Coal – आज मैं आपको इस लेख में ” भारत में कोयले के भंडार कहाँ कहाँ है ? ” के बारे में बताऊंगा। कोयला ( Coal ) शब्द अंग्रेजी के शब्द कोल से लिया गया है जिसका अर्थ है चमकता हुआ अंगारा। कोयला एक काली तलछटी चट्टान है। कोयले में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर आदि तत्व मौजूद होते है। कोयला एक जीवाश्म ईंधन है, जो लाखो- हजारो सालो पहले मृत पेड़-पौधे और जानवरो के सड़ जाने से बना है।
कोयला क्या काम आता है ?, कोयले का निर्माण कैसे हुआ ? कोयला कितने प्रकार का होते है ? सबसे अच्छा कोयला कोनसा होता है ? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस लेख में दिए जा रहे है। कोयले को खनन के द्वारा खदानों से निकाला जाता है। क्या आप जानते है चीन विश्व का सबसे ज्यादा कोयला Coal उत्पादक देश है।
कोयले की कहानी – Story of Coal in hindi
“कोयला” और “कोयल” दोनों शब्दों का निर्माण संस्कृत के “कोकिल” शब्द से हुआ है। स्थानीय भाषा में, लकड़ी की आग को बुझाने से, जो जला हुआ अंश बचता है, उसे ही कोयला कहते है। कोयले को खनन के द्वारा भी निकाला जाता है।
प्रथम प्रकार के कोयले – Coal को लकड़ी का कोयला या काठ कोयला और दूसरे प्रकार के कोयले को “पत्थर का कोयला” या केवल कोयला कहते हैं। एक तीसरे प्रकार का भी कोयला होता है जो हड्डियों को जलाने से प्राप्त होता है। इसे हड्डी का कोयला या अस्थि कोयला कहते हैं। ये तीनो प्रकार के कोयले महत्वपूर्ण है, जो कई घरेलु कार्यो, रासायनिक क्रियाओं और उद्योगधंधों में काम आते है।
कोयले का मुख्य उपयोग ईंधन के रूप में होता है। कोयले – Coal के जलने से या तो धुँआ कम निकलता है या फिर बिल्कुल ही नहीं निकलता है। कोयले की आँच तेज और लौ साफ होती है। इसकी कजली बहुत कम बनती है। कोयले में गंधक (सल्फर) बहुत कम होता है जिससे वह आग जल्दी पकड़ लेता है। कोयले के जलने से राख कम बनती है। कोयले का परिवहन आसान होता है।
ईंधन के अलावा कोयले का उपयोग रबर के सामानों जैसे टायर, ट्यूब, जूते के निर्माण में, पेंट, एनैमल पालिश, ग्रामोफोन व फोनोग्राफ के रिकॉर्ड, कारबन, कागज, टाइपराइटर के रिबन, चमड़े, जिल्द बाँधने की दफ्ती, मुद्रण की स्याही और पेंसिल के निर्माण में होता है। कोयले से कई रसायन भी प्राप्त होते है। कोयले से कोयला गैस भी तैयार होती है, जो प्रकाश और ऊष्मा प्राप्त करने में आजकल व्यापक रूप से प्रयुक्त होती हैं।
कोयले से रंगों और गैसों का अवशोषण किया जाता है। इसलिए कोयले का उपयोग ( Koyale ka upyog ) कई पदार्थों जैसे मदिरा, तेल, रसायन, युद्ध और अश्रुगैसों आदि के परिष्कार के लिये और अवांछित गैसों के प्रभाव को कम करने के लिये मुखौटों (mask) में होता है। इस तरह के उपयोग के लिए एक विशेष प्रकार का सक्रियकृत कोयला तैयार किया जाता है, जिसकी अवशोषण क्षमता बहुत अधिक होती है। कोयला बारूद का भी एक आवश्यक अवयव है।
भारत में कोयले के ओद्योगिक खनन की कहानी पश्चिम बंगाल के रानीगंज से शुरू हुई जहाँ ईस्ट इंडिया कंपनी ने नारायणकुड़ी इलाक़े में सन्न 1774 में पहली बार कोयले का खनन किया। लेकिन उस समय ओद्योगिक क्रांति भारत तक नही पहुँची थी। जिस वजह से भारत में कोयले का उपयोग ( Koyale ka upyog ) कम था और इसकी मांग भी कम थी। एक सदी तक भारत में बड़े पैमाने पर कोयला उत्पादन शुरू नहीं हुआ था।
