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जौहर और साका में अंतर क्या है ? राजस्थान के प्रसिद्ध साका

जौहर और साका में अंतर क्या है ? राजस्थान के प्रसिद्ध साका

हेलो दोस्तों, इस लेख में आपको इतिहास की ऐसी घटना के बारे में बताया जा रहा है, जिसे करने के लिए बेहद साहस, समर्पण की भावना, आत्मसम्मान, स्वाभिमानी व्यक्तित्व की जरूरत होती है। प्राचीन समय में राजपूत व हिन्दू महिलाएं शत्रुओं के अत्याचार व शारीरिक शोषण से बचने के लिए जौहर और साका करती थी।

साका क्या होता है ?, जौहर क्या होता ?, जौहर और साका में अंतर क्या है ?, राजस्थान का प्रथम साका कब हुआ था ? इन सब की जानकारी आपको इस लेख में दी जा रही है। इतिहास के सबसे बड़े जौहर के बारे में भी आपको इस लेख में बताया जायेगा। जौहर और साका के बारे में उल्लेख राजस्थान के राजपूतों की शौर्य गाथाओं में मिलता है।

जौहर और साका के दौरान राजपूत महिलाएं दुल्हन की तरह सजती है और स्वयं को अग्नि के हवाले कर देती है। कुछ इतिहासकार बताते है कि इसमें बच्चे भी शामिल होते थे। राजपूत महिलाये जौहर व साका करने से पहले अपनी कुलदेवी की पूजा करती है और श्लोक व मंत्रो का जाप करती है। इसके बाद “जय भवानी” का नारा लगाते हुए आग में कूद जाती है।

जौहर और साका में अंतर क्या है ?

इतिहास में जौहर व साका की शुरुआत मुस्लिम आक्रमणकारियों के दौरान हुई थी। इन आक्रमणकारियों की कुदृष्टि व शारीरिक शोषण से बचने के लिए हिंदी और राजपूत महिलाओ ने जौहर व साका की शुरुआत की। चूँकि उस समय भारतीय महिलाएं स्वाभिमानी हुआ करती थी।

वे अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए या तो शत्रु सेना से भीड़ जाती थी, या फिर अपने प्राणो की आहुति दे देती थी। आइये जानते है – जौहर और साका में अंतर क्या है ?

जौहर क्या होता है ?

जब भारत पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे, तब इस प्रथा का आरम्भ हुआ था। उस समय भारतीय राजा इन विदेशी शत्रुओ को खड़ने के लिए युद्ध करते थे। ऐसे में जब भारतीय राजा की हार निश्चित हो जाती थी, तब शत्रुओ राजाओं या मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू व राजपूत महिलाओं का अपहरण व शारीरिक शोषण करने का भय रहता था।

इसीलिए हिन्दू महिलाएं अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए और अपनी पवित्रता कायम रखने के लिए जौहर करती थी। जौहर करने से पहले राजपूत महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा करती है और मंत्रो का उच्चारण करती है।

इसके बाद जौहर कुंड में आग लगाकर “जय भवानी” का नारा लगाते हुए और अपने कुल देवी-देवताओं को याद करते हुए जौहर की आग में कूद जाती थी। वीरांगना महिलाओं का यह आत्म बलिदान जौहर के नाम से इतिहास में जाना जाता है।

सबसे अधिक जौहर की घटनाये मुग़ल और मुस्लिम आक्रमणकारियों के दौरान हुए थे। ये मुस्लिम आक्रमणकारी हिन्दू राजाओं को हराकर उनकी बहन-बेटियों व हिन्दू महिलाओं का अपहरण कर लेते थे। फिर ये मुस्लिम आक्रमणकारी उन महिलाओं का शारीरिक शोषण करते थे और उनके अमानवीय व्यवहार करते थे।

हिन्दू महिलाओं के लिए विदेशी आक्रमणकारियों के चंगुल में जीवन बिताना नरक से भी ज्यादा पीड़ादायक होता था। इस नरक से भी भयानक जीवन से बचने के लिए जौहर जैसी क्रिया की शुरुआत हुई। इस तरह हिन्दू महिलाएं अपनी पवित्रता और स्वाभिमान बचाने के लिए जौहर की आग में कूदकर बलिदान करती थी।

साका क्या होता है ?

