Hello friends , आज हम इस आर्टिकल में अम्ल यानी की ”अम्ल क्या होता है” की बात करने वाले है। वास्तव में , सभी यौगिकों को उनके रासायनिक गुणों के आधार पर ही अम्ल , क्षार, लवण में विभाजित किया जा सकता है। इन यौगिकों में कुछ विशिष्ट गुण होते है। जो एक यौगिक को दूसरे यौगिक से अलग करते है। भोजन का स्वाद कैसा होगा। कड़वा होगा या फिर खट्टा होगा। इस बात का अंदाजा हम उसमें उपस्थित अम्ल (एसिड) और क्षार (बेस) के आधार पर लगा सकते है। हम यहाँ केवल अम्ल के बारे में बात करने वाले है। क्षार और लवण की चर्चा अगली पोस्ट में करेंगे। अम्ल क्या होता है ? अम्ल के उपयोग, भौतिक और रासायनिक गुणों के बारे में, अम्ल कितने प्रकार के होते है ? इन सभी विषयो पर बात करते है।
अम्ल क्या होता है ? एसिड के उपयोग,गुण,प्रकार,आधुनिक अवधारणा का अध्ययन
अम्ल ( एसिड ) का इतिहास : – HISTORY OF ACID
हम यहाँ इस टॉपिक पर चर्चा करेंगे कि अम्ल की खोज कैसे और ”अम्ल क्या होता है ?”हुई है। वैज्ञानिको ने कैसे और कौन कौन से वैज्ञानिको ने इस पर रिसर्च की है। जब एसिड के बारे चर्चा हो रही थी तब उसी समय क्षार के बारे में भी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई थी एसिड और बेस (क्षार ) दोनों पर साथ साथ खोज हुई है। आइये जानते है कैसे रहा है एसिड का इतिहास
अम्ल ( ऐसिड ) उन पदार्थों को कहते हैं जो पानी में घुलने पर खट्टे स्वाद के होते है। यह हल्दी से बनी रोली (कुंकम) को पीला कर देते है। इनका जलीय विलयन नीले लिटमस पत्र को लाल करता है। अम्ल अधिकांश धातुओं ( जैसे आयरन ) से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है। अम्ल ,क्षारक को उदासीन कर देता हैं। उदासीन करने का मतलब होता है कि ऐसे पदार्थ (लवण) का बनाना जिसमें न तो अम्ल के गुण होते हैं और न ही क्षारक (बेस) के गुण होते है।
जब लवाज़िए सन्न 1770 ई. में ऑक्सीजन के गुणों का अध्ययन कर रहे थे तब उन्होंने देखा कि कार्बन, गंधक और फ़ास्फोरस तत्व जब ऑक्सीजन में जलते हैं तो उनसे बने धातुआक्साइड जल के साथ घुलकर अम्ल बनाते हैं। लवाज़िए इस अवलोकन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा,अम्ल में ऑक्सीजन रहता है। अम्लों की अम्लीयता का कारण ऑक्सीजन होता है। इसी कारण इस गैस का नाम “ऑक्सीजन ” नाम पड़ा। जिसका अर्थ “अम्ल बनानेवाला पदार्थ” होता है। इसी कारण जर्मन भाषा में ऑक्सीजन को “सायर स्टफ़” अर्थात् अम्ल पदार्थ कहते हैं।
लवाज़िए ने अपने परिणामों के आधार पर अम्लों को दो वर्गों में विभाजित किया। एक कार्बनिक अम्ल और दूसरा अकार्बनिक अम्ल। कुछ तत्वों के ऑक्साइड पानी में घुलकर अम्ल नहीं बल्कि क्षार बनाते हैं और कुछ अम्ल ऐसे है जिनमें ऑक्सीजन बिलकुल नहीं होता। आगे चलकर बर्टीले ने सन् 1787 में हाइड्रोसाइएनिक अम्ल, डेवी ने सन् 1810-11 में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सन् 1813 में हाइड्रियोडिक अम्ल का आविष्कार किया। इनमें से किसी में भी आक्सीजन नहीं है। इस तरह लवाज़िए के सिद्धांत का खंडन हो गया। और ऐसे अम्लों कि खोज हुई जिनमे ऑक्सीजन नहीं होता है।
