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पानीपत का प्रथम युद्ध, कारण, परिणाम – Panipat ka pratham yudh

पानीपत का प्रथम युद्ध, कारण, परिणाम - Panipat ka pratham yudh

पानीपत का प्रथम युद्ध – Panipat ka pratham yudh : हरियाणा राज्य में स्थित पानीपत भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पहचान रखता है। पानीपत 12वीं शताब्दी से ही उत्तर भारत के नियंत्रण के लिए कई निर्णायक युद्धो का साक्षी रहा है। महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित पांच शहरों में से पानीपत भी एक शहर था। पानीपत का ऐतिहासिक नाम पांडुप्रस्थ है। इस ऐतिहासिक भूमि ने 3 ऐसे प्रमुख युद्ध देखे है, जिसने भारतीय इतिहास की दिशा को निर्णायक रूप से बदल दिया था।

बाबर ने अपने शुरू के 4 युद्धों में भारत की स्थिति को अच्छी तरह से जान लिया था। जिसके बाद वह पूरी तरह से भारत विजय के लिए लग गया। बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को, 1527 ई. में खानवा के युद्ध में राणा सांगा को, 1528 ई. में चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय को, 1529 ई. में घाघरा के युद्ध में महमूद लोदी और नुसरत खां जैसे अफगानों को हराकर बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।

पानीपत का प्रथम युद्ध – 1526

बाबर ने अपनी सेना की व्यूह-रचना बहुत बारीकी से की थी। 21 अप्रैल 1526 को प्रात:काल दिल्ली के लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी की सेना ने युद्ध शुरु कर दिया था। बाबर के घुड़सवारों व तोपखानो के आगे इब्राहीम लोदी की विशाल सेना और हाथी ज्यादा देर तक रुक नहीं पायी। बाबर की सेना ने इब्राहीम की सेना को घेर लिया और बाबर की तोपों के सामने इब्राहीम की सेना ढेर हो गयी।

यह युद्ध एक योजनाबद्ध युद्ध था, जिससे इस भीषण युद्ध से इब्राहीम की सेना में भगदड़ मच गई। बाबर की तोपों की आवाज सुनकर हाथी पीछे हटने लगे और अपनी सेना को कुचलने लगे। बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच यह युद्ध दोपहर तक चलता रहा और अंततः बाबर की जित हुई। इब्राहीम लोदी की इस युद्ध में हार हुई और वह युद्धस्थल पर ही मारा गया। उसके लगभग 15,000 अफगान सैनिक मारे गए।

बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ (बाबरनामा) में इस युद्ध का वर्णन किया है। जिसमे उन्होंने लिखा है – “जिस समय युद्ध शुरू हुआ था, सूर्य आकाश में चढ़ चुका था और दोपहर तक भीषण युद्ध होता रहा। अन्त में शत्रु सेना तीतर-बितर हो गई और वह भाग गई। युद्ध में मेरे सेनिको की विजय हुई। दोपहर तक इब्राहीम लोदी की शक्तिशाली सेना की हार हो गई।

इस तरह पानीपत का प्रथम युद्ध बड़ी जल्दी ख़त्म हो गया। पानीपत का प्रथम युद्ध जीतने के बाद बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ के नेतृत्व में आगरा पर अधिकार करने के लिए एक सेना की टुकड़ी भेजी। साथ ही बाबर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया था।

27 अप्रैल 1526 को दिल्ली में ही मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरउद्दीन मुहम्मद बाबर के नाम का खतवा पढ़ा गया। इसके साथ ही दिल्ली के लोदीवंश का अन्त हो गया और भारतीय इतिहास में एक नवीन अध्याय का आरम्भ हुआ।

पानीपत का प्रथम युद्ध का कारण

पानीपत के प्रथम युद्ध के बहुत से कारण रहे है, जिनमे से कुछ कारण यहां निचे बताये जा रहे है। बाबर ने यह युद्ध कूटनीति व वैज्ञानिक तरीके से लड़ा था। बाबर ने इस युद्ध में लगभग 15,000 सैनिक और 20 से 24 तोपो का प्रयोग किया था।

समरकंद पर विजय प्राप्त करने में असफल रहना

पानीपत का प्रथम युद्ध का एक कारण यह भी था, जब बाबर इस बात को समझ गया था कि उसके लिए मध्य एशिया पर विजय प्राप्त करना लगभग असंभव है। साथ ही समरकंद पर विजय प्राप्त करने में बहुत मुश्किल आ रही थी। जिस वजह से बाबर ने अपना ध्यान भारत विजय की ओर दिया। इसीलिए भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी से युद्ध होना स्वाभाविक था।

