मानव मस्तिष्क की संरचना एवं कार्यप्रणाली : Human Brain Procedure In Hindi : क्या आप जानते है कि हमारा मस्तिष्क कैसे कार्य करता है ?, मस्तिष्क के कितने प्रकार होते है ?, मस्तिष्क की संरचना कैसी होती है ? , आज मैं आपको इस लेख में मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दे रहा हूँ। आइये जानते है मानव मस्तिष्क (Manav mastishk) के बारे में।
मानव मस्तिष्क क्या है ?
मानव मस्तिष्क शरीर का वह आवश्यक अंग जो हमारी इच्छाओं, संवेगों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करता है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। मानव मस्तिष्क हड्डियों से बने कपाल या खोपड़ी के अंदर स्थित होता है। यह कपाल मस्तिष्क को सुरक्षा प्रधान करता है।
मनुष्य का मस्तिष्क (Manav mastishk) अस्थियों के खोल क्रेनियम में बंद रहता हैं जो इसकी बाहरी आघातों से रक्षा करता हैं। मनुष्य का मस्तिष्क केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का मुख्य भाग माना जाता हैं। एक वयस्क मस्तिष्क का भार लगभग 1.40 kg होता है। यह 8 हड्डियों के खोल क्रेनियम के अंदर सुरक्षित होता हैं।
मस्तिष्क (Manav mastishk) में अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने की क्षमता होती है। मानव मस्तिष्क को शरीर का केंद्रीय सूचना व प्रसारण केंद्र कहा जाता है। मानव मस्तिष्क पूरे शरीर व तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण कक्ष (Control Room) होता है।
मानव मस्तिष्क की संरचना
मस्तिष्क (Manav mastishk) में ऊपर का बड़ा भाग प्रमस्तिष्क (hemispheres) कपाल में स्थित होता हैं। इसके पीछे नीचे की ओर अनुमस्तिष्क (cerebellum) के दो छोटे छोटे गोलार्ध जुड़े हुए होते हैं। इसके आगे की ओर प्रमस्तिष्क व प्रमस्तिष्क के बीच में मध्यमस्तिष्क (midbrain) स्थित होता है। मध्यमस्तिष्क के नीचे ओर मेरूशीर्ष या मेदुला औब्लांगेटा स्थित होता है।
प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क झिल्लियों से ढके हुए होते हैं, जिनको तानिकाएँ कहते हैं। ये तानिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं। 1. दृढ़ तानिका, 2. जालि तानिका 3. मृदु तानिका। सबसे बाहरवाली दृढ़ तानिका होती है। इसमें वे बड़ी बड़ी शिराएँ रहती हैं, जिनके द्वारा रक्त वापिस लौटता है।
कलापास्थि के टूटने पर या चोट से क्षति हो जाने पर शिराओं से रक्त निकलकर मस्तिष्क मे जमा हो जाता है। जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ कार्य करना बंद कर देती है। जिसके परिणामस्वरूप अंगों का पक्षाघात (paralysis) हो जाता है।
मानव मस्तिष्क के भाग
मस्तिष्क का अध्ययन सुविधाजनक रूप से करने के लिए इसको तीन भागो में बांटा गया है।
- अग्र मस्तिष्क – यह प्रमस्तिष्क और डिएन्सेफलों (Diencephalon) से मिलकर बना होता है।
- मध्य मस्तिष्क – यह अग्रमस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क के बीच में एक छोटा सा नलिका के आकर का भाग होता है।
