – Rani LakshmiBai Marriage
19 मई 1842 को मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ था। उनका विवाह 14 साल की उम्र में हो गया था। विवाह के बाद उनका नाम मणिकर्णिका से रानी लक्ष्मी बाई रखा गया था। जिसके बाद वह झाँसी की रानी रानी लक्ष्मी बाई कहलायी।
विवाह के बाद उन्होंने सोचा कि वह बंधन में बंध गयी है और महलों की चार दीवारी में कैद हो गयी है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने महलों में अपना प्रशिक्षण जारी रखा और कुश्ती व मलखंभ का प्रशिक्षण लिया।
झाँसी का उत्तराधिकारी
सन्न 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु दुर्भाग्यवश मात्र 4 माह बाद ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गयी। जिस वजह से महाराज गंगाधर को राज्य के उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी।
महाराज व रानी इसी चिंता में डूबे हुए थे कि राज्य का उत्तराधिकारी नहीं होने की वजह से अंग्रेज झाँसी को हड़प लेंगे। इसी दौरान महाराज का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा था। इसके बाद दोनों ने दत्तक पुत्र लेने की सलाह बनाई।
इसके बाद उन्होंने अपने चचरे भाई के बेटे को गोद लिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। पहले इस बच्चे का नाम आनंद राव था। गोद लिए हुए पुत्र को उत्तराधिकारी बनाने पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति न हो, इसलिए यह कार्य ब्रिटिश अधिकारीयों के सामने किया गया।
21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। जिस वजह से समूचा झाँसी सदमे में गुजर रहा था और चारों तरफ अंग्रेजी शासन का खौफ छाया हुआ था। Rani Laxmibai History In Hindi,
उस समय बालक दामोदर राव की उम्र कम थी, जिस वजह से लक्ष्मी बाई ने राज-पाठ का दायित्व अपने ऊपर ले लिया। उस समय लार्ड डलहौजी गवर्नर थे। उस समय के नियम के अनुसार राज्य का उत्तराधिकारी नहीं होने पर राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में चला जाता था और राज परिवार को खर्चे के लिए पेंशन दी जाती थी।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के बाद झाँसी को हड़पने की योजना बनाई। महाराज गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई की अपनी कोई संतान थी। जिस वजह से दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी के अधीन डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स को लागू किया। इस नियम के तहत दामोदर राव के उत्तराधिकारी के दावे को खारिज कर दिया गया।
इसके बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने लन्दन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दायर किया। लेकिन उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया। लक्ष्मीबाई को झाँसी का किला और झाँसी छोड़ने का आदेश दिया गया। इसके लिए उन्हे 60 हजार रुपये पेंशन दी जाएगी।
लेकिन रानी लक्ष्मीबाई अपने फैसले पर अडिग रही। उन्होंने झाँसी छोड़ने से इंकार कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। उन्होंने धीरे धीरे सेना को संगठित करना शुरू कर दिया था।
झाँसी का बुलंद किला – Buland Fort of jhansi
वर्ष 1602 में झाँसी के किले की नींव ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव के द्वारा रखी गई थी। ओरछा झाँसी से 18 km की दूर स्थित है। यह किला बंगरा पहाड़ी पर 15 एकड़ में फैला हुआ है। इस किले के निर्माण में 11 साल लगे थे। यह किला वर्ष 1613 में बनकर तैयार हुआ था।
इस किले में 22 बुर्ज और बाहर की ओर उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम दिशा में खाई है, जो कि दुर्ग की ढ़ाल बनकर आक्रमणकारियों से सुरक्षा करती है। पहले झाँसी ओरछा नरेश के राज्य में थी, जो बाद मराठा पेशवाओं के आधीन आ गयी। रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की अमिट छाप किले में हर जगह देखने को मिलती है।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष की शुरुआत
रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र के उत्तराधिकारी होने के अधिकार को ख़ारिज करने के बाद अंग्रेज सरकार ने झाँसी को अपने अधिकार में लेने के लिए कई षड्यंत्र रचे। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई कभी भी अंग्रेजो के सामने नहीं झुकी। उन्होंने साहस के साथ अंग्रेजो से मुकाबला किया।
मै अपनी झाँसी नहीं दूंगी
7 मार्च 1854 को ब्रिटिश सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का फरमान था। ब्रिटिश अधिकारी एलिस द्वारा यह आदेश मिलने पर उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया और कहा कि मै अपनी झाँसी नहीं दूंगी।