बाबर की महत्वाकांक्षा

पानीपत का प्रथम युद्ध का दूसरा कारण यह भी बताया जाता है कि बाबर एक महत्वाकांक्षी और पराक्रमी शासक था। इसीलिए वह विशाल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।

भारत की धन दौलत

पानीपत का प्रथम युद्ध के कई कारणों में से एक कारण यह भी था, भारत एक समृद्ध देश था। बाबर भारत की असीम धन-सम्पदा के बारे में सुन रखा था। इसीलिए वह भारत की सम्पति को लूटना चाहता था। इसिलिय भारत उसके लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गया था।

भारत की राजनैतिक स्थिति  

भारत की राजनैतिक स्थिति प्राचीन काल से ही ठीक नहीं रहे है। भारतीय राजाओ में कभी भी एकता नहीं रही है। जिसका फायदा विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया है। भारतीय राजाओ की इसी फुट ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का प्रलोभदन दिया। आज भी भारत में राजनीतिक एकता का अभाव था।

युद्ध करने के लिए निमंत्रण मिलना

दिल्ली की सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए कई भारतीय राजाओ ने बाबर को निमंत्रण भेजा था। दौलत खां, आलम खां, राणा सांगा जैसे कई राजाओ ने बाबर को निमंत्रण भेजा था।

इब्राहीम लोदी का अत्याचार बढ़ना

दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी बहुत अत्याचारी शासक था। वह अपनी प्रजा पर बहुत जुल्म करता रहता था। इसिलिय वह अपनी प्रजा व संबंधियों बहुत बदनाम हो गया था। इसीलिए कई राजा चाहते थे कि लोदी का अत्याचार बंद हो और उसके वंश का अंत हो। इसीलिए कई राजाओ ने बाबर को युद्ध करने के लिए निमंत्रण भेजा।

भारत पर आक्रण करने की प्रेरणादायक कहानी

बाबर ने एक वृद्ध महिला से भारत पर तैमूर के आक्रमण की कहानी सुन राखी थी। जिससे वह प्रेरित होकर अपने पूर्वजों की तरह भारत पर विजय प्राप्त करना चाहता था।

पानीपत का प्रथम युद्ध का अन्य कारण

पानीपत का प्रथम युद्ध ऐसे समय में लड़ा गया था, जब दिल्ली सल्तनत कमजोर हो रही थी और लोदी का अत्याचार बढ़ रहा था। इसी वजह से इब्राहिम लोदी अपनी नीतियों के कारण अपने मंत्रियों व प्रजा के बीच बदनाम हो गया था। लोदी पर धीरे धीरे सबका विश्वास ख़त्म होने लगा।

उत्तराधिकार के मामले में भी इब्राहिम लोदी ने अपने भाई जलाल खाँ को राज्य का हिस्सा देने के बाद अपना निर्णय बदल दिया था। इस वजह से असंतोष ओर बढ़ गया था। मेवाड़ के शासक राणा सांगा के साथ लंबे समय तक चले युद्ध में हार के कारण इब्राहिम लोदी की सैन्य शक्ति भी कमजोर हो गई थी।

इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा। बाबर का भारत पर 5वाँ आक्रमण था।

तैमूर ने पहले पंजाब के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा था और बाबर तैमूर का वंशज था। इसीलिए बाबर  इन क्षेत्रों पर अपना वैध अधिकार मानता था। इसी वजह से संदेह के चलते इब्राहिम लोदी ने कई सरदारों को मरवा दिया था। जिस वजह से माहौल ओर ज्यादा तनावपूर्ण हो गया था।

पानीपत युद्ध में सैन्य बल

  1. बाबर की सेना में लगभग 15,000 सैनिक और 20 से 24 तोपें थीं।
  2. इब्राहिम लोदी की सेना में लगभग 30,000 से 40,000 सैनिक और कम-से-कम 1000 हाथी थे।

बाबर की युद्ध रणनीति

अस्र-शस्र ही नहीं बल्कि बाबर की तुलुगमा और अरबा की रणनीति ने भी उसे जीत की ओर लेकर गयी। तुलुगमा युद्ध नीति के अनुसार बाबर ने पूरी सेना को विभिन्न इकाइयों जैसे बाएँ, दाहिने और मध्य में विभाजित किया। बाएँ और दाहिने भाग को आगे तथा अन्य टुकड़ियों को पीछे के भाग में विभाजित किया। साथ ही बाबर ने दुश्मन को चारों तरफ से घेरने के लिये एक छोटी सेना का उपयोग किया।

