मिल्खा सिंह का जीवन परिचय-Milkha Singh Biography In Hindi : आज हम ऐसे धावक के बारे में आपको इस लेख में बताने वाले है जिन्हे ”फ्लाइंग सिख” के नाम से जाना जाता है। अत्याधिक तेज स्पीड से दौड़ने की वजह से इन्हे ”फ्लाइंग सिख” की उपाधि दी गयी। आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक मिल्खा सिंह रहे है। वह देश के बेस्ट एथलीटों में से एक सम्मानित धावक थे। वह पहले ऐसे भारतीय है जिन्होंने भारत को कामनवेल्थ खेलो में स्वर्ण पदक दिलाया। उन्होंने अपनी अद्वितीय स्पीड के कारण कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं।
मिल्खा सिंह का खेलो में अतुल्य योगदान रहा है जिसके लिए उन्हें साल 1959 भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से भी सम्मानित किया है। पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मिल्खा सिंह के खेल को देख कर उनकी तारीफ किया करते थे। उन्हें मिल्खा सिंह पर गर्व था मिल्खा जी ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। वह एक राजपूत सिख (राठौड़) परिवार से तलूक रखते थे। मिल्खा सिंह का शानदार खेल प्रदर्शन आज के युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायी व मोटिवेशन बन गया हैं। आइए जानते हैं मिल्खा सिंह की जीवनी (Milkha Singh Biography In Hindi) मिल्खा सिंह का जीवन परिचय , के बारे में –
मिल्खा सिंह का जीवन परिचय- Biography of Milkha Singh In Hindi
पूरा नाम | मिल्खा सिंह |
उपनाम | फ़्लाइंग सिख |
जन्म | 20 नवम्बर 1929 |
जन्म स्थान | लायलपुर, पाकिस्तान |
मिल्खा सिंह की लम्बाई | 1.83 m |
वजन | 70 kg |
कर्म भूमि | भारत |
पत्नी | निर्मल कौर |
मिल्खा सिंह की संतान | 1 बेटा (”जीव मिल्खा सिंह), 2 बेटियां (सोनिया सांवलका, मोना मिल्खा सिंह) |
पुरस्कार | पद्मश्री (1959) |
प्रोफेशन | भारतीय धावक (एथलिट) और पूर्व भारतीय सैनिक |
मिल्खा सिंह का जन्म व परिवार
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के एक छोटे से गांव में एक सिख जाट परिवार में हुआ था। लेकिन कुछ दस्तावेज़ो के अनुसार उनका जन्म 17 अक्टूबर 1935 को माना जाता है। वह अपने माता पिता की 15 सन्तानो मे से एक थे। भारत विभाजन के समय उन्होंने अपने माता पिता और कई भाई बहनो को खो दिया था। विभाजन के समय हुए भीषण रक्त -पात में वह अपने आप को बचाते हुए ट्रैन से दिल्ली आ गए थे।
साल 1962 में मिल्खा सिंह की निर्मल कौर से शादी हुयी थी। निर्मल कौर शादी से पहले भारतीय Women Volleyball team की कप्तान भी रह चुकी थी। इन दोनों से 3 बच्चे है। जिनमें एक लड़का ”जीव मिल्खा सिंह” और दो लड़की ”सोनिया सांवलका” और मोना मिल्खा सिंह हैं। उनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक प्रसिद्ध टॉप-रैंकिंग इंटरनेशनल प्रोफेशनल गोल्फर है।
मिल्खा सिंह का बचपन (मिल्खा सिंह का जीवन )
मिल्खा सिंह का बचपन (मिल्खा सिंह का जीवन )अत्यन्त गरीबी व कठिनाइयों में बिता था। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय उनके माता-पिता व अन्य कई भाई बहनो की हत्या कर दी गयी थी। अंततः वह शरणार्थी बनकर ट्रेन से पाकिस्तान से भारत (दिल्ली में ) आए। उन्हें अपने माँ-बाप के खोने का गहरा आघात लगा था। वह दिल्ली में अपनी शादी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में उन्होंने कुछ दिन गुजारे। उस समय मिल्खा सिंह लाखो लोगो की तरह बेघर थे और शरणार्थी बनकर शिविरों में कुछ दिन जैसे तैसे बिताये।