- पश्चमस्तिष्क – यह मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क (Cerebellum) से मिलकर बना होता है।
1. अग्र मस्तिष्क (Fore Brain)
यह प्रमस्तिष्क और डिएन्सेफलों (Diencephalon) से मिलकर बना होता है। यह मस्तिष्क का 80-85 % भाग होता है। यह ज्ञान,चेतना,सोचने विचारने का कार्य कार्य करता है। यह लम्बा गहरा विदर प्रमस्तिष्क को 1 गोलार्ध में विभाजित करता हैं। प्रत्येक गोलार्द्ध में घूसर द्रव्य-कोर्टेक्स भाग/वल्कुट/प्रान्तस्थ होता है और अन्दर की ओर सफ़ेद द्रव्य वाला भाग-मध्यांष/मेडूला होता है। यह थैलेमस-संवेदी व प्रेरक संकेतो का केन्द्र होता है। यह भूख,प्यास,निद्रा,ताप,थकान,मनोभावनाओ का अनुभव करता है
प्रमस्तिष्क (cerebrum)
इसके दोनों गोलार्धो अन्य भागों की अपेक्षा बहुत होते है। दोनों गोलार्ध कपाल में दाहिनी और बाईं ओर सामने ललाट से लेकर पीछे कपाल के अंत तक फैले हुए हैं। गोलार्धो के बीच में एक गहरी खाई है, जिसके तल में एक चौड़ी फीते के समान महासंयोजक (Corpus Callosum) नामक रचना से दोनों गोलार्ध जुड़े हुए हैं। गोलार्धो का रंग ऊपर से धूसर दिखाई देता है।
गोलार्धो के बाह्य पृष्ठ में गहरे विदर या दरार बने हुए हैं। यहाँ मस्तिष्क के बाह्य पृष्ठ की वस्तु उसके भीतर धस जाती है। ऐसा लगता है कि पृष्ठ पर किसी वस्तु की तह को फैलाकर समेट दिया है और उसमें सिलवटें पड़ गई हैं। इस वजह से मस्तिष्क के पृष्ठ पर अनेक छोटी-बड़ी दरार बन गई है, जिन्हें परिखा (Sulcus) कहते है। परिखा के बीच धूसर मस्तिष्क पृष्ठ के मुड़े हुए चक्रांशवतद् भाग को कर्णक (Gyrus) कहते हैं।
प्रमस्तिष्क में बडी और गहरी खाइयों को विदर (Fissure) कहते है। यह मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को पृथक करती है। मस्तिष्क के सामने पार्श्व तथा पीछे के बड़े-बड़े भाग को उनकी स्थिति के अनुसार खंड (Lobes) तथा खंडिका (Lobules) कहते है। गोलार्ध के सामने का खंड ललाटखंड (frontal lobe) होता है, जो ललाटास्थि से ढँका रहता है। इसी प्रकार पार्श्विका (Parietal) खंड, पश्चकपाल (Occipital) खंड तथा शंख खंड (temporal) बने हुए हैं। इन सब पर परिशाखाएँ, कर्णक और विशेष विदर बने हुए होते हैं।
पार्श्विक खंड पर मध्य-परिखा (central sulcus) ऊपर से नीचे और फिर आगे की ओर जाती है। इसके आगे की ओर प्रमस्तिष्क का संचालन भाग होता है, जिसकी क्रिया से पेशियाँ संकुचित होती है। यदि इस स्थान पर विद्युतदुतेजना दी जाती है तो सन्देश पहुँचाने वाली कोशिकाओं में संकुचन होने लगता है। यदि किसी चोट या अन्य कारणों से कोशिकाओं को हानि पहुँचती है, तो पेशियों में किसी प्रकार का संकुचन नहीं होता है। जिससे शरीर के अंग पैरालाइसिस हो जाते है।
दस विदर के पीछे का भाग आवेग क्षेत्र होता है। इस स्थान पर शरीर के विभिन्न जगहों से सन्देश पहुँचते है। पीछे की ओर पश्चकपाल खंड में दृष्टिक्षेत्र, शूक विदर (calcarine fissure) दृष्टि का संबंध इसी क्षेत्र से होता है। दृष्टितंत्रिका और पथ द्वारा दिए गए सन्देश यहाँ पहुँचकर देखी गई वस्तुओं का चित्र उत्पन करते है।