अरबा युद्ध नीति के अनुसार केंद्रीय फ़ॉरवर्ड डिवीज़न को बैलगाड़ियाँ प्रदान की जाती थी। इसे दुश्मन का सामना करने वाली पंक्ति में रखा जाता था। ये जानवरों की चमड़ी से बनी रस्सियों से एक-दूसरे से बंधे होते थे। अरबा युद्ध नीति में पीछे तोपों को रखा जाता था ताकि पीछे छिपकर दुश्मनों पर प्रहार किया जा सके।

बाबर ने अपनी तोपों के आगे बैलगाड़ियों को रक्षात्मक पंक्ति के रूप में उपयोग किया। इन्हे जानवरों की खाल से बनी रस्सियों से बांधा गया था। यह युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध था क्योंकि यह भारत का पहला युद्ध था जिसमें बारूद, गोले और फील्ड तोपों का उपयोग हुआ है।

बाबर की छोटी सी सेना ने कुशल युद्धनीति से लोदी की विशाल सेना को हरा दिया। तोपखाने और बारूद के उपयोग से युद्ध के मैदान में एक नया आयाम जुड़ा, जिससे लोदी के हाथियों का सामना करने में बाबर को बहुत लाभ मिला। तोपों की आवाज से लोदी के हाथी डर गए और अपनी ही सेना को रौंदने लगे, जिससे अफरा-तफरी मच गई। बाबर की सैन्य कुशलता और तकनीकी श्रेष्ठता से उसे विजय मिली।

पानीपत का प्रथम युद्ध का परिणाम

पानीपत का प्रथम युद्ध भारत के इतिहास का निर्णायक तथा महत्त्वपूर्ण युद्ध था। इस युद्ध के कई परिणाम निकल के सामने आये।

लोदी वंश का अन्त

पानीपत का प्रथम युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। इस युद्ध में लोदी की हार हुई और वह अपने 15 हजार सेनिको के साथ मारा गया। इस युद्ध के बढ़ भारत में लोदी वंश का अंत हो गया।

अफगानों में उत्साह की भावना का उदय

इस पराजय ने अफगानों की आँखें खोल दी और उन्हें अपनी सैनिक अयोग्यता का आभास हो गया। इस वजह से अफगानो में नवीन उत्साह की भावना का उदय हुआ और वे तेजी से अपनी शक्ति का संगठन करने लगे।

बाबर को अपार धन-सम्पति की प्राप्ति होना

लोदी को हराने के बाद बाबर को दिल्ली से अपार धन प्राप्त हुआ। उसने उस धन को अपनी प्रजा तथा सैनिकों में बाँट दिया था।

भारत में मुगल साम्राज्य का उदय

पानीपत का प्रथम युद्ध के बाद भारत में मुगल साम्राज्य का उदय हुआ और लोदी वंश का अंत हुआ।

बाबर की कठिनाइयों का अन्त

पानीपत के युद्ध के बाद बाबर ने जल्द ही दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। बाबर ने पंजाब पर पहले ही अधिकार कर रखा था। इस वजह से उसकी कठिनाइयों का अंत हो चूका था। धीरे धीरे वह एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया।

इस युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर की कठिनाइयों का अन्त हो गया था। उसे अपने प्राणों की रक्षा और सिंहासन की सुरक्षा के लिए चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं थी। वह अपनी सैनिक प्रतिभा और असीम शक्ति का प्रयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए करना पड़ा।

धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना

मुगलों ने भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की। उन्होंने धर्म को राजनीति से पूर्णतया अलग रखा और सभी धर्मों के साथ उदारता का व्यवहार किया। इस युद्ध का सबसे अच्छा परिणाम यह रहा कि लोदी वंश का अंत हो गया और नए राजवंश मुगल राजवंश का उदय हुआ। पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफगानों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ और उनका राज्य व बल नष्ट हो गया।

पानीपत का प्रथम युद्ध में बाबर की विजय का कारण

पानीपत का प्रथम युद्ध में बाबर को अफगानों के विरुद्ध विजय प्राप्त हुई। बाबर की इस सफलता के कई कारण थे। जिस वजह से वह एक छोटी सी सेना के साथ एक विशाल सेना को परास्त करने में कामयाब रहा।

इब्राहीम लोदी का सरदारों अमीरो के साथ कठोर दुर्व्यवहार

इब्राहीम लोदी एक क्रोधी तथा सनकी सुल्तान था। उसने कभी भी सरदारों, अमीरों तथा सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, जिससे वह अपनी ही प्रजा में बदनाम हो गया था। इसी वजह से लोदी की नीतियों से परेशान होकर उसी के लोग उसके खिलाफ षड्यन्त्र रचने लगे। लोदी को गद्दी से हटाने के लिए दौलत खाँ लोदी तथा आलम खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।