ऐसी भयानक स्थिति के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी। अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने के लिए बहुत प्रयास किया। लेकिन तीन बार उन्हें खारिज कर दिया गया। अंततः चौथी कोशिश के बाद साल 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हुए। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ के लिए प्रेरित किया। तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे।
बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की तरफ 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी करते थे। उन्होंने पाकिस्तान में 5th कक्षा तक पढ़ाई की थी। इसके बाद इन्होने कोई पढ़ाई नहीं थी। जब सेना में भर्ती के लिए दौड़ हो रही थी तब वह क्रॉस-कंट्री रेस में 6ठे स्थान पर आये थे। इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। मिल्खा सिंह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये थे।
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का वैवाहिक व निजी जीवन
मिल्खा सिंह का वैवाहिक जीवन (मिल्खा सिंह का जीवन )सफल व खुशियों से भरा रहा है। चंडीगढ़ में मिल्खा सिंह की मुलाकात निर्मल कौर से हुई। निर्मल कौर साल 1955 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान थी। साल 1962 में दोनों ने दोनों ने शादी कर ली। इनसे 4 बच्चे है जिनमे 3 बेटियाँ और एक बेटा है। इनके बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है जो कि एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है। इनकी बेटियों का नाम सोनिया सांवलका, मोना मिल्खा सिंह है।
मिल्खा जी की एक बेटी मोना मिल्खा सिंह एक डॉक्टर है। वह न्यूयॉर्क में रहती है और कोरोना काल में वह कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए चर्चा में आयी थी। उनकी दूसरी बेटी सोनिया सांवलका ने सह-लेखिका के रूप में मिल्खा सिंह के साथ मिलकर ”द रेस ऑफ माई लाइफ” किताब लिखी थी। अलीजा ग्रोवर इनकी तस्करी बेटी है जो चंडीगढ़ में रहती है।
सन्न 1999 में मिल्खा ने शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के 7 वर्षीय पुत्र को गोद लिया था। हवलदार बिहो गए क्रम सिंह टाइगर हिल के युद्ध (Battle of Tiger Hill) में शहीद हो गए थे। हरजाई मिल्खा, जीव मिल्खा के बेटे और फ्लाइंग सिख के पौत्र है जो की गोल्फ खेलते हैं। मिल्खा जी का परिवार बहुत अच्छा है और उन्हें परिवार से बहुत प्यार मिला है।
धावक मिल्खा सिंह का करियर
मिल्खा जी का करियर (मिल्खा सिंह का जीवन )बहुत ही संघर्षमय रहा है। आज जिस मुकाम व उपलब्धि के लिए उन्हें याद किया जाता है ,वह स्थान उन्हें कड़े संघर्ष के बाद मिला था। मिल्खा जी जब सेना में थे तब ही से उन्होंने धावक ट्रैंनिंग शुरू कर दी थी। मिल्खा जी ने रेस पर बहुत मेहनत की। और वह 1956 में पटियाला में आयोजित हुए राष्ट्रीय खेलों के दौरान सुर्खियों में आए। एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़े सफलतापूर्वक पूरी की। और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की।
सन 1956 में मेर्लबर्न में आयोजित ओलिंपिक खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था परन्तु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दौड़ लगाने का अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए। 400 मीटर दौड़ की प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली। और चार्ल्स ने उन्हें ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया। मिल्खा सिंह ने वर्ष 1957 में 400 मीटर की दौड़ को 47.5 सैकेंड में पूरा करके नया रिकॉर्ड बनाया था।