सन्न 1853 में इंग्लैंड में भाप चलित रेल इंजन के विकास के बाद कोयले का उत्पादन और खपत दोनों में ही बढ़ोतरी हुई। 20वीं सदी की शुरुआत तक भारत में कोयला का उत्पादन 61 लाख टन प्रतिवर्ष तक पहुंच गया था। लेकिन आज़ादी के बाद ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत में कोयले – Coal की खपत बढ़ी। आज भारत कोयले के उत्पादन और खपत के मामले में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है।
भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 70 % से अधिक कोयला संचालित संयंत्रों पर निर्भर है। साल 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन सरकारी कम्पनियाँ ही करती हैं। भारत में 90 % से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है।
कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पान कम्पनियाँ अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं। भारत दुनिया के उन 5 देशों में शामिल है जहाँ कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं। दुनिया में कोयले के सबसे बड़े भंडार अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत के पास हैं।
कोयला क्या है ? What is Coal In Hindi
कोयला – Coal एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला बहुत महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का 35% से 40% भाग कोयलें से प्राप्त होता हैं। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किए जाते हैं।
ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम और उसके उत्पाद का नाम सबसे ऊपर है। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है। जिसके आधार पर कोयले को अलग अलग नाम दिए गए है। यह ऊर्जा का बहुत पुराण स्रोत है। यह जमीन के नीचे पाया जाता है। कोयले का निर्माण पेड़-पौधे व जीवो के दबने से हुआ है। कोयला मुख्यत: 3 प्रकार का होता है।
- काठ कोयला – यह कोयला लकड़ी की आग को बुझाने से प्राप्त होता है। लकड़ी का कोयला या काठ कोयला कहते है।
- पत्थर का कोयला – इस प्रकार का कोयला जमीन के अंदर से प्राप्त होता है। जमीन के अंदर से मिलने वाले कोयले को 4 भागों में बांटा गया है। एन्थ्रेसाइट (94-98%), बिटूमिनस (78-86%), लिग्नाइट (28-30%), पीट (27%)। इसे पत्थर का कोयला या कोयला कहते है।
- अस्थि कोयला – इस प्रकार का कोयला हड्डियों को जलाने से प्राप्त होता है। इसे हड्डी का कोयला या अस्थि कोयला कहते हैं।
कोयले का निर्माण कैसे हुआ ? How was coal formed in hindi ?
लगभग 300 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर निचले जलीय क्षेत्रों में घने वन थे। बाढ़, सुनामी, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण पेड़-पौधे और जानवर वन मृदा के नीचे दब गए।उनके ऊपर अधिक मृदा जम जाने के कारण वे संपिडित होते गये। जैसे-जैसे वे गहरे होते गये उनका ताप भी बढ़ता गया।
उच्च ताप और उच्च दाब के कारण पृथ्वी के भीतर मृत पेड़ पौधे और जानवर धीरे धीरे कोयले में परिवर्तित हो गये। कोयले में मुख्य रूप से कार्बन होता है। मृत वनस्पति के धीमे प्रक्रम द्वारा कोयले में परिवर्तन को कार्बनीकरण कहते हैं। क्योंकि कोयला वनस्पति के अवशेषों से बना है अतः कोयले को जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं।
कोयले की संरचना – Structure of Coal in hindi
कोयले में मुख्यतः कार्बन और उसके यौगिक रहते है। इसमें कार्बन व हाइड्रोजन के अतिरिक्त नाईट्रोजन, ऑक्सीजन तथा गंधक (Sulphur) भी मौजूद होते हैं। इसके अतिरिक्त फॉस्फोरस और कुछ अकार्बनिक द्रव्य भी पाया जाता है।
कोयला कितने प्रकार का होता है ? types of Coal