जबकि नीचे की ओर शंखखंड में विल्वियव के विदर के नीचे का भाग तथा प्रथम शंखकर्णक श्रवण के आवेगों को ग्रहण करते हैं और श्रवण के चिह्रों की उत्पत्ति होती है। ये कोशिकाएँ शब्द के रूप को समझती हैं। शंखखंड के भीतरी पृष्ठ पर हिप्पोकैंपी कर्णक (Hippocampal gyrus) होता है। इस स्थान पर गंध का अनुभव होता है। साथ ही स्वाद का अनुभव भी इसी क्षेत्र से होता है। यहीं पर रोलैंडो के विदर के पीछे स्पर्श-ज्ञान प्राप्त करने वाला बहुत सा भाग स्थिति होता है।
ललाट-खंड समस्त प्रेरक और आवेग-केंद्रों से संयोजकसूत्रों (association fibres) द्वारा संबद्ध होता है। यह विशेषकर संचालक क्षेत्र के समीप नेत्र की गति से सम्बंधित केंद्र में स्थित होता है। यह भाग सूक्ष्म कौशलयुक्त क्रियाओं का नियमन करता है और नेत्र में पहुँचे हुए आवेगों पर निर्भर करती हैं।
इनमें स्मृति और अनुभाव की आवश्यकता होती है। मनुष्य के बोलने, लिखने, हाथ की अँगुलियों से कला की वस्तुएँ तैयार करने आदि सूक्ष्म क्रियाओं का नियंत्रण यहीं से होता है। प्रमस्तिष्क उच्च भावनाओं का स्थान माना जाता है। मनुष्य को पशु से पृथक् करने वाले गुणों का स्थान प्रमस्तिष्क ही है।
प्रमस्तिष्क वल्कुट के तीन कार्य इस प्रकार हैं।
- यह मानसिक कार्य जैसे सोचना, तर्क करना, विवेचना, योजना बनाना, याद रखना आदि करता है।
- यह ऐच्छिक पेशी-संकुंचनों को आरंभ करता है और उनका नियंत्रण करता है।
- प्रमस्तिष्क वल्कुट संवेदी अंगों, जैसे – नाक, कान, आंख आदि से आने वाली सूचना को ग्रहण करता है और उन पर कार्यवाही करता है।
2. मध्यमस्तिष्क (Mid-brain)
यह चार पिण्डो में विभाजित होता है। इसका प्रत्येक पिण्ड-कार्पोस क्वाड्रीजेमीन कहलाता है। इसके उपरी दो पिण्ड दृष्टि के लिये व निचले दो पिण्ड श्रवण के लिये होते है। मध्यमस्तिष्क अग्रमस्तिष्क और पश्चमस्तिष्क के बीच और मस्तिष्क स्तम्भ (Brain stem) के ऊपर स्थित होता है। अनुमस्तिष्क और प्रमस्तिष्क का संबंध मध्यमस्तिष्क द्वारा स्थापित होता है।
मध्यमस्तिष्क में से सूत्र प्रमस्तिष्क में उसी ओर या मध्यरेखा को पार करके दूसरी ओर चले जाते हैं। मध्यमस्तिष्क के बीच में सिल्वियस की अणुनलिका होती है, जो तृतिय निलय से चतुर्थ निलय में प्रमस्तिष्क मेरूद्रव को पहुँचाती है। इसके ऊपर का भाग दो समकोण परिखाओं द्वारा चार उत्सेधों (provocations) में विभक्त है, जिसे पिंड (Corpora quadrigemina) कहते है।
ऊपरी दो उत्सेधों में दृष्टितंत्रिका द्वारा नेत्र के रेटिना पटल से सूत्र पहुँचते हैं। इन उत्सेधों से नेत्र के तारे में प्रतिवर्त क्रियाओं का नियमन होता है, जिनसे तारा संकुचित या विस्तृत होता है। नीचे के उत्सेधों में अंत:कर्ण के काल्कीय भाग से सूत्र आते हैं और उनके द्वारा प्राप्त संवेगों को यहाँ से नए सूत्र प्रमस्तिष्क के शंखखंड के प्रतिस्था में पहुँचाते हैं।