भारत में एकता का अभाव

उस समय भारत में राजनीतिक एकता का सम्पूर्ण अभाव था। पूरा भारत छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्यों में विभाजित था। इन सब राज्यों में पारस्परिक ईर्ष्या और द्वेष की भावना थी। वे सब एक-दूसरे का सहयोग नहीं करते थे। इसी परिस्थिति का फायदा उठाकर बाबर ने इब्राहीम लोदी को युद्ध में हरा दिया।

इब्राहीम लोदी की असंगठित तथा अव्यवस्थित सेना

इब्राहीम लोदी की सेना मुगलों की सेना की अपेक्षा काफी असंगठित और अव्यवस्थित थी। लोदी सेना में अनुशासन व कुशल नेतृत्व का पूर्णतया अभाव था। लोदी सैनिक अयोग्य और अकुशल थे। लोदी की सेना पानीपत का प्रथम युद्ध में सक्रिय वीरता नहीं दिखा पाये। जिस वजह से बाबर ने यह युद्ध आसानी से जीत लिया।

बाबर का उच्च कोटि का सैन्य संगठन

बाबर न केवल एक उच्च कोटि का सैनिक था, बल्कि वह एक कुशल सेनापति भी था। उसने अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त की थी। बाबर की सेना में योग्य तथा अनुभवी सैनिक थे। बाबर की सेना को युद्धकला का पर्याप्त ज्ञान था। बाबर की सेना ने बड़ी तेजी से अफगान सेना पर आक्रमण करके पीछे खदेड़ दिया।

बाबर की तोपें

पानीपत का प्रथम भारत का प्रथम एक ऐसा युद्ध था जिसमे तोपों का इस्तेमाल हुआ था। जबकि लोदी सेना के पास तोपों का अभाव था। बाबर के पास विशाल तोपों का भंडार था। साथ ही बाबर के पास अच्छी बन्दूकें भी थीं। लोदी सेना बाबर की तोपों व बंदूकों का सामना नहीं कर पायी। तोपों की आवाज से लोदी सेना में भगदड़ मच गयी। बाबर ने तुलुगमा युद्ध पद्धति का प्रयोग करके अफगान सेना को पराजित करने में सफलता प्राप्त की।

पानीपत का प्रथम युद्ध का ऐतिहासिक प्रभाव

पानीपत का प्रथम युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस युद्ध ने उत्तर भारत में वर्चस्व के संघर्ष में एक नए चरण की शुरुआत की। यह युद्ध भारत में तोपखाने की शुरुआत का प्रतीक है। यह भारत का प्रथम युद्ध जिसमे तोपों का इस्तेमाल किया गया था। इस युद्ध ने  हाथियों को मुख्य युद्ध के उपकरण के रूप में उपयोग को समाप्त कर दिया ।

बाबर ने इस युद्ध में जीत के बाद भारत में ही रहने का फैसला किया, जिसने मेवाड़ के राणा सांगा को चुनौती दी थी। परिणामस्वरूप 1527 में खानवा की लड़ाई हुई। इस युद्ध के बाद बाबर का राजनीतिक हित काबुल और मध्य एशिया से हटकर आगरा और भारत पर केंद्रित हो गया ।

निष्कर्ष

आशा करता हूँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। यदि इस लेख में किसी तरह की त्रुटि हो तो आप अपने विचार comment box में रखने के लिए स्वतन्त्र है। आपके द्वारा दिए गए सुझाव में सुधार करने का हर तरह से प्रयत्न किया जायेगा। कमेंट करके बताये आपको यह लेख कैसा लगा।

FAQ

Q: पानीपत का प्रथम युद्ध किस किस के बीच हुआ था ?
Ans.: बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच

Q: पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?
Ans.: 21 अप्रैल 1526

Q: पानीपत के प्रथम युद्ध में किसकी जीत हुई ?
Ans.: बाबर की

Q: पानीपत का प्रथम युद्ध का परिणाम क्या रहा ?
Ans.: इस युद्ध में बाबर ने अपनी तोपों व कुशल सैनिक नेतृत्व के बल पर लोदी को हराया और दिल्ली पर अपना अधिकार किया। बाबर ने दोपहर तक लोदी की सेना को रौंद दिया था। इसके साथ ही भारत में मुगल साम्राज्य का उदय हुआ और लोदी वंश का अंत हुआ।

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