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शिवराम राजगुरु की जीवनी Shivaram Rajguru Biography in Hindi

शिवराम राजगुरु की जीवनी

शिवराम राजगुरु की जीवनी- Shivaram Rajguru Biography in Hindi : आज हम शहीद शिवराम राजगुरु का जीवन परिचय (Shivram Rajguru ki jiwani) पढ़ने वाले है। राजगुरु भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। राजगुरु का का नाम भगत सिंह, सुखदेव के साथ लिया जाता है। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु तीनो मित्र थे और इन तीनो को एक साथ याद किया जाता है। तीनो को एक साथ फांसी दी गयी थी। इनमें देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी थी।

राजगुरु 22 साल की उम्र में ही देश की आज़ादी की लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और भारत माता की आज़ादी के खातिर अपने प्राणों की आहुति दे डाली। इस देश को आजाद कराने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया है। सुखदेव, भगत सिंह व राजगुरु जैसे अनगिनत लोगो ने आजादी के लिए खून बहाया है। तब जाकर आजादी मिली। आज हम अपने इस लेख के के माध्यम से शिवराम राजगुरु की जीवनी (Shivram Rajguru ki jiwani) की बताने जा रहे है।

Table of Contents

शिवराम राजगुरु का जीवन परिचय एक नजर में

पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु
उप नाम रघुनाथ
जन्म 24 अगस्त 1908
जन्म स्थान खेड़ा, पुणे, महाराष्ट्र
गृहनगर गाँव खेड़ा, जिला पुणे
पिता का नाम हरि नारायण
माता का नाम पार्वती बाई
भाई का नाम दिनकर
बहनों के नाम चन्द्रभागा, वारिणी और गोदावरी
संगठन हिन्दूस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
जाती ब्राह्मण
वैवाहिक स्थिति अविवाहित
मृत्यु 23 मार्च 1931 (फांसी)

शिवराम राजगुरु का जन्म और परिवार

शिवराम राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के खेडा गाँव में  एक साधारण से मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका गांव खेड़ा पुणे शहर के पास भीमा नदी के किनारे स्थित है। राजगुरु के पिताजी का नाम हरि नारायण और माताजी का नाम पार्वती बाई था। इनके पिताजी ने दो  शादियाँ की थी। इनकी पहली पत्नी से इन्हे 6 बच्चे थे जबकि दूसरी पत्नी पार्वती से इन्हे 5 बच्चे थे। राजगुरु पार्वती की पांचवी संतान थे।

जब राजगुरु केवल 6 वर्ष के थे तब उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद इनके बड़े भाई ने परिवार को संभाला था। राजगुरु अपने परिवार के सबसे छोटे सदस्य थे। राजगुरु की माताजी की भगवान शिव में बहुत गहरी आस्था थी। इसीलिए इनके माता पिता ने राजगुरु को भगवान शिव का आशीर्वाद मानकर इनका नाम शिवराम रखा। मराठी परिवारों की मान्यता के अनुसार पुत्र के नाम के पीछे उसके पिता का नाम जोड़ा जाता है। इस तरह इनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु पड़ा। इनकी माता इन्हें प्यार से “शिव” और “बापू साहेब” कहकर बुलाती थी।

शिवराम राजगुरु की शिक्षा-शिवराम राजगुरु की जीवनी

राजगुरु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव खेड़ा के एक मराठी स्कूल में पूर्ण की थी। इनका बचपन भी यही बिता था। इसके बाद वह पुणे में नाना का बारा नामक एक इंग्लिश स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गये थे। इसके बाद वह  वाराणसी में विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे।

मात्र 15 वर्ष की आयु में राजगुरु ने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन किया और साथ ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे। उन्हें हिन्दू धर्म ग्रंथो का अच्छी खासा ज्ञान हो गया था और राजगुरु एक ज्ञानी व्यक्ति कहे जाने लगे।

निशानेबाजी की कला सीखना

चंद्रशेखर आज़ाद राजगुरु के जोशीले स्वभाव से काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने राजगुरु को निशानेबाजी का हुनर सिखाने का निर्णय लिया। आज़ाद ने राजगुरु को प्रशिक्षण देना शुरू किया और जल्द ही वह आज़ाद जैसे पक्के निशानेबाज बन गए। उन्होंने निशानेबाजी के हुनर में महारथ हासिल कर ली।

