Hello Friends, भारत में अनेको किले है और हर किले की एक कहानी है। ऐसे ही एक किले की कहानी हम आपको बताने जा रहे है , जिसका नाम भानगढ़ का किला है। यह किला भारत के top 10 horror Fort में शामिल है। इस किले की एक इंटरेस्टिंग कहानी है। इस कहानी को सुनने के बाद हर कोई इस किले को देखना चाहता है।
भारत के कोने कोने से इस भूतिया किले को देखने के लिए लोग आते है। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि भानगढ़ किले का निर्माण किसने कराया ?, भानगढ़ का किला खण्डर कैसे हुआ ? भानगढ़ की असली कहानी क्या है ? आपको बता दे कि भारत एक धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ा देश है।
भानगढ़ का किला का इतिहास और डरावनी कहानी
यहाँ लोग धर्म और देवी-देवताओं में आस्था रखते है। साथ ही बुरी शक्तियों पर भी लोग विश्वास करते हैं। भारत में ऐसी कई जगह है जहां बुरी शक्तियां या प्रेत आत्माओ का कब्जा रहता है। ऐसे ही भूतिया स्थलों में भानगढ़ का किला काफी प्रसिद्ध है। भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले की अरावली की पहाड़ियों में सरिस्का अभ्यारण्य की सीमा पर स्थित है।
यह किला दिखने में अजीब और डरावना लगता है। यहां स्थानीय लोगो के बीच में इस किले को लेकर कई तरह की कहानिया प्रचलित है। भानगढ़ में भूतो का वास होने की कहानी बहुत ज्यादा प्रचलित है। इसी वजह से यहाँ की आबादी दूर बस गयी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने स्थानीय लोगों और पर्यटकों को रात के समय में किले में प्रवेश से मना कर रखा है।
भानगढ़ किले का इतिहास – History of horror Fort in hindi
भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के एक किनारे पर स्थित है। भानगढ़ का किला बहुत प्रसिद्ध है। यह किला “भूतिया किला” के नाम से भी जाना जाता है। इस किले का निर्माण राजा मौकलसी मीना के पिता ने करवाया। इस किले का अंतिम मीना शासक महाराजा मौकलसी थे। जिसे आमेर के राजा भगवंत दास ने 1583 में धोखे से मारा था।
भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रियासत में शामिल कर लिया। परंतु यहां पहले दिन आने पर माधो सिंह को डरवाना महसूस हुवा तो वह दुबारा आमेर चले गए। माधो सिंह के तीन बेटे थे – सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह।
माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ का शासक हुआ। पर वो भानगढ़ का शासन आमेर से ही चलाते थे। छत्र सिंह का बेटा अजब सिंह था। यह भी शाही मन-सबदार थे। अजब सिंह ने अपने नाम पर अजबगढ़ बसाया था। जबकि कुशवाहा क्षत्रियों के इतिहास के अनुसार भानगढ़ किले का निर्माण मानसिंह प्रथम कुशवाहा ने अपने छोटे भाई माधोसिंह कुशवाहा प्रथम के लिए कराया था।
इस किले का नाम भानसिंह कुशवाहा के नाम पर है जो माधोसिंह कुशवाहा के पितामह थे। इस किले के बाहर एक गांव बसा हुआ है, जिसका नाम गोला का बास है। इस गांव में 500 से ज्यादा घर है। इस किले की देख-रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम मौजूद रहती हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा इस क्षेत्र में सूर्यास्त के बाद किसी भी व्यक्ति के रूकने की अनुमति नहीं है। भानगढ़ दुर्ग काकनवाड़ी के पठार पर स्थित है।
भानगढ़ का किला
भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मानसिंह के छोटे भाई राजामाधो सिंह ने करावाया था। राजा माधोसिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या लगभग 10,000 थी। भानगढ़ अलवर जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदि के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर स्थित है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये हैं।