आगे वैज्ञानिको ने पता लगाया कि कुछ पदार्थ बिलकुल सूखे होते हैं, उनमें तो कोई अम्लीय अभिक्रिया नहीं होती। तब वैज्ञानिको ने अम्लों को दो भागो में विभाजित किया- एक हाइड्रो-अम्ल और दूसरा ऑक्सी-अम्ल। सन् 1815 में डेवी ने अपना सुझाव रखा कि अम्लों की अम्लीयता आक्सीजन के कारण नहीं होती है बल्कि हाइड्रोजन के कारण होती है। सन् 1815 में डूलांग ने आक्सैलिक अम्ल का अध्ययन किया। और उन्होंने अपना परिणाम सबके सामने रखा और बताया कि ऑक्सीजन वाले और बिना ऑक्सीजन वाले अम्लों में कोई अंतर नहीं होता है।
अम्लों में कोई ऐसा विशेष गुण नहीं होता है जिसे हम कह सके कि यह अम्लों का विशिष्ट गुण है। जब अम्ल की रासायनिक अभिक्रिया धातु ,धातुओं के आक्साइडों ,हाइड्रोक्साइडों अथवा कार्बोनेटों से कराई जाती है तो अभिक्रिया में अम्ल के हाइड्रोजन परमाणु का धातुओं, धातुओं के आक्साइडों, हाइड्रोक्साइडों अथवा कार्बोनेटों से विस्थापित हो जाता है।
अब वैज्ञानिको के सामने समस्या यह थी कि कुछ ऐसे भी अम्ल हैं जो खट्टे न होकर मीठे होते हैं। इस तरह का एक अम्ल ऐमिडो-फोस्फरिक अम्ल है।इसके अलावा कुछ ऐसे भी क्षार हैं जिनका हाइड्रोजन परमाणु धातुओं से विस्थापित हो जाता है। For Example -फिटकरी अम्ल नहीं है और इसमें विस्थापित होने वाला हाइड्रोजन परमाणु भी नहीं होता है। फिर भी यह स्वाद में खट्टा होता है और रासायनिक क्रिया में क्षार की तरह व्यवहार करता है। यह नीले लिटमस पत्र को लाल भी कर देता है।
इसी प्रकार सोडियम बाई-सल्फाइड में भी अम्ल के गुण होने के बावजूद यह अम्ल नहीं होता है बल्कि क्षार होता है। यह नीले लिटमस पत्र को लाल भी करता है। इसमें विस्थापित होने वाला हाइड्रोजन परमाणु भी होता है। पर यह अम्ल नहीं है। मिथेन अम्ल नहीं होता है, फिर भी इसका हाइड्रोजन परमाणु जिंक से विस्थापित हो जाता है और इस प्रकार ज़िंक डाइमेथिल बनाता है जो कि लवण नहीं है।
अत: अभी तक अम्ल ( अम्ल क्या होता है ) की कोई भी संतोषजनक परिभाषा नहीं दी जा सकी। अब यदि आयन सिद्धांत के आधार पर अम्लों को परिभाषित करे तो अम्लों में हाइड्रोजन आयन का होना अनिवार्य है।
अम्ल क्या होता है ? what is defination of acid
एसिड शब्द की उत्पति लैटिन शब्द ‘एसिडस’ ( acidus ) से हुई है। जिसका अर्थ होता है-खट्टा। अतः अम्ल वे पदार्थ होते है जिनका स्वाद खट्टा होता है। जिनके पास एक या एक से अधिक विस्थापनशील हाइड्रोजन परमाणु होते है। साथ में जिनका जलीय विलयन नीले लिटमस पत्र को लाल तथा मैथिल ऑरेंज को लाल करते हो। ऐसे पदर्थो को अम्लीय पदार्थ कहते है। अम्ल अधिकांश धातुओं (zn,fe ) से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करते हैं। अम्ल का ph 7 से कम होता है। अम्ल ठोस, द्रव या गैस,तीनो भौतिक अवस्थाओं में अवस्था में पाए जाते हैं। अम्ल शुद्ध रूप में और घोल के रूप में दोनों अवस्था में मिलते है। जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वह पदार्थ अम्लीय होता है।