राजगुरु का निशाना कभी नहीं चुकता था। निशानेबाजी की शिक्षा सीखते समय यदि कोई गलती होती तो चंद्रशेखर आज़ाद इनको डांट देते थे। लेकिन राजगुरु ने इस बात का कभी बुरा नहीं माना। वे आज़ाद को अपना बड़ा भाई मानते थे और उनके प्रति दिल में आपार प्रेम था।

राजगुरु का क्रान्तिकारी दल से सम्पर्क

राजगुरु ने अपना जीवन-यापन करने के लिये प्राइमरी स्कूल में व्यायाम प्रशिक्षक की नौकरी हासिल की। स्कूल में वह विद्यार्थियों को स्वस्थ्य रहने के तरीके व कुछ योग क्रियाओं को भी कराते थे। वह कुछ समय के लिये अखाड़ों में जाकर कुश्ती भी करते थे। व्यायाम करने के कारण और कुश्ती करने से इनका शाइरी काफी हष्ट-पुष्ट हो गया था।

किन्तु 20 साल की कम उम्र में ही इनके चहरे पर गम्भीरता, प्रौढ़ता और कठोरता स्पष्ट होने लगी थी। इसी स्कूल में इनकी मुलाकात गोरखपुर से निकलने वाली “स्वदेश” पत्रिका के सह-संस्थापक मुनीश्वर अवस्थी से हुई। इस समय काशी क्रान्तिकारियों का गढ़ हुआ करता था। मुनीश्वर अवस्थी के सम्पर्क से राजगुरु क्रान्तिकारी पार्टी के सदस्य बन गये।

राजगुरु का क्रान्तिकारी के रुप में पहला कार्य

सन्न 1925 में काकोरी कांड के बाद क्रान्तिकारी दल बिखर गया था। पार्टी को पुनः स्थापित करने के लिये बचे हुये सदस्य अलग-अलग दिशाओ में जाकर क्रान्तिकारी विचारधारा को मानने वाले नवयुवकों को अपने साथ जोड़ रहे थे। इसी समय राजगुरु की मुलाकात मुनीश्वर अवस्थी से हुई। इनसे मिलने के बाद ही राजगुरु क्रान्तिकारी दल से जुड़े।

इस दल में इनकी मुलाकात श्रीराम बलवन्त सावरकर से हुई। राजगुरु के विचारों को देखते हुए पार्टी के सदस्यों ने इन्हें पार्टी के अन्य क्रान्तिकारी सदस्य शिव वर्मा के साथ मिलकर दिल्ली में एक देशद्रोही को गोली मारने का कार्य दिया गया। इस कार्य से वे बहुत खुश थे।

दल के आदेश के बाद राजगुरु कानपुर में डी.ए.वी. कॉलेज में शिव वर्मा से मिले और उन्हें पार्टी के प्रस्ताव के बारे में बताया। इस कार्य को अंजाम देने के लिए उन्हें दो बन्दूकों की आवश्यकता थी। लेकिन दोनों के पास केवल एक ही बन्दूक थी। तब वर्मा दूसरी बन्दूक का प्रबन्ध करने में लग गये और राजगुरु पूरे दिन शिव वर्मा के कमरे में रहते और खाना खाकर सो जाते थे।

इस समय राजगुरु के जीवन में उतार-चढ़ाव  चल रहा था। शिव वर्मा ने बहुत प्रयास किया, लेकिन कानपुर से दूसरी पिस्तौल का प्रबंध करने में वे सफल नहीं हुये। अतः उन्होंने एक पिस्तौल से ही काम करने का निर्णय लिया। लगभग दो हफ्तों तक शिव वर्मा के साथ कानपुर में रुकने के बाद वे दोनों दिल्ली के लिये रवाना हुए थे। (Shivram Rajguru ki jiwani)

दिल्ली पहुँचने के बाद राजगुरु व शिव एक धर्मशाला में रुके और कुछ दिन तक उस देशद्रोही और विश्वासघाती साथी पर गुप्त रुप से नजर रखने लगे। वे दोनों रोजाना उसकी गतिविधियो पर नजर रखते और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इसे मारने के लिये दो पिस्तौलों की आवश्यकता पड़ेगी। (शिवराम राजगुरु की जीवनी)