वर्ष 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की प्रतियोगिता में मिल्खा जी ने एक नया रिकॉर्ड बनाया। इसी वर्ष मिल्खा जी ने जापान के टोक्यो शहर में आयोजित तीसरे एशियाई खेलो मे 400 और 200 मीटर की दौड़ में दो नए रिकॉर्ड बनाये। इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया और देश का मान बढ़ाया। वर्ष 1958 में ही ब्रिटेन के कार्डिफ में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर की प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीता। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों (कॉमनवेल्थ गेम्स) में गोल्ड मैडल जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी बने।
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भारतीय सेना ने मिल्खा सिंह को जूनियर कमीशंड ऑफिसर के पद पर प्रमोशन कर सम्मानित किया। उन्हें पंजाब के शिक्षा विभाग में खेल निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया और इसी पद पर मिल्खा सिंह साल 1998 में रिटायर्ड हुए। वर्ष 1959 में भारत सरकार ने मिल्खा सिंह की अद्वितीय खेल प्रतिभा और उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। वर्ष 1959 में इंडोनेशिया में हुए चौथे एशियाई खेलो में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मैडल जीतकर नया रिकॉर्ड अपने नाम किया।
मिल्खा जी ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में मिल्खा जी ने 400 मीटर की दौड़ में 40 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ा था परन्तु दुर्भाग्यवश वह मैडल पाने से वंचित रह गए और उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। अपनी इस असफलता से मिल्खा जी इतने हताश हो गए थे कि उन्होंने दौड़ से संयास लेने की ठानी , परन्तु बाद में दिग्गज एथलीटों द्वारा समझाने के बाद उन्होंने मैदान में शानदार वापसी की।
वर्ष 1962 में मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलो में 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल जीतकर एक बार फिर से देश का सिर फक्र से ऊंचा किया। वर्ष 2012 में रोम ओलंपिक के 400 मीटर की दौड़ मे पहने जूते मिल्खा सिंह ने एक चैरिटी संस्था को नीलामी में दे दिया था। वर्ष 1998 में, मिल्खा सिंह द्वारा रोम ओलंपिक में बनाए हुए रिकॉर्ड को धावक परमजीत सिंह ने तोड़ा दिया था।
पाकिस्तान में मिल्खा सिंह
पाकिस्तान का पंजाब क्षेत्र मिल्खा जी का जन्म स्थान रहा है। परन्तु विभाजन के समय उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भारत आना पड़ा। जब वर्ष 1962 में मिल्खा जी को पाकिस्तान से प्रतिस्पर्धा करने का निमंत्रण आया तब वे घबरा गए थे। वह उस जगह पुनः नहीं जाना चाहते जहाँ उनके माता-पिता मारे गए हो। लेकिन देश के लिए उन्होंने जाना उचित समझा। पाकिस्तान में उन्हें अब्दुल ख़ालिक़ को हराना था। उस समय वह पाकिस्तान के सबसे तेज धावक थे। और उन्होंने इससे पहले ही Tokyo Asian Games में 100 मीटर की दौड़ में गोल्ड जीता था। इसीलिए अब्दुल ख़ालिक़ को मुख्य दावेदार माना जा रहा था