अम्ल की आधुनिक अवधारणा :- MODERN CONCEPTS OF ACID
”अम्ल क्या होता है ” के बारे में अलग अलग वैज्ञानिको ने अलग अलग परिभाषा दी है। आरहेनियस, ब्रॉन्सटैड, लुइस इन तीनो ने अपनी अपनी रिसर्च के अनुसार अम्ल को परिभाषित किया। आइये जानते है अम्ल की आधुनिक परिभाषा के बारे में।
1.अम्ल की आरहेनियस धारणा :- ( Arrhenius concept of Acid )
सत्र 1887 ई . में आरहेनियस ने अम्ल को परिभाषित किया। इसके के अनुसार अम्ल वे पदार्थ होते है जो जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रोजन आयन (H+) देते है।
HCl (aq) ⟶ H+ aq + Cl–(aq)
HNO3(aq) ⟶ H+(aq) + NO-3(aq)
H2SO4(aq) ⟶ 2H+(aq) + SO-4(aq)
CH3COOH4(aq) ⟶H+(aq) + CH3COO-4(aq)
ये सभी अम्ल है। जो जलीय विलयन में H+ आयन देते है। हाइड्रोजन आयन ( H+) अत्यधिक क्रियाशील होता है। अतः यह जल से अभिक्रिया करके हाइड्रोनियम आयन (H3O+)(aq) बना लेता है।
H+ + H2O ⟶ H3O+(aq)
कुछ अम्ल ऐसे होते है जो जलीय विलयन में पूर्णतया आयनित हो जाते हैं, ऐसे अम्लों को प्रबल अम्ल कहते हैं। FOR EXAMPLE :- HCl, H2SO4, HNO3 आदि। कुछ अम्ल ऐसे होते जिनका जलीय विलयन में पूर्णतया आयनित नहीं होता है। ऐसे अम्ल दुर्बल अम्ल होते है। FOR EXAMPLE :- CH3COOH , H2CO3 आदि।आरेनियस की यह अवधारणा उन अम्लों के लिए सही साबित हुई जिनमें H+ आयन व OH- आयन होते है। परन्तु यह थ्योरी उन अम्लों के बारे नहीं समझा सकी जिनमें हाइड्रोजन आयन नहीं होते है अर्थात जिनमें हाइड्रोजन परमाणु नहीं होते है।
2.अम्ल की ब्रांस्टेड – लोरी धारणा ( Bransted Lowry Concept Of Acid )
अम्ल की यह परिभाषा डेनिश रसायनज्ञ जोहान्स ब्रांस्टेड तथा अंग्रेज रसायनज्ञ थामस एम. लोरी ने दी थी। इसीलिए इस थ्योरी का नाम ब्रांस्टेड-लोरी इन दोनों के नाम के आधार पर ही पड़ा है। इनके अनुसार वे पदार्थ जो विलयन में प्रोटॉन देने में सक्षम होते हो अर्थात अम्ल प्रोटॉन दाता होते है। इन दोनों ने संयुग्मी अम्ल को भी परिभाषित किया है ।
HA + B ⟶ A– + HB+
अम्ल + क्षारक ⟶ संयुग्मी क्षार + संयुग्मी अम्ल
H2O + NH3(aq) ⟶ NH+4(aq) + OH–(aq)
इस अभिक्रिया में H2O (जल ) प्रोटॉन दाता होता है। इसीलिए यहाँ जल अम्ल की तरह व्यवहार प्रदर्शित करेगा। यह प्रोटॉन देकर संगत क्षार ( OH– ) आयन में बदल जाता है तथा यहाँ ( OH– ) आयन संयुग्मी क्षार होता है। अमोनिया ( NH3 ) प्रोटॉन ग्राही होता है। अतः यह क्षार है। यह प्रोटॉन ग्रहण करके संगत अम्ल ( NH+4 ) अमोनियम आयन में बदल जाता है। यहाँ इस अभिक्रिया में ( NH+4 ) आयन संयुग्मी अम्ल के रूप में होता है। इन ( NH3 – NH+4 ) तथा ( H2O – OH– ) को संयुग्मी अम्ल – क्षार युग्म कहते है । ये केवल एक प्रोटॉन या H+ आयन के स्थानांतरण के कारण ही बनते है । इसे समझने के लिए एक अन्य उदाहरण ओर देखते हैं।
HCL(aq ) + H2O ⟶ Cl- + H3O+(aq)