शिव वर्मा ने राजगुरु को धर्मशाला में उनकी प्रतिक्षा करने को कहा और पिस्तौल का इन्तजाम करने के लिये लाहौर चले गए। वर्मा जी नयी पिस्तौल की व्यवस्था करके तीसरे दिन दिल्ली के लिए निकल चुके थे। दिल्ली पहुँचते पहुँचते उन्हें शाम हो गयी थी। शिव को पूरा विश्वास था कि राजगुरु उन्हें तय स्थान पर ही मिलेंगें। वे धर्मशाला न जाकर पिस्तौल लेकर सीधे उस सड़क के किनारे पहुँचे जहाँ घटना को अन्जाम देना था।

शिव ने वहाँ जाकर देखा कि उस स्थान पर पुलिस की एक-दो गाड़ी घूम रही थी। उस स्थान पर पुलिस को देखकर वर्मा को लगा कि शायद राजगुरु ने अकेले ही कार्य पूरा कर दिया। अगली सुबह शिव ट्रैन से कानपुर आ गये। बाद में उन्हें अख़बार में खबर पढ़ने के बाद पता चला कि राजगुरु ने गलती से किसी ओर को देशद्रोही समझ कर मार दिया था।

राजगुरु का क्रांतिकारी जीवन-शिवराम राजगुरु की जीवनी

जिस समय राजगुरु वाराणसी में अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब इनकी मुलाकात हमारे देश के कुछ क्रांतिकारियों से हुई थी। इन क्रांतिकारियों से मिलने के बाद राजगुरु ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था और देश की आजादी के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। सन्न 1924 में  राजगुरु  हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े। यह संगठन एक क्रांतिकारी संगठन था। जिसे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव थापर और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा बनाया गया था।

इस संगठन का मुख्य उद्देश्य केवल देश को आजाद करना था। इस संगठन के सदस्य के रूप में राजगुरू ने पंजाब, आगरा, लाहौर और कानपुर जैसे शहरों में जाकर वहाँ के लोगों को अपने संगठन के साथ जोड़ने का कार्य किया था। इसके बाद बहुत ही कम समय में राजगुरु, भगत सिंह के काफी अच्छे मित्र भी बन गए थे। इन दोनों क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर ब्रिटिश इंडिया के खिलाफ कई आंदोलन किए थे। (शिवराम राजगुरु की जीवनी)

पार्टी में इनके सबसे घनिष्ट मित्र आजाद, भगत सिंह, सुखदेव और जतिनदास थे और देशभक्ति के रास्ते में भगत सिंह को तो ये अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वन्दी मानते थे। राजगुरु पार्टी द्वारा किसी भी क्रान्तिकारी गतिविधि को निर्धारित किये जाने पर उस गतिविधि में भाग लेने के लिये सबसे आगे रहते थे। साथ ही दल के कुछ सदस्य ऐसे भी थे जो समय आने पर अपनी जान भी दे सकते थे।

साइमन कमीशन का बहिष्कर

सन्न 1928 में भारत में राजनीतिक सुधारों के लिए ब्रिटिश सरकार ने  “साइमन कमीशन” को भारत में बुलाया था। लेकिन इस आयोग में एक भी भारतीय नेता को शामिल नहीं किया गया था। जिस वजह से इसका भारत में विरोध किया गया था। लोगो का कहना था कि एक भारतीय ही भारतीयों की तकलीफ समझ सकता है। न की ऐसा संगठन जिसमे कोई भारतीय न हो।

“साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही खड़े रहे। जिसके बाद इन प्रदर्शनों में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों पर सुप्रीटेंडेट ऑफ पुलिस मि.स्कॉट ने लाठी चलाने का आदेश दिया। जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए थे। इस तरह लाठी चार्ज में सर में चोट की वजह से उनकी म्रत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय की मृत्यु होने के बाद राजगुरु, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने एक साथ मिलकर इस हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया था। उन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने का प्लान बनाया। जेम्स स्कॉट के आदेश पर ही लाठी चार्ज की गई थी। जिसमे लाला जी शहीद हो गए थे।

जे.पी सॉन्डर्स की हत्या-(शिवराम राजगुरु की जीवनी)