साका भी जौहर की तरह ही होता है। लेकिन साका में राजपूत योद्धा भी शामिल होता है। साका तब किया जाता था, जब युद्ध में जीतने के कोई अवसर नहीं होते थे। ऐसी परिस्थिति में बंद किले में महिलाये जौहर की तैयारी करती थी और राजपूत वीर योद्धा सभी सेनिको के साथ केसरिया साफा (पगड़ी) सिर पर बाँध कर रणभूमि में युद्ध के लिए निकल पड़ते थे।

साका के दौरान राजपूत योद्धाओं व सैनिकों के मन में मरने और मारने की भावना होती थी। वे शत्रु सेना पर अकाल मृत्यु बनकर टूट पड़ते थे। इस दौरान राजपूत सैनिक या तो युद्ध जीतकर आते थे या फिर रणभूमि ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे।

इतिहास में जब भी साका हुआ है, राजपूत योद्धाओ ने विजय की कामना हृदय में लेकर पुरे दमखम व शौर्यपूर्ण के साथ युद्ध करते थे और शत्रु सेना का ज्यादा से ज्यादा नुकसान करते थे।

जब राजपूत सैनिक और वीर योद्धा केसरिया धारण करके रणभूमि में जाते है और राजपूत क्षत्राणियों द्वारा जौहर भी किया जाता है। अर्थात जब केसरियां और जौहर दोनों होते है, तो उस स्थिति को साका कहते है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के दौरान अनेक जौहर और साका हुए है। जिनका विस्तृत उल्लेख इतिहास में मिलता है।

जौहर और साका का इतिहास (Jauhar and Saka history)

अलेक्जेंडर के समय में भारत का पहला जौहर

भारत में सबसे पहले जौहर अलेक्जेंडर द ग्रेट के समय 336 और 323 ईसा पूर्व के बीच में किया गया था। इस जौहर का उल्लेख “द अनाबैसिस ऑफ अलेक्जेंडर” नामक 6th बुक में मिलता है। इस किताब में लिखे हुए लेख के अनुसार लेक्जेंडर ने भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में निवास करने वाली अगालसुसी नामक जनजाति आक्रमण कर दिया था। अगालसुसी जनजाति के लगभग 20 हजार महिलाओं और बच्चों ने अलेक्जेंडर की सेना की क्रूरता और शारीरिक शोषण से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया था।

सिंध का जौहर

यह जौहर सन् 721 में मोहम्मद बिन कासिम के समय में हुआ था। मोहम्मद बिन कासिम ने सन् 712 में सिंध प्रान्त पर आक्रमण किया था। उस समय सिंध प्रान्त पर राजा दाहिर का शासन था। कासिम ने सिंध क्षेत्र पर 4 बार आक्रमण किया था। जिसमे वह चौथी बार युद्ध जितने में सफल हो पाया था।

इस युद्ध में यहाँ के राजा की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद यहां की रानियों और महिलाओं ने कई महीनो तक युद्ध किया था। लेकिन यहां कासिम का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। कासिम यहां के लोगो का जबरन धर्म परिवर्तन कर रहा था। इस प्रकार मोहम्मद बिन कासिम के बढ़ते अत्याचार व क्रूरता से बचने के लिए यहां की महिलाओ ने जौहर किया था।

राजस्थान के प्रसिद्ध जौहर और साका

राजस्थान में बाहरी आक्रमणों के दौरान कई जौहर और साका हुए है। यहां आपको राजस्थान के प्रसिद्ध जौहर और साका के बारे में बताया जा रहा है।

चितौड़गढ़ के प्रसिद्ध जौहर और साका

1. चित्तौड़गढ़ का प्रथम जौहर ( रानी पद्मावती का जौहर )

चित्तौड़गढ़ का प्रथम सन् 1303 में जौहर रानी पद्मावती के द्वारा अपने राज्य की क्षत्राणियों के साथ किया गया था। अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा के कारण यह जौहर हुआ था। उस समय चित्तोड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह थे और उनकी धर्मपत्नी रानी पद्मावती बेहद सुन्दर थी।

एक बार रानी पद्मावती पर अलाउद्दीन खिलजी की नजर पड़ गई थी, जिससे वह रानी की सुंदरता से मोहित हो गया था। फिर उसने धोखे से चित्तोड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था। इस प्रकार रानी पद्मावती ने अपनी हारती हुई सेना को देखते हुए 1600 क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था। इसका विवरण मालिक मुहम्मद जायसी की रचना “पद्मावत” में मिलता है।

2. चित्तौड़गढ़ का द्वितीय जौहर ( रानी कर्णावती का जौहर )