नमीरहित कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले को चार भागो में बांटा गया हैं, जो इस प्रकार है।
- एन्थ्रेसाइट (94-98%)
- बिटूमिनस (78-86%)
- लिग्नाइट (28-30%)
- पीट (27%)
- ऐन्थ़ासाइट (Anthracite)
ऐन्थ़ासाइट कोयला सबसे उच्च गुणवत्ता वाला कोयला – Coal होता है क्योंकि इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 % तक पाई जाती है। यह कोयला मजबूत, चमकदार काला होता है। इसका प्रयोग घरों तथा व्यवसायों में स्पेस-हीटिंग के लिए किया जाता है।
- बिटुमिनस (Bituminous)
यह कोयला भी अच्छी गुणवत्ता वाला माना जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा 77 से 80 % तक पाई जाती है। यह एक ठोस अवसादी चट्टान है, जो काली या गहरी भूरी रंग की होती है। इस प्रकार के कोयले का उपयोग भाप और विद्युत संचालित ऊर्जा के इंजनों में होता है। इस कोयले से कोक का निर्माण भी किया जाता है।
- लिग्नाइट (Lignite)
यह कोयला भूरे रंग का होता है और यह स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक हानिकारक होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 28 से 30 प्रतिशत तक होती है। इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
- पीट (Peat)
यह कोयले के निर्माण से पहले की अवस्था होती है। इसमें कार्बन की मात्रा 27 % से भी कम होती है। यह कोयला स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक होता है। यह घरेलू ईंधन मे काम आता है। कोयला और पेट्रोलियम परतद्दार चटानो मे पाया जाता है। कोयले का सर्वाधिक उत्पादन झरिया झारखण्ड मे किया जाता है।
कोयले का उपयोग – Coal Uses in hindi
कोयला ऊर्जा का सबसे सस्ता और सबसे आवश्यक स्रोत है। यहां आपको कोयले के प्रमुख उपयोग के बारे में बताया जा रहा है।
1. बिजली के उत्पादन में कोयले का उपयोग
कोयले का उपयोग थर्मल पावर उत्पादन करने में किया जाता है, जिससे बिजली उत्पादन किया जाता है। चूर्णित कोयले को उच्च तापमान पर जलाया जाता है जो पानी को भाप में बदल देता है। इस भाप का उपयोग मजबूत चुंबकीय क्षेत्र में टरबाइनों को तेज़ गति से घुमाने के लिए किया जाता है। जिससे बिजली पैदा होती है।
2. उद्योगों में – Koyale ka upyog
कुछ उद्योगों में उत्पादों के निर्माण के लिए कोयले का उपयोग किया जाता हैं। सीमेंट उद्योग, कागज और एल्यूमीनियम उद्योग, रसायन और फार्मा उद्योग में कोयले का उपयोग किया जाता है। कोयला रासायनिक उद्योगों को बेनोज़ल, कोल टार, अमोनियम सल्फेट, क्रेओसोट जैसे कई कच्चे माल देता है। अधिकांश उद्योगों में कोयले का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जाता है।
3. इस्पात के उत्पादन में कोयले का उपयोग
इस्पात उद्योग में कोयले का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से इस्पात बनाने के लिए किया जाता है। कोयला कोक बनाने के लिए कोयले को भट्टियों में पकाया जाता है। कोयला कोक बन जाने के बाद लौह अयस्क को गलाकर लोहा बनाने और स्टील बनाने के लिए कोयला कोक का उपयोग किया जाता है। अमोनिया गैस कोक ओवन से प्राप्त की जाती है और इसका उपयोग नाइट्रिक एसिड, अमोनिया लवण और उर्वरक बनाने के लिए किया जाता है।
4. गैसीकरण और द्रवीकरण में कोयले का उपयोग
कोयले को सिंथेटिक गैस में बदला जा सकता है जो कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण होता है। ये गैसें एक मध्यवर्ती उत्पाद होती हैं जिन्हें आगे चलकर यूरिया, मेथनॉल, शुद्ध हाइड्रोजन और अन्य विभिन्न उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है। कोयले को तरल पदार्थ में भी बदला जा सकता है जिसे सिंथेटिक ईंधन कहा जाता है।