लाला जी की मृत्यु का बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने जेम्स स्टॉक की हत्या की योजना बनाई। योजना के अनुसार जय गोपाल को स्कॉट की पहचान करनी थी। क्योंकि राजगुरु और उनके साथी स्कॉट को पहचानते नहीं थे। इस योजना को अंजाम देने के लिए 17 दिसंबर 1928 का दिन चुना गया था।

17 दिसंबर के दिन राजगुरु और भगत सिंह लाहौर के जिला पुलिस मुख्यालय के बाहर स्कॉट का इंतजार कर रहे थे। तभी जय गोपाल ने एक पुलिस अफसर की ओर इशारा किया और इशारा मिलते ही राजगुरु ने पहली गोली उसके सर में चला दी। बाद में भगत सिंह ने 4-5 गोली चलाकर उसकी मृत्यु को पका कर दिया।

लेकिन जिस व्यक्ति की ओर जय गोपाल ने इशारा किया था, वह स्टॉक नहीं था बल्कि जॉन पी सॉन्डर्स था। जे.पी सॉन्डर्स एक सहायक आयुक्त था जिसकी हत्या होने के बाद अंग्रेजों ने पूरे भारत में उनके कातिलों को पकड़ने के लिए तलाश शुरू कर दी थी। अंग्रेजों को शक था कि जे.पी सॉन्डर्स की हत्या के पीछे भगत सिंह का हाथ है। अपने इसी शक के आधार पर अंग्रेज पुलिस ने भगत सिंह को पकड़ने का अभियान शुरू किया।

अंग्रेज पुलिस से बचने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर छोड़ने के लिए एक योजना तैयार की। अपनी योजना के अनुसार इन दोनों ने क्रांतिकारी भगवती चरन की पत्नी दुर्गा देवी वोहरा की सहायता ली थी। योजना अनुसार उन्हें लाहौर से हावड़ा तक जानेवाली ट्रेन को पकड़ना था।

सांडर्स हत्याकांड के बाद लाहौर से फरार होना

17 दिसंबर 1928 को सांडर्स को मारकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया था, जिसकी खबर पूरे शहर में फेल चुकी थी। जगह जगह पर्चे चिपका दिए गए थे। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार में खलबली मच गयी थी। अंग्रेज पुलिस चारों तरफ क्रान्तिकारियों को पकड़ने में लग गयी थी। लेकिन अंग्रेज पुलिस इस हत्याकांड का खुलासा नहीं कर पायी और न ही किसी की गिरफ्तारी कर पायी।

ऐसी स्थिति में आजाद, भगत सिंह और राजगुरु का लाहौर से निकलना मुश्किल हो रहा था। भगत सिंह को तो घटना स्थल पर अन्य पुलिस कर्मियों ने देख लिया था। जब लाहौर से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला तो सुखदेव ने एक योजना बनाई। उन्होंने दुर्गा भाभी से सहायता मांगी। दुर्गा भाभी को उनकी पत्नी बनाकर लाहौर से बाहर निकलने की योजना बनाई। इस काम में राजगुरु व भगत सिंह दुर्गा भाभी के नौकर बनकर लाहौर से कानपुर जाने वाली ट्रैन में बैठ गए। आजाद एक साधु के रुप में उसी गाड़ी में बैठ गये। राजगुरु और चन्द्रशेखर आजाद लखनऊ में ही उतर गये।

शिवराम राजगुरु का व्यक्तित्व-शिवराम राजगुरु की जीवनी

राजगुरु एक सच्चे, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और देश के लिये स्वयं को न्यौछावर करने के लिये तैयार रहने वाले व्यक्ति थे। राजगुरु 15 वर्ष की आयु में ही परिवार को छोड़कर बनारस आ गये थे। बनारस में ही राजगुरु की मुलाकात आजाद से हुई थी। आजाद से मिलने के बाद इन्हे अनुभव हुआ कि वे अपना सारा जीवन देश सेवा के लिये समर्पित कर सकते हैं। (शिवराम राजगुरु की जीवनी)

चन्द्रशेखर आजाद जितने चुस्त और सतर्क थे, राजगुरु उतने ही अधिक आलसी और लापरवाह थे। राजगुरु कुभंकर्ण की तरह सोते थे। उन्हें जहाँ भी मौका मिलता वो उसी जगह सो जाते थे। जब दल के सदस्य आगरा में क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिये बम बनाने का कार्य करते थे तो उन सभी सदस्यों के बीच खूब मस्ती-मजाक होता था। ऐसे ही एक दिन एक दूसरे की गिरफ्तारी को लेकर मजाक हो रहा था।