इस अभिक्रिया में H2O अम्ल के साथ में क्षार की तरह काम कर रहा है। अर्थात H2O द्विगुण वाला यौगिक होता है। यह अम्ल के साथ में क्षार की तरह तथा क्षार के साथ में अम्ल की तरह काम करता है। परन्तु यह अवधारणा भी उन अम्लों के बारे में नहीं समझा सकी जिनमें प्रोटॉन स्थानांतरण नहीं होता है।
3.अम्ल की लुईस धारणा ( Lewis Concept Of Acid)
G.N लुईस ने अम्लों के लिए एक नयी अवधारणा दी। लुइस के अनुसार अम्ल वह होता है जो इलैक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करते है। अर्थात् अम्ल इलेक्ट्रॉन युग्म ग्राही होते है। BF3 + :NH3 → BF3 : NH3
अम्ल क्षार
लुइस के अनुसार लुइस क्षार इलेक्ट्रॉन दाता होते है तथा लुईस अम्ल इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर यौगिक बना लेते हैं। यहाँ दोनों परस्पर उपसहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े हैं ।
इस अवधारणा के अनुसार इलेक्ट्रॉन की कमी वाले यौगिक अम्ल की तरह कार्य करते है। इसलिए इन्हें लुईस अम्ल कहते है। धनायन तथा वे यौगिक जिनका अष्टक अपूर्ण होता है ,लुईस अम्ल कहलाते है । उदाहरण – BF3 , AlCl3 , Mg+2 , Na+ आदि ।
इन अवधारणाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि अम्ल केवल H+ आयन रख्नने वाले यौगिक ही नहीं होते है। बल्कि वे पदार्थ भी अम्ल होते है जिनके पास हाइड्रोजन परमाणु नहीं होता है। इन अवधारणाओं के आधार पर हाइड्रोजन रहित पदार्थों के अम्लीय गुणों की व्याख्या की जा सकती है।
अम्ल कितने प्रकार के होते है ? ( How many types of acid )
अम्लों को उनके गुणों और सामर्थ्य के आधार पर निम्नलिखित भागो में बाँटा गया है।
- अकार्बनिक अम्ल या खनिज अम्ल ( inorganic or mineral Acid ) :- अकार्बनिक अम्लों को खनिजों से प्राप्त किया जाता है। इसलिए इन्हे खनिज अम्ल भी कहा जाता है। इस प्रकार के अधिकांश अम्ल प्रबल अम्ल होते है। जैसे- HCL , H2SO4 , HNO3 आदि।
- कार्बनिक अम्ल ( organic Acid ) :- कार्बनिक अम्ल पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओ से प्राप्त किये जाते है। इस प्रकार के अम्ल दुर्बल अम्ल होते है। जैसे – ऑक्सेलिक अम्ल , लैक्टिक अम्ल , यूरिक अम्ल , एसिटिक अम्ल आदि।
- हाइड्रा अम्ल ( hydra Acid ) :- जिन अम्लों में केवल हाइड्रोजन परमाणु पाया जाता है। उन्हें हाइड्रा अम्ल कहते है। जैसे – हाइड्रोफ़्लोरिक अम्ल , हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , हाइड्रो सायनिक अम्ल आदि।
- ऑक्सी अम्ल ( oxy Acid ) : – जिन अम्लों में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों परमाणु पाए जाते है। उन्हें ऑक्सी अम्ल कहते है। जैसे – सल्फ्यूरिक अम्ल , फॉस्फोरिक अम्ल आदि।
- प्रबल अम्ल ( strong Acid ) :- इस प्रकार के अम्ल अपने जलीय विलयन में पूर्णतया आयनित होते है। जैसे – हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , नाइट्रिक अम्ल , सल्फ्यूरिक अम्ल आदि।
- दुर्बल अम्ल ( weak Acid ) :- इस प्रकार के अम्ल अपने जलीय विलयन में आंशिक रूप से आयनित होते है। अतः इनके जलीय विलयन में आयन तथा अणु दोनों उपस्थित होते है। जैसे – एसिटिक अम्ल , फॉस्फोरिक अम्ल , कार्बोनिक अम्ल आदि।