राणा सांगा की धर्मपत्नी रानी कर्णावती ने सन् 1528 में अपने पति की मृत्यु के बाद चित्तौड़गढ़ के शासन की बागडोर अपने हाथो में ली। सन 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तोड़ को हड़पने के लिए आक्रमण किया। उस समय चितोड़गढ़ का राजा विक्रमादित्य था। विक्रमादित्य एक विलासी और कायर राजा था। वह दिन भर राग-रंग में डूबा रहता था। इस कारण कई बड़े सरदार भी उससे नाराज रहने लगे।

चितोड़ पर होते आक्रमण को देखते हुए रानी कर्णावती ने युद्ध की कमान संभाली। इस युद्ध के दौरान बहादुर शाह के आधुनिक तोपों को देखकर राजा विक्रमादित्य रणभूमि में से भाग गया था। इसके बाद रानी कर्णावती ने जौहर की तैयारी शुरू कर दी थी। इस प्रकार चितोड़गढ़ की महारानी कर्णावती ने 13000 हिन्दू क्षत्राणियों के साथ में जौहर किया था।

कहा जाता है कि महारानी कर्णावती ने दिल्ली के शासक हुमायूँ को सहायता के लिए राखी भेजी थी। लेकिन वह समय पर नहीं पहुँच पाया था। हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही बहादुर शाह किले को तहस नहस कर चुका था और महारानी कर्णावती जौहर कर चुकी थी। हालाँकि हुमायूँ भी चितोड़गढ़ पर अधिकार करना चाहता था।

3. चित्तोड़गढ़ का तीसरा जौहर (मुगल सम्राट अकबर के समय)

सन 1568 में मुगल सम्राट अकबर के समय चित्तौड़गढ़ में क्षत्राणियों द्वारा तीसरा जौहर किया गया था। सितंबर 1568 में अकबर की सेना ने चित्तौड़ के किले को घेर कर आक्रमण किया था। अकबर ने इस युद्ध में भीष्ण नरसंहार के बाद विजय प्राप्त की थी। अकबर ने बंद किले में लगभग 30 हजार आम लोगो का कतल कर दिया था।

इस युद्ध में राजपूत योद्धाओ ने साका किया था और क्षत्राणियों ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर किया। यह जौहर फत्ता सिसोदिया की पत्नी फूलकँवर के नेतृत्व में 700 रानियों के साथ किया गया था। डेविड स्मिथ के अनुसार अकबर को लगभग एक साल बाद किले में प्रवेश करने का मौका मिला था। चित्तोड़गढ़ में अकबर को बस राख ही मिली थी। बाद में यह साका जयमल और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुआ।

रणथम्भौर का जौहर और साका

राजस्थान को वीरो की भूमि कहा जाता है। राजस्थान का प्रथम जौहर और साका रणथम्भौर में ही हुआ था। उस समय रणथम्भौर पर हम्मीरदेव चौहान का शासन था। हम्मीरदेव एक हठी, प्रभावशाली एवं बहादुर राजा था। उसकी कीर्ति समस्त भारतवर्ष में फैली हुई थी। इसी कारण सन 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर किले पर आक्रमण किया था।

इस युद्ध में अल्लाउद्दीन खिलजी रणभूमि को छोड़कर भागने पर मजबूर हो गया था और हम्मीरदेव चौहान को विजय प्राप्त हुई थी। लेकिन हम्मीरदेव की सेना ने अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना से उनके ध्वज छिन लिए और उन ध्वजों को हवा में उछालते हुवे किले की तरफ बढ़ने लगे थे।

हवा में लहराते हुए इन ध्वजों से किले के अंदर रानियों को लगा उनकी हार हुई है। जब किले से रानियों ने खिलजी की सेना के काले ध्वजों के साथ सेना की टुकड़ी को किले तरफ आते हुए देखा, तो उन्होंने जौहर करने का निर्णय लिया।

इस प्रकार रानी रंगदेवी ने क्षत्राणियों के साथ मिलकर जौहर किया। जब इस भूल का अहसास हम्मीरदेव चौहान को हुआ, तो उन्होंने बीच रास्ते वापस लौटकर हम्मीरदेव और उनके वीर योद्धा साथियों ने केसरियां बाना धारण करके साका किया था।

जैसलमेर के प्रसिद्ध जौहर और साका

1. जैसलमेर का पहला साका

जैसलमेर में पहला साका सन 1313 के करीब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के समय में हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी की विशाल सेना ने दुर्ग को घेर कर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतन सिंह सहित अगणित योद्धाओं ने केसरियां बाना धारण करके साका किया, जबकि किले में सैकड़ो क्षत्राणियों ने जौहर किया था।