इसके बाद झाँसी विद्रोह का केन्द्र बन गया। रानी लक्ष्मीबाई ने अन्य राज्यों की मदद से एक सेना तैयार की। इस सेना में पुरुषो के साथ महिलाये भी शामिल थी, जिन्हे युद्ध प्रशिक्षण लक्ष्मीबाई ने दिया था।
रानी लक्ष्मीबाई की सेना में गुलाम खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुन्दर-मुन्दर, काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोतीबाई, दीवान रघुनाथ सिंह, दीवान जवाहर सिंह जैसे कई शूरवीर योद्धा थे। लक्ष्मीबाई की सेना में लगभग 14000 सैनिक शामिल थे।
1857 की क्रांति में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका
10 मई 1857 को अंग्रेज सरकार के खिलाफ देशभर में जगह जगह विद्रोह शुरू हो गया। कारतूस में सूअर और गौमांस की परत चढ़ा देने के कारण हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेश पहुँची। इन कारतूसों को मुँह से खोलना होता था, जिस वजह से पुरे देश में विद्रोह फेल गया।
कानपुर में विद्रोहियो का बडा जोर था। कानपुर से विद्रोह की लहरे झाँसी तक पहुँची। इसके बाद झाँसी छावनी के सिपाहियों ने कुछ अंग्रेजी सेनिको को मार डाला। इस विद्रोह को देखकर अंग्रेज अधिकारी अपने परिवार की सुरक्षा में लग गए।
जब झाँसी के किले को चारो तरफ से विद्रोहियों ने घेर लिया तब अंग्रेजो ने किला छोडने का निर्णय लिया। जब अंग्रेज सैनिक किले से बाहर आये, तब विद्रोही सेनिको ने उन्हें घेर कर मार डाला। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की बागडोर अपने हाथ में ले ली।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी पर लगभग 10 साल तक शासन किया था। इनके शासन में प्रजा बहुत खुश रहती थी और रानी ने अपनी प्रजा का अच्छे से ध्यान रखा था। Rani Laxmibai History In Hindi,
सन्न 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा व दतिया के राजाओं ने झाँसी पर अचानक हमला कर दिया। रानी ने अचानक हुए हमले का बहादुरी से जवाब दिया और इस युद्ध में जीत हासिल की।
सन्न 1858 में अंग्रेजो द्वारा पुनः झाँसी पर हमला करना
अंग्रेज सरकार ने झाँसी में हुए विद्रोह का कारण रानी लक्ष्मीबाई को माना। अंग्रेज सरकार को संदेह था कि झाँसी में विद्रोह और अंग्रेज अधिकारीयों को उन्होंने ही मरवाया है। वह विद्रोहियों से मिली हुयी है। रानी की आज्ञा से ही झाँसी में अंग्रेज सिपाहियों को मारा गया।
मार्च 1858 में अंग्रेज अधिकारीयों की मृत्यु का बदला लेने और पुनः झाँसी पर कब्जा करने के लिए सेनापति ह्यूरोज को झाँसी पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। इसके बाद सेनापति ह्यूरोज ने एक विशाल सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया।
अंग्रेजो द्वारा अचानक किये गए आक्रमण से वह घबराई नहीं। उन्होंने अंग्रेजो से युद्ध करने के लिए युद्ध की तैयारी की इस युद्ध में प्रजा व सेना ने रानी का बहुत साथ दिया। रानी व अंग्रेजो के बीच भीषण युद्ध हुआ।
तोपो के हमले से झाँसी की दीवारे टूटने लगी थी। 12 दिनों तक रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो से भीषण युद्ध किया। इसके बाद अंग्रेज सेना झाँसी में प्रवेश कर गई और लूटपाट और मारकाट शुरू कर दी।
हालाँकि मार्च 1858 को रानी के आग्रह करने पर झाँसी की रक्षा के लिए तात्या टोपे ने 20,000 से अधिक सैनिकों की टुकड़ी भेजी। लेकिन ये सैनिक भी झाँसी की रक्षा करने में नाकाम रहे। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने किला छोड़ने का निर्णय लिया।
लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांधकर अपने विश्वसनीय सेनिको के साथ अंग्रेजी सेनिको को कुचलते हुए किले से बाहर निकल गई। अंग्रेज सैनिक उनके साहस को देखते रह गए। उनमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो रानी लक्ष्मीबाई को पकड़ सके।
हालाँकि भागते समय रानी के घोड़े बदल की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन वे दोनों बच गए थे। झाँसी से भागते हुए रानी काल्पी जा पहुँची। काल्पी में रावसाहब और तात्या टोपे एक बडी सेना के साथ डेरा डाले हुए थे।
काल्पी का युद्ध – Kalpi ka Yudh
मार्च 1858 में झाँसी का युद्ध हार जाने के बाद रानी काल्पी में शरण लेती है। जहाँ उसे रावसाहब और तात्या टोपे का सहयोग मिलता है। लेकिन सेनापति ह्यूरोज रानी लक्ष्मीबाई का पीछा करते हुए काल्पी पहुँच जाता है। 22 मई 1858 को सेनापति ह्यूरोज काल्पी पर आक्रमण कर देता है।
ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई पूरी वीरता और रणनीतिपूर्वक अंग्रेज सेना को हरा देती है। जिस वजह से अंग्रेज सेना को पीछे हटना पड़ा। लेकिन कुछ समय बाद अफसर ह्यूरोज पुनः काल्पी का हमला कर देता है। इस बार रानी लक्ष्मीबाई को हार का सामना करना पड़ता है।