सभी इस बात पर मजाक कर रहे थे कि यदि पुलिस की रेड पड़ी तो कौन कैसे पकड़ा जायेगा। सभी सदस्य चर्चा रहे थे कि भगत सिंह सिनेमा में फिल्म देखते हुये पकड़े जायेगें, बटुकेश्वर दत्त चांदनी रात को निहारते हुये, पंडित जी किसी का शिकार करते हुये और रघुनाथ राजगुरु सोते हुये पकडे जायेंगे। क्रान्तिकारी दल में शामिल होने के बाद राजगुरु के व्यक्तित्व में बहुत बदलाव आया। लेकिन वह सोने की आदत को नहीं बदल सके। अपनी इस आदत के कारण वह कई बार संकट में पड़ने से बाल-बाल बचे थे। अन्त में अपनी इसी लापरावाही की वजह से वह गिरफ्तार हुए थे।

राजगुरु की पुणे में गिरफ्तारी

असेम्बली बम कांड में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था। आजाद ने राजगुरु को बहुत समझाया और उन्हें कुछ समय के लिये पुणे में जाकर रहने के लिये कहा। राजगुरु उदास मन से पुणे चले गये। पुणे में उन्होंने न्य दाल बनाने की ठानी।

उन्होंने अपने दल में लोगो को शामिल करने और लोगो में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरने के लिए अपने द्वारा सांडर्स को गोली मारने की घटना बताते। उन्होंने जल्द ही सभी पर विश्वास करना शुरू कर दिया। अपनी इसी लापरवाही की वजह से एक CID. अफसर शरद केसकर से इनकी मुलाकात हुई। केसकर ने राजगुरु से मित्रता बढ़ाना शुरू की और राजगुरु ने विश्वास करके सारी बाते बता दी।

बाद में शरद केसकर ने पुलिस को खबर करके राजगुरु को 30 सितम्बर 1929 को गिरफ्तार करा दिया। चंद्रशेखर आज़ाद का पता जानने के लिए अंग्रेज़ों ने राजगुरु पर अनेक अमानवीय अत्त्याचार किये। लेकिन भारत का वीर लाल अपने ऊपर हो रहे अंग्रेज़ों के अत्त्याचारो से तनिक भी विचलित नहीं हुआ। अंततः अंग्रेजो ने राजगुरु को लाहौर की जेल में बंद कर दिया।

जेल में आमरण अनशन-(शिवराम राजगुरु की जीवनी)

अंग्रेज अधिकारी जेल में बंद कैदियों पर बहुत ही दर्दनाक जुल्म करते थे। कैदियों पर हो रहे अत्त्याचारों का विरोध करने के लिए भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने आमरण अनशन आरंभ कर दिया। इस आमरण अनशन में जनता का भरपूर योगदान मिला था। इन्हे खाना खिलने के लिए और इनके अनशन को तोड़ने के लिए अंग्रेज पुलिस बहुत अत्याचार करती थी। लेकिन कोई भी अपने हठ से नहीं हारने वाला था।

क्रांतिकारियों के इस आमरण अनशन से अंग्रेजी सरकार की नीव हिलने लगी थी। अनशन से वायसराय भी विचलित हो गया था। इस हड़ताल को ख़त्म करवाने के लिए अंग्रेज़ों ने कई तरह के प्रयास किये। लेकिन भारत के सच्चे देशभक्तो का अनशन तुड़वाने में अंग्रेज हार गए। अनशन के समय राजगुरु और जतिनदास की हालत बिगड़ काफी बिगड़ गयी थी। जिसके कारण जतिनदास शहीद हो गए थे। इस घटना से जनता काफी भड़क उठी। जिससे अंग्रेज़ों को हारकर क्रांतिकारियों की सभी बातो को मानना पड़ा

राजगुरु की फांसी-(शिवराम राजगुरु की जीवनी)