2. जैसलमेर का द्वितीय साका

जैसलमेर का द्वितीय साका रावल दूदा के शासनकाल में हुआ था। फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्ष में रावल दूदा और फिरोजशाह तुगलक के बीच भीष्ण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में रावल दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जिसके बाद राजपूत महिलाओ ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए जौहर किया था।

3. जैसलमेर का तृतीय साका  ( अर्ध साका  )

सन्न 1550 में रावल लूणकरण भाटी के शासनकाल में अर्ध साका हुआ था। यह युद्ध रावल लूणकरण भाटी और कंधार के शासक अमीर अली के बीच में हुआ था। इस युद्ध में राजपूत योद्धाओं ने केसरिया बाना धारण करके अपने शौर्य का परिचय दिया था। लेकिन इस युद्ध के बाद जौहर नहीं हुआ था।

किसी ने किले में रानियों को गलत सुचना दी थी कि युद्ध में राजा को विजय प्राप्त हुई है। जिस वजह से रानियों ने जौहर नहीं किया था। जबकि अन्य इतिहासकार बताते है कि कंधार के शासक अमीर अली ने जैसलमेर के किले पर अचानक आक्रमण किया था। जिससे रानियों को जौहर करने का समय नहीं मिल पाया था। इसीलिए इसे इतिहास में अर्ध साका के नाम से जाना गया था।

गागरोन का प्रसिद्ध साका

1. गागरोन का पहला साका

गागरोन का पहला साका लगभग सन्न 1422 ई. में वीर योद्धा अचलदास खींची के शासनकाल में हुआ था। मांडू के सुल्तान अलपखां ने गागरोन पर आक्रमण किया था। इस युद्ध मे सुल्तान की सेना बहुत विशाल और शक्तिशाली थी, जिसके सामने गागरोन की सेना बहुत छोटी थी।

दोनो सेनाओ में भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध कई महीनों तक चला। इस युद्ध में राजपूत योद्धाओं ने कड़ी टक्कर के साथ युद्ध किया था। अंततः राजपूत योद्धाओं ने अचलदास के साथ मिलकर साका किया और रानियों ने जौहर किया।

2. गागरोन का दूसरा साका

सन्न 1444 ई. में गागरोन का दूसरा साका भी मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी (अलपखां का वंशज ) के समय में हुआ था। पहले युद्ध में राजपूतो की कड़ी टक्कर से बौखलाए मांडू के सुल्तान ने सन्न 1444 ई. में गागरोन पर हमला कर दिया था। इस युद्ध में पुनः राजपूत योद्धाओं ने केसरिया बाना धारण कर भयंकर युद्ध किया। जबकि रानियों ने दूसरा जौहर करके कुल के मान सम्मान की रक्षा की।

जालोर का साका

जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटकर अल्लाउद्दीन खिलजी वापस लौट रहा था, तब खिलजी की सेना को बीच में रोककर जालोर नरेश कान्हड़ देव चौहान ने भयंकर युद्ध किया। इस युद्ध में अल्लाउद्दीन खिलजी को युद्धभूमि छोड़कर भागना पड़ा था।

इसके बाद खिलजी ने दिल्ली में जाकर अपनी सेना को संघटित किया और पुनः जालोर पर आक्रमण किया। इस युद्ध में कान्हड़ देव चौहान ने अपने बेटे वीरमदेव चौहान को राजगद्दी पर बैठाकर अन्य क्षत्रिय योद्धाओं के साथ मिलकर साका किया था।

खानवा के युद्ध में चंदेरी का जौहर

सन् 1528 में मुगल शासक बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध मध्य प्रदेश के चंदेरी में में हुआ था। इस युद्ध में चंदेरी के शासक मदीनी राव ने राणा सांगा की मदद की थी। इस युद्ध में राणा की हार हुई थी। जिसके बाद बाबर की सेना ने राव के राज्य पर हमला कर दिया था।

बाबर की सेना की क्रूरता से बचने के लिए रानियों और बच्चो ने जौहर किया किया था। इसके बाद राजपूत योद्धाओं ने केशरिया बाना धारण करके बाबर की सेना को भारी नुकसान पहुंचाया और साका किया।

औरंगजेब के शासनकाल में बुंदेलखंड का जौहर

औरंगजेब के शासनकाल में जबरन धर्म परिवर्तन किये गए थे। औरंगजेब द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन कराने के विरोध में सन् 1634 में बुंदेलखंड में  जौहर किया गया था। औरंगजेब सबसे क्रूर मुग़ल शासक था। बुंदेलखंड का जौहर इतिहास का अंतिम जौहर था।