मिल्खा जी ‘The Flying Sikh’ नाम भी यही पड़ा था। उनके इस नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। जब मिल्खा जी रेस में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए तब उनका काफी मजाक मज़ाक़ उड़ाया जा रहा था। लेकिन नियति (तक़दीर) को कुछ और ही मंजूर था। मिल्खा सिंह ने इस दौड़ में ऐसी दौड़ लगायी, मानो वह दौड़ नहीं रहे बल्कि उड़ रहे हो। मिल्खा जी की रेस देखने के बाद पाकिस्तान लोगो के होश उड़ गए थे। यह रेस देखने के बाद उस समय के पाकिस्तानी राष्ट्रपति ”अयूब खान” ने ही मिल्खा सिंह का नाम ‘The Flying Sikh” रखा था। उसके बाद से मिल्खा जी इस नाम से खूब परिचित भी हो गए थे।
मिल्खा सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद की ज़िंदगी
सेवानिवृत्ति के बाद मिल्खा जी पंजाब में खेल निर्देशक के पद पर कार्यरत थे। बाद में मिल्खा जी ने खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। साथ ही भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 2003 में उन्होंने एक चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की, जिसके द्वारा उन खिलाड़ियों की मदद की जाती थी, जो जीतने की क्षमता रखते थे लेकिन उनके पास सही मार्गदर्शन और संसाधन की कमी थी।
मिल्खा जी ने अपने सभी पदक और ट्राफियां देश की संपत्ति मानते हुए दान कर दी। मिल्खा जी ऐसे व्यक्ति थे जो एक बार किसी कार्य को करने की ठान लेते थे तो वे उसे करके ही छोड़ते थे। बचपन से ही उन्होंने जीवन के लिए संघर्ष किया था जिससे वे सभी बाधाओं को पार करके जीत के लिए तैयार रहते थे।
मिल्खा सिंह पर बनी फिल्म (भाग मिल्खा भाग)
भारत के महान एथलीट फ्लाइंग सिख ( मिल्खा सिंह ) ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी बायोग्राफी ‘The Race Of My Life’ लिखी थी। उन्होंने अपनी जीवनी (biography) बॉलीवुड के प्रसिद्द निर्देशक (directore) राकेश ओम प्रकाश मेहरा को मूवी बनाने के लिए दी और उन्होनें मिल्खा सिंह के प्रेरणादायी जीवन पर एक फिल्म बनाई जिसका नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ था। यह फिल्म 12 जुलाई, 2013 में रिलीज हुई थी।
इस मूवी में मिल्खा सिंह का किरदार फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया था। यह मूवी दर्शकों को काफी पसंद आयी थी। इस मूवी को वर्ष 2014 में बेस्ट एंटरटेनमेंट फिल्म का पुरस्कार मिला था। जब मिल्खा जी ने “भाग मिल्खा भाग’’ मूवी देखी तब उनकी आँखों में आँसू आ गये थे। मिल्खा जी फरहान अख्तर के अभिनय से काफी खुश भी थे। यह फिल्म उस समय बहुत चर्चित रही।
मिल्खा सिंह की मृत्यु (Milkha Singh Death)
मिल्खा जी मई के महीने में कोविड-19 से ग्रस्त हो गए थे। कुछ ही दिनों में उनकी सेहत में थोड़ा सुधार भी हुआ, परन्तु जून महीने में उनकी तबियत अचानक ज्यादा ख़राब हो गयी। शुरू में उन्हें कोविड-19 के उपचार हेतु हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। इस एक महीने की लंबी बीमारी के कारण पूर्व भारतीय ट्रैक और फील्ड धावक मिल्खा सिंह ने 18 जून 2021 को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर अस्पताल में रात 11.30 बजे अंतिम सांस ली। उनकी पत्नी निर्मल कौर का निधन भी कोविड-19 के कारण मोहाली के एक निजी अस्पताल में रविवार को हुआ था। मौत के समय मिल्खा सिंह की उम्र 91 वर्ष थी।
मिल्खा सिंह के बारे में कुछ अनसुनी बातें
- भारत पाक विभाजन के समय मिल्खा जी ने अपने माता-पिता व कई भाई बहनों को खो दिया था। वह अपनी जिंदगी बचाने के लिये भागे और शरणार्थी बनकर ट्रैन से भारत आये।