राजगुरु को गिरफ्तार करके पुलिस ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ लाहौर षड़यन्त्र केस में शामिल करके केस चलाया। सॉन्डर्स की हत्या में दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को सुखदेव, भगत सिंह व राजगुरु को फांसी दे दी गई।  इस तरह से हमारे देश ने 23 मार्च के दिन अपने देश के तीन क्रांतिकारियों को खो दिया था। फांसी के समय राजगुरु की आयु केवल 22 वर्ष की थी।

फाँसी के बाद कोई आन्दोलन न भड़क जाये, इस डर से अंग्रेजों ने पहले उनके मृत शरीर के टुकड़े किये। फिर इन टुकड़ो को बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये। जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। तब गाँव के लोग जलती हुई आग को देखकर नजदीक आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनके शव के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंककर भाग गए। जब गाँव वाले पास आकर शव के टुकड़े देखे, तो उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया।

राजगुरु से जुड़ी अन्य रोचक बातें

  1. सॉन्डर्स की हत्याकांड को राजगुरु और भगत सिंह द्वारा अंजाम दिया गया था और सॉन्डर्स को मारने के लिए सबसे पहले गोली राजगुरु की बंदूक से निकली थी।
  2. राजगुरु छत्रपति शिवाजी महाराज से काफी प्रभावित थे और उनके ही नक्शे कदम पर चला करते थे।
  3. राजगुरु को कुश्ती करना और शारीरिक अभ्यास करना बेहद ही पसंद था और उन्होंने कई कुश्ति प्रतियोगिता में भी भाग लिया था।
  4. राजगुरु और उनके साथियों को जब मौत की सजा दी गई थी तो इस सजा का विरोध हर किसी ने किया था। लोगों के इस विरोध से डर कर अंग्रेजों ने इन तीनों का अंतिम संस्कार चुपके से कर दिया था और इन तीनों वीरों की अस्थियों को सतलुज नदी में बहा दिया था।
  5. राजगुरु किसी भी कार्य को करने से डरते नहीं थे। दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के लिए राजगुरु ने बिना किसी डर के यह कार्य करने के लिए हा कर दी थी। लेकिन बाद में कुछ कारणों की वजह से इस कार्य के लिए भगत सिंह के साथ इनकी जगह पर बटुकेश्वर दत्त को भेजा गया था।
  6. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े लोग राजगुरु को रघुनाथ नाम से बुलाते थे।

राजगुरु को मिले सम्मान

राजगुरु ने देश के लिए अपने प्राण खुशी खुशी न्योछावर कर दिए थे। राजगुरु के बलिदान को याद रखने के लिए इनके गांव का नाम बदल दिया गया था। अब इनके गांव खेड़ा को राजगुरु नगर नाम के नाम से जाना जाता है। राजगुरु के सम्मान में वर्ष 1953 में हरियाणा राज्य के हिसार शहर के एक मार्केट का नाम राजगुरु मार्केट रख दिया गया था। इस समय यह  मार्केट सबसे प्रसिद्ध मार्केट हैं। ( Shivram Rajguru ki jiwani )

राजगुरु के जीवन पर आधारित बुक 

वर्ष 2008 में राजगुरु के जीवन पर लिखी गई एक किताब को लॉन्च किया गया था। इस किताब को इनकी 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लॉन्च किया गया था। इस किताब के लेखक अजय वर्मा है। इनके द्वारा लिखी गई इस किताब  “राजगुरु इन्विंसिबल रिवोल्यूशनरी” में राजगुरु के जीवन व इनके क्रांतिकारी कार्यो के बारे में जानकारी दी गई है। ( Shivram Rajguru ki jiwani )

FAQ

Q : राजगुरु का जन्म कब हुआ था ?
Ans : 24 अगस्त 1908

Q : राजगुरु का पूरा नाम क्या है?
Ans : शिवराम हरि राजगुरु

Q : राजगुरु की मृत्यु कब हुई थी?
Ans : 23 मार्च 1931

Q : राजगुरु की माता का क्या नाम था ?
Ans : पार्वती बाई

Q : राजगुरु का जन्म कहाँ हुआ ?
खेड़ा, पुणे (वर्तमान में राजगुरु नगर)

Q : राजगुरु के पिता का नाम क्या है?
Ans : हरी नारायण

Q : शहीद राजगुरु जयंती कब मनाई जाती है ?
Ans : भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की याद में 23 मार्च को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है ?

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