जौहर और साका करने का कारण

1. विदेशी मुस्लिम शासकों ने भारतीय राजाओ को चारो तरफ से घेरकर और उन्हें हराकर उनके धन-सम्पदा व राज्य को हड़पना चाहते थे। किले को चारो तरफ से घेरने पर खाने-पिने का सामान किले के अंदर नहीं पहुँच पता था। जिससे  राजपूत योद्धा कमजोर होने लगते थे। इसीलिए ऐसी विकट समस्या से निपटने के लिए जौहर और साका सबसे अच्छी रणनीति मानी जाती थी। जौहर और साका करने पर दुश्मन जीतकर भी हार जाता था। क्योंकि इस घटना के बाद उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता था।

2. जौहर करने से पहले राजपूत महिलायें अपने पतियों को युद्ध में दुश्मन का सर्वनाश करने के लिए हिम्मत बढ़ाती थी। यह काम ज्यादातर मध्य रात्रि के दौरान किया जाता था, ताकि दुश्मन को पता चल जाये कि कल साका होने वाला है। साका का नाम सुनकर दुश्मनो के तोते उड़ जाते थे। क्योंकि साका में राजपूत सैनिक अपनी जान की परवाह न करके अधिक से अधिक दुश्मनो को मौत के घाट उतारने के लिए आतुर रहते है। साका करने पर राजपूत योद्धाओं का मोह और डर ख़त्म हो जाता था। जिससे वे निर्भीक होकर युद्ध करते और दुश्मनो का अधिक से अधिक नुकसान करते थे।

3. जौहर में महिलाएं राज्य की धन संपत्ति के साथ खुद को जलाकर समाप्त कर लेती थी। जिससे शत्रु सेना के हाथ में केवल राख ही मिलती थी। शत्रु सेना को शोषण करने के लिए न तो महिलाये मिलती और न ही लूटने के लिए सम्पति मिलती थी, इस प्रकार शत्रु सेना जीतकर भी हार जाती थी। इसलिए राज्य के मान सम्मान की रक्षा के लिए राजपूत महिलाये और वीर योद्धा जौहर और साका करते थे।

FAQ 

Q :  भारत का प्रथम जौहर कब हुआ था ?
Ans :  भारत में सबसे पहले जौहर अलेक्जेंडर द ग्रेट के समय 336 और 323 ईसा पूर्व के बीच में हुआ था।

Q :  राजस्थान का प्रथम जौहर और साका कौनसा है ?
Ans :  रणथंभौर का साका ( सन्न 1301 में )

Q :  जौहर किसे कहते है ?
Ans :  जब महिलाये अपने मान सम्मान की रक्ष के लिए व कुल की मर्यादा को बनाये रखने के लिए और शत्रुओ के शोषण से बचने के लिए राज्य की सारी धन-सम्पति को लेकर जलती आग के कुंड में कूद जाती थी। जिससे शत्रु केवल उनकी राख ही मिलती थी। इस प्रक्रिया को जौहर के नाम से जाना जाता था।

Q :  साका किसे कहते है ?
Ans :  साका भी जौहर की तरह ही होता है। लेकिन साका युद्ध के मैदान में किया जाता है। राजपूत वीर योद्धा सभी सेनिको के साथ केसरिया साफा (पगड़ी) सिर पर बाँध कर रणभूमि में युद्ध के लिए निकल पड़ते थे। साका के दौरान राजपूत योद्धाओं व सैनिकों के मन में मरने और मारने की भावना होती थी। वे शत्रु सेना पर अकाल मृत्यु बनकर टूट पड़ते थे। इस दौरान राजपूत सैनिक या तो युद्ध जीतकर आते थे या फिर रणभूमि ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। ऐसी परिस्थिति में बंद किले में महिलाये जौहर की तैयारी करती थी

Q :  चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कितने जौहर और साका हुए थे ?
Ans :  चित्तौड़गढ़ में कुल 3 जौहर और साका हुए थे। पहला साका सन् 1303 में जौहर रानी पद्मावती ने किया था। दूसरा साका सन 1534 में रानी कर्णावती ने किया था। तीसरा साका सन 1568 में मुगल सम्राट अकबर के समय में फत्ता सिसोदिया की पत्नी फूलकँवर के नेतृत्व में 700 रानियों के साथ किया गया था। यह साका जयमल और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुआ।

Q :  राजपूत महिलाये जौहर क्यों करती थी ?
Ans :  जब राजपूत राजा युद्ध में हर जाते थे, तब राजपूत महिलाये अन्य हिन्दू महिलाओ के साथ में अपने मान- सम्मान और दुश्मन के शोषण से बचने के लिए जौहर करती थी।

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