- मिल्खा सिंह यह नहीं जानते है कि उनका जन्म कब हुआ था। उन्होंने अपनी आत्मकथा “फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह” में उल्लेख किया है कि भारत के विभाजन के समय उनकी आयु लगभग 14-15 वर्ष रही होगी।
- मिल्खा जी रोजाना पैदल 10 किलोमीटर अपने गांव से स्कूल का सफ़र तय करते थे।
- मिल्खा जी काम की तलाश में स्थानीय सेना के शिविरों के चक्कर लगाया करते थे। कभी-कभी वह पेट भरने के लिए जूते पॉलिश किया करते थे।
- वह इंडियन आर्मी में भर्ती होना चाहते थे लेकिन उसमे वह तीन बार असफल रहे। उन्होंने कभी हार नही मानी और चौथी बार वह सफल हो गए।
- जब सैनिक अपने दूसरे कामों में व्यस्त होते थे तब मिल्खा ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे।
- उन्होंने अपने दम पर 400 मीटर दौड़ का अभ्यास करना शुरू किया और इस रेस में कभी-कभी उन्हें चोट भी लग जाती थी।
- वर्ष 1958 में मिल्खा जी ने कार्डिफ में राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था।
- अपने लंबे बालों और दाढ़ी के कारण 1960 के रोम ओलंपिक के दौरान मिल्खा जी काफी लोकप्रिय हो गए थे। उनकी टोपी देखने के बाद रोमियों ने सोचा कि वह एक संत है और सभी आश्चर्यचकित थे कि एक संत इतनी तेजी से कैसे दौड़ता है।
- वह 1960 के रोम ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहे। उन्होंने कांस्य पदक केवल 0.1 सेकंड से खो दिया था। इस हार ने उन्हें बहुत निराश किया।
- 1958 के एशियाई खेलों में बड़ी सफलता हासिल करने के बाद उन्हें आर्मी में जूनियर कमीशन का पद दिया गया।
- 1959 में उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
- 2013 में मिल्खा और उनकी बेटी सोनिया सांवल्का ने “द रेस ऑफ माई लाइफ” बुक लिखी।
- मिल्खा जी ने 80 में से 77 रेस जीतकर देश के लिए कई सम्मान प्राप्त किए।
- 2001 में उन्होंने ये कहते हुए “अर्जुन पुरस्कार” लेने से मना कर दिया कि वह उन्हें 40 साल देरी से दिया जा रहा है।
- 1962 में मिल्खा सिंह ने अब्दुल खालिक को पराजित किया। जो पाकिस्तान का सबसे तेज़ धावक था। उसी समय पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने उन्हें (Flying Sikh Milkha Singh) “उड़न सीख” का नाम दिया।
- उनकी सबसे प्रतिस्पर्धी रेस क्रॉस कंट्री रेस रही जहाँ 500 धावको में से मिल्खा जी 6वें नंबर पर रहे थे।
- वर्ष 1958 के कॉमनवेल्थ खेलो में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता। उस समय आज़ाद भारत में कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वह पहले भारतीय थे।
- उन्होंने 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
मिल्खा सिंह के रिकॉर्ड्स और उपलब्धियां
- साल 1957 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 47.5 सेकंड का एक नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया।
- 1958 में मिल्खा सिंह ने टोकियो जापान में आयोजित तीसरे एशियाई खेलो मे 400 और 200 मीटर की रेस में दो नए रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किये। और देश के लिए गोल्ड मैडल प्राप्त किया।
- साल 1959 में भारत सरकार ने मिल्खा जी की अद्वितीय खेल प्रतिभा और उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया।
- साल 1959 में इंडोनेशिया में हुए चौथे एशियाई खेलो में मिल्खा जी ने 400 मीटर की रेस में गोल्ड मैडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया।
- साल 1960 में रोम ओलिंपिक खेलों में मिल्खा जी ने 400 मीटर की रेस का रिकॉर्ड तोड़कर एक नया रिकॉर्ड बनाया और उन्होंने यह रिकॉर्ड 40 साल बाद तोड़ा था।