कोयले से उत्पादित इन रसायनों का उपयोग मुख्य रूप से अन्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। बाजार में मौजूद अधिकांश उत्पादों में घटक के रूप में कोयला या कोयला उप-उत्पाद होते हैं। उनमें से कुछ में एस्पिरिन, सॉल्वैंट्स, साबुन, रंग, प्लास्टिक और फाइबर शामिल हैं जिनमें नायलॉन और रेयान शामिल हैं।
5. विशेषज्ञ उत्पाद – ( Koyale ka upyog )
कोयले का उपयोग सिलिकॉन धातु बनाने के लिए भी किया जाता है जिसका उपयोग सिलिकॉन और सिलेन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है, जिसका उपयोग स्नेहक, जल प्रतिरोधी, रेजिन, सौंदर्य प्रसाधन, बाल शैंपू और टूथपेस्ट बनाने के लिए किया जाता है।
एक्टिवेटेड चारकोल (सक्रिय कार्बन) का उपयोग फेस पैक और सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है। कार्बन फाइबर कोयले से बनता है। कार्बन फाइबर एक अत्यंत मजबूत लेकिन हल्की सुदृढ़ीकरण सामग्री है जिसका उपयोग निर्माण, माउंटेन बाइक और टेनिस रैकेट में किया जाता है।
सक्रिय कार्बन का उपयोग जल और वायु शोधन के लिए फिल्टर और किडनी डायलिसिस मशीनों में किया जाता है। सक्रिय कार्बन बनाने के लिए कोयले का उपयोग किया जाता है।
6. कोयले का घरेलू उपयोग
ठंडे क्षेत्रों और विकासशील या अविकसित देशों में कोयले का उपयोग अभी भी खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। ठण्ड के दिनों में तापने के लिए भी कोयले का उपयोग किया जाता है।
भारत में कोयला भंडार कहाँ कहाँ है ?
वर्तमान समय में उद्योगों तथा यातायात के विकास के लिये पत्थर का कोयला बहुत आवश्यक पदार्थ हैं। लोहे और इस्पात उद्योग में ऐसे उत्तम कोयले की आवश्यकता होती है जिससे कोक बनाया जा सके।
भारत में साधारण कोयले के भंडार तो प्रचुर मात्रा में हैं, लेकिन कोक उत्पादन के लिये उत्तम श्रेणी का कोयला अपेक्षाकृत सीमित है। भारत में कोयला मुख्यत: दो विभिन्न युगों के स्तरसमूहों में पाया जाता है।
- गोंडवाना युग (Gondwana Period)
- तृतीय कल्प (Tertiary Age)
इनमें गोंडवाना युग का कोयला उच्च श्रेणी का होता है। इसमें राख की मात्रा कम और ताप उत्पादन की शक्ति अधिक होती है। तृतीय कल्प युग का कोयला घटिया श्रेणी का होता है। इसमें गंधक की प्रचुरता होने के कारण यह कई उद्योगों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।
भारत में गोंडवाना युग के प्रमुख क्षेत्र झरिया (झारखंड) और रानीगंज (बंगाल) में स्थित है। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा, पेंचघाटी, उमरिया, सोहागपुर, सिगरेनी, कोठा गुदेम आदि हैं। भारत में उत्पादित सम्पूर्ण कोयले का 70 प्रतिशत केवल झरिया और रानीगंज से प्राप्त होता है।
तृतीय कल्प युग के कोयले लिग्नाइट और बिटूमिनश आदि के निक्षेप असम, कश्मीर, राजस्थान, तमिलनाडू और गुजरात राज्यों में है। मुख्य गोंडवाना विरक्षा तथा अन्य संबंधित कोयला निक्षेप प्रायद्वीपीय भारत में दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी और उनकी सहायक नदियों की घाटियों के अनुप्रस्थ एक रेखाबद्ध क्रम में वितरित हैं।
खानों से निकाले जाने वाला यह शक्तिप्रदायक खनिज मुख्यतः चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत में पाया जाता है। भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगना और महाराष्ट्र में हैं।