- तनु अम्ल :- इनके जलीय विलयन में अम्ल की सांद्रता अपेक्षाकृत कम होती है।
- सांद्र अम्ल ;- इनके जलीय विलयन में अम्ल की सांद्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है।
अम्लों के कौन कौन से गुणधर्म होते है ?( PROPERTIES OF ACIDS )
किसी भी पदार्थ के दो गुणधर्म होते है। एक भौतिक गुण तथा दूसरा रासायनिक गुण। भौतिक गुण के बारे में किसी भी पदार्थ की अवस्था का अध्ययन करके पता लगाया जाता है। और रासायनिक गुण वह होता है कि कोई पदार्थ रासायनिक अभिक्रिया में किस तरह व्यवहार करेगा। आइये जानते है अम्लों के भौतिक और रासायनिक गुणों के बारे में।
1.अम्लों के भौतिक गुण :- PHYSICAL PROPERTIES OF ACIDS
- अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते है।
- अम्ल स्वाद में खट्टे होते है।
- अम्ल का pH 7 से काम होता है।
- अम्लों का जलीय विलयन विद्युत का चालन करता है।
- अम्ल केवल केवल जल या नमी की उपस्थति में ही अम्लीय गुण प्रदर्शित करते है।
अम्लों के रासायनिक गुण:- CHEMICAL PROPERTIES OF ACID
- अम्ल धातुओं से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस तथा धातुओं के संगत लवण का निर्माण करते है।
अम्ल + धातु → लवण + हाइड्रोजन गैस 2Hcl + Mg → MgCl + H2
- अम्ल सभी धातु कार्बोनेट तथा धातु हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके संगत लवण ,CO2 , H2O बनाते है
धातु कार्बोनेट/धातु हाइड्रोजन कार्बोनेट + अम्ल → लवण + कार्बन डाईऑक्साइड + जल
Na2CO3 + 2HCl →2NaCl + co2 + H2O
- अम्ल और क्षार की परस्पर अभिक्रिया कराने पर लवण तथा जल प्राप्त होते है। इस अभिक्रिया को उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते है।
अम्ल + क्षार → लवण + जल
HCl + NaOH → NaCl + H2O
- अम्ल धात्विक ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनता है। यह अभिक्रिया अम्ल और क्षार की अभिक्रिया की तरह होती है क्योकि धात्विक ऑक्साइड में क्षार का गुण होता है।
धात्विक ऑक्साइड + अम्ल → लव + जल
CaO + 2HCl → CaCl2 + H2O
- अम्ल नाइट्राईट से भूरे रंग की NO2 , सल्फाइड से H2S , सल्फाइट से SO2 छोड़ते है।
- अम्ल जैसे HCl ,H2SO4 ,HNO3 अपने जलीय विलयन में विद्युत के अच्छे सुचालक होते है।
- अम्ल जल में घोले जाने पर हाइड्रोजन आयन या हाईड्रोनियम आयन देते है। विलयनों में हाइड्रोजन आयन के कारण ही पदार्थो की प्रकृति अम्लीय होती है। जल की अनुपस्थिति में अम्ल के अणुओ में से हाइड्रोजन आयनो को अलग करना संभव नहीं है। अर्थात H+ अकेले प्राप्त नहीं हो सकते है। ये जल के अणुओ से संयुक्त होने से ही मिलते है।
- कार्बोक्सिलिक अम्ल अल्कोहोल से अभिक्रिया करके मीठी गंधयुक्त योगिक एस्टर बनाते है। यह अभिक्रिया एस्टरीकरण कहलाती है।
कार्बोक्सिलिक अम्ल अल्कोहोल → एस्टर + जल
अम्ल वर्षा क्या होती हैं ? – WHAT IS ACID RAIN ?