भानगढ़ का किला चारदीवारी से घिरा हुआ है जिसके अन्दर प्रवेश करते ही दायीं ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनायी गयी दो मंजिली दुकानों के खण्डहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी ऊपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। भानगढ़ का किला चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
चारों ओर पहाड़िया है। वर्षा ऋतु में यहां की रौनक देखने लायक होती है। यहां पर चारों तरफ पहाड़ियों पर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। वर्षा ऋतु में यह दृश्य बहुत ही सुंदर हो जाता है। भानगढ़ को दुनिया के सबसे डरावनी जगहों में से माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर आज भी भूत रहते हैं। आज भी यहां सूर्य उदय होने से पहले और सूर्य अस्त होने के बाद किसी को रुकने की इजाजत नहीं है।
भानगढ़ किले के प्रमुख मंदिर
भानगढ़ किले मे कई प्रमुख स्थल है, लेकिन उनमें मंदिर सबसे प्रमुख है। मंदिरों के दीवारों और खम्भों की नक्काशी बहुत खूबसूरत है, जो इन्हें भव्य बनाती है। भानगढ़ किले में स्थित मंदिर इस प्रकार है
- भगवान सोमेश्वर का मंदिर
- गोपीनाथ का मंदिर
- मंगला देवी का मंदिर
- केशव राय का मंदिर
भानगढ़ के किले के तबाह होने की कहानी
भानगढ़ के किले में रत्नावती नाम की एक राजकुमारी रहती थी। रत्नावती इस राज्य में सबसे खूबसूरत राजकुमारी के रूप में जानी जाती थी। राजकुमारी की खूबसूरती की चर्चा आसपास के राज्य में भी होती थी। राजकुमारी की खूबसूरती को हर कोई देखना चाहता था। जब इनकी उम्र 18 वर्ष की थी, तभी से उनके लिए विभिन्न राज्यों से राजकुमारों के रिश्ते आने लगे थे।
एक बार राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ भानगढ़ बाजार में घूमने के लिए निकली। पूरे बाजार में कपड़ों, चूड़ियों तथा अन्य सभी दुकानों पर घूमने के बाद राजकुमारी एक इत्र की दुकान पर जा पहुंची। राजकुमारी को इत्र बहुत पसंद था, इसलिए वह इत्र की दुकान पर रुक गई। एक इत्र को पसंद करने के बाद राजकुमारी ने उसको महल में भेजने को कहा।
राजकुमारी से थोड़ी ही दूरी पर एक व्यक्ति खड़ा था, जिसका नाम सिंधिया सेवड़ा था। वह उस समय का बहुत बड़ा तांत्रिक था। वह राजकुमारी को एकटक निगाहों से देखे जा रहा था। उसे पहली नजर में ही राजकुमारी रत्नावती से प्यार हो गया था। हालाँकि राजकुमारी ने महल में जाते समय उस पर ध्यान नहीं दिया था। इससे उसे थोड़ा बुरा लगा। वह तांत्रिक राजकुमारी को पाना चाहता था।
उसने राजकुमारी को पाने के लिए एक योजना बनाई। तांत्रिक उस दुकान पर गया, जिस दुकान पर राजकुमारी ने इत्र पसंद किया था। तांत्रिक ने इत्र की बोतल पर काला जादू कर दिया। तांत्रिक ने अपने वशीकरण मंत्र से उस बोतल पर कला जादू कर दिया था, जिससे जो भी उस इत्र को लगाता, वह उस तांत्रिक के वश में हो जाता। वह इस वशीकरण मंत्र से राजकुमारी रत्नावती को वश में करना चाहता था।
तांत्रिक ने सोचा था कि जब राजकुमारी इस तेल को अपने शरीर पर लगाएगी तो, वह मेरे ऊपर आ जाएगी और मैं उसे वश में कर लूंगा। लेकिन राजकुमारी रत्नावती को इस बात का पता चल गया था और उन्होने इत्र की बोतल को एक चट्टान पर फोड़ दिया। वह चट्टान लुढ़कते हुए तांत्रिक के ऊपर जा गिरा। जिससे उस तांत्रिक की मृत्यु हो गई। लेकिन उस तांत्रिक ने मरते समय पूरे भानगढ़ को श्राप दे दिया कि कुछ ही दिनों में पूरा भानगढ़ तबाह हो जाएगा और यहॉँ उपस्थित सभी लोग मर जाएंगे।