इसके अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम, सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी कोयले के भंडार है। जनवरी 2000 में किए गए आकलन के अनुसार भारत की खानों में कुल 211.5 अरब टन कोयले का भंडार है।
कोयला प्रक्षालन
पर्यावरण व वन मंत्रालय के निर्देशानुसार 34 % से अधिक राख वाले कोयले का उपयोग उन थर्मल पावर स्टेशनों में मना किया गया है जो लदान केन्द्रों से दूर और अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में स्थित हैं। ऐसे में प्रक्षालित कोयले का उपयोग जरुरी हो गया है। इससे पावर स्टेशनों के संचालन में कम खर्च आया है
थर्मल पावर स्टेशनों के लिए कोयला धुलाई केंद्रों की मौजूदा क्षमता 1080 लाख टन है जिसे बढ़ाकर 2500 लाख टन करने की कोशिश की जा रही है। इसमें से अधिकतर निजी क्षेत्र से संबंधित हैं। कोल इंडिया लिमिटेड कंपनी ने भी अपनी खदानों से धुले कोयले की आपूर्ति करने का फैसला किया है।
CBM And CMM
जो मिथेन गैस कोयले की अनछुई परतों से निकाली जाती है उसे कोल बेड मीथेन (CBM) कहते हैं और जो मिथेन गैस चालू खदानों से निकाली जाती है उसे कोल माइन मीथेन (CMM) कहते हैं। कोल बेड मीथेन तथा कोल माइन मीथेन के विकास को भारत सरकार ने 1997 में एक नीति के ज़रिए बढ़ावा दिया था। इस नीति के अनुसार कोयला मंत्रालय और पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय दोनों मिलकर कार्य कर रहे हैं।
सरकार ने वैश्विक बोली के तीन दौरों के ज़रिए कोल बेड मीथेन के लिए 26 ब्लॉकों की बोली लगाई थी। इनका कुल क्षेत्र 13,600 वर्ग किलोमीटर है और इसमें 1374 अरब घनमीटर गैस भंडार होने की संभावना है। वर्ष 2007 में रानीगंज कोयला क्षेत्र के एक ब्लॉक में वाणिज्यिक उत्पादन आरंभ कर दिया गया था
भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG)
भूमिगत कोयला गैसीकरण में अप्रयुक्त कोयले को दहनशील गैस में बदला जाता है। यह गैस उद्योगों, विद्युत उत्पादन तथा हाइड्रोजन सिंथेटिक प्राकृतिक गैस व डीजल ईंधन के निर्माण में प्रयुक्त की जाती है। भूमिगत गैसीकरण में उन कोयला भंडारों का दोहन करने की क्षमता है जिनका निष्कर्षण आर्थिक दृष्टि से मंहगा है। या फिर जो सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित नही है।
भूमिगत कोयला गैसीकरण
कोल इंडिया लिमिटेड कंपनी ने अपनी साझीदार कंपनियों के साथ मिलकर सीसीएल कमांड एरिया में रामगढ काेलफील्ड के कैथा ब्लाक और पश्चिमी कोल फील्ड लिमिटेड कमांड एरिया में पेंच कोलफील्ड के थेसगोड़ा ब्लाक में यूसीजी के विकास के लिये दो स्थल चिन्हित किए हैं।
कोयला द्रवीकरण
ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से देश में कोयला द्रवीकरण को बढावा देने के लिए नीतिगत निर्णय लिया गया है। गजट अधिसूचना जारी की गई है जिसमें कैप्टिव कोयलालिग्नाइट ब्लाकों के उन उद्यमियों को कोयला द्रवीकरण के बारे में जानकारी दी गई है जिन्हें इसे आबंटित किया जाना है।
कोयला मंत्रालय ने तलचर कोल फील्ड के दो कोयला ब्लाकों क्रमश: मैसर्स स्ट्रैटेजिक इनर्जी टेक्नोलोजी सिस्टम लिमिटेड (SETL) तथा मैसर्स जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (JSPL) को आवंटित किए हैं। मैसर्स SETL को उत्तरी अर्खा पाल श्रीरामपुर खंड तथा मैसर्स JSPL को रामचांदी खंड आवंटित किए गए हैं। हर परियोजना की प्रस्तावित उत्पादन क्षमता 80000 बैरल तेल प्रतिदिन है।
कोयला उत्पदान में क्या क्या समस्या आती है ?