- 1962 में मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलो में गोल्ड मैडल जीतकर एक ओर नया रिकॉर्ड बनाकर देश का नाम रोशन किया।
- साल 2012 में रोम ओलंपिक के 400 मीटर की दौड़ मे पहने जूते मिल्खा जी ने एक चैरिटी संस्था को नीलामी में दे दिया था।
- 1 जुलाई 2012 को उन्हें भारत का सबसे सफल धावक माना गया। उन्होंने ओलंपिक्स खेलो में लगभग 20 मेडल जीते है
- मिल्खा जी ने अपने द्वारा जीते गए सभी मेडल्स को देश की सम्पति समझकर समर्पित कर दिया था। पहले उनके मैडल्स को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था। बाद में पटियाला के एक गेम्स म्यूजियम में मिल्खा जी को मिले मैडल्स को स्थानांतरित कर दिया गया।
मिल्खा सिंह से जुड़े कुछ विवाद
1. साल 1998 में जब परमजीत सिंह ने मिल्खा जी का 38 साल पुराना 400 मीटर रिकॉर्ड तोड़ा तो मिल्खा जी ने इस रिकॉर्ड को खारिज कर दिया। और कहा – मैं इस रिकॉर्ड को नहीं मानता हूँ। मिल्खा जी की पहली आपत्ति यह थी कि परमजीत की 45.70 की टाइमिंग थी और रोम ओलंपिक में मिल्खा जी को आधिकारिक तौर पर 45.6 पर हैंड-टाइम किया गया था। हालांकि एक अनौपचारिक इलेक्ट्रॉनिक टाइमर ने उन्हें 45.73 पर देखा।
कुछ साल बाद सभी अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में इलेक्ट्रॉनिक टाइमर लगाए गए। और यह स्वीकार किया गया था कि इलेक्ट्रॉनिक समय के साथ उनकी तुलना करने के लिए सभी हैंड टाइमिंग में 0.14 सेकंड जोड़े जाएंगे, तब मिल्खा के हाथ से बनाया गया रिकॉर्ड 45.6 को 45.74 के इलेक्ट्रॉनिक समय में बदल दिया गया। परमजीत का समय बेहतर था लेकिन मिल्खा जी अपनई बात पर अडिग थे। उन्होंने कहा – मेरा 45.6 का रिकॉर्ड अभी भी कायम है। अगर कोई समय दर्ज किया गया है तो वह वहाँ है। आप इसे कुछ वर्षों के बाद नहीं बदल सकते है। अंत समय तक मिल्खा ने उस रिकॉर्ड को नहीं माना।
2. साल 2016 में उन्होंने सलीम खान (सलमान खान के पिता) के साथ कुछ विवादित शब्दों का उपयोग किया। सलमान खान को रियो ओलंपिक्स में गुडविल एंबेसेडर बनाया गया था। मिल्खा सिंह और पहलवान योगेश्वर दत्त सहित खेल जगत की इस नियुक्ति पर सवाल उठाया था। सलमान खान का बचाव करने के लिए सलीम सलीम ने tweet किया – “मिल्खा जी यह बॉलीवुड नहीं है, यह एक भारतीय फिल्म उद्योग है और वह दुनिया में सबसे बड़ा। यह वही उद्योग है जिसने आपको गुमनामी में लुप्त होने से बचाया। ”
इसके जवाब में मिल्खा जी ने कहा – ठीक है, उन्होंने मुझ पर फिल्म बनाई है। मुझे नहीं लगता कि फिल्म इंडस्ट्री ने मेरे जीवन पर फिल्म बनाकर मुझ पर कोई एहसान किया है। यदि उनका कोई कार्य है , तो क्या वे किसी खिलाड़ी को अपने अध्यक्ष या राजदूत के रूप में रखेंगे?” उन्होंने आगे कहा- इस भूमिका में किसी को नियुक्त करने का कोई मतलब नहीं है। यदि एक राजदूत की आवश्यकता है,तो हमारे पास कई महान खिलाड़ी हैं जैसे जैसे सचिन तेंदुलकर, पीटी उषा, अजितपाल सिंह, राज्यवर्धन सिंह राठौर,मेर्री कॉम आदि।
आशा करता हूँ कि आपको मिल्खा सिंह का जीवन परिचय, Milkha Singh Biography In Hindi,मिल्खा सिंह की जीवनी, milkha singh ka jiwan parichay अच्छा लगा होगा। मिल्खा सिंह की जीवनी युवाओं के लिए प्रेरणादायी है। मिल्खा सिंह का जीवन कड़े संघर्ष के बाद चमका है। उन्होंने देश के लिए अपने सारे मैडल समर्पित कर दिए है। आपके पास मिल्खा जी सम्बंधित कोई जानकारी या कोई इनफार्मेशन गलत हो तो हमें कमेंट करके बताये।
FAQ
Q: मिल्खा सिंह का जन्म कहाँ हुआ था ?