तांत्रिक के मरने के कुछ ही महीनों के बाद भानगढ़ और अजबगढ़ राज्य के बीच युद्ध हो गया। इस युद्ध में भानगढ़ की हार हुई और भानगढ़ की सारी प्रजा मारी गई। इस युद्ध में राजकुमारी रत्नावती की भी मृत्यु हो गई थी। इस युद्ध के बाद पूरा भानगढ़ सुनसान हो गया। स्थानीय लोगो का मानना है कि उस युद्ध में मारे गए लोगों की आत्माएं आज भी भटकती हैं। इसी वजह से भानगढ़ को भूतो का किला भी कहते है।
ऋषि मुनि के श्राप से भानगढ़ के तबाह होने की कहानी
भानगढ़ के किले से कुछ दूरी पर एक ऋषि मुनि की कुटिया थी। उस ऋषि का नाम बालूनाथ था। भानगढ़ किला बनवाने से पहले राजा भगवंत दास अपने किले के निर्माण की योजना को ऋषि बालूनाथ को बताया था। ऋषि बालूनाथ ने राजा भगवंत दास से कहा कि आप यहां पर किले का निर्माण कर सकते हैं।
लेकिन आपको उस किले की ऊंचाई को इतना रखना होगा कि उस किले की परछाईं मेरी कुटिया पर न पड़े। नहीं तो पूरा किला तहस-नहस हो जाएगा। लेकिन राजा भगवंत दास ने ऋषि की इस बात पर इतना ध्यान नही दिया। उन्होंने अपने किले को 7 मंजिला ऊंचाई तक बनवा दिया। जिसकी परछाईं ऋषि बालूनाथ की कुटिया तक जाती थी। इसीलिए कुछ समय के बाद किला तबाह हो गया और सारी प्रजा मारी गई।
भानगढ़ किले के खण्डर होने की कई कहानी प्रचलित है। लेकिन किसी भी कहानी का प्रमाण नहीं मिलता है। लेकिन वहां के स्थानीय लोगो के अनुसार आज भी शाम होने के बाद भानगढ़ किले के गलियारों में इंसानी आवाजें सुनाई देती हैं। वहां की नृतकियों की हवेली से घुंघरू की आवाज़ आती हैं। श्री बालूनाथ जी की समाधि अभी भी वहाँ पर मौजूद है।
लोगो का मानना है कि रातों में राजा अपने दरबार में आज भी फैसले सुनाते है। कहा जाता है कि जो भी भानगढ़ किले में रात को रुकता है वह या तो मृत पाया जाता है या फिर पागल हो जाता है। ऐसे ही बहुत सी बातों की वजह से भारतीय पुरातत्व विभाग ने सूर्यास्त के बाद किले में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है।
भानगढ़ के तबाह होने की कहानी
भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती अपूर्व सुन्दरी थी जिसके स्वयंवर की तैयारी चल रही थी। उसी राज्य में एक तांत्रिक सिंधिया नाम का था जो राजकुमारी को पाना चाहता था परन्तु यह सम्भव नहीं था। इसलिए तांत्रिक सिंधिया ने राजकुमारी की दासी जो राजकुमारी के श्रृंगार के लिए तेल लाने बाजार आयी थी उस तेल को जादू से सम्मोहित करने वाला बना दिया। राजकुमारी रत्नावती के हाथ से वह तेल एक चट्टान पर गिरा तो वह चट्टान तांत्रिक सिंधिया की तरफ लुढ़कती हुई आने लगी और उसके ऊपर गिरकर उसे मार दिया। तांत्रिक सिंधिया मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को नाश होने का श्राप दे दिया जिससे यह नगर ध्वस्त हो गया।
क्या रात में भानगढ़ किले में घूमने जा सकते है ?
नहीं, आप रात्रि के समय में भानगढ़ किले में प्रवेश नहीं कर सकते है। किसी भी इंसान को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले किले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। किले के भूतिया किस्सों की वजह से इस किले में रात के समय किसी को भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। स्थानीय लोग किले के अंदर होने वाली कई असाधारण गतिविधियों के बारे बताते हैं। इस किले में रात के समय भूत का साया होता है।
यहाँ पर रात में आत्माएं घूमती हैं और कई तरह की अजीब आवाज़े भी सुनाई देती हैं। भानगढ़ किले को लेकर यह भी कहा जाता है कि जो कोई भी रात में किले में प्रवेश करता है, वह सुबह वापस नहीं लौट पाता। या तो उसकी मृत्यु हो जाती है या फिर वह पागल हो जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा लगाए गए एक बोर्ड ने यहां आने वाले पर्यटकों को अंधेरे के समय किले अंदर न जाने की चेतावनी दी है।
भानगढ़ का किला देखने के लिए सबसे अच्छा समय कोनसा है ?