जब वर्षा जल में वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड के साथ सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड घुले हुए हो तो वर्षा जल का pH 5 से कम हो जाता है। इसमें H + आयन रहते है। इसे ही अम्ल वर्षा कहते है। अम्ल वर्षा प्रकृति को बहुत नुकसान पहुँचती है। इससे प्राकृतिक वनस्पति नष्ट हो जाती है। पेड़ पौधो और जीव जन्तुओ को भी नुकसान पहुँचाती है। अम्लीय वर्षा से मिट्टीकी उर्वरकता नष्ट हो जाती है। जिससे फसल पैदा करने में समस्या आती है। अम्लीय वर्षा संगमरमर से बानी इमारतों को काला कर देती है। इसके कारण इन इमारतों का क्षरण होने लगता है। और इनकी चमक भी चली जाती है। इस तरह की वर्षा से वातावरण में अनेक बीमारी उत्पन हो जाती है। स्किन एलर्जी , दमा जैसी बीमारिया अपना भयानक रूप ले लेती है। अम्लीय वर्षा का मुख्य कारण वातावरण में लगातार बढ़ रहा प्रदुषण है।
अम्लों के उपयोग :- USES OF ACIDS
कुछ अम्ल औद्योगिक यूज़ के लिए बहुत महत्व रखते है। हम यहाँ कुछ महत्त्व पूर्ण अम्लों की चर्चा कर रहे है।
- एसिटिक अम्ल ( ACETIC ACID – CH3COOH ) :- इसका उपयोग सिरका के निर्माण में , खाद्य पदार्थो के प्रसंस्करण ( FOOD PROCESSING ) में , विलायक के रूप में और एसीटोन के निर्माण में किया जाता है।
- बेंज़ोइक ( BENZOIC ACID – C6H5COOH ) :- इस अम्ल का उपयोग खाद्य पदार्थो के संरक्षण में किया जाता है।
- सिट्रिक अम्ल ( CITRIC ACID – C6H8O7 ) :- इस अम्ल का उपयोग खाद्य पदार्थो , धातुओं को साफ करने में , दवाइयों में , और कपडा उद्योग में किया जाता है।
- फॉर्मिक अम्ल ( FORMIC ACID – HCOOH ) :- इस अम्ल का उपयोग फलों के संरक्षण में , रबड़ के स्कंदन में , चमड़ा उद्योग में , जीवाणुनाशक के रूप में किया जाता है।
- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HYDROCHLORIC ACID – HCL ) :- इस का उपयोग प्लास्टिक (PVC ) टेक्सटाइल, रंजक ,औषधियों , सौन्दर्य प्रसाधन , एकवा रेजिया, आदि के निर्माण में किया जाता है। इस अम्ल का उपयोग चमड़ा उद्योग में और प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में किया जाता है।
- सल्फ्यूरिक अम्ल ( SULPHURIC ACID – H2SO4 ) :- इस अम्ल का उपयोग पेट्रोलियम के शोधन में , वर्णको , प्रलेपो , रंजको , मध्यवर्तीय उत्पाद के उत्पादन में , अपमार्जक उद्योग में , धातुकर्मीय प्रक्रमों में , संचायक बैटरियों में , नाइट्रोसेलुलोस के निर्माण में किया जाता है। सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग पेट्रोलियम के अन्वेषण में भी किया जाता है।
- नाइट्रिक अम्ल (NITRIC ACID – HNO3 ) :- नाइट्रिक अम्ल का उपयोग उर्वरको रंजको , प्लास्टिक , दवाओं , एकवारेजिया, विस्फोटकों के निर्माण में , स्टेनलेस स्टील के अमलोपचार में , धातुओं के निक्षारण में , फोटोग्राफी और रॉकेट में ईंधन के रूप में किया जाता है।
- ऑक्सेलिक अम्ल ( OXALIC ACID – H2C2O4 ) :- इस अम्ल का उपयोग फोटोग्राफी में , कपड़ो की रंगाई और छपाई में , चमड़े के विरंजन में , कपड़ो से स्याही और जंग के दाग साफ़ करने में किया जाता है।
अम्लों से संबधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :- IMPORTANT POINT OF ACIDS
- नेटल एक शाकीय पादप है। इसके पतों में डंकनुमा बाल होते है। जिनको छूने से शरीर पर डंक जैसा दर्द होता है। इनके बालो में मेथेनोइक अम्ल होता है। इसलिए इनको छूने से डंक जैसा दर्द होता है। डॉक पौधे की पतियों को रगड़कर इस अम्ल के प्रभाव को नष्ट किया जाता है। डॉक पौधे भी अधिकतर नेटल के पास ही उगते है।