रानी लक्ष्मीबाई द्वारा ग्वालिर पर अधिकार करना
काल्पी के युद्ध में हार मिलने पर रावसाहब पेशवा, बन्दा के नवाब, तात्या टोपे व अन्य शूरवीर रानी लक्ष्मीबाई को ग्वालियर पर अधिकार करने का सुझाव देते है। इसके बाद रानी ने ग्वालियर पर कब्जा करने के लिए तैयारी शुरू की।
रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया। तात्या टोपे ने ग्वालियर पर आक्रमण करने से पहले ग्वालियर की सेना को अपनी सेना में मिला लिया। जिस समय ग्वालियर पर हमला करना था, उसी समय अंग्रेज सेना भी वहाँ पहुँच चुकी थी।
इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के राजा को हरा दिया और ग्वालियर पर अपनी जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होनें ग्वालियर का राज्य पेशवा को सौंप दिया। इस तरह उन्होंने अपने साहस वीरता का परिचय दिया।
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु – Rani Lakshmibai Death
18 जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई ने किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युद्ध किया और उन्होंने ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला। इस युद्ध में रानी की सेविकाओं ने भी उनका साथ दिया था। सभी ने पुरुषो की पोषक पहनकर वीरता से युद्ध किया।
इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई का घोडा राजरतन नहीं था। वह पिछले युद्ध में मारा गया था। इस युद्ध में रानी के पास नया घोडा था, जो कि नहर को पार नहीं कर पा रहा था। रानी लक्ष्मीबाई इस स्थिति को समझ गयी थी और उन्होंने पूरी वीरता के साथ युद्ध किया।
लक्ष्मीबाई को इस बात का अंदेशा हो गया था कि स्वतंत्रता संग्राम की यह लड़ाई उनके जीवन की आखिरी लड़ाई है। वह इस युद्ध में बुरी तरह से घायल हो चुकी थी और घोड़े से नीचे गिर गयी थी। लेकिन पुरुष पोषक में होने के कारण अंग्रेज सिपाईयों ने उन्हें पहचाना नहीं और उन्हें छोड़ दिया।
तभी रानी का ही एक विश्वसनीय सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गया और उन्हें गंगाजल पिलाया। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी अंतिम इच्छा बताई – कोई भी अंग्रेज सैनिक उनके मृत शरीर को हाथ न लगाए।
इस प्रकार वीरता के साथ युद्ध करते हुए 18 जून 1858 को कोटा के सराई के पास झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अदम्य साहस व वीरता से इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।
मातृभूमि की आजादी के लिए उन्हें अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उनके पास युद्ध करने के लिए न तो बड़ी सेना थी और न ही बड़ा राज्य था। बस मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम था। जिस वजह से साहस व वीरता से उन्होंने अपना परिचय दिया।
रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की प्रशंसा दुश्मनों ने भी थी। उन्होंने अपनी वीरता से भारत का गौरव बढ़ाया। आज भी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई विश्व की समस्त महिलाओ के लिए प्रेरणा है। रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के 3 दिन बाद अंग्रेजो ने ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया।
साथ ही लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार करके फांसी की सजा दे दी गई। रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश सरकार द्वारा पेंशन दी गयी, लेकिन उत्तराधिकारी का अधिकार कभी नहीं दिया।
बाद में वे इंदौर शहर में बस गये। उन्होंने अपना सारा जीवन अंग्रेज सरकार को मनाने में और अपने अधिकारों को प्राप्त करने में लगा दिया। दामोदर राव की मृत्यु 28 मई 1906 को 58 वर्ष में हो गयी थी।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की उपलब्धियाँ
- अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने झाँसी की कमान संभाली। हालाँकि इस दौरान उन्हें अंग्रेजी सरकार व पड़ोसी राज्यों के राजाओं के विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही और अंतिम साँस तक झाँसी को अंग्रेजो को नहीं सौंपा।
- रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना में पुरुषो के साथ में महिलाओ को भी शामिल किया और खुद ही उन्हें प्रशिक्षित किया।
- सितम्बर 1857 में पडोसी राज्य ओरछा व दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया था। जिसे रानी ने परास्त कर दिया था।
- अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज ने रानी लक्ष्मीबाई के गौरव के बारे में कहा कि 1857 के विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई सबसे खतरनाक विद्रोही थी। उन्होंने अपनी सुझबुझ, साहस और निडरता का परिचय देकर अंग्रेज को कुचल डाला।
- भारतीय इतिहास मे रानी लक्ष्मीबाई को शहीद वीरांगना के रूप मे पहचाना जाता है। आज भी वह साहसी, निडर और नारी शक्ती के रूप मे आदर्श मानी जाती है।
- रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सभी स्वतंत्रता सेनानियों को हिम्मत, साहस व शक्ति दी। वह महिलाओ के लिए प्रेरणास्त्रोत रही है।
- रानी लक्ष्मीबाई दोषियों को सजा देनी के हिम्मत रखती थी।
रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी गई किताबें, फिल्में और टीवी सीरियल
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी का वर्णन कवियित्री सुभद्रा चौहान ने “झाँसी की रानी” सहित अपनी कई कविताओं में किया है। इनकी कविताएं स्कूल में पढ़ाई जाती है और स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी का वर्णन भारतीय उपन्यासों, कविता और फिल्मों दे द्वारा किया गया है। रानी लक्ष्मीबाई के इतिहास पर टीवी सीरियल भी बना है, जिसका नाम “झाँसी की रानी” है।
इसके अलावा रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर “द टाइगर एंड द फ्लेम (1953)” और “माणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झाँसी (2018)” जैसी फिल्में बनाई जा चुकी हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी का वर्णन कई किताबो में किया गया है। फिल्म माणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झाँसी में बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभाई है।
जबकि अतुल कुलकर्णी ने तात्या टोपे का किरदार निभाया है। गंगाधर राव का किरदार जिस्शु सेनगुप्ता, झलकारी बाई का किरदार टीवी अभिनेत्री अंकिता लोखंडे ने निभाया है। यह फिल्म 25 January 2019 को रिलीज़ हुयी थी। इस फिल्म को हिंदी भाषा के साथ साथ तेलगु व तमिल भाषा में भी रिलीज़ किया गया था।
निष्कर्ष
आशा करता हूँ आपको झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय Rani Laxmibai History in hindi लेखा अच्छा लगा होगा। इस लेख में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई। हालाँकि रानी लक्ष्मीबाई का इतिहास बहुत बड़ा है, लेकिन यहाँ इसे संक्षिप्त शब्दों में वर्णन किया गया।
यदि आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ में भी शेयर करे। यदि इस लेख में किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो तो कमेंट बॉक्स में अपने विचार रखे। मैं उसमें सुधार करने की कोशिश करूँगा।
FAQ
Q : रानी लक्ष्मीबाई की जयंती कब मनाई जाती है ?
Ans : हर साल 19 नवंबर को पूरे देश में रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई जाती है।
Q : रानी लक्ष्मीबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
Ans : रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में वाराणसी ( काशी ) में हुआ था।
Q : रानी लक्ष्मीबाई के माता -पिता कौन थे ?
Ans : रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम मोरोपंत तांबे था, जो कि बिठूर जिले के पेशवा बाजीराव द्वितीय के लिए काम करते थे। लक्ष्मीबाई की माँ का नाम भागीरथी बाई था, जो कि एक ग्रहणी थी।
Q : झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के घोडे का नाम क्या था ?
Ans : रानी लक्ष्मीबाई के पास तीन घोडे थे जिनका नाम सारंगी,पवन और बादल था।
Q : रानी लक्ष्मीबाई कब शहीद हुई थी ?
Ans : 18 जून 1858
Q : झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कैसे हुई ?
Ans : काल्पी के युद्ध में वह बुरी तरह से घायल हो गयी थी। इसके बाद वह ग्वालियर आ गयी जहाँ रानी को कैप्टन ह्यूरोज ने घेर लिया। दोनों के बिच भीषण युद्ध हुआ। इसके बाद सर में चोट लगने से वह घायल हो गयी थी। जिसके बाद कोटा के सराई के पास झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अदम्य साहस व वीरता से इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।
Q : रानी लक्ष्मीबाई का विवाह किस उम्र में हुआ था ?
Ans : 14 साल की उम्र में झाँसी के महाराज गंगाधर राव से 19 मई 1842 में हुआ था।
Q : रानी लक्ष्मीबाई कितने पुत्र थे ?
Ans : रानी लक्ष्मीबाई के 2 बेटे थे जिनका नाम दामोदर राव और आनंद राव है। आनंद राव की मृत्यु 4 महीने बाद ही हो गई थी। जिसके बाद उन्होंने दामोदर राव को गोद लिया था।
Q : झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को किस नाम से जाना जाता है ?
Ans : मणिकर्णिका व मनु नाम से जाना जाता है।
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