भारत में 1200 मीटर की गहराई तक खदानों में कोयला खोदा जा रहा है। भारत में मिलने वाला अधिकतर कोयला खुली खदानों ( ओपन कास्ट माइन्स ) से निकाला जाता है। जैसे-जैसे खदान की गहराई बढ़ती जाती है कोयला – Coal निकालने का खर्च भी बढ़ता जाता है।
रानीगंज में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे और कोयला खदान हादसों पर किताब लिख चुके विमल गुप्ता जी कहते हैं – रानीगंज कोयलांचल में सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहाँ अधिकतर खदानें पुरानी पड़ गई हैं। खदानों में कोयला रहते हुए भी सही से उत्पादन नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह यह है कि खनन कंपनिया टार्गेट पूरा करने के लिए खनन तो कर रही हैं लेकिन खदान को सरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठा रही हैं
विमल जी कहते हैं – ऐसे में जब खदान में हादसा हो जाता है तो उससे उत्पादन प्रभावित होता है और फिर से खनन शुरू करने में समय लग जाता है। बारिश होने की वजह से खदानें धंस जाती है, जिसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।
भारत की कोयले पर निर्भरता
अब सवाल ये है कि क्या भारत कोयले – Coal पर निर्भरता कम कर पाएगा ? कोयला एक सीमित संसाधन है, जिसे एक न एक दिन ख़त्म होना है। बीते एक दशक में भारत की कोयले की खपत लगभग दोगुनी हो गई है। भारत अच्छी गुणवत्ता का कोयला आयात कर रहा है। साथ ही आने वाले सालों में कई दर्जन नई खदान खोलने की है
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुसार 1.4 अरब की आबादी वाले भारत में अगले 20 सालों में ऊर्जा की ज़रूरत किसी भी देश से सबसे अधिक होगी। पर्यावरण प्रतिबद्धताओं के तहत भारत अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास तो कर रहा है, लेकिन अभी भी कोयला ही सबसे सस्ता ईंधन है। लेकिन कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भी है
भारत के लिए कोयले – Coal से दूरी बनाना आसान नहीं होगा। कोयला हमारी ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं को पूरा करता है। भारत को अपनी बढ़ती ज़रूरतों के हिसाब से कोयले का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि अभी दूसरे स्रोतों से ज़रूरत पूरा करने लायक ऊर्जा हासिल नहीं की जा सकती है
निष्कर्ष
आशा करता हूँ आपको यह लेख ( Coal : कोयला क्या है ? भारत में कोयला भंडार कहाँ कहाँ है ? )अच्छा लगा होगा। इस लेख में मैंने कोयले के बारे में पूरी जानकारी दी है। यह कोयले के प्रकार, कोयले का निर्माण, कोयले का उपयोग और अन्य जानकारी आसान भाषा में दी गई है। यदि आपको इस लेख में कोई त्रुटि लगे तो आप comment Box में अपने विचार रख सकते है।
FAQ
Q : कोयला क्या काम आता है ?
Ans : कोयला मुख्य रूप से बिजली के उत्पादन में काम आता है। इसके अलावा सीमेंट उद्योग, कागज और एल्यूमीनियम उद्योग, रसायन और फार्मा उद्योग में और इस्पात के उत्पादन में काम आता है।
Q : भंजक आसवन क्या होता है ?
Ans : कोयले को हवा की अनुपस्थिति में 1000-1400 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करने पर कोलतार, कोल गैस, अमोनिया प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया को कोयले का भंजक आसवन कहते हैं।
Q : सबसे अच्छी किस्म का कोयला कौनसा है ?
Ans : ऐन्थ़ासाइट कोयला सबसे उच्च गुणवत्ता वाला कोयला होता है क्योंकि इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 % तक पाई जाती है।
Q : भारत में सर्वाधिक कोयला उत्पादक राज्य कौनसा है ?
Ans : झारखंड भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है।
Q : भारत में कोयला कहाँ कहाँ पाया जाता है ?
Ans : भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगना और महाराष्ट्र में हैं।
Q : विश्व में सबसे ज्यादा कोयला कहाँ पाया जाता है ?
Ans : चीन कोयले का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है।
Q : जीवाश्म ईंधन किसे कहते है ?
Ans : जीवाश्म ईंधन एक प्रकार का प्राकृतिक ईंधन है। जिसका निर्माण लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के और वनस्पति के जमीन में दबने से उच्च दाब और ताप के कारण हुई है। कोयला व पेट्रोलियम पदार्थ जीवाश्म ईंधन है।
Q : राजस्थान में सबसे ज्यादा कोयला कहाँ पाया जाता है ?
Ans : राजस्थान में लिग्नाइट कोयला मिलता है। लिग्नाइट (भूरा कोयला) राजस्थान में सर्वाधिक कपूरड़ी (बाड़मेर) में जबकि सर्वश्रेष्ठ कोयला पलाना (बीकानेर) में मिलता है।
Q : ऐन्थ़ासाइट कोयला भारत में कहाँ पाया जाता है ?
Ans : भारत में यह केवल जम्मू और कश्मीर में पाया जाता है।
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