यदि आप Bhangarh Fort देखने का प्लान बना रहे है, तो आप किसी भी दिन घूमने जा सकते है। लेकिन आप अप्रैल से लेकर जून तक के महीनों में यहाँ न जाये तो अच्छा है। क्यूंकि इस समय में राजस्थान में बहुत गर्मी पड़ती है और गर्म हवाएं चलती है। अगस्त से लेकर मार्च तक आप इस जगह पर घूमने का प्लान बना सकते है।
भानगढ़ के किले के खुलने का समय भानगढ़ का किला सर्दियों में सुबह 7 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक खुला रहता है। जबकि गर्मियों में सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है। यहाँ पर सूर्यास्त के बाद किसी को जाने की अनुमति नहीं है।
Bhangarh Fort की Entry Fees कितनी है ?
भानगढ़ किले में प्रवेश के लिए भारतीय लोगो के लिए 25 रूपये और विदेशी लोगो के लिए 200 रूपये लगते है। वीडियो कैमरे का चार्ज 200 रूपये अलग से लगते है। इसके अलावा यहाँ पर पार्किंग शुल्क भी लगता है। यहाँ पर चाय, पानी, जूस और नास्ते के लिए स्टाल लगे हुए है। और ठहरने के लिए होटल उपलब्ध है।
भानगढ़ किले तक कैसे पहुँचे ?
राजस्थान में अलवर भानगढ़ का निकटतम शहर है। अलवर से भानगढ़ की दूरी लगभग 90 km है। आपको अलवर से भानगढ़ का किला जाने के लिए टैक्सी और बस मिल जाएंगी। जबकि जयपुर से प्राइवेट बस और सरकारी बस भानगढ़ आती है। यदि आप दिल्ली
से भानगढ़ आना चाहते है तो आप ट्रैन से आ सकते है। इसके लिए आप दौसा रेलवे स्टेशन उतरना पड़ेगा। दौसा से भानगढ़ लगभग 22 km है।
यदि आप हवाई जहाज से आना चाहते है तो आपको जयपुर के सांगानेर एयरपोर्ट पर लैंडिंग करनी होगी और वह से आपको टैक्सी बुक करनी पड़ेगी। यह एयरपोर्ट भानगढ़ से 60 km दूर है। यदि आप किसी अन्य सिटी से ट्रैन के द्वारा आ रहे है तो आपको दौसा रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ेगा और वह से आप बस पकड़ के भानगढ़ आ सकते है। इसके अलावा आप टैक्सी भी बुक करके आ सकते है।
FAQ
Q : भानगढ़ का किला कहाँ स्थित है ?
Ans : भानगढ़ का किला राजस्थान के अलवर जिले में गोला का बास नामक गांव के पास स्थित है।
Q : भानगढ़ किले को किसने बनवाया था ?
Ans : भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मानसिंह के छोटे भाई राजामाधो सिंह ने करावाया था।
Q : भानगढ़ क्यों प्रसिद्ध है ?
Ans : भानगढ़ का किला एक भूतिया किला है जो अपने डरावने व ऐतिहासिक खंडरो की वजह से जाना जाता है। भानगढ़ का किला चारों ओर से पहाड़ो से घिरा हुआ है जिसके अन्दर प्रवेश करते ही कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। किले के सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनायी गयी दो मंजिली दुकानों के खण्डहर मौजूद हैं। भानगढ़ का किला अपने चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। वर्षा ऋतु में यहां की रौनक देखने लायक होती है।
Q : भानगढ़ किस युद्ध के बाद बर्बाद हुआ ?
Ans : तांत्रिक के मरने के कुछ ही महीनों के बाद भानगढ़ और अजबगढ़ राज्य के बीच युद्ध हो गया। इस युद्ध में भानगढ़ की हार हुई और भानगढ़ की सारी प्रजा मारी गई। इस युद्ध में राजकुमारी रत्नावती की भी मृत्यु हो गई थी। इस युद्ध के बाद पूरा भानगढ़ सुनसान हो गया। स्थानीय लोगो का मानना है कि उस युद्ध में मारे गए लोगों की आत्माएं आज भी भटकती हैं।
Q : भानगढ़ का किला कब बना था ?
Ans : सन 1573
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