- कोकाकोला और दूसरी सॉफ्टड्रिंक का खट्टा और तीखा स्वाद फॉस्फोरिक अम्ल की उपस्थिति के कारण होता है। यह अम्ल बैक्टीरिया तथा कवकों की वृद्धि को भी रोकता है।
- जब निम्बू के रस को बेकिंग सोडा में मिलाया जाता है तो तेज अभिक्रिया के साथ बुलबुलो के रूप में CO2 गैस निकलती है।
- एक्वारेजिया एक शक्तिशाली अम्ल है। यह लेटिन भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ होता है ”रॉयल वाटर ”। इसे बनाने के लिए 1 : 3 में क्रमशः एचसीएल और HNO3 को मिलाया जाता है। यह सिल्वर और स्वर्ण को अलग करने में काम आता है।
- शुक्र का वायुमण्डल सल्फ्यूरिक एसिड के मोठे सफ़ेद और पीले बादलो से बना है। सल्फ्यूरिक अम्ल को ”ऑयल ऑफ़ विट्रियोल ” भी कहते है। इसका प्रयोग लगभग सभी कार बैटरियों में किया जाता है। यद्यपि सल्फ्यूरिक एसिड को ”अम्लों का राजा ” ( king of acids ) कहा जाता है। परन्तु सिल्वर से h2so4 अभिक्रिया नहीं करता है।
- दूध के किण्वन द्वारा दही बनने में लैक्टिक अम्ल बनता है।
- सॉफ्टड्रिंक में ”फिज” ध्वनि का कारण ड्रिंक में उपस्थित कार्बोनिल अम्ल का co2 बुलबुलो में अपघटन होना है।
- अचार हमेशा काँच के जार में रखा जाता है। क्योकि अचार में उपस्थित अम्ल धात्विक जार के धातु से अभिक्रिया कर सकता है।
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सांद्र अम्ल को तनु कैसे करे ? (HOW TO DILUTE THE CONCENTRATE ACID ? )
सांद्र अम्ल को तनु करने के लिए आपको बहुत सावधानी अपनानी चाहिए। एसिड काम में लेते समय दस्ताने, मास्क , चश्मे का प्रयोग सही से करना चाहिए। जब आप सांद्र एसीड को तनु करने जा रहे हो तो आपको पानी में सांद्र एसिड डालना होगा वो भी धीरे धीरे। क्योकि जब जल में एसिड डालते है तो ऊष्मा निकलती। जिससे यह गर्म हो जाता है। और वोल्यूमेट्रिक ग्लास के टूटने का डर रहता है। यदि आप एसिड में जल डालते हो तो यह उछल के बहार आ सकता है जिससे जलने का खतरा रहता है। सल्फ्यूरिक एसिड , नाइट्रिक एसिड , हाइड्रोक्लोरिक एसिड काम में लेते समय इस बात का हमेसा ध्यान रखना चाहिए। क्युकी ये एसिड प्रबल अम्ल है। और ये जल के साथ मिलकर ऊष्मा उत्पन करने है। इसलिए इन अम्लों को हमेशा जल में धीरे धीरे डालना चाहिए। न की एसिड में पानी
कुछ प्राकृतिक अम्ल अर्थात कार्बनिक अम्ल एवं इनके स्रोत
- बेंज़ोइक अम्ल – घास , पत्तियाँ , mutra
- ग्लूटॉमिक अम्ल – गेंहूँ
- टार्टरिक अम्ल – इमली,अंगूर,कच्चा ,आम
- ऑक्सेलिक अम्ल – टमाटर , पालक , सोरेलट्री,
- सिट्रिक अम्ल – संतरा , नींबू
- फॉर्मिकअम्ल – लाल चींटी के डंक में , नेटल
- एसिटिक अम्ल – सिरका
- मैलिक अम्ल – चाय , सेब
- लैक्टिक अम्ल – दही , खट्टा दूध
- एस्कार्बिक अम्ल ( विटामिन C ) – आँवला
निष्कर्ष :- मैं आशा करता हूँ ”अम्ल क्या होता है ?” आर्टिकल आपको समझ आ गया होगा। मैंने अम्ल से संबधित लगभग सभी टॉपिक ऐड किये है। सभी को सरल सब्दो में समझाने का प्रयास किया है। अम्ल क्या होता है? , अम्ल की खोज ,अम्ल के भौतिक और रासायनिक गुणों संबधित , अम्ल के उपयोग , कार्बनिक एसिड आदि से संबधित कोई सवाल पूछना चाहते हो या मॉडिफिकेशन के लिए लिए एडवाइस देना हो तो हमें कमेंट करे। आपके कमेंट से हमें और ज्यादा अच्छी पोस्ट लिखने के लिए प्रेरणा मिलती है। actually एसिड , बेस, लवण रसायन विज्ञानं का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। इस टॉपिक पर एग्जाम में बहुत सारे सवाल पूछे जाते है। इसलिए मै कहूँगा कि आप ”अम्ल क्या होता है ” टॉपिक को अच्छे से समझ ले। क्षार के बारे में मैं आपको अगली पोस्ट में बताऊंगा।
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