Ans.: पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में
Q: मिल्खा सिंह कितने साल का है ?
Ans.: 91 वर्ष (1929–2021)
Q: मिल्खा का जन्म कब हुआ ?
Ans.: 20 नवम्बर 1929
Q: मिल्खा सिंह को वर्ष 1959 में कौन सा पुरस्कार दिया गया था ?
Ans.: 1959 में उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
Q: मिल्खा सिंह भारतीय सेना में कौन से पद पर थे ?
Ans.: सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ के तौर पर ट्रांसफर करके सम्मानित किया गया।
Q: मिल्खा सिंह का उपनाम क्या है ?
Ans.: ‘फ्लाइंग सिख’
Q: मिल्खा सिंह का पूरा नाम क्या है?
Ans.: मिल्खा सिंह (Milkha Singh)
Q: मिल्खा का निधन कैसे हुआ?
Ans.: कोरोना संक्रमित होने के बाद 91 साल के मिल्खा जी को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। कोरोना संक्रमण से उनकी तबियत काफ़ी बिगड़ गई और अततः उनका देहांत हो गया। पांच दिन पहले मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह का निधन भी कोरोना संक्रमण से हो गया था।
Q: मिल्खा सिंह को पद्मश्री कब मिला था ?
Ans.: साल 1959 में
Q: मिल्खा सिंह कौन से खेल खेलते हैं ?
Ans.: मिल्खा जी भारत के सम्मानित धावक थे।
Q: मिल्खा सिंह ने 400 मीटर में एकमात्र रजत पदक कहाँ और कब जीता था ?
Ans.: साल 1958 के एशियन गेम्स की 200 और 400 मीटर रेस में गोल्ड जीतने वाले मिल्खा सिंह ने 1960 के रोम ओलंपिक में चौथा पायदान हासिल किया था। यह पहला मौका था जब हिंदुस्तान का कोई एथलीट ओलंपिक के फाइनल में देश की नुमाइंदगी कर रहा था। उनके द्वारा बनाये गए नेशनल रिकॉर्ड को चार दशक तक कोई एथलीट छू तक नहीं पाया था
Q: मिल्खा सिंह की फैमिली में कौन कौन है?
Ans.: मिल्खा सिंह की तीन बेटियां डॉ मोना सिंह, अलीजा ग्रोवर, सोनिया सांवल्का और एक बेटा जीव मिल्खा हैं। जीव मिल्खा सिंह एक गोल्फर हैं।
Q: मिल्खा सिंह ने कौन कौन से पदक जीते ?
Ans.: मिल्खा जी ने गोल्ड मैडल व सिल्वर मैडल जीते है।
Q: मिल्खा सिंह का बेटा क्या करता है?
Ans.: जीव मिल्खा सिंह एक गोल्फर हैं।
Q: मिल्खा सिंह ने कितने स्वर्ण पदक जीते?
Ans.: मिल्खा जी ने 20 से भी ज्यादा गोल्ड मैडल जीते थे।
Q: मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलों में कुल कितने स्वर्ण पदक जीते?
Ans.: 1958 के एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में कुल तीन स्वर्ण पदक जीते थे।
Q: मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख की उपाधि कब दी गई ?
Ans.: साल 1960 में उड़न सिख (फ्लाइंग सिख) की उपाधि पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयुब खान से मिली थी।
Q: दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला रेसर कौन है?
Ans.: उसैन बोल्ट इस समय दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले इंसान है।
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