3. पश्चमस्तिष्क (Hind Brain)
यह मस्तिष्क का सबसे पीछे का भाग होता है। यह अनुमस्तिष्क, पॉन्स, और मेडुला ऑब्लांगेटा से मिलकर बना होता है। यह मस्तिष्क का दूसरा सबसे बडा भाग है। इसका कार्य ऐच्छिक पेशियों को नियंत्रण करना है। यह न्यूरोन्स को अतिरिक्त स्थान प्रदान करता है। यह पोस-मस्तिष्क के विभिन्न भागो को जोडता है। यह मस्तिष्क का अंतिम भाग है, जो मेंरूरज्जु से जुडा होता है। इसका अनैच्छिक क्रियाओ पर नियंत्रण (जैसे -धडकन,रक्तदाब) होता है।
A. अनुमस्तिष्क (Cerebellum)
मस्तिष्क के पिछले भाग के नीचे अनुमस्तिष्क स्थित होता है। उसके सामने की ओर मध्यमस्तिष्क स्थित होता है। यह तीन स्तंभों द्वारा मस्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है। बाह्य पृष्ठ धूसर पदार्थ से आच्छादित होने के कारण इसका रंग भी धूसर होता है और प्रमस्तिष्क की भाँति ही उसके अंदर भी सफ़ेद पदार्थ होता है। इसमें भी दो गोलार्ध होते हैं। यदि इनको काटा जाये तो बीच में सफ़ेद रंग की वृक्ष की शाखाओं जैसी संरचना दिखाई देती है। अनुमस्तिष्क में गहरे विदर होने की वजह से वह पत्रकों (lamina) में विभक्त जाता है, जिन्हें प्रशाखारूपिता (Arber vitae) कहते है।
अनुमस्तिष्क का संबंध विशेषकर अंत:कर्ण, पेशियों और संधियों से होता है। जबकि अन्य अंगों से संवेदनाएँ आती है। उन सबका सामंजस्य यही अंग करता है। इस वजह से इन अंगो की क्रियाएँ समरूप होती है। शरीर का संतुलन बनाये रखना इस अंग का विशेष कार्य है।
जिन सूत्रों द्वारा ये संवेग अनुमतिष्क की अंतस्था तक पहुँचते हैं, वे प्रांतस्था से गोलार्ध के अंदर स्थित दंतुर केंद्रक (dentate nucleus) में पहुँचते हैं। फिर यहाँ से नए सूत्र मध्यमस्तिष्क में दूसरी ओर स्थित लाल केंद्रक (red nucleus) में पहुँचते हैं। फिर वहाँ से संवेग प्रमस्तिष्क में पहुँच जाते हैं।
B. पोंस (Pons)
यह अनुमस्तिष्क (Cerebellum) के आगे मध्यमस्तिष्क के नीचे तथा मेड्यूला ऑब्लांगेटा के ऊपर स्थित होता है। यह मस्तिष्क स्तम्भ (Brain stem) के बीच का भाग होता है। इसके आधारी भाग को मिडिल सेरीबेलर पेडन्क्ल (Middle cerebellar peduncle) कहते हैं। इस भाग से संवेदी और प्रेरक तंत्रिकाओं के तन्तु गुजरते हैं, जो अनुमस्तिष्क को मध्य मस्तिष्क एवं मेड्यूला ऑब्लांगेटा से जोड़ते हैं।
इसमें 5th, 6th और 7th कपालीय तंत्रिकाओं के केंद्रक स्थित होते हैं। यहाँ से उनके कुछ तन्तु कोशिकाओं से निकल कर तंत्रिका तंत्र के विभिन्न हिस्सों में चले जाते हैं। पोंस को Metencephalon भी कहते है। पोंस श्वास का विनियमन करता है। पोन्स में न्यूमोटैक्सिक सेंटर नामक एक संरचना होती है, जो श्वसन के समय हवा की मात्रा तथा श्वसन दर को नियंत्रित करता है।
C. मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata)
यह मस्तिष्क स्तम्भ का सबसे नीचे का भाग है। यह ऊपर की ओर पोन्स और नीचे की ओर स्पाइनल कॉर्ड के बीच स्थित रहता है। इसका आकार बेलनाकार दण्ड की तरह होता है, जो औसतन 2.5 सेमी. लम्बा होता है। इसका ऊपरी भाग कुछ फूला रहता है।
यह पोस्टीरियर क्रेनियल फोसा में स्थित होता है और ऑक्सिपिटल अस्थि के महा-रन्ध्र (Foramen magnum) के ठीक नीचे स्पाइनल कॉर्ड से जुड़ जाता है। इसका बाह्य भाग सफ़ेद द्रव्य तथा भीतरी भाग भूरे द्रव्य का बना होता है। इसमें ह्रदय और श्वसनीय केन्द्र स्थित होते हैं, जो हृदय एवं श्वसन क्रिया को नियंत्रित करते हैं। इसमें निद्रा, निगरण व लालास्त्राव (Salivation) के भी केन्द्र होते हैं, जो महत्वपूर्ण कार्यों का नियमन करते हैं।
इसकी संरचना मेरूरज्जु से भिन्न होती है। इसके पीछे की ओर अनुमस्तिष्क होता है। यहाँ इसका आकार मेरुरज्जु से दुगना हो जाता है। इसके चौड़े और चपटे पृष्ठभाग पर एक चौकोर आकार का गर्त बना होता है, जिस पर एक झिल्ली छाई रहती है। इसे चतुर्थ निलय (Fourth ventricle) कहते है, जिसमें सिलवियस की नलिका द्वारा प्रमस्तिष्क मेरूद्रव आता रहता है।
FAQ
Q : मानव मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग कौन सा है?
Ans : प्रमस्तिष्क (cerebrum)
Q : मानव मस्तिष्क का भार कितना होता है?
Ans : लगभग 1.36 किलोग्राम
Q : मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं?
Ans : मानव मस्तिष्क के तीन भाग होते है। जो इस प्रकार है – 1. अग्र मस्तिष्क 2. मध्य मस्तिष्क 3. पश्चमस्तिष्क
Q : मानव मस्तिष्क के अंदर क्या क्या पाया जाता है?
Ans : मानव मस्तिष्क की संरचना अत्यंत जटिल हैं। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव मस्तिष्क में लगभग 1 अरब तंत्रिका कोशिकायें होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से 10 हजार से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मानव शरीर में मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है।
Q : अग्र मस्तिष्क किस्से मिलकर बना होता है ?
Ans : यह प्रमस्तिष्क और डिएन्सेफलों (Diencephalon) से मिलकर बना होता है।
Q : अग्र मस्तिष्क क्या कार्य करता है ?
Ans : अग्र मस्तिष्क ज्ञान,चेतना,सोचने विचारने का कार्य कार्य करता है। यह भूख,प्यास,निद्रा,ताप,थकान,मनोभावनाओ का अनुभव करता है। यह ऐच्छिक पेशी-संकुंचनों को आरंभ करता है और उनका नियंत्रण करता है। यह थैलेमस-संवेदी व प्रेरक संकेतो का केन्द्र होता है।
Q : पश्चमस्तिष्क के कौन कौन-से भाग है ?
Ans : यह मस्तिष्क का सबसे पीछे का भाग होता है। यह अनुमस्तिष्क, पॉन्स, और मेडुला ऑब्लांगेटा से मिलकर बना होता है।
Q : पश्चमस्तिष्क क्या कार्य करता है ?
Ans : पश्चमस्तिष्क ऐच्छिक पेशियों को नियंत्रित करता है। यह न्यूरोन्स को अतिरिक्त स्थान प्रदान करता है। यह पोस-मस्तिष्क के विभिन्न भागो को जोडता है। यह मस्तिष्क का अंतिम भाग है, जो मेंरूरज्जु से जुडा होता है। इसका अनैच्छिक क्रियाओ पर नियंत्रण (जैसे -धडकन,रक्तदाब